
विकासक्रम में मनुष्य के रहन-सहन में जो बदलाव आए हैं वे उसके द्वारा उपयोग की जाने वाली दैनंदिन की सामग्रियों में साफ देखे जा सकते हैं। भारतीय व्यवस्था में कनस्तर और पीपा ऐसे शब्द हैं जो आज से दो दशक पहले तक खूब बोले सुने जाते रहे । इन शब्दों का प्रयोग आज भी होता है पर इनके इस्तेमाल का दायरा अब कस्बों और देहात तक सिमट गया है जबकि किसी ज़माने में यह शहरी गृहस्थी का भी खास हिस्सा था। कनस्तर शब्द का सफर बहुत पुराना है और पश्चिम एशिया की प्राचीनतम समृद्ध सुमेरियाई सभ्यता से इसकी रिश्तेदारी है। ग्रीक सभ्यता से भी सुमेरियों के संबंध थे। सुमेरियाई भाषा का प्रभाव ही सेमिटिक भाषाओं जैसे हिब्रू या अरबी पर पड़ा है।
सभ्यता के आरम्भिक दौर में मनुष्य ने जब अपनी अनघड़ सी गृहस्थी के सरंजाम जुटाना शुरू किए तो खुद की सुरक्षा के साथ उसे अपनी सामग्रियों की फिक्र भी थी। खुद को उसने वृक्षों की कोटर, पहाड़ों की कंदराओं में छुपाया। मगर जब निजी सामग्री को सहेजने-छुपाने की बारी आई तब फिर उसे ऐसे ही खोखले, पोले साधनों की आवश्यकता हुई जिसे वह अपने साथ ले जा सके। जाहिर है, आज से हजारों वर्ष पहले जब तकनालॉजी का विकास नहीं हुआ था, उसे बांस से बेहतर और क्या नजर आ सकता था। सामान को सुरक्षित रखने के आज जितने भी उपकरण या व्यवस्थाएं हैं उनके मूल में है पोलापन, खोखला स्थान या खाली जगह जहां किसी वस्तु को रखा जा सके। प्राचीनकाल में बांस की पोल में मनुष्य ने वस्तुओं के आश्रय की व्यवस्था खोजी, वह आज तक चली आ रही है।
हिन्दी क्षेत्रों मे कनस्तर बहुत आम शब्द रहा है और ज्यादातर लोग इसे हिन्दी भाषा का ही मानते हैं। कनस्तर भारत में अंग्रेजी भाषा से आया जहां इसका रूप है कैनिस्टर (canister). कनस्तर शब्द मूल रूप से ग्रीक भाषा के कैनेस्ट्रॉन kanystron से बना है जिसका मतलब होता है बांस से बनाई गई टोकरी। ग्रीक कैनिस्ट्रॉन का लैटिन रूप हुआ कैनिस्ट्रम canistrum जिसमें सींखों या टहनियों से बनी छोटी डलिया का भाव था। अंग्रेजी का कैनिस्टर इसी का बदला हुआ रूप है। यूरोपीय औद्योगिक क्रांति के बाद कैनिस्टर के कई रूप सामने आए। मुख्यतः तरल पदार्थों के घरेलु भंडारण के लिए सुरक्षित पात्र के तौर इस शब्द का इस्तेमाल शुरू हुआ। पेट्रोल, तेल इसमें प्रमुख थे। ये विभिन्न आकारों में नज़र आने लगे। बेलनाकार से लेकर चौकोर डब्बेनुमा कनस्तर बनने लगे जिनका निर्माण बांस, लकड़ी से लेकर धातु तक से होने लगा। बाद के दौर में प्लास्टिक व अन्य सिंथेटिक पदार्थों से इनका निर्माण शुरु हुआ।
ग्रीक शब्द कैनेस्ट्रॉन के मूल में दरअसल केन शब्द है जिसका मतलब होता है बांस या सरकंडेनुमा पोले तने वाली एक वनस्पति। गौरतलब है कि अंग्रेजी का केन भी मूलतः ग्रीक शब्द कैन्ना kannah का परिवर्तित रूप है जो लैटिन में भी कैन्ना canna ही रहा। मूलतः यह शब्द असीरियन धातु गनु qanu से ग्रीक में दाखिल हुआ। सेमिटिक भाषा के ग ज ध्वनियों का रुपांतर यूरोपीय भाषाओ में क में होता रहा है। प्राचीन हिब्रू में एक शब्द है क़ैना(ह) यानी qaneh जिसका मतलब है लंबा-सीधा पोले तने वाला वृक्ष। सरकंड़ा या बांस का इस अर्थ में नाम लिया जा सकता है। यही शब्द ग्रीक ज़बान में कैना(ह) kannah के रूप में मौजूद है। अर्थ स्पष्ट है कि प्राचीनकाल में चौड़े और पोले तने वाले बांस की खोखल का प्रयोग लोगों ने वस्तुओं को सुरक्षित रखने में किया। पेयजल का भंडारण बांस के पोले तने में किया जाता था। पूर्वी देशों में जहां के सामाजिक जीवन में बांस का महत्व है, बांस की इसी पोल में आज भी खाद्य सामग्री रखी जाती है। वस्तु संग्रहण के लिए जब बड़े आकार की ज़रूरत हुई तब इसी कैन्ना यानी बांस की खपच्चियों से डलिया आदि बनाए जाने लगे जिसे ही ग्रीक में कैन्ना कहा गया। तरल पदार्थों के भंडारण के लिए आज भी केन शब्द खूब प्रचलित है। सुराही या मटकानुमा व्यवस्था को यूरोपीय संस्कृति में केन ही कहा जाता है। आधुनिक यूज एंड थ्रों की संस्कृति में केन गिलासनुमा एक ऐसे पात्र के तौर पर सामने आया है जिसमें शराब, बियर से लेकर अन्य शीतपेय तक पैकबंद मिलते हैं। यह केन उसी प्राचीन बांस आधारित तरल पदार्थों के
भंडारण की व्यवस्था से जुड़ रहा है। केन से बना यही कैनिस्टर लम्बे समय तक मध्यवित्त परिवारो की गृहस्थी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। गौरतलब है कि इसी केन से हिन्दी, अंग्रेजी, अरबी में और भी महत्वपूर्ण शब्दों का निर्माण हुआ है मसलन केन यानी छड़ी, कानून यानी नियम, शुगर केन और गन्ना आदि।
वस्तुओं के भंडारण की व्यवस्था से जुड़ा एक दूसरा शब्द है पीपा जिसका प्रयोग भी अब भी होता है। भारत में पीपा शब्द पुर्तगालियों की देन माना जाता है। पुर्तगाली जब भारतीय तटों पर उतरे तब ड्रम या कनस्तर जैसी वस्तु के लिए वे पीपा शब्द का प्रयोग करते थे। मूलतः यह पांच गैलन का एक कनस्तर होता था जिसमें आमतौर पर शराब या अन्य तरल पदार्थ होता था। पीपा बना है लैटिन के पाइपेयर pipare शब्द से जिसका अर्थ होता है खोखला तना या नाली। लैटिन पाइपेयर से ही बना है अंग्रेजी का पाईप pipe शब्द जिसका मतलब होता है खोखला बांस, नाली, नल आदि। अंग्रेजी में पाईप का मतलब एक वाद्ययंत्र भी होता है जिसे फूंक से बजाया जाता है। पाईप की तर्ज पर ही गत्ते या पत्तों से बनाई जाने वाली बेलनाकार फूंकनी को हिन्दी में भी पींपीं या पींपनी कहते हैं। बांस के पोलेपन का वाद्य तकनीक में भारत में भी उपयोग हुआ और बांस से बन गईं बांसुरी। गौरतलब है कि बांस के लिए संस्कृत में वंश शब्द है और इससे ही वंशी भी बना। पुर्तगालियों द्वारा लाए गए पीपे का स्त्रीवाची शब्द भारतीयों ने खुद पीपी के रूप में ढूंढ निकाला जिसका अर्थ छोटे आकार का पीपा होता है।
सामान को सुरक्षित रखने के आज जितने भी उपकरण या व्यवस्थाएं हैं उनके मूल में है पोलापन, खोखला स्थान या खाली जगह जहां किसी वस्तु को रखा जा सके





सभ्यता के आरम्भिक दौर में मनुष्य ने जब अपनी अनघड़ सी गृहस्थी के सरंजाम जुटाना शुरू किए तो खुद की सुरक्षा के साथ उसे अपनी सामग्रियों की फिक्र भी थी। खुद को उसने वृक्षों की कोटर, पहाड़ों की कंदराओं में छुपाया। मगर जब निजी सामग्री को सहेजने-छुपाने की बारी आई तब फिर उसे ऐसे ही खोखले, पोले साधनों की आवश्यकता हुई जिसे वह अपने साथ ले जा सके। जाहिर है, आज से हजारों वर्ष पहले जब तकनालॉजी का विकास नहीं हुआ था, उसे बांस से बेहतर और क्या नजर आ सकता था। सामान को सुरक्षित रखने के आज जितने भी उपकरण या व्यवस्थाएं हैं उनके मूल में है पोलापन, खोखला स्थान या खाली जगह जहां किसी वस्तु को रखा जा सके। प्राचीनकाल में बांस की पोल में मनुष्य ने वस्तुओं के आश्रय की व्यवस्था खोजी, वह आज तक चली आ रही है।
हिन्दी क्षेत्रों मे कनस्तर बहुत आम शब्द रहा है और ज्यादातर लोग इसे हिन्दी भाषा का ही मानते हैं। कनस्तर भारत में अंग्रेजी भाषा से आया जहां इसका रूप है कैनिस्टर (canister). कनस्तर शब्द मूल रूप से ग्रीक भाषा के कैनेस्ट्रॉन kanystron से बना है जिसका मतलब होता है बांस से बनाई गई टोकरी। ग्रीक कैनिस्ट्रॉन का लैटिन रूप हुआ कैनिस्ट्रम canistrum जिसमें सींखों या टहनियों से बनी छोटी डलिया का भाव था। अंग्रेजी का कैनिस्टर इसी का बदला हुआ रूप है। यूरोपीय औद्योगिक क्रांति के बाद कैनिस्टर के कई रूप सामने आए। मुख्यतः तरल पदार्थों के घरेलु भंडारण के लिए सुरक्षित पात्र के तौर इस शब्द का इस्तेमाल शुरू हुआ। पेट्रोल, तेल इसमें प्रमुख थे। ये विभिन्न आकारों में नज़र आने लगे। बेलनाकार से लेकर चौकोर डब्बेनुमा कनस्तर बनने लगे जिनका निर्माण बांस, लकड़ी से लेकर धातु तक से होने लगा। बाद के दौर में प्लास्टिक व अन्य सिंथेटिक पदार्थों से इनका निर्माण शुरु हुआ।
ग्रीक शब्द कैनेस्ट्रॉन के मूल में दरअसल केन शब्द है जिसका मतलब होता है बांस या सरकंडेनुमा पोले तने वाली एक वनस्पति। गौरतलब है कि अंग्रेजी का केन भी मूलतः ग्रीक शब्द कैन्ना kannah का परिवर्तित रूप है जो लैटिन में भी कैन्ना canna ही रहा। मूलतः यह शब्द असीरियन धातु गनु qanu से ग्रीक में दाखिल हुआ। सेमिटिक भाषा के ग ज ध्वनियों का रुपांतर यूरोपीय भाषाओ में क में होता रहा है। प्राचीन हिब्रू में एक शब्द है क़ैना(ह) यानी qaneh जिसका मतलब है लंबा-सीधा पोले तने वाला वृक्ष। सरकंड़ा या बांस का इस अर्थ में नाम लिया जा सकता है। यही शब्द ग्रीक ज़बान में कैना(ह) kannah के रूप में मौजूद है। अर्थ स्पष्ट है कि प्राचीनकाल में चौड़े और पोले तने वाले बांस की खोखल का प्रयोग लोगों ने वस्तुओं को सुरक्षित रखने में किया। पेयजल का भंडारण बांस के पोले तने में किया जाता था। पूर्वी देशों में जहां के सामाजिक जीवन में बांस का महत्व है, बांस की इसी पोल में आज भी खाद्य सामग्री रखी जाती है। वस्तु संग्रहण के लिए जब बड़े आकार की ज़रूरत हुई तब इसी कैन्ना यानी बांस की खपच्चियों से डलिया आदि बनाए जाने लगे जिसे ही ग्रीक में कैन्ना कहा गया। तरल पदार्थों के भंडारण के लिए आज भी केन शब्द खूब प्रचलित है। सुराही या मटकानुमा व्यवस्था को यूरोपीय संस्कृति में केन ही कहा जाता है। आधुनिक यूज एंड थ्रों की संस्कृति में केन गिलासनुमा एक ऐसे पात्र के तौर पर सामने आया है जिसमें शराब, बियर से लेकर अन्य शीतपेय तक पैकबंद मिलते हैं। यह केन उसी प्राचीन बांस आधारित तरल पदार्थों के

वस्तुओं के भंडारण की व्यवस्था से जुड़ा एक दूसरा शब्द है पीपा जिसका प्रयोग भी अब भी होता है। भारत में पीपा शब्द पुर्तगालियों की देन माना जाता है। पुर्तगाली जब भारतीय तटों पर उतरे तब ड्रम या कनस्तर जैसी वस्तु के लिए वे पीपा शब्द का प्रयोग करते थे। मूलतः यह पांच गैलन का एक कनस्तर होता था जिसमें आमतौर पर शराब या अन्य तरल पदार्थ होता था। पीपा बना है लैटिन के पाइपेयर pipare शब्द से जिसका अर्थ होता है खोखला तना या नाली। लैटिन पाइपेयर से ही बना है अंग्रेजी का पाईप pipe शब्द जिसका मतलब होता है खोखला बांस, नाली, नल आदि। अंग्रेजी में पाईप का मतलब एक वाद्ययंत्र भी होता है जिसे फूंक से बजाया जाता है। पाईप की तर्ज पर ही गत्ते या पत्तों से बनाई जाने वाली बेलनाकार फूंकनी को हिन्दी में भी पींपीं या पींपनी कहते हैं। बांस के पोलेपन का वाद्य तकनीक में भारत में भी उपयोग हुआ और बांस से बन गईं बांसुरी। गौरतलब है कि बांस के लिए संस्कृत में वंश शब्द है और इससे ही वंशी भी बना। पुर्तगालियों द्वारा लाए गए पीपे का स्त्रीवाची शब्द भारतीयों ने खुद पीपी के रूप में ढूंढ निकाला जिसका अर्थ छोटे आकार का पीपा होता है।
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मुझे तेल के कनस्तरों से बने विभिन्न आकारों के पीपे अभी तक स्मरण हैं।
ReplyDeleteपीपा और कनस्तर तो हाल-हाल तक प्रयोग किये गये। जरीकेन हजारों की संख्या में बनते रहे हैं हमारे यहां!
ReplyDeleteनयी जानकारियों के साथ प्रशंसनीय आलेख अजीत जी।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बढ़िया जानकारी है कनस्तर के बारे में. अभी तक तो हम यही सोच रहे थे की इसका कान के (ध्वनि) स्तर से कोई सम्बन्ध है.
ReplyDeleteजानकारियों का व्यवस्थित प्रस्तुतिकरण करते हैं आप । कनस्तर के बारे में जानकर अच्छा लगा । आभार ।
ReplyDeleteकनस्तर के बारे में अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद |गावो में अभी भी बांस की चिपियो से अनाज रखने के लिए कोठिया बनाई जाती है और उसे अन्दर बाहर से पीली चिकनी मिटटी से चिकना किया जाता है |
ReplyDeleteaanand se abhibhoot kar diya
ReplyDeleteatyant rochak shaili me jaankaari dene ka aapka andaz man ko bhata hai
waah waah
badhaai
abhinandan !
कनस्तर और पीपो का अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
ReplyDeleteबधाई!
बोतल पर कुछ लिखिए। यह भी एक पोली चीज होती है। हमलोगों के यहाँ मानसिक रूप से मन्द लोगों को बोतल कहते हैं। जो और मन्दमति होटल हैं उनको 'बिना ढक्कन का बोतल' कहते हैं। क्यों कहते हैं, मुझे नहीं पता। आप कुछ बता सकें तो मेहरबानी हो।
ReplyDeleteपीपे और कनस्तर का एक दुसरे से सम्बध की जानकारी अच्छी लगी । धन्यवाद
ReplyDeleteपीपा और कनस्तर का प्रयोग तो आज भी हो रहा है हमारे यहाँ . लेकिन यह विदेशी शब्द हिंदी के ही लगते है .
ReplyDeleteअजित भाई,
ReplyDeleteशोधपूर्ण आलेख, नयी जानकारियां मिलीं; बधाई !
लेकिन ये चुप-सी क्यों लगी है ? --आ.
"हम तो सोचे थे ई कनस्तरवा हमरे हियाँ का शब्द है ई तो बिदेसी निकला .ई का भरा रहा हमार दिमाग के पीपा मे"
ReplyDeleteacchha shirshak dia hai aapne ajit bhai!
ReplyDeleteaur theek ba noo sab kucchh. barish ka anand utha rahe hain na!
haaaaa ajit jee bahut ache likhe hain aap
ReplyDeleteअसली घी = डालडा घी
ReplyDeleteडालडा दा जवाब नईं
असली घी के तो नाम से ही कोलेस्ट्रोल बढ जाता है.
ReplyDeleteगांव जाइए सर तो अभी भी कई घरों के ट्वॉयलेट में डालडा का डिब्बा पानी भरने के काम में लाने के लिए रखा मिल जाएघा
ReplyDeleteपहले कागज़ के लिफाफों में सामान दिया जाता था. किरानेवाले के सर के ऊपर एक सूत की चरखी लटकती थी जिसमें से धागा खींचकर वह फर्र्र से पैकेट लपेटता था. उस लिफाफे को मेरी दादी ठोंगा कहती थीं. यह शब्द छत्तीसगढ़ में चलता है.
ReplyDelete@निशांत मिश्र
ReplyDeleteइसी ठोंगे को कोन कहते हैं निशांत जिसमें पॉपकार्न, मूंगफली और चने-परमल खाए जाते हैं।