Wednesday, April 21, 2010

अकविता / शब्दार्थ-4 - तलाश

clean_sweep वि ने लिखे

कुछ शब्द

जो छिटके हुए थे अर्थ से

भाव भी था लापता

लेखक की लिखावट

में नुमांया थे शब्द

नही थी व्याख्या।

 

नोरम था

कथावाचक का

कथा बांचना

पर उसमें सार नहीं

इतिवृत्त था खुद का।

ब्द को ब्रह्म मान

पूजते रहे उसे

ईश्वर को

तलाशा नहीं गया

अर्थ में।

देखें-अकविता/ शब्दार्थ –1 अकविता/ शब्दार्थ –2 अकविता/ शब्दार्थ –3

4 comments:

  1. मनोरम था

    कथावाचक का

    कथा बांचना

    पर उसमें सार नहीं

    इतिवृत्त था खुद का
    बहुत सुन्दर, निरर्थक को परिभाषित करती एक सार्थक कविता. बधाई.

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  2. शब्द को ब्रह्म मान

    पूजते रहे उसे

    ईश्वर को

    तलाशा नहीं गया

    अर्थ में।
    बहुत सही कहा आपने!

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  3. शब्द का अर्थ मिला शब्दों में,
    और अर्थो की तलाशी में है फिर सरगर्दां*
    शब्द तस्वीर बने, फिर तो कोई बात बने,
    धुंध हट जाए ज़रा फिर तो कोई ख़्वाब बुने.
    इस सफ़र की कोई मंज़िल तो नज़र आ जाये,
    Earth पर आना ये अपना न निरर्थक जाये.

    *सरगर्दां= हैरान-ओ-परेशान

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