सामान्य तौर पर अपने बर्ताव में दिखावा या ढोंग करने वाले को पाखंडी कहा जाता है। अपने हावभाव, रहनसहन और चरित्र में दिखावा करनेवाले नकली लोगों का चरित्र अक्सर एक कृत्रिम आवरण avaran में लिपटा रहता है जिसके जरिये वे जैसे होते है, उससे अलहदा दिखने की कोशिश करते हैं ऐसे लोगों को मुहावरेदार भाषा में लिफाफेबाज भी कहा जाता है। यह व्यवहार आडम्बर और दिखावा की श्रेणी में आता है। ढकोसला dhakosla और आडम्बर adambara भी इसी श्रेणी के शब्द हैं और बोलचाल की हिन्दी में खूब प्रयुक्त होते हैं। ढकोसला दरअसल पहेली, मुहावरा या लोकोक्ति जैसी ही वाग्विलास की एक विधा का नाम भी है।
ढकोसला में मूलतः दूसरों को धोखा देकर अपना मंतव्य सिद्ध करने का भाव है। कपटपूर्ण व्यवहार इसके मूल में है। सामान्य बोलचाल में निष्प्रयोजनीय मगर विशिष्ट व्यवहार के संदर्भ में भी ढकोसला शब्द का इस्तेमाल होता है हालांकि भ्रम का संजाल रचना, मिथ्या-माया की रचना करना ताकि किसी विशेष प्रयोजन से कार्यसिद्धि हो सके वाला भाव ही इसमें खास है। हिन्दी शब्दसागर और बृहत प्रामाणिक हिन्दीकोश में ढकोसला की व्युत्पत्ति ढंग-कौशल शब्दयुग्म से बताई गई है। दरअसल यह शब्द, संधि का नहीं बल्कि समास का उदाहरण है। प्रपंच-पाखंड के संदर्भ में ढंग-कौशल शब्दयुग्म का प्रयोग ही ढकोसला शब्द के मूल में है। ढंग-कौशल > ढंकोशल > ढकोसल > ढकोसला के क्रम में ढकोसला का विकास हुआ, ऐसा ज्यादातर विद्वानों का मानना है। ढकोसला एक प्रकार की काव्यविधा भी है जिसमें वैचित्र्यपूर्ण ढंग से कई असंगत-अनमेल बातें एक साथ कही जाती हैं जिनका होना लगभग
असंभव होता है जैसे खुसरो की यह बात-भादों, पक्की, पीपली, झड़-झड़ पड़े कपास। बी मेहतरानी दाल पकाओगी या नहा ही सो रहूं। या फिर हाथी चढ़ल पहाड़ पर बिनि बिनि महुआ खाई। चीटी भरलसि बघ के, उलुटा पैर उठाई।। कृष्णदेव उपाध्याय लोकसंस्कृति की रूपरेखा पुस्तक में लिखते हैं कि ढकोसले पहेलियों से भिन्न होते हैं। पहेलियों मे प्रश्न और उनके उत्तर सार्थक होते हैं परन्तु ढकोसला में सभी बातें ऊटपटांग, असंभव तथा निरर्थक होती हैं। इनका उद्धेश्य एक मात्र मनोरंजन करना तथा हास्य रस की सृष्टि करना है। संस्कृत नाटको में, प्राचीन काल में ही ऐसे ढकोसले पाए जाते थे जिनका अर्थ नहीं बल्कि अर्थहीनता में ही सुसंगति होती थी।
अब आते हैं आडम्बर पर। आडम्बर यानी ढकोसला, पाखण्ड, दिखावा आदि। आपटे कोश के मुताबिक आडम्बर का मतलब घमंड, हेकड़ी, दिखावा, बाहरी ठाटबाट होता है। संस्कृत में डम्बर शब्द में भी घमंड, अहंकार आदि का भाव है। आडम्बर बना है डम्ब धातु में आ उपसर्ग लगने से। डम्ब का अर्थ है उपहास करना, हंसी उड़ाना, खिल्ली उड़ाना, ठगना-धोखा देना आदि। इस तरह आडम्बर शब्द में दिखावा का भाव स्थिर हुआ। आडम्बर का एक भाव नकल करना, सादृष्यता स्थापित करना, नकल करना जैसे भाव है। हिन्दी में भाग्य, काल या परिस्थिति के व्यंग्यपूर्ण प्रभाव को अभिव्यक्त करने के लिए विडम्बना शब्द का इस्तेमाल होता है जो इसी मूल से आ रहा है और डम्ब् धातु में वि उपसर्ग लगने से बना है। विडम्बना का सही अर्थ हंसी, उपहास, किसी को चिढ़ाने के लिए की जानेवाली उसकी नकल होता है। जब यह उपहास समय या भाग्य के जरिये जीवन पर प्रकट होता है वही परिस्थिति की विडम्बना होती है।
संबंधित कड़ियां-1.ये भी पाखण्डी और वो भी पाखण्डी2.पंचों का प्रपंच यानी दुनिया है फानी…
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आंडम्बर व दिखावा का सुंदर व्याखान। अजीत जी शुक्रिया ज्ञानवर्धन हेतु।
ReplyDeleteअजित वडनेरकर जी,
ReplyDeleteआज[२४-०४-१०/shabdon ka safar] फिर आपने प्रेरित किया है , आडम्बर के लिए, विडम्बना के साथ खेलना पड़ रहा है:-
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I [मैं] P ह L ए
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आ ! डम्बर-डम्बर खेले,
वो मारेगा तू झेले.
जो हारेगा वो पहले,
ज़्यादा मिलते है ढेले.* [*पैसे]
देखे है ऐसे मेले,
बूढ़े भी जिसमे खेले!
आते है छैल-छबीले,
बाला करती है बेले .
मैदाँ वाले तो नहले,
परदे के पीछे दहले.
जब बिक न पाए केले* [*केरल के]
वो बढ़ा ले गए ठेले.
"मो"हलत उनको जो "दी" है,
उठ तू भी हिस्सा लेले.
-mansoor ali hashmi
http://aatm-manthan.com
बिल्कुल नई और रोचक जानकारी मिली...आभार ! हाँ, पिछली पोस्ट की टिप्पणी में लिखना भूल गयी थी कि आपने "घुघ्घू" और "गुटर गूँ" की जो व्युत्पत्ति और व्याख्या की थी, वो मुझे बहुत अच्छी लगी थी.
ReplyDeleteअजित भाई
ReplyDeleteआडम्बर में सोद्देश्य आचरण अतिरेक अथवा प्रदर्शनप्रियता है संभवतः निज यथार्थ / खोखलेपन से भिज्ञं होकर भी दूसरों की तुलना में अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने की धारणा इसका मूल है अतः इस स्थिति को आभासी श्रेष्ठता के सुख के लिए नियोजित स्थिति कह सकते हैं फिर परिणति चाहे कुछ भी हो... किन्तु विडंबना आरोपित स्थिति है ज्यादातर दुःख और व्यथा से जोड़ कर देखी गई स्थिति ! इसे सोद्देश्य अतिरेक आचरण नहीं माना जा सकता !
विडंबना ये की हमारी कई दिनों की अनुपस्थिति में यहां बहुत कुछ गुज़र गया ...और वहां हम यथार्थ से इतर अभिव्यक्त होने का प्रयास करते रहे !
cool info !..thanks.
ReplyDeleteहिन्दी व अंग्रेजी के डम्ब में क्या कोई अन्तर नहीं ?
ReplyDeleteअच्छी जानकारी। अजित जी काफी दिनों से एक प्रश्न पूछने की सोच रहा था। क्या हिन्दी के "चरित्र" तथा अंग्रेजी के "कैरेक्टर" में कोई सम्बंध है अथवा केवल श्रवण की साम्यता है? यदि हो सके तो इस पर प्रकाश डालें।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया श्रीश भाई ईपण्डित,
ReplyDeleteचरित्र और कैरेक्टर में ध्वनि साम्यता ही है। बाकी दोनों का उद्गम अलग अलग है और अर्थ-विकास भी अलग ढंग से हुआ है।
इस मायने में चरित्र शब्द कहीं अधिक व्यापक है।
कृपया इसे सर्च बॉक्स में चिपकाएं -बेचारे चरणों का चरित्र
या इस लिंक पर जाएं- http://shabdavali.blogspot.com/2007/08/blog-post_16.html