स फर से लौट आया हूं। दो साल में पहली बार इतना लंबा अंतराल आया है इस शब्दयात्रा में। हमें तो इसकी कमी बहुत खली, आपको भी कुछ खालीपन तो महसूस हुआ होगा। आज से फिर नियमित रूप से हम चलेंगे शब्दों का सफर पर। फिलहाल एक हलकी-फुलकी पोस्ट। दैनिक भास्कर ने हाल ही में अपने कलेवर में बदलाव किया है। बदली हुई सज्जा में साप्ताहिक कॉलम शब्दों का सफर के स्वरूप में भी हलकी सी तब्दीली हुई है। सफर के जो साथी दैनिक भास्कर नहीं देख पाते हैं उनके लिए इसकी दो सप्ताह पूर्व प्रकाशित कड़ी यहां दे रहा हूं।

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कलेवर अच्छा रहा.. ढ़ाक के पात मजेदार है..
ReplyDeleteये बढ़िया रहा. न बड़ा करने की जरुरत और स्कैन एकदम साफ
ReplyDeleteढाक के तीन पात तो बहुत ख़ूब रहा।
ReplyDelete---
मिलिए अखरोट खाने वाले डायनासोर से
इसे आप हल्की कह रहे हैं अजीत भाई ????
ReplyDeleteमैं भी इसमें बहुत विशवास करती हूँ....एक बार पतिदेव ने किसी बात पर अत्यधिक क्रोधित होकर भोजन की थाल को फेंक दिया था और माता अन्नपूर्णा के इस अपमान के प्रायश्चित के लिए मैंने भी एक दिवसीय अनशन रखा था...
bhut dino bad aaj post padh pai hu.isliye
ReplyDeleteKHAMMA GAHNI AJIT SA
chuttiyo me hamne to chutti manai hi aap bhi chutte rahe ye jankar achambha hua .
naya rup badhiya hai.
Kiran
पुनः: स्वागत है आपका ..
ReplyDeleteचलो फिर से शुरू करें सिलसिला..................
तभी हम सोचते रहे हैं हमेशा से
ReplyDeleteढाक के तीन पात ही क्यों रहे
चार या छह काहे न हुए।
अशनम्- अशनाया या बुभुक्षा, अन+अशनम्-भूख रहित होजाना। प्रायश्चित स्वरूप तथा रोगों के निदान हेतु भी अनशन किया जाता था। सुंदर एवं सटीक व्याख्या। कलेवर भी सुंदर।
ReplyDeleteajeetbhai! aapkees column ka puranaaashiq hoon. yah pahle bhi padhata tha aur naye kalever men bhi padh raha hoon.
ReplyDeleteआप की वापसी का स्वागत है। कोटा के भास्कर में आप का यह कॉलम नजर नहीं आता।
ReplyDeleteअनशन में ताकत बहुत होती है अजमाई हुई बात है
ReplyDeleteशब्दों के सफर में आए अंतराल को ब्लॉगजगत, फेसबुक हर जगह महसूस किया जा रहा था। सूरज की पहली किरण के साथ इस शब्दयात्रा में शामिल होने की लोगों को आदत पड़ गयी है।
ReplyDeleteढाक और ढाका का संबंध बताने के लिए धन्यवाद।
awesome..!!! ...i wish this safer go to millions of miles...
ReplyDeleteबीच में मैं सोच रहा था कि कहीं फीड की प्रॉब्लम तो नहीं है... पर एक दिन इधर आया तो कोई अपडेट नहीं मिला. सफ़र से 'सफ़र' में वापसी पर स्वागत है.
ReplyDeleteअजित भाई रायपुर के भास्कर में भी यह कालम नहीं है ऐसा क्यों? भास्कर वालों को चिट्ठी लिखता हूँ
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी .
ReplyDeleteदैनिक भास्कर का कलेवर अच्छा लगा।
ReplyDeleteधन्यवाद।
3 दिन से मेरा भी नेट कनेक्शन गड़बड़ था।
बहुत ही अच्छी जानकारी,
ReplyDeleteआभार ।
कमी तो हमें भी खली भाई साहब।
ReplyDeleteअनशन का पराक्रम तो जाना लेकिन उससे भी दिलचस्प रहा जानना कि ढाक के तीन पात और ढाका का रिश्ता।
मुझे रायपुर भास्कर से सदा ही शिकायत रही है कि उसमें ब्लॉग कोना जैसा कुछ रहता नहीं है।
अब नए कलेवर में संपादकीय पेज पर जरुर हफ्ते में एक दिन भास्कर कर्मियों के ब्लॉग से कुछ न कुछ दिया जाता जरुर है। लेकिन वह इतने कोने में जा उतरता है कि लोगों की नजर ही नहीं पड़ती।
और आपका यह छपा हुआ तो रायपुर भास्कर में आया ही नहीं।
शब्दो के अन्न-जल से वन्चित हमे भी रक्खा,
ReplyDeleteअनशन पे चल रहे थे,अनशन करा रहे थे!
स्वागत!
ReplyDeleteअसल में इसे राजनीतिक चोला भी पापों के प्रायश्चित के लिए ही पहनाया गया था.
ReplyDeleteबहुत ही खूब
ReplyDeleteनया कलेवर सुन्दर है। ढाका, ढाक और उसके तीन पात की भी उत्पत्ति रुचिकर है।
ReplyDeleteअजिताराव, ढाक म्हणजे तेरडा का?
ReplyDeleteअजिताराव, ढाक म्हणजे तेरडा का? का पळस?
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