मु र्गे की बांग का सुबह से रिश्ता तो सदियों से जगजाहिर है मगर इसका संस्कृत और कैलेन्डर से भी अजीब मगर गहरा रिश्ता है। आम तौर पर हिन्दी में प्रचलित अंग्रेजी के कैलेन्डर का मतलब पोथी, तिथिपत्र या जंत्री आदि होता है मगर बोलचाल की हिन्दीं में कोई भी इस अर्थ में इन शब्दों का प्रयोग नहीं करता। साल, महिना, तारीख के संदर्भ में कैलेन्डर से सबका काम चल जाता है। अलबत्ता हिन्दी में पंचांग शब्द का खूब प्रयोग होता है मगर इसे कैलेन्डर का पर्याय न मानकर हिन्दू तीज-त्यौहारों की जंत्री के रूप में ही काम में लाया जाता है। यूरोप में कैलेन्डर शब्द कैलेन्डियर के रूप में सन् 1205 के आसपास सूचीपत्र या बही के अर्थ में पुरानी फ्रैंच में नमूदार हुआ । यहां वह लैटिन के कैलेन्डेरियम से आया जहां इसका मतलब था लेखापत्र या खाताबही। लैटिन में ये आया रोमन कैलेन्ड्स से। रोमन कैलेन्डर में प्रत्येक माह के पहले दिन को कैलेन्डे कहते हैं। दरअसल प्राचीन रोम के पुरोहित चंद्र की स्थिति का अध्ययन कर समारोहपूर्वक नए मास की जोर-शोर से घोषणा करते थे। इसे ही calare कहा जाता था। अंग्रेजी का call शब्द भी इससे ही बना है। रोमन में calare का अर्थ होता है पुकारना या मुनादी करना।
भाषा विज्ञान के नजरिये से calare का जन्म संस्कृत के कल् या इंडो-यूरोपीय मूल के गल यानी gal से माना जाता है। इन दोनों ही शब्दों का मतलब होता है कहना या शोर मचाना, जानना-समझना या सोचना-विचारना। गिनना, गणना करना, युक्ति लगाना, संभालना, अंश आदि। कल् धातु की अर्थवत्ता बहुत व्यापक है। नदी-झलने की कल-कल और भीड़ के कोलाहल में इसी कल् धातु की ध्वनि सुनाई पड़ रही है। पक्षियों की चहचह और कुहुक के लिए प्रचिलत कलरव भी इसी कड़ी में आता है। यही नहीं, हंस का एक नाम कलहंस भी है। रोने-ठुनकने के लिए कलपना क्रिया भी इसी धातुमूल से निकली है। कल् से बनी क्रिया कलन् के साथ जब संस्कृत का सम् उपसर्ग लगता है तो बनता है संकलन जो समष्टिवाचक शब्द है। वस्तुओं का ढेर, चीज़ों को इकट्ठा करना, जोड़ना, एकत्रित करने की क्रियाएं ही संकलन में आती हैं। वि उपसर्ग में अलगाव का भाव है। कल से वि को युक्त करने से बनता है
विकल जिसका मतलब है व्याकुलता, मन का टूटना आदि। कलनम् का अर्थ होता है धब्बा, दाग़। इसीलिए बदनामी, अपमान, लांछन आदि के अर्थ में हिन्दी का कलंक शब्द इसी कड़ी का हिस्सा है।
हिंदी में रुपए के लिए कलदार शब्द प्रचलित है। खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में यह शब्द धड़ल्ले से एक-दो रुपए के सिक्के के लिए प्रयोग होता है। कल् का रिश्ता गणना करने से भी है और इसका मतलब अंश भी होता है। कल में निहित गणना दरअसल युक्ति ही है। हिन्दी में कल से अभिप्राय यंत्र, मशीन अथवा यांत्रिक कौशल से है। कलपुर्जा इसी कड़ी का शब्द है। पूर्वी भारत में हैंडपम्प को चांपाकल कहते हैं। चांप से अभिप्राय उस भुजा से है जो लीवर होता है। यहां कल शब्द का अर्थ मशीन ही है। दरअसल लॉर्ड कार्नवालिस (31दिसंबर1738 - 5 अक्टूबर 1805) के जमाने में भारत में मशीन के जरिए सिक्कों का उत्पादन शुरू हुआ। लोगों नें जब सुना कि अंग्रेज `कल´ यानी मशीन से रुपया बनाते हैं तो उसके लिए `कलदार´ शब्द चल पड़ा।
ज़रा सोचे पंजाबी के गल पर जिसका मतलब भी कही गई बात ही होता है| इसी तरह कलकल या कलरव के मूल मे भी यही कल् है। साफ़ है कि इन्गलिश की कॉल, संस्कृत का कल् और पंजाबी का गल एक ही है। गौरतलब है कि संस्कृत में इसी कल् से बना है उषकाल: यानी सुबह-सुबह का शोर यानी मुर्गे की बांग। कल् या गल के आधार पर आइरिश भाषा में बना cailech जिसका मतलब भी मुर्गा ही होता है। ग्रीक, स्लोवानिक और अन्य यूरोपीय भाषाओं में कई शब्द बनें जिनका मतलब मुर्गा या शोर मचाना ही था। इस तरह देखें तो उषकाल: यानी मुर्गे की बांग बनी दिन की शुरूआत का प्रतीक। योरप में सुबह के शोर यानी कल् से बना calare और फिर बना महिने का पहला दिन कैलेन्ड्स। और फिर इसने पूरे साल के एक एक दिन का हिसाब रखने वाली पोथी यानी कैलेन्डर का रूप ले लिया। [सम्पूर्ण संशोधित पुनर्प्रस्तति]
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आप की प्रस्तुति हैरत में डालने वाली होती है। आश्चर्यजनक।आभार।
ReplyDeleteजय हिन्द!
कॉल, कल और गल एक ही है...
ReplyDeleteशब्दों का सफर पर सम्पूर्ण यात्रा का कच्चा चिट्ठा खुल जाता है । बहुत बार एक ही बात नहीं कहना चाहता - आश्चर्यजनक । आपके सत्वर अध्ययन, उस अध्ययन से हुई प्राप्ति और उसकी प्रयुक्ति पर अचंभित होता रहता हूँ । आभार ।
जंत्री को मै भी पंडिताई का औजार समझता था आज पता चला कलेंडर ही है यह
ReplyDeleteबधाई !
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_______विनम्र निवेदन : सभी ब्लौगर बन्धु आजशनिवार
को भारतीय समय के अनुसार ठीक 10 बजे ईश्वर की
प्रार्थना में 108 बार स्मरण करें और श्री राज भाटिया के
लिए शीघ्र स्वास्थ्य हेतु मंगल कामना करें..........
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शब्दों के सफर मे कलदार मुर्ग मुसल्लम मजेदार लगा।
ReplyDeleteसफर अच्छा चल रहा है।
बधाई।
आज फिर नया सीखने को मिला....हर रोज़ की तरह
ReplyDeleteवि कल, कलंक और ऊषकाल: के बारे में जान अच्छा लगा।
ReplyDeleteशब्दों की इतनी पड़ताल कैसे कर लेते है? पर होती भी बहुत लाजवाब है।
ReplyDeleteहर बार इतना कुछ नया पढने को मिलता है कि अचंभा होता है कि सभ्यताओं के साथ शब्दों ने भी कितनी लंबी यात्रा पूरी की है यहां तक पहुंचने के लिये।
ला-जवाब! तस्वीरें भी !
ReplyDeleteअजित जी, मैने एक फ़ाइल बनाई है, जिसमें आपके इतने महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक सफ़र को कैद करती जा रही हूं. सब के काम का है ये सफ़र...बधाई.
ReplyDelete@वंदना अवस्थी
ReplyDeleteशुक्रिया वंदनाजी। आप इन आलेखों को बेशक सहेज लें, मगर हम इस कोशिश में हैं कि यह पुस्तकाकार सामने आए। देर इसलिए हो रही है कि तमाम आलेख एक जगह दे देने भर से उद्देश्य पूरा नहीं होगा। हम इसे कोश का रूप देना चाहते हैं ताकि इच्छित शब्द की व्युत्पत्ति तक फौरन पहुंचा जा सके। इस काम में देरी लग रही है।
आभार
कलदार के बारे में जानकार अच्छा लगा. कई बार शब्द बिना उनका शाब्दिक अर्थ जाने व्यवहृत होते रहते हैं फिर जब कोई बताता है कि ये यूँ हुआ तो सिर्फ इतना ही ज़बान पर आ पाता है-"अरे".
ReplyDeleteAtulneey jaankaaree.
ReplyDeleteवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
ब्लॉग की दुनिया में नया दाखिला लिया है. अपने ब्लॉग deshnama.blogspot.com के ज़रिये आपका ब्लॉग हमसफ़र बनना चाहता हूँ, आपके comments के इंतजार में...
ReplyDeleteअजीतजी , हौसला-अफजाई के लिए तहे-दिल से शुक्रिया. न्यूज़ चैनल के भारी दबाव के बावजूद ब्लॉग पर नियमित रहने की कोशिश करूंगा. उम्मीद है अपने प्यार के साथ मेरी खामियों की तरफ भी इंगित करेंगे
ReplyDeleteआपकी ऊर्जा को सलाम! कितना खोज कर लिख लेते हैं!
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