भा रतीय संस्कृति की विविधता उसके खान-पान, रीति-रिवाज़ों के साथ पहनावे में भी झलकती है। कुर्ता-पायजामा, धोती, साड़ी ये तीन ऐसे परिधान हैं जो प्राचीनकाल से भारतीयों की पहचान रही है। कुर्ता-पायजामा भारतीयों को सीथियनों की देन मानी जाती है जो मध्य एशिया के घास के मैदानों में निवास करनेवाली घुड़सवार घुमंतू जाति थी। भारत में ये आकर ये शक कहलाए। शाल भी इसी कड़ी में आनेवाला परिधान है।
सभी प्राचीन सभ्यताओं में सिलाई से पहले बुनाई की कला विकसित हुई। मनुष्य ने जब ताना-बाना की कला जानी उससे पहले उसके शरीर को ढकने का काम पशुओं की नर्म खाल, वृक्षों की छाल के जरिये होता था। हालांकि पशुओं की खालों से शरीर को ढकने के लिए उसे अनघड़ तरीके से सिलना मनुष्य ने सीख लिया था, मगर सुंदर-सुरुचिपूर्ण वस्त्रों का रूपाकार और टिकाऊ सिलाई के लिए जैसे उपकरणों की ज़रूरत होती है उसकी सूझ तो कपड़े का ताना-बाना रचने के बाद ही आई। प्रारम्भिक दौर में मनुष्य कपास या अन्य रेशों से कपड़ा बुनता था और उसे ही उत्तरीय और अधोवस्त्र की तरह शरीर के इर्दगिर्द लपेटता था। स्त्री-पुरुषों की धोती, उत्तरीय अथवा साड़ी के रूप में इनका प्रचलन आज भी जारी है।
शाल भी इसी कतार में आती है। शाल की पहचान देश के उत्तरी पर्वतीय क्षेत्रों से है। आज दुनियभर में अगर शाल का नाम जाना जाता है तो उसकी वजह कश्मीरी शाल है जहां की नर्म ऊन से बुनी शालों की गुनगुनी गर्माहट सबको लुभाती है। शाल शब्द की ठीक-ठीक व्युत्पत्ति कहीं नहीं मिलती मगर इस ऊनी परिधान का उल्लेख अत्यंत प्राचीनकाल से मिलता है। मौर्यकाल और उसके बाद बनी
कुर्ता-पायजामा भारतीयों को सीथियनों की देन मानी जाती है जो मध्य एशिया के घास के मैदानों में निवास करनेवाली घुड़सवार घुमंतू जाति थी। भारत में ये आकर ये शक कहलाए।
बुद्ध की जितनी भी प्रतिमाएं और चित्र है उनमें सब में बुद्ध शाल ओढ़े हुए ही नज़र आते हैं। कश्मीर समेत पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत में शाल उद्योग बहुत तरक्की पर था और यहां से रोम साम्राज्य तक इनकी मांग थी। शाल शब्द की बना है शाल्मलि से। शाल्मलि यानी कपास का पेड़ जिसे हम लोग सेमल का पेड़ कहते हैं। इस पेड़ पर लगनेवाले फल का गूदा इसके पकने के साथ ही सूख कर सफेद नरम रेशे में बदल जाता है। इसे ही सेमल की रुई कहा जाता है। सेमल शब्द शाल्मलि का ही अपभ्रंश है। सूती कपड़े की बुनाई से पहले मनुष्य पशुओं की खाल ही ओढ़ता था इसलिए शाल की व्युत्पत्ति संस्कृत के शल्क से भी लगाई जाती है जिसका अर्थ होता है पशु की खाल अथवा वृक्ष की छाल। गौरतलब है कि संस्कृत शब्द शल्कम से ही छाल बना है। इसका ही समानार्थी एक अन्य शब्द खल्कः है जिससे खाल शब्द बना। शाल्मलि वृक्ष को ही फारसी में साल कहते हैं। शाल्मलि का एक रूप शालः भी है जिससे शालिक शब्द बना है। शालिक का अर्थ होता है बुनकर, जुलाहा। कश्मीर की शाल ही पश्मीना कहलाती है। कश्मीरी भेड़ के नर्म रोंए से बनने वाली इस खास शाल की दुनियाभर में मांग है। संस्कृत की पस धातु से बने पक्ष्मल, पक्ष, पुस्त और पुच्छ जैसे शब्द बने है और इन सभी का रिश्ता खाल, ढंका हुआ,बाल ,ऊन, छिपाना जैसे अर्थों से जुड़ता है। इससे ही पोश जैसे हिन्दी, उर्दू और फारसी के कई शब्द बने हैं। पस् से ही बना संस्कृत का पक्ष्मल जिसके मायने हुए बड़े बड़े बाल वाला। यहां इसका मतलब भी पशुओं की खाल से ही है जो रोएं दार होती है। फारसी में ही पक्ष्मल का रूप बना पश्म यानी ऊन अथवा बाल। पश्मीं का मतलब हुआ ऊन से बना हुआ या ऊनी। पश्मीनः या पश्मीना जिसका मतलब हुआ बहुत ही नफीस ऊनी कपड़ा जिसकी मुलायमियत और मजबूती लाजवाब हो।
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पश्मीना जिसका मतलब हुआ बहुत ही नफीस ऊनी कपड़ा जिसकी मुलायमियत और मजबूती लाजवाब हो-यह तो हर विवाहित पुरुष को शुरु में ही पत्नी सिखा देती है-आज आपने दोहरवाया बस!! :)
ReplyDeleteअच्छा आलेख!
जानकारी देता हुआ,
ReplyDeleteसुन्दर लेख।
सफर बढ़िया रहा।
"शब्दों का सफर" - को सार्थक करते हुए जानकारियों से भरा आलेख।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
शब्दों का ये सफ़र इतिहास में अवस्थित सुदूर भूगोलों का दर्शन भी करा देता है. आज इस कड़ी में कनिष्क का कोट-पाजामा पहने धड का चित्र भी आ जाता तो ' icing on the cake' वाली बात हो जाती.
ReplyDeleteशाल की पत्री पढ़ता हुआ बहुत सुंदर आलेख! ।
ReplyDelete@संजय व्यास
ReplyDeleteशकों की ट्राऊजर पहने जिस चिर-परिचित मुद्रा का ध्यान आपको आ रहा है वह तस्वीर सफर के अजब पाजामा, ग़ज़ब पाजामा वाले पड़ाव पर लगाई थीं। शब्दों का अंतर्संबंध इतना गहरा होता है कि सभी कड़ियां उन्हीं संदर्भों के साथ सहेजने की इच्छा रहती है। नए पाठकों के लिए भी यह ज़रूरी है। प्रयास यही रहता है कि संबंधित पोस्ट का हायपर लिंक भी साथ दे दिया जाए। पर देर रात तक पोस्ट को पूरा करना और फिर संदर्भों से सजाना बड़ा वक्त खपाऊ काम है। अक्सर कर जाता हूं, कभी कभी चूक जाता हूं। आपका शुक्रिया कि याद दिलाया। अच्छा लगा। उक्त पोस्ट भी देखें।
बहुत नफ़ीस और लाज़वाब पोस्ट.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बढिया पोस्ट,हमेशा की तरह्।
ReplyDeletebahut hi achhi jankari rahi.
ReplyDeleteयह पोस्ट तो बहुत बढ़िया रही
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प्रेम सचमुच अंधा होता है – वैज्ञानिक शोध
सुन्दर लेख..
ReplyDeleteहमारी तो हमेशा एक ही टिप्पणी होगी : अनुपम !
ReplyDeleteachhi jankari kapas ki kpas se bne kapdi ki ,
ReplyDeleteun se bne kpdo ki .aapki post pdhakar mujhe nimadi lokgeet ki kuch panktiya yad aa gai .
fool ma fool kpas ko
o mhara ban malai
tun sara snsar kha dhakyo
biraj ka bn mali
ban malai re fool malai
biraj ka ban malai .
mai kafi der se koshish ka rhi hoo par hindi taip nhi ho rha hai
शाल पर आपने अच्छी जानकारी दी है, मुझे तलाश थी 'अंतिम अवतार' या 'कल्कि अवतार' पर भी आपने कुछ लिखा हो, तो लिंक भेजिये, और अगर लिखना चाहें तो देखें
ReplyDeleteantimawtar.blogspot.com
जिसमें सात धर्मों से मुहम्मद सल्ल. का हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में अंतिम अवतार होना साबित किया गया है
अल्लाह के चैलेंज
islaminhindi.blogspot.com
जानकारी साझा करने का बहुत बहुत शुक्रिया...
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया जानकारी दी है आपने आभार !
ReplyDeleteहमारी तो नेचुरल डेस है - बनियाइन पाजामा गर्मियों में और कुर्ता-पाजामा-शाल सर्दियों में। अत: यह पोस्ट भाई!
ReplyDeleteबनियान पर भी कुछ ठेला जाये।
कितना लम्बा सफर तय किया है शाल ने शाल कहलवाने के लिए
ReplyDeleteशाल के पूर्वजों के बारे में पढ़ना बहुत ज्ञानवधर््क रहा।
ReplyDeleteअब देखिये कितने समय से पश्मीना शाल पहनते व तोहफे में देते हैं..
ReplyDeleteइसका रेशमी अहसास सुकून देता है ..
इस पर चर्चा कर आपने बहुत शानदार जानकारी दी
धन्यवाद !!
मस्त जानकारियाँ !
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