Sunday, April 11, 2010

अकविता/ शब्दार्थ –1

 

warहर युग में हुई

सभ्यताओं की जंग

शब्दों को

तलवार की तरह

भांजते रहे सब

 

बच पाए

वही

जो पड़े रहे दम साधे

खोजते रहे

युद्ध के भावी अर्थ

-सात अप्रैल, 2010 भोपाल

अकविता/ शब्दार्थ –2 बुढ़ाती पीढ़ियां

9 comments:

  1. सोच रहा हूं कि क्‍या इन शब्‍दों का कोई निहितार्थ भी है?
    सात अप्रैल, 2010 भोपाल?

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  2. अजित भाई
    बेहद फिलोसोफिकल ...अकविता में वे भी हैं जिनकी मुर्गियां डेढ़ टांग की नहीं होती ...यक़ीनन वे ही सभ्यताओं के अमरत्व के सच्चे और एकमात्र ध्वजवाहक हैं !

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  3. कविता में बहुत दम है।। गाँठ बांध ली है।

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  4. #जिसको खबर नहीं उसे जोश-ओ-खरोश है,
    जो पा गया है राज़, वह चुप है, खमोश है.
    ===============================

    # 'अ' सभ्य बन गए है नए युद्ध-सारथी,
    खो कर सहिष्णुता भी लगे परमार्थी,
    हिदू भी,सिख-ईसाई भी ,मुस्लिम भी मिलेंगे,
    ढूँढे से भी मिलता नहीं अब 'गणेश विद्यार्थी' *

    * गणेश शंकर विद्यार्थी

    -मंसूर अली हाश्मी
    http://aatm-manthan.com

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  5. सदियों का दर्द है कविता में पर उससे भी ज्यादा समाया हुआ है --
    सात अप्रैल २०१० में !!!!!!!
    वो कब पढने को मिलेगा ????

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  6. अरे, गये नहीं हरिद्वार?

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  7. गहरे तक मार करने वाली व्यंग्य कविता है ।
    अच्छा चयन । बधाई ।

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  8. अरे भाऊ ! नया प्रारम्भ !!
    हिन्दी कविता में 'अकविता' एक तकनीकी टर्म है। अकविता युग के विद्रूपों को नैराश्य और ध्वंस की भावभूमि में अभिव्यक्त करती है जिसके बिंब और शिल्प तक से निषेध टपकता है।
    यह तो कविता है , इसे 'अकविता' क्यों कह रहे हैं?

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  9. युद्ध का अनर्थ ही भुगत रहे हैं हम सब ।

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