Tuesday, October 5, 2010

कलश और कैलाश की रिश्तेदारी

ड़े के अर्थ में हिन्दी में कलश शब्द भी प्रचलित है। घरेलु उपयोग के लिए जल संग्रह की व्यवस्था के रूप में चाहे मटका, घड़ा, टंकी जितनी लोकप्रियता अब कलश की चाहे न रह गई हो मगर सांस्कृतिक, मांगलिक और धार्मिक अभिप्रायों को अभिव्यक्त करने के लिए कलश शब्द का प्रयोग वर्ष भर विभिन्न अवसरों पर होता है। मंगल कलश अपने आप में घट रूपी वह कोश है जिसमें हमारा अनदेखा उज्जवल भविष्य समाया है। बस, प्रतीक्षा है तो किसी शुभ घड़ी की। इसीलिए पर्वों-त्योहारों पर घर घर में मंगल कलशों की स्थापना की जाती है। यह मंगल कलश ही कुटुम्ब की सुख-समृद्धि का ख़ज़ाना है। यूं भी भारतीय संस्कारों में जन्म से लेकर मृत्यु तक कलश का महत्व है। प्रायः दार्शनिक अर्थों में घट का अर्थ शरीर से लगाया जाता है। कबीर के घट का अर्थ काया रूपी घट ही है जिसमें आत्मा रूपी जल की व्याप्ति से ही जीव की संज्ञा प्राप्त होती है। जा घट प्रेम न संचरे, सो घट जान समान । जैसे खाल लुहार की, साँस लेतु बिन प्रान ॥ जल शब्द अपनेआप में जीवन का प्रतीक है। घट में जल अर्थात जीवन ऊर्जा से प्रेरित एक ऐसी व्यवस्था जो मांगलिक कर्मों के जरिए सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य के संसार का सृजन करती है। यह व्याख्या मनुष्य होने का उद्धेश्य स्पष्ट करती है।


ल का घड़े से रिश्ता महत्वपूर्ण है। कलश, घड़ा या मटके जैसी व्यवस्थाओं का जन्म ठोस वस्तुओं के संरक्षण के लिए नहीं बल्कि तरल पदार्थ के संरक्षण के लिए हुआ था। तरल का प्राचीनतम् मूलार्थ भी जल ही है सो घट यानी कलश का जन्म ही जल संग्रह के लिए हुआ जिसमें निहित उद्धेश्य प्यास बुझाना था। प्राचीन साहित्य में कलश की महत्ता बताई गई है। वैदिक ग्रंथों में भी विभिन्न कलशों का उल्लेख है। मंगल कलश शब्द की स्थापना ही इसलिए हुई क्योंकि कलश को अष्ट मांगलिक चिह्नों (पूर्णघट भद्रासन, स्वास्तिक, मीन-युग्म, शराव-सम्पुट, श्रीवत्स, रत्नपात्र, व त्रिरत्न) में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त है। जल जो कि जीवन का पर्याय है, जो स्वयं मांगलिक है, उसे धारण करनेवाले कलश को आखिर मंगलमय क्यों न कहा जाता? वैसे कलश शब्द के जन्मसूत्र भी जलतत्व से इसकी संबद्धता बताते हैं।

मुझे लगता है कलश की व्युत्पत्ति के पीछे मूलतः देवनागरी के वर्ण में निहित जल का भाव ही महत्वपूर्ण है। विभिन्न कोश भी इसे पुष्ट करते हैं जिनके मुताबिक संस्कृत में कलश के दो रूप हैं 1.कलशः 2.कलसः और ये दोनों ही रूप संस्कृत में मान्य है। वामन शिवराम आप्टे कोश के अनुसार कलश की व्युत्पत्ति “ केन जलेन् लश (स) ति” अर्थात जो जल से सुशोभित हो। संस्कृत में कलशी शब्द भी प्रचलित है, ज़ाहिर है हिन्दी के देशज शब्द कलसा और कलसी भी अपने पूर्व संस्कृत रूपों से ज्यादा भिन्न नहीं हैं। देवनागरी में जल के अतिरिक्त क वर्ण में उच्चता का भाव भी निहित है। कृ.पां कुलकर्णी के मराठी व्युत्पत्ति कोश में भी कलश का कळस रूप दिया गया है और इसके जन्मसूत्र कल् + शु गतौ में बताए गए हैं अर्थात जिसमें शिखर, अन्त अथवा पराकाष्ठा का भाव हो वही है कलश। हालांकि यह तय है कि कलश में निहित जल को धारण करनेवाला भाव ही इस पराकाष्ठा वाले अर्थ में भी सिद्ध होगा तभी जलाशय रूपी जलपात्र के अर्थ में कलश का अर्थ घड़ा या मटका रूढ़ हुआ।


में निहित उच्चता, पराकाष्ठा या अन्त के भाव की व्याख्या बहुत आसान है। प्राचीनकाल से ही मनुष्य के लिए ज्ञान का सर्वज्ञात स्रोत सिर्फ प्रकृति थी। न कोई ग्रंथ था और न कोई रहनुमा। जो कुछ सीखा, इन्सान ने खुद सीखा। आज भी इसीलिए मूल ध्वनियों से उपजे अर्थों के इर्दगिर्द ही अधिकांश शब्दों की अर्थछटाएं प्रकाशित नज़र आती हैं। समझा जा सकता है कि कलश में निहित ऊंचाई के अर्थ में जल के प्रमुख संग्राहक बादल हैं जो जल को सबसे पहले धारण करते हैं और उन्हें बूंदों की शक्ल में पृथ्वी पर बरसाते हैं। बादलों का आवास पहाड़ों पर माना जाता है इसीलिए पहाड़ को मेघालय भी कहा जाता है। हिम भी पानी का ही एक रूप है जाहिर है हिमालय भी जल का संग्राहक ही है। हिमालय पर्वत का एक हिस्सा कैलाश मानसरोवर कहलाता है। कैलाश और कलश शब्द में व्युत्पत्तिमूलक समानता है। संस्कृत में कैलाश का रूप कैलासः है जिसमें भी जल से सुशोभित होने का ही भाव है। अगली कड़ी-
कलश, कलीसा और गिरजाघर



इन्हें भी ज़रूर पढ़ें-1.[नामपुराण-4] एक घटिया सी शब्द-चर्चा…2.[नाम पुराण-5] सावधानी हटी, दुर्घटना घटी3.आरामशीन से चरस, रहंट, घट्टी तक





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15 comments:

  1. हमारे यहा इसे कलसा कहते है . कलश में अगर जल ना भरा हो तो तब भी इसे कलश कहेंगे क्या ? कलश की व्युत्पत्ति “ केन जलेन् लश (स) ति” अर्थात जो जल से सुशोभित हो।

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  2. आपके परिश्रम को अन्‍तर्मन से नमन। आपकी प्रत्‍येक पोस्‍ट पढने के बाद मेरी दशा कुछ ऐसी होती है -

    जी तो करता है समन्‍दर पी लूँ
    हाय री किस्‍मत, अंजुरी बहुत छोटी है

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  3. बड़ी सुन्दर व्याख्या।

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  4. सुन्दर जानकारी ..आभार.

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  5. घटना कछु आज घटे न घटे
    बस घटा घटे बादल न फटे
    वर्षा रानी मटकत ऐसे
    सब कलश भरे फूटे मटके

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  6. कई महत्वपूर्ण बातें पता चलीं....आपका बहुत-बहुत शुक्रिया

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  7. मानसरोवर कलश है आपका ब्लाग। बहुत सुन्दर व्याख्या। आभार।

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  8. आपकी कमी महसूस कर ही रहा था कि यह प्रविष्टि आ गयी ! हमेशा की तरह बेहतरीन पोस्ट !

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  9. कलश पर ये लेख ज्ञानवर्धक है .. और बहुत सुन्दर बना पड़ा है ... धन्यवाद

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  10. कलश में जल है जैसे घट में जीवन,
    भरा जिसने उसी को कर ये अर्पण,
    निहित है 'क'र्म में तेरी बुलंदी* [उच्चता]
    कलश मंगल,जलम शुद्धम, सुखी मन.

    -मंसूर अली हाशमी
    http://aatm-manthan.com

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  11. अच्छी और ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए धन्यवाद |

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  12. बहुत अच्छी लगी आप की व्याख्या, कबी कबी तो आपकी शैली उद्दात हो जाती है और वाणी जैसा रस देती है. काश मैं भी ऐसी हिंदी लिख सकता.
    आप ने मंदिरों के शिखर पर लगे कलश की ओर संकेत भी नहीं किया. क्या आप इसको संबंधित नहीं मानते? मैंने एक जगह कलश का रिश्ता ग्रीक ecclesiastic के साथ पढ़ा था.

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  13. बहुत ही ज्ञानवर्धक व्याख्या !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  14. नमस्ते अजित जी ! आपकी व्याख्या अच्छी हे , धन्यवाद | मेरा एक संदेह हे, समाधान देने की कृपा करें | ' घड़ा ' और 'मटका' में अंतर क्या हे ?

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