मूंगफली को हमेशा से ही गरीबों का मेवा कहा जाता है। यूं काजू, बादाम, पिस्ता जैसे मेवों को आसमान छूती कीमतों की वजह से बहुत गुणकारी समझे जाते हैं,पर वैज्ञानिक तौर पर यह सही नहीं है। मूंगफली में मांस और दूध से भी अधिक मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। मूंगफली छीलते हुए गपशप करना आम हिन्दुस्तानी का प्रिय शग़ल है। टाईमपास मूंगफली जैसा मुहावरा हिन्दी में आम है। कहने की ज़रूरत नहीं कि स्वाद में भी मूंगफली अन्य मेवों से कहीं पीछे नहीं है। मूंगफली से कई स्वादिष्ट व्यंजन और स्वल्पाहार की मीठी-नमकीन सामग्रियां बनती हैं। सोयाबीन और अन्य परिशुद्ध तेलों का चलन शुरु होने से पहले तक सरसों, तिल और मूंगफली का तेल ही उत्तर भारत की आहार प्रणाली का प्रमुख अंग रहा है। अब इन तिलहनों के रिफाइंड रूप भी प्रचलित हैं।
मूंगफली नाम के साथ जुड़े मूंग शब्द का क्या अर्थ होता है? सामान्यतौर पर हम जिस मूंग से परिचित हैं वह मूंगदाल होती है। मगर ज़मीन के भीतर उगने वाली फली के साथ इस शब्द की रिश्तेदारी समझना कठिन है। दरअसल मूंगफली से मूंग शब्द का कोई रिश्ता है ही नहीं। आज से कुछ सदी पहले दक्षिण भारत में मूंगफली को भूमिफली कहा जाता था। मूंगफली की आमद भारत में पुर्तगालियों के जरिये हुई। मूंगफली मूलतः दक्षिण अमेरिकी फसल है जहां इंका समुदाय के बीच यह मनुष्यों और पशुओं का प्रिय आहार रहा। कोलंबस द्वारा अमेरिका की खोज किए जाने के बाद वहां स्पेनियो-पुर्तगालियों के फेरे बढ़ गए और उनके जरिये बाकी दुनिया इससे परिचित हुई। ऐसा माना जाता है कि सोलहवी सदी के आसपास जेसुइट पादरी इसके बीज भारत में लेकर आए। ज़मीन में रोपने के बाद इसका पौधा सामान्य फसल की तरह से भूमि से ऊपर पनपता है मगर असली उपज ज़मीन के अंदर फली के रूप में उगती है। यूरोपीयों ने इसी वजह से इसका नाम ग्राऊंडनट रखा था जिसकी तर्ज पर इसे भूमिफली कहा जाने लगा। महाराष्ट्र-गुजरात से यह नाम उत्तर भारत में लोकप्रिय होना शुरू हुआ मगर इसके उच्चारण में फर्क आ गया। वजह थी, इसके जन्म से जुडे कारण का जैसा ज्ञान महाराष्ट्रवासियों को शुरुआती दौर में रहा, कालांतर में भूमिफली अर्थात ज़मीन के भीतर उगनेवाली फली के तौर पर यह नाम बदल कर उच्चारण के आधार पर भूमफली, मूमफली हो गया। मूमफली से चूंकि कोई अर्थ ध्वनित नहीं हो रहा था सो उत्तरभारत में यह मूंगफली के तौर पर प्रचलित हो गया। यह भी मान्यता है कि मैगेलन ने जब पृथ्वी का चक्कर लगाया था उस दौर में फिलीपींस के द्वीपो में उसने मूंगफली के बीज भी स्थानीय निवासियों को दिए थे। बाद में
इनका प्रसार मलेशिया, जावा-सुमात्रा में भी हुआ।
ग्राऊंडनट के अलावा अंग्रेजी में मूंगफली को पीनट भी कहा जाता है। अंग्रेजी में नट का मतलब होता है कठोर कवचयुक्त बीज। पी pea शब्द प्रोटो इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार का बहुत महत्वपूर्ण शब्द है। गौरतलब है कि भारोपीय भाषा परिवार की संस्कृत और यूरोपीय भाषाओं की प वर्णक्रम की ध्वनियां एक दूसरे में बदलती हैं। जैसे संस्कृत का पितृ अंग्रेजी में फादर हो जाता है। देवनागरी के ब व्यंजन अथवा ध्वनि में बढ़ने, उगने का भाव है। इससे ही बनता है बीज। अग्रेजी के पी pea से बीज की समानता पर गौर किया जाना चाहिए। प्राचीन यूरोपीय भाषाओं में भारोपीय मूल की थ्रेशियन भाषा(बुल्गारिया, ग्रीस और तुर्की का यूरेशियाई क्षेत्र)से आया है जिसका अर्थ होता है बीज, अनाज, मक्का या गेहूं। समझा जा सकता है कि पादपों के बारे में अधिक जानकारी होने से पूर्व मानव जिस वनस्पति आहार से परिचित हुआ उसे उसने भूमि से उगने की प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए बीज या पी कहा। ऐसे सभी खाद्य जो मूख्यतः बीज रूप में खाए जाते हैं, अन्न कहलाए। पश्चिम में इसे पी के रूप में व्यापक अर्थवत्ता मिली। बीज शब्द के मूल में संस्कृत की वी धातु मानी जाती है जिसमें जन्म लेना, गर्भधारण करना, उत्पन्न होना, खाना आदि भाव निहित हैं। पी और वी की समानता क्या यूं ही है?
ऐसा माना जाता है कि भारत के धुर दक्षिणी छोर जो किसी ज़माने में विशाल कन्नड़ साम्राज्य का हिस्सा था, में मूंगफली की खेती होती थी। कुछ विदेशी संदर्भो में इसे यूरोपीयों के द्वारा लाई गई पीनट्स का देशावरी रूप कहा गया। मगर इस बात का प्रमाण भी मिलता है कि मद्रास राज्य में इस फसल का स्थानीय नाम मनीलाकोट्टाई था। इसका मतलब हुआ मनीला की फली। मैगेलन अपने अभियान के दौरान फिलीपींस द्वीप समूह तक पहुंचा था। मनीला फली नाम से जाहिर है कि भारत के दक्षिणी हिस्से में इसे पूर्वी एशिया से ही लाया गया था। जो भी हो, पूर्वी दुनिया में ही आज सर्वाधिक मूंगफली का उत्पादन होता है। भारत और चीन मिलकर दुनियाभर के मूंगफली उत्पादन का आधा हिस्सा पैदा करते हैं। प्रसंगवश भारत में तिलहनी फसलों का पमाण सिंधु घाटी सभ्यता के वक्त से मिलता है। इसके अलावा पौराणिक ग्रंथों और धर्मशास्त्रों में कई कर्मकांडों का उल्लेख आता है जिनमें तिल और तेल का महत्व बताया गया है। प्राचीन भारतीय अलसी, करड़ी, सरसों, बिनौला, नारियल आदि कई तरह के वनस्पति तेलों से परिचित थे।
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मूंगफली की अच्छी चर्चा। बचपन में मैं ने देखा है कि मूंगफली को खाने के लिए तो काम में लिया जाता था लेकिन तेल के बतौर उसे घटिया समझा जाता था और तिल्ली के तेल को उस पर तरजीह दी जाती थी।
ReplyDeleteशानदार है मूंफाली का सफ़र
ReplyDeleteमूंगफली पर टाईम पास तो सुना था मगर इतनी चर्चा और विस्तार-पहली बार देखा. आपके बस का ही है.
ReplyDeleteमूँगफली का सफर बढ़िया रहा। जानकारी के साथ-साथ टाइम पास भी हो गया।
ReplyDeleteमूँगफली खाते हुए कभी महसूस नहीं हुआ कि इतना कुछ कहने के लिये भी उसका उपयोग है । काफी विस्तार से और सर्वांगीण जानकारी दी आपने । आभार ।
ReplyDeleteआज भी अनपढ़ अधपढ़ समुदाय में मूंगफली को मूमफली कहा जाता है जिसे शिक्षित वर्ग अपभ्रंश जानकर खारिज करता रहा है | उसके बीज से बने विविध व्यंजन व्रत -उपवास के दिनों में शौक से खाए जाते हैं | ये तत्काल ऊर्जा प्रदान करते है और सीमित मात्रा में गुड के साथ खाए जाने पर पेट को साफ़ भी रखते हैं | मूंगफली रेल के सफ़र से शब्दों में सफ़र में उतरी है तो एक छवि उभरती है कि पैंट शर्त पहने संभ्रांत से दिखने वाले मुसाफिर अपनी सीटों के नीचे छिलके फैला रहे हैं और राजनीति की बातें कर रहे हैं | उनके शब्द और सीट गन्दगी से भर जाते हैं मैं मूर्ख सा मौन रख खिड़की के बाहर पशुओं की कतारें देखता रहता हूँ जो अधिक भला लगता है |
ReplyDeleteरात को डिनर में dessert के तौर पर गुडपट्टी लेना तय रहा !
- RDS
भूमिफली....मूंगफली.
ReplyDelete=================
बात साफ़ है.....
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
मूंगफली के सफर में आपने जो हरा हरा मूंगफली का छोटा सा पौधा दिखाया है उसे निमाड़ में गोड़ कहते है इसे देखकर और आपका आलेख पढ़कर उस गोड़ की मिटटी युक्त खुशबु का अहसास हो आया .बचपन में खेत से तोड़कर गोड़ खाने की याद ताजा हो गई .
ReplyDeleteआभार
bahut khoob
ReplyDeletesada ki bhanti.................
पी, वी और ममफली ।
ReplyDeleteबताई आप ने बौत भली ।।
आलू और टमाटर पर भी कृपा करें। सुना है एक को पुर्तगाली लाए तो दूसरे को ब्रिटिश। क्या यह सच है?
शानदार सफर मूंगफली ka
ReplyDeleteयह सफ़र भी सुहाना रहा!
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चाँद, बादल और शाम
@दिनेशराय द्विवेदी
ReplyDeleteसही कह रहे हैं दिनेशभाई। मूंगफली की खेती वाले क्षेत्रों में ही इस तेल का प्रयोग अधिक होता है। मालवा, हाड़ौती में तो तिल का या सरसों का तेल ही ज्यादा प्रयोग में लाया जाता है। मूंगफली के तेल में एक किस्म की गंध होती है। वैसे रिफाइंड में यह गायब हो जाती है। मैने जोधपुर में मूंगफली के तेल से बने अचार बिकते देखे हैं। स्वादिष्ट भी लगे। अचार में ज्यादातर सरसों का तेल ही प्रयुक्त होता रहा है।
kकई दिन से इस सफर मे शामिल नहीं हो सकी कितने ही शब्द खो गये मगर धीरे धीरे पढूँगी जरूर इस पोस्ट के लिये धन्यवाद अब मुंगफली का मौसम आयेगा तो आपकी ये पोस्ट जरूर याद आयेगी आभार्
ReplyDeleteचीन में मूंग फल्ली का उत्पादन सबसे अधिक होता है इसलिये इसे चाईना बादाम भी कहते है हमारे घर के पास से रोज़ शाम अंगीठी पर रखे तवे पर भूंजने वाला झारा टन से मारते हुए एक मूंगफल्ली वाला गुजरता है कहते हुए ..”लेsssss चीना बदाम लेssss “ स्टेशन पर , पुरानी टाकीजों में गूंजते हुई .. “ले.. मोम्फल्ली ले.. “ की आवाज़ें याद है . यह आपने अच्छा विषय सुझाया दुनिया में अब तक किसीने मूंग फल्ली पर कविता नहीं लिखी है . मैं प्रयास करता हूँ.
ReplyDelete@RDS
ReplyDeleteबहुत बढ़िया टिप्पणी दी है रमेश भाई आपने। मूंगफली संस्कृति के एक महत्वपूर्ण आयाम की और ध्यान आकर्षित किया है आपने।
wah humein to ab bhi yaad hai nainital ki sadkon main(mall road) wo mungfali khana..
ReplyDeletekale namak se to maza doogna ho jata tha...
अजी, हम तो अभी भी खाते हैं, मूंगफली बड़े शौक से...
ReplyDeleteबैठे-बैठे भूख लगी,
ReplyDeleteखा ले बेटा मूंगफली.
[सो खा ली हमने मूंगफली !]
अच्छा आलेख, सुबह के नाश्ते जैसा...
वी और पी में सम्बन्ध तो अवशय है, ये मैं [I] कह रहा हूँ.
नोट:- इत्तेफाक से आज [२५.७.०९] भोपाल ही में बैठ कर ये कमेन्ट दे रहा हूँ, फ़ोन नंबर होते तो संपर्क करता, रविजी के नंबर भी याद नहीं रहे है.
अजीत साहब,
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर इतनी अच्छी पोस्ट आती है कि सहेज कर रखने को जी चाहता है.शब्दों के उद्भव और व्युत्पत्ति को वेहद रोचक और सरल तरीके से समझाया है आपने.भूमिफली, मूमफली से मूंगफली बन गई...पी और बीज का सम्बन्ध ..!
बहुत अच्छी पोस्ट के लिए आभार.
प्रकाश पाखी