अजित भाई बेहद फिलोसोफिकल ...अकविता में वे भी हैं जिनकी मुर्गियां डेढ़ टांग की नहीं होती ...यक़ीनन वे ही सभ्यताओं के अमरत्व के सच्चे और एकमात्र ध्वजवाहक हैं !
#जिसको खबर नहीं उसे जोश-ओ-खरोश है, जो पा गया है राज़, वह चुप है, खमोश है. ===============================
# 'अ' सभ्य बन गए है नए युद्ध-सारथी, खो कर सहिष्णुता भी लगे परमार्थी, हिदू भी,सिख-ईसाई भी ,मुस्लिम भी मिलेंगे, ढूँढे से भी मिलता नहीं अब 'गणेश विद्यार्थी' *
अरे भाऊ ! नया प्रारम्भ !! हिन्दी कविता में 'अकविता' एक तकनीकी टर्म है। अकविता युग के विद्रूपों को नैराश्य और ध्वंस की भावभूमि में अभिव्यक्त करती है जिसके बिंब और शिल्प तक से निषेध टपकता है। यह तो कविता है , इसे 'अकविता' क्यों कह रहे हैं?
सोच रहा हूं कि क्या इन शब्दों का कोई निहितार्थ भी है?
ReplyDeleteसात अप्रैल, 2010 भोपाल?
अजित भाई
ReplyDeleteबेहद फिलोसोफिकल ...अकविता में वे भी हैं जिनकी मुर्गियां डेढ़ टांग की नहीं होती ...यक़ीनन वे ही सभ्यताओं के अमरत्व के सच्चे और एकमात्र ध्वजवाहक हैं !
कविता में बहुत दम है।। गाँठ बांध ली है।
ReplyDelete#जिसको खबर नहीं उसे जोश-ओ-खरोश है,
ReplyDeleteजो पा गया है राज़, वह चुप है, खमोश है.
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# 'अ' सभ्य बन गए है नए युद्ध-सारथी,
खो कर सहिष्णुता भी लगे परमार्थी,
हिदू भी,सिख-ईसाई भी ,मुस्लिम भी मिलेंगे,
ढूँढे से भी मिलता नहीं अब 'गणेश विद्यार्थी' *
* गणेश शंकर विद्यार्थी
-मंसूर अली हाश्मी
http://aatm-manthan.com
सदियों का दर्द है कविता में पर उससे भी ज्यादा समाया हुआ है --
ReplyDeleteसात अप्रैल २०१० में !!!!!!!
वो कब पढने को मिलेगा ????
अरे, गये नहीं हरिद्वार?
ReplyDeleteगहरे तक मार करने वाली व्यंग्य कविता है ।
ReplyDeleteअच्छा चयन । बधाई ।
अरे भाऊ ! नया प्रारम्भ !!
ReplyDeleteहिन्दी कविता में 'अकविता' एक तकनीकी टर्म है। अकविता युग के विद्रूपों को नैराश्य और ध्वंस की भावभूमि में अभिव्यक्त करती है जिसके बिंब और शिल्प तक से निषेध टपकता है।
यह तो कविता है , इसे 'अकविता' क्यों कह रहे हैं?
युद्ध का अनर्थ ही भुगत रहे हैं हम सब ।
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