Thursday, January 7, 2010

चटोरा, चुसकी और चाशनी [चटकारा-2]

... शब्दों का सफरपर पेश यह श्रंखला रेडियो प्रसारण के लिए लिखी गई है। जोधपुर आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी महेन्द्रसिंह लालस  इन दिनों स्वाद का सफरनामा पर एक रेडियो-डाक्यूमेट्री बना रहे हैं। उनकी इच्छा थी कि शब्दों का सफर जैसी शैली में इसकी शुरुआत हो। हमने वह काम तो कह दिया है, मगर अपने पाठकों को इसके प्रसारण होने तक इससे वंचित नहीं रखेंगे। वैसे भी रेडियो पर इसका कुछ रूपांतर ही होगा। बीते महीने यूनुस भाई के सौजन्य से सफर के एक आलेख का विविधभारती के मुंबई केंद्र से प्रसारण हुआ था। शब्दों का सफर की राह अखबार, टीवी के बाद अब रेडियों से भी गुजर रही है...
संबंधित कड़ी-ज़ाइक़ा, ऊंट और मज़ाक़ [चटकारा-1]poha
जा यका के साथ चटकारा जुड़ा हुआ है। खाने की चीज अगर स्वादिष्ट है तो चटकारा अपने आप आ जाता है। वैसे चटकारे का रिश्ता सिर्फ खाने की चीज़ों से ही नहीं है बल्कि बातों से भी है। बातों के भी चटकारे लिए जाते हैं। मज़ेदार प्रसंग को चटकारेदार शैली में ही सुनाया जाता है। हिन्दी में जीभ को रसना भी कहते हैं। रसना शब्द बना है रस से। रस यानी तरल, द्रव या सार। स्वाद के लिए रस होना ज़रूरी है। मुंह में जीभ के इर्द-गिर्द लार ग्रंथियां होती है जो खाद्यपदार्थ का स्पर्श होते ही सक्रिय हो जाती हैं जिससे रस का सृजन होता है। इसीलिए जीभ को रसना भी कहते हैं। दार्शनिक अर्थो में रसना राग-रंग और विलास की प्रतीक है क्योंकि यह जीवन के भौतिक आधार यानी रसीले-चटपटे पकवानों से तृप्त होती है। ज्ञानी कहते हैं कि जीवन का आधार भक्ति-रस है जो मन के भीतर उपजता है। इस तरह देखें तो चटकारा का असली रिश्ता रसना यानी जीभ से है जो भोजन का रस भी लेती है और बातों का भी। गुनिजन कहते हैं कि भोजन से जरूरी भजन का रस है। यह मिले तो जीवन सफल है-रसना निसदिन भज हरिनाम...मगर स्वाद की मारी रसना गाती है-भूखे भजन न होई गोपाला...

टकारा का मतलब होता है किसी चरपरी, चटपटी चीज़ को खाने के वक्त जीभ और तालु से टकराने से उत्पन्न ध्वनि। चटकारा शब्द में उस वस्तु के स्वाद की स्मृति का बोध भी शामिल हो गया। जॉन प्लैट्स के कोश में चटकारा की व्युत्पत्ति चट्+कार+कः दी हुई है। मोनियर विलियम्स के अनुसार संस्कृत की चट् धातु में तोड़ना, छिटकना जैसे भाव शामिल हैं। जीभ के तालु को स्पर्श करने और फिर पूर्वावस्था में आने से यह स्पष्ट हो रहा है। इस तरह चटकारकः का अर्थ हुआ चट् की ध्वनि करना। हिन्दी में इसका रूप हुआ चटकारा या चटखारा। इससे जुड़ा हुआ मुहावरा है चटकारे भरना यानी पसंदीदा चीज़ को रस ले लेकर खाना, चाट-चाटकर खाना। खाते समय उंगलियां और होठ चाटना।
स धातु से बने एक अन्य शब्द के जरिये इससे जुड़े भाव और ज्यादा स्पष्ट होते हैं। ज्यादा खाना खानेवाले और खाने की चीज़ो पर लार टपकाने वाले व्यक्ति को चटोरा कहा जाता है, जो चट् धातु से ही बना है। मूलतः यह ध्वनि-अनुकरण  पर बनी धातु है। टहनी, लकड़ी के चटकने, फटने की ध्वनि के आधार पर प्राचीनकाल में चट् धातु का जन्म हुआ होगा। कालांतर में इसमें तोड़ना, छिटकना, हटाना, मिटाना आदि अर्थ भी स्थापित हुए। हिन्दी में सब कुछ खा-पीकर साफ करने के अर्थ में भी चट् या चट्ट जैसा शब्द बना और चट् कर जाना मुहावरा भी सामने आया। समझा जा सकता है कि तड़कने, टूटने के बाद वस्तु अपने मूल स्वरूप में नहीं रहती। इसी लिए इससे बने शब्दों में चाटना, साफ कर जाना जैसे भाव आए। इसमें मूल स्वरूप के लुप्त होने का ही अभिप्राय है। चटोरा व्यक्ति सब कुछ साफ कर देता है। इसीलिए चटोरा- चटोरी जैसे शब्दों से इस धातुमूल की रिश्तेदारी साफ है। चटोरा व्यक्ति के लिए पेटू शब्द भी हिन्दी में प्रचलित है इसका मतलब है जिसका पेट बड़ा है। भाव यही है कि जिसे बहुत भूख लगती है। संस्कारी भाव में ऐसे लोगों को भोजनभट्ट भी कहा जाता है। ब्राह्मणों के लिए भट्ट एक प्राचीन रूढ़ शब्द है। पुराने ज़माने से समाज में तिथि-पर्वों और अनुष्टानों पर ब्राह्मणों-पुरोहितों को भोजन पर बुलाने की परिपाटी रही है। जाति-प्रधान व्यवस्था में संश्लिष्ट हिन्दू समाज के हर परिवार में समान भाव से ब्राह्मण का जाना संभव न था। विकसित होते समाज में ब्राह्मणों का ऐसा वर्ग भी सामने आया जो इन आयोजनों के लिए उपलब्ध रहता था। अनुमान है कि उनके लिए यह शब्द समाज ने गढ़ा होगा, बाद में पेटू के अर्थ में यह रूढ़ हुआ।
गौर करें जिस मैदान में ज़रा भी घास नहीं हो और जिस व्यक्ति के सिर पर ज़रा भी बाल न हो उसे चटियल कहा जाता है। इस मकाम पर अरबी के साफ और हिन्दी के चट् से मिल कर बने संकर शब्द सफाचट को भी याद कर लीजिए। चट्टान और चट्टी जैसे शब्द भी इसी कतार में खड़े हैं। वृहत हिन्दी कोश के अनसार वह विशाल पाषाण खण्ड जिसके एकाधिक आयाम सपाट, चपटे हों greedyउसे चट्टान कहते हैं। पहाड़ी इलाकों में चट्टी उस स्थान को कहते हैं जो समतल होती है और जहां तीर्थयात्री विश्राम करते हैं जैसे हनुमान चट्टी। चिड़िया चट्-चट् की ध्वनि के साथ दाने चुगती है इसलिए चिड़िया या गौरैया को चटकः भी कहते हैं। नष्ट होने के अर्थ में चटकना, चटकाना शब्दों का हिन्दी में खूब प्रयोग होता है। मुंबइया ज़बान में क्रोध आने के संदर्भ में खोपड़ी चटकना, दिमाग चटकना जैसे शब्दों में भी टूटने, तड़कने का भाव ही है। यहां मस्तिष्क का विवेक से नाता टूटने का अभिप्राय स्पष्ट ही समझ में आता है।
स्वाद से जुड़ी एक क्रिया है चाटना जिसका जन्म हुआ है चष्ट धातु से इसका प्राकृत रूप था चड्ड और फिर हिन्दी में बना चाटना। एक चटपटे खाद्य पदार्थ चटनी का नाम इसी वजह से पड़ा है क्योंकि उसे चाटा जाता है। इसमें स्वाद लेने का भाव है। इसी से मिलती-जुलती धातु है चूष् जिससे हिन्दी में चूसना, चुसकना, चखना जैसे सर्वाधिक इस्तेमाल होने वाले शब्द निकले हैं। आमतौर पर आदत या व्यसन के पीछे उस काम को करने से मिलने वाला आनंद होता है। आनंद यानी स्वाद। इसी अर्थ में चस्का शब्द का प्रयोग भी होता है। वैसे यह खान-पान की शब्दावली से ही उपजा है मगर आदत या व्यसन के संदर्भ में इसका ज्यादा प्रयोग होता है। चष् से ही जन्मी है चुस्की। किसी तरल पेय को होठों के जरिये पीने की क्रिया और ग्रहण की गई मात्रा दोनों को ही चुस्की (चुसकी) कहते हैं। एक किस्म के बर्फ के गोले को भी चुस्की कहते हैं। प्याले के अर्थ में संस्कृत का चषक शब्द भी इसी धातुमूल से संबंधित है।
ष्ट शब्द का फारसी रूप है चाश्त जिसमें चखना या हल्का नाश्ता जैसे भाव हैं। चष्ट से बनी है हिन्दी में चाटना जैसी क्रिया। खोमचे के प्रसिद्ध चटपटे, तीखे-मसालेदार व्यंजनों के लिए चाट जैसा शब्द इसी मूल से निकला है। रस में डूबी मिठाइयों को सभी पसंद करते हैं। हिन्दी-मराठी में इसे पाक कहते हैं। पाक अर्थात जिसे खूब पकाया गया हो। इसके लिए हिन्दी में चाशनी शब्द का प्रयोग आमतौर पर किया जाता है जो इसी चष् धातुमूल से आ रहा है मगर हिन्दी  शब्दकोशों के मुताबिक इसकी आमद फारसी के चाश्नी शब्द से हुई है।  चाशनी यानी मिसरी, शकर या गुड़ का रस जिसे आंच पर चढ़ा कर पकाया जाता है और कुछ गाढ़ा हो जाने पर इसे दूध या अनाज से बनाए गए पदार्थों में डालकर मिठाइयां बनाई जाती हैं। जलपान के अर्थ में हिन्दी में नाश्ता शब्द खूब प्रचलित है। यह फारसी के नाशिता से आया है। इसी तरह नाश्ते के अर्थ में फारसी में चाश्त शब्द है जिसका अर्थ है सूर्योदय से एक पहर बीतने तक का वक्त। सुबह का नाश्ता और सुबह की नमाज़ भी इसकी अर्थवत्ता में समाए हैं।
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें

18 comments:

  1. शब्दों का यह सफर तो बहुत ही अच्छा लगा अजीत भाई - हमेश की तरह ज्ञानवर्धक।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  2. जो भी हो..हमें तो पोहे देख कर ही लालच आ गया. बेहतरीन जानकारी.

    ReplyDelete
  3. पोहे देख रसना रस में डूब गयी और चटकारे चालु ................. वैसे कल का दिन बहुत अच्छा गया .

    ReplyDelete
  4. गुनिजन कहते हैं कि भोजन से जरूरी भजन का रस है। यह मिले तो जीवन सफल है-रसना निसदिन भज हरिनाम...मगर स्वाद की मारी रसना गाती है-भूखे भजन न होई गोपाला..
    .. यह प्रयोग अत्यध‍िक रोचक बन पड़ा है.

    रस में डूबी मिठाइयों को सभी पसंद करते हैं। हिन्दी-मराठी में इसे पाक कहते हैं।
    ..... पाक म‍िठाइ कोहंड़े से बनती है।

    ReplyDelete
  5. गोरा-चिट्टा की बात करते हुए आप कुछ ऐसा प्रभाव दे रहे हैं जैसे चिट्टा शब्द भी 'चट' धातु से बना हो (सफाचट दाढ़ी वाला). कम से कम पंजाब में गोरा-चिट्टा का यह मतलब नहीं लिया जाता. पंजाब में दाड़ी वाले सिख होते हैं और ऐसे खूब गोरे सिख को भी हम 'गोरा-चिट्टा' ही बोलेंगे. फिर लडकियाँ जिन की दाड़ी तो होती नहीं वह भी गोरा रंग होने की वजह से गोरी-चिट्टी कहलाएंगी. यह वाक्य भी ठीक करने वाला है शायद इस से गलती लगी हो.
    याद रहे किसी और जगह चिट्टा के बारे में यह लिखा है :

    'चिट्टा भी इसी कड़ी में आता है और चित्र् से ही जन्मा है । ...

    ReplyDelete
  6. बढ़िया रहा यह ज्ञान .

    ReplyDelete
  7. ब्लॉगवाणी के आकाशवाणी होने पर बधाई।
    जायका के बड़के 'जा' ने मात्रा को धकिया कर नीचे कर दिया है - क्रोम में ऐसे ही दिख रहा है।
    बलजीत जी की बात पर ध्यान अपेक्षित है।

    चट्ट कर गए। अब चासनी के बँचे स्वाद पर चटकारे लगा रहे हैं। ध्वनि और स्वाद की संगति पर तो एक अलग से लेख लिखा जा सकता है।

    ReplyDelete
  8. सुबह सुबह ऐसी पोस्ट पढ़कर रसना रस टपकाने लगे तो सहज ही है। बलजीत की बात सही है। गोराचिट्टा होने के लिए सफाचट दाढ़ी जरूरी नहीं। गोरा के साथ चिट्टा का उपयोग बेदाग के लिए ही है।

    ReplyDelete
  9. हमेशा की तरह ताज़ा-टटका जानकारी!

    ReplyDelete
  10. अब आया समझ में लोग मुझे ' चटोरा ' क्यों कहते रहे .पता चला यहाँ तो काफी हैं :)

    ReplyDelete
  11. शुक्रिया बलजीत भाई,
    सुबह चलते चलते ही यह संशोधन किया था, पर संदर्भ को वेरीफाई नहीं कर पाया था।
    कुछ शंका थी। आपने सावधानी से बता दिया।
    आभार

    ReplyDelete
  12. बहुत बढिया, मुंह मे पानी अरहा है.:)

    रामराम.

    ReplyDelete
  13. @गिरिजेश राव
    शुक्रिया बंधुवर। आपकी, बलजीतभाई की और दिनेशजी की बाते सिर माथे।
    मानी और दुरुस्त कर दी पोस्ट।

    ReplyDelete
  14. चट पट (तुरत फुरत) में चटपटे का भाव है ही नहीं! उल्टे जल्दी जल्दी में थकान अलग। ये दोनो अलग अलग छाप के लगते हैं!

    ReplyDelete
  15. वाह आज आपने जीभ का समानार्थी रसना से लेकर चटकारा की व्युत्पत्ति तक बता दी
    बहुत बहुत धन्यवाद

    ReplyDelete
  16. रसपूर्ण जानकारी ।

    ReplyDelete
  17. सब दुरुस्त हो गया तो हम पढ़ने आ गये ।
    प्रविष्टि का आभार ।

    ReplyDelete