रो जमर्रा की बोलचाल में सहज शब्द का खूब इस्तेमाल होता है। आखिर यह सहज है क्या? सरल, सामान्य, सुगम
या साधारण जैसे अर्थों में सहज शब्द का प्रयोग होता है। वैसे सहज का अर्थ है प्रकृत या साधारण रूप में रहनेवाला। सामान्य बोलचाल से लेकर अध्यात्म तक इस शब्द की व्याप्ति है। सहज शब्द बना है सह+ज से। संस्कृत शब्द सह का अर्थ है सम्मिलन, साथ-साथ, सहित, मिलकर आदि। ज धातु में उत्पन्न होना, उद्भूत होना, पैदा होना, वंशज होना जैसे भाव हैं। इस तरह सहज का अर्थ है जो अपने मूल रूप में है अर्थात जिसमें अपना मूल स्वभाव निहित है। जो स्वाभाविक है, आनुवंशिक है। साथ-साथ जन्मा है यानी सहजात है। सहज में सहोदर का भाव भी है। यूं सहज में सामान्य, प्राकृतिक, नैसर्गिक स्थितियों का संकेत ही है जिसमें हमेशा एक सा बना रहना, आसान का अर्थ है। भक्ति आंदोलन (नवीं सदी से पंद्रहवी सदी तक) के दौर मे मगध क्षेत्र में सहजयान का जन्म हुआ। सहज शब्द का प्रयोग दार्शनिक अर्थों में खूब हुआ। सहज शब्द से बना सहजिया सम्प्रदाय कबीर के वक्त में प्रसिद्ध हुआ था। दरअसल मध्यकालीन भक्तिआंदोलन सिद्ध, नाथ, योगी सम्प्रदायों के जरिये बढ़ा जिनका मूल रूप से ब्राह्मण विचारधारा से टकराव था।
विद्वानों के अनुसार सहजिया सम्प्रदाय तांत्रिक बौद्ध परम्परा से जन्मा था जो सहजयान कहलाता था, बाद में यह सहजिया में रूपांतरित हुआ। इस धारा का विकास भक्तिकाल के दौरान कई अलग अलग भक्ति सम्प्रदायों में नज़र आता है। डॉ शशिभूषण दास के अनुसार यह गुह्य साधनावाले योगी सम्प्रदाय का बौद्ध प्रभावित रूप था। पश्चिमोत्तर के सूफी और बंगाल के बाउल / बाऊल भी इससे प्रभावित रहे। हजारी प्रसाद द्विवेदी की सहजसाधना पुस्तक के मुताबिक सहजयान
बौद्धधर्म की महायान शाखा की उपशाखा मन्त्रनय से निकली तीन भक्तिधाराओं अर्थात वज्रयान, कालचक्रयान और सहजयान में एक है जिसमें शुरुआती दो धाराओं में मन्त्रों का महत्व है किन्तु सहजयान में मन्त्रों का महत्व नहीं है। सहजयानियों के मुताबिक सहजावस्था की प्राप्ति ही परमसुख है। निर्वाण और महासुख उसके ही पर्याय हैं। ब्राह्मणवाद के निषेध में यह पंथ खूब बढ़ा चढ़ा था। सरहपा का नाम सहजयानियों में सर्वप्रमुख है। सिखों में भी सहजधारी सिख होते हैं जो दाढ़ी-बाल आदि न रखते हुए सामान्य हिन्दुओं की तरह रहते हैं।
सहजिया, सहजपंथ, सहजधारी, सहजयान जैसे शब्दों के अलावा भी सहज शब्द का प्रयोग होता है जैसे सहज समाधि जिसका तात्पर्य ध्यान की उस अवस्था से है जो बिना किसी आसन या तन्त्रसाधना के हासिल होती है। इसे ही सहजध्यान भी कहते हैं। सहजबुद्धि का अर्थ है सभी जीवधारियों में ईश्वरप्रदत्त वह चेतना या बुद्धि जिससे वे कुछ करने के लिए प्रेरित होते हैं या उन्हें उचित अनुचित का बोध होता है।
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हम सब सहजिया ही हैं। जो सहज जीवन जीते हैं।
ReplyDeleteसहज समाधि पाने के लिए जो साधना करनी होती है वह शायद सबसे कठिन है। बढि़या पोस्ट...
ReplyDeleteसहज ढंग से सहज शब्द को विश्लेषित किया.
ReplyDeleteसाधुवाद इस सार्थक प्रयास को
बहुत सहजता से समझ आ गया.
ReplyDeleteअच्छा लगा ,आभार .
ReplyDeleteसुन्दर सहज पोस्ट । धन्यवाद
ReplyDeleteशब्दार्थ सरल किन्तु व्यवहृति अत्यंत दुष्कर...अत्यंत दुर्लभ !
ReplyDeleteसहज का ज्ञान, सहजता से बता दिया ।
ReplyDeleteसहजता से सब कुछ सहज बनाने का ठौर ही है यह ब्लॉग !
ReplyDeleteमेरे प्रिय शब्दों में से एक है यह ! आज इससे बेहतर परिचय हुआ । आभार ।
होली की धमाल मस्ती से बाहर निकल कितनी जल्दी, सहजता से शब्दों के सफ़र पर गामज़न हो गए आप !
ReplyDeleteख़ास रहने की है आदत हमको,
हम महज़ ही तो नहीं हो पाते,
बस सहज ही तो नहीं हो पाते!
पिंड कीचड़ से छुडाते रहते,
अपना दामन भी बचाए रहते,
हम जलज ही तो नहीं हो पाते!
-मंसूर अली हाशमी
http://mansooralihashmi.blogspot.com
ऐसा सतिगुरु जे मिलै ता सहजे लए मिलाइ
ReplyDelete*
भाई रे गुर बिनु सहजु न होइ
*
जनम मरण दुखु काटीऐ लागै सहजि धिआनु
*
अजित भाई ही हमारे तो साचे गुरू हैं.
अच्छा लगा सहज ज्ञान।
ReplyDeleteवाह बहुत सहजिया पोस्ट..:)
ReplyDeleteबलजीत भाई,
ReplyDeleteहम पर पाप न चढ़ाइये।
आप सब्दों के सफ़र को बहुत ही सहज बना देते है ...!
ReplyDeleteकितनी सहजता से सहज को समझा दिया ...
ReplyDeleteअजित सर....सरल, सहज, सारगर्भित लेख।
ReplyDeleteनिबंध की एक क़िताब में पढ़ने को मिला -
"बंगाल के सहजिया सम्प्रदाय के सम्पर्क में आने के कारण मुस्लिम अल्लाह को श्रीकृष्ण का अवतार मानते थे उर ख़लीफ़ाओं के नाम के आगे 'श्री' लगाते थे.."
इस बाबत कुछ प्रकाश डालें....😊
प्रेमिल प्रणाम ..
सारांश गौतम, जबलपुर