गो बर पर पोस्ट लिखते समय इसकी अगली कड़ी में कंडा और उपला की चर्चा तय थी क्योंकि गोबरपुराण काफी लम्बा हो गया था। आज शब्दचर्चा समूह में बोधिसत्व ने उपले की चर्चा छेड़ दी तो हमें भूली हुई पोस्ट याद आई। एमए में भाषा विज्ञान पढ़ने के दौरान हमें गुरुवर प्रोफेसर सुरेश वर्मा ने अर्थान्तर की प्रक्रिया का उदाहरण देते हुए उपला की व्युत्पत्ति समझाई थी। उन्होंने बताया कि संस्कृत में उपलः का अर्थ होता है पत्थर या पाषाण। इसका एक अर्थ बालू भी होता है जो पाषाण-कण ही हैं। आप्टे कोष में इसकी व्युत्पत्ति उप+ ला + क है। व्याख्या यह कि गाय का वह उत्सर्ग जो सूख कर पाषाणवत हो जाए। यहां पाषाण का भाव जस का तस लेने की जगह ठोस रूप ग्रहण किया जाए। यह तत्कालीन समाज में सूखे हुए गोबर को दी गई उपमा थी। आज व्युत्पत्ति खोजते हुए हम तर्क की पराकाष्ठा पर पहुंच सकते हैं पर समाज किन आधारों पर शब्द रचना करता है, यह देखना भी जरूरी है। यूं पूरब में गोबर के लिए गोबर, गोईंठा या गोहरी जैसे शब्द भी प्रचलित हैं।
जॉन प्लैट्स उपले की व्युत्पत्ति अपूपः से बताते हैं जिसका अर्थ है सूखी हुई टिकिया, गेंद, पिंड या बाटी। गौरतलब है कि प्रसिद्ध मिठाई मालपुआ की व्युत्पत्ति भी अपूपः से ही बताई जाती है। अपूपः > पूपः > पूआ। इस पूआ में अरबी-फारसी का माल विशेषण लगने से बना मालपूआ। यूं संस्कृत में पूपः शब्द का अर्थ भी पूआ ही होता है। उपले का जन्म अपूपः से अजीब जान पड़ता है। अपूपः के अन्य संस्कृत रूपांतरों पर गौर करें तो यह ध्वनिसाम्य पर खरा उतरता है। जरा गौर करें
अन्य नामों पर- पूपला, पूपली, पूपालिका, पूपाली, पूपिका आदि, मगर इन तमाम नामों में मीठा पूआ या मालपूआ का भाव ही है। पूपला से प ध्वनि को गायब कर दें तो उपला ही हाथ लगता है। पर सवाल है कि सिर्फ ध्वनि गायब करने से एक खाद्य पदार्थ अखाद्य में कैसे बदल सकता है? उपले को कंडा भी कहा जाता है। उसकी व्युत्पत्ति आसान है। संस्कृत में कंदुक, कंद, गंड, खण्ड जैसे शब्द हैं जो एक ही शब्द शृंखला का हिस्सा हैं। खण्ड, खांड, गुंड, गंड, गुड़ या अग्रेजी का कैंडी आदि इसी कड़ी में आते हैं। संस्कृत के खण्डः शब्द की बड़ी व्यापक पहुंच है। इससे मिलती जुलती ध्वनियों वाले कई शब्द द्रविड़, भारत-ईरानी, सेमेटिक और यूरोपीय भाषाओं में मिलते हैं। क ख ग वर्णक्रम में आनेवाले ऐसे कई शब्द इन तमाम भाषाओं में खोजे जा सकते हैं जिनमें खण्ड, खांड, गुंड, गंड, गुड़ या अग्रेजी की कैंडी की मिठास के साथ-साथ पिण्ड, टुकड़ा, हिस्सा, अंश, अध्याय या वनस्पति का भाव भी शामिल है। खंड से पहले का रूप कण्ड है जिसमें फटकने, पके हुए अनाज से भूसी और दाने अलग करने का भाव है। यहां विभाजन का भाव स्पष्ट है। धार्मिक ग्रंथों के अनुच्छेद को भी कंडिका कहा जाता है। यह कांड का ही छोटा रूप है। कांड का अर्थ लकड़ी, लाठी या बेंत भी होता है। यही कण्ड उपले के अर्थ में कंडा का रूप लेता है अर्थात गाय की विष्ठा का पिण्ड रूप। इस तरह देखें तो कंडे की तर्ज पर उपला की व्युत्पत्ति उपलः से ही तार्किक जान पड़ती है। रामविलास शर्मा ने भी एक स्थान पर इसी व्युत्पत्ति को सही ठहराया है।
ज्ञानमंडल के हिन्दी शब्दकोश में उपला का अर्थ गोहरा अर्थात कंडा या शर्करा भी बताया है। गौरतलब है कि शर्करा का अर्थ शक्कर नहीं बल्कि रेत होता है। गन्ने के रस से बने बने बालुकामय अर्थात रवेदार पदार्थ के लिए शर्करा शब्द प्रचलित हुआ। शक्कर शब्द संस्कृत के शर्करा से निकला है जिसके मायने हैं चीनी, कंकड़ी-बजरी, बालू-रेत या कोई भी बड़ा कण। इसी वजह से संस्कृत में ओले के लिए जलशर्करा जैसा शब्द भी मिलता है। वैसे उपला की व्युत्पत्ति उपलेप्य शब्द से भी मानी जा सकती है। लोक संस्कृति में गोबर के विविध प्रयोग होते रहे हैं। घरों को लीपने के लिए गोबर का इस्तेमाल आम है। लीपने (लेपन ) की क्रिया को उप-लेपन (ऊपर से लेपन करना, पोतना या परत चढ़ाना) और कारक को उपलेप्य मानें तो उपला शब्द उपलेप्य का देशज रूप हो सकता है। यह सिर्फ कल्पना मात्र है।
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उपला और मालपुआ...क्या गठबंधन है शब्दों का...
ReplyDeleteयहाँ हाड़ौती में उपलों को छाणे कहते हैं और इसे बनाने की प्रक्रिया को पाथना के स्थान पर थापना कहते हैं, क्यों कि यह थपकी देने जैसी क्रिया है। पाथना सही है या थापना?
ReplyDeleteअच्छी जानकारी ...आभार.
ReplyDeleteपंजाबी में उपलों को 'पाथीआं' कहते हैं और इसे बनाने की प्रक्रिया को पथना. मालपूआ को मालपूड़ा कहते हैं
ReplyDeleteअंगरेजी पूप poop का एक अर्थ विष्ठा और मल त्यागना भी होता है.पहले इसका अर्थ धीरे धीरे पाद छोड़ना(पंजाबी पसूकी मारना)भी हुआ करता था जो निष्चय ही ध्वनि-अनुकरण है.
चर्चा से 'बोधिसत्व' के उपजे थे जो 'उपले',
ReplyDeleteशब्दों के सफर पर उसे मिल बैठ के 'थापे',
'अरबो'* से मिला 'माल', 'पुए' हमने बनाए,
अब 'राय'* मिली खाईये बस 'छाणे' ही 'माने'*
अरबो= Gulf से/ अरबी भाषा से
राय= दिनेश राय जी
छाने-माने= गुप-चुप
-मंसूर अली हाश्मी
http://aatm-manthan.com
'बासीजी' आए देर से 'पसुकी' लगा गए,
ReplyDeleteअब क्या! कि 'मालपुडा' तो खा कर पचा गए.
उपला में कई चिकित्सीय गुण भी है . कई तरह के त्वचा रोगों में उपले के धुएं से फ़ायदा होता है ऐसा मेरे गाँव के बुजुर्ग कहते है .
ReplyDeleteVery nice post sir
ReplyDeleteवाह आपके ब्लॉग पर आकर जिज्ञासाओं को सुकून मिल जाता है :)
ReplyDeleteमालपुये की बातकर आपने ध्यान भंग कर दिया । अब व्यवस्था करनी पड़ेगी सायं तक, नहीं तो चैन नहीं मिलेगा ।
ReplyDeleteनया ब्लॉग प्रारम्भ किया है, आप भी आयें । http://praveenpandeypp.blogspot.com/2010/06/blog-post_23.html
उपलों को अंग्रेजी में cow dung cake भी कहते है आपके क्या विचार इस बारे में.
ReplyDeleteupla aur maalpuaa
ReplyDeleteआज तो सिर्फ हाज़िरी लगाने आये हैं मानियेगा ...अच्छी प्राविष्टि
ReplyDeleteअब कभी भी मालपूआ खाते समय उपला विस्मृत न होगा...
ReplyDeleteलाजवाब शब्द विवेचना...
आभार...