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न दी-तटीय बस्तियों के साथ घाट शब्द का प्रयोग भी बहुधा मिलता है। ये घाट सिर्फ स्नान घाट नहीं थे बल्कि इनका अर्थ भी समृद्ध व्यापारिक केंद्र से ही था। हिन्दी मे प्रचलित घाट ghat की तुलना भारोपीय भाषा परिवार की पोस्ट जर्मनिक धातु गातां gatan, जिसमें खुला रास्ता, मार्ग या दर्रा का भाव है और प्राचीन नॉर्डिक, फ्रिशियन, और ड्यूश भाषाओं में gat धातु से की जा सकती है जिसमें मौद्रिक लेनदेन के अर्थ में खुलने का भाव है यानी टिकटों की बिक्री से होने वाली आय का संग्रहण करना। गौर करें घाट का एक अर्थ चुंगी चौकी भी होता है। पुराने ज़माने में जहां पत्तन समुद्रपारीय व्यापार के बड़े केंद्र होते थे वहीं नदियों के जरिये होने वाले व्यापारिक केंद्रों के लिए अक्सर घाट शब्द का प्रयोग होता था। यूं सामान्यतौर पर अब घाट का अर्थ नदी तट पर स्थित वह स्थान होता है जहां से पानी भरा जाता है और स्नानकर्म किया जाता है। घाट शब्द की अर्थवत्ता व्यापक है। यह बना है संस्कृत के घट्टः से जिसमें आश्रय, पत्तन, बंदरगाह समेत नहाने की जगह का भाव शामिल है। गौर करें हिन्दी के घट या घटम् का अर्थ होता है कलश जिसमें पानी आश्रय पाता है। घट में समष्टि और समुच्चय का भाव है। नदी तट की प्राचीन बस्तियों के साथ जुड़े घाट शब्दों पर गौर करें मसलन-ग्वारीघाट, बुदनीघाट, बेलाघाट, कालीघाट जिनमें स्नान का भाव न होकर व्यापारिक पत्तन होने का भाव अधिक है। घाट की महिमा अपरम्पार है। यह पनघट है, जमघट है, मरघट है। सभी अवस्थाओं में यह तीर्थ है, पूज्य है और पावन है। घट में जैसे दार्शनिक भाव निहित हैं, वैसे मानवनिर्मित किसी अन्य पदार्थ में देखने को नहीं मिलते। घट ही कण है, घट ही क्षण है, घट ही जन-मन-गण है।
घट की महिमा मुझे हमेशा सुहाती है। घट से जुड़ी एक लोकप्रिय उक्ति है- घाट घाट का पानी पीना। इसमें मूलतः व्यक्ति के अनुभवों को मान्यता दी गई है। चरण छूने की परम्परा का इसी अनुभव से रिश्ता है। गौरतलब है कि प्राचीन समाज में सूचना व ज्ञानार्जन के आज जैसे साधन नहीं थे जिनकी वजह से घर बैठे हर तरह की जानकारियां मिल जाती हैं। ज्ञानार्जन का जरिया सिर्फ पर्यटन, देशाटन, घुमक्कड़ी और यायावरी था। गुरुओं के सानिध्य के अतिरिक्त सुदूर प्रांतरों में पदयात्रा कर ही मनुष्य ज्ञानार्जन कर पाता था। जो जितना घुमक्कड़, उतना बड़ा ज्ञानी। आवारगी में जब इल्म की खुश्बू आ जाए तो इनसान ऐसा फ़कीर बन जाता है जिसे सूफी कहते हैं। सो चरण स्पर्श के पीछे व्यक्ति के उन अनुभवों को मान्यता देने का भाव था जिनमें ठौर ठौर का स्पंदन अनुभव की रज बनकर लिपटा है। उसी चरण रज को अपने मस्तक पर लगा कर लाभान्वित होने की पवित्र पावन परिपाटी भारतीय संस्कृति में चली आ रही है। अनुभवी के चरणों की रज को अपने मस्तक से लगाने के पीछे उस घुमक्कड़ को परिव्राजक-ऋषि की श्रेणी में रखने का भाव भी है। पुराने जमाने की चालू भाषा में घुमक्कड़ी को मुसाफिरी कहा जाता था। मुसाफिर बना है सफ़र से। सूफ़ी की असली पहचान उसके सफ़र में होने से है। सफ़र और सूफ़ी एक ही मूल से निकले हैं। चरैवेति चरैवेती…यही कहता है भारतीय दर्शन भी। बाट में घाट तो आएंगे, जहां सुस्ताना है, सांस लेनी है, मन को थोड़ा और थिर करना है, पर रुकना नहीं है। घाट रोकता नहीं, आगे की बाट दिखाता है। घाट से जो बंध जाए वो कैसा सूफ़ी, कैसा जतरू, कैसा जोगी? दरअसल घाट के अर्थ में घट्टः और कलश के अर्थ वाले घटम् शब्द का निर्माण हुआ है संस्कृत धातु घट् से जिसकी बहुआयामी अर्थवत्ता ने रोजमर्रा के शब्दों की एक भरीपूरी शृंखला बनाई है जैसे घट, घटम, घाट, घाटा, घाटोल, घटिया, घटी, घटना आदि। और तो और बादल के अर्थ में घटा शब्द भी इसी मूल से निकला है। घट् में प्रयत्न, व्यस्तता, कर्म करना, होना जैसे भाव हैं। इसका सबसे महत्वपूर्ण भाव है एकत्र होना या मिलाना जिसमें उपरोक्त सभी शब्दों की व्याख्या के सूत्र छिपे हैं। गौर करें घाटी या घाट की प्रकृति या रचना पर। घाट वही है जहां दो पर्वतों की ढलान सम पर मिलती है। घाट का अर्थ किनारे से पानी में उतरती हुई सीढ़ियां है। मिलन यहां भी है। नुकसान के अर्थ में घाटा शब्द भी इसी शृंखला से जुड़ा है। ढलान में सतह से निरंतर घटती दूरी का भाव ही कमी का संकेत है। घाटा यानी कमी। नुकसान का अर्थ भी मुनाफे में कमी ही होता है। निकृष्ट, नीच, कमतर, निम्न, ओछा, गौण या तुच्छ जैसे अर्थों में घटिया शब्द रोजमर्रा की हिन्दी का लोकप्रिय शब्द है। घटिया माल, घटिया व्यवस्था, घटिया सरकार, घटिया शहर, घटिया मोहल्ला, घटिया लोग, घटिया आदमी, घटिया औरत...गरज ये कि जो कुछ भी निकृष्ट के दायरे में आता है, उसे घटिया की व्यंजना दी जाती है। हां, घटिया अर्थव्यवस्था और घाटे की अर्थव्यवस्था में बहुत अंतर है। घटिया अर्थव्यवस्था निकृष्ट मौद्रिक प्रबंधन दर्शाती है जबकि घाटे की अर्थव्यवस्था कुशल वित्त प्रबंधन दिखाती है। घटिया में मूलतः गुणवत्ता में कमी का ही भाव है, जबकि घाटा एक परिस्थिति है जो स्वाभाविक भी हो सकती है और चतुराई से निर्मित भी, सो घाटा शब्द पर हमेशा सावधानी से विचार करना चाहिए। ऊंचाई से नीचाई पर आने में सम करने का जो भाव है उसका नकारात्मक पक्ष घाटा, घटिया जैसे शब्दों में उभरता है।
घट के साथ सम्मिलन का भाव पनघट शब्द से भी सिद्ध होता है। मनुष्य के जीवन में लगाव का, जुड़ाव का, मिलन का गुण जिन दो तत्वो से है वे हैं प्रेम और जल। पनघट दरअसल समाज का ऐसा ही मिलन स्थल है। प्रेम-रस का प्राप्ति स्थल। रस यानी पानी। इसीलिए जहां सबको जीवन रस मिलता है, वही पनघट है। सब एक ही घट से उपजे हैं और सबको एक घाट ही जाना है। सो घाट तो मिलन का प्रतीक है। एक घाट के वासी हैं सब…गौर करें, समाज से पनघट संस्कृति खत्म हुई, सो प्रेम भी बिला गया। जीवन-रस अब बोतलबंद मिनरल वाटर है और प्रेमघट रीता है। पनघट में जहां संयोग का भाव है वहीं मरघट में वियोग, विरक्ति का भाव है। मरघट में भी मिलन तत्व निहित है किन्तु पारलौकिक अर्थ में। परमतत्व में विलीन होने का भाव मरघट से जुड़ा है, जिसकी लौकिक अभिव्यक्ति मृत्यु है। संयोग का लौकिक प्रतीक पनघट है जिसकी तुलना सृष्टि के सभी रूपों से की जाती है। पनघट शरीर है और तमाम इन्द्रियां भवसागर में अपनी तृष्णा मिटाने के लिए यहां एक साथ होती हैं, मिलन करती हैं। किन्तु पनघट तो सिर्फ ठौर है, परमधाम नहीं। वहां तक पहुंचने की राह तो मरघट से होकर ही जाती है। दार्शनिक अर्थों में पदार्थ, जीव, काया और सृष्टि अर्थात व्यष्टि से समष्टि तक सब कुछ घट में व्याप्त है। घट प्रतीक है ब्रह्म का। यह पनघट में भी व्यक्त है और मरघट में भी। पनघट तो अब रहे नहीं, सो मरघट भी डराते हैं। -जारी
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22 कमेंट्स:
वॉव, क्या खूबसूरती से आपने इतनी जानकारी वाली बातें बताईं...मजा आ गया...
आलोक साहिल
सुबह का सफर अच्छा लगा...एक सामायिक और सार्थक पोस्ट......
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http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_27.html
घटिया नाम पुराण चर्चा अच्छी रही ...घट और घटिया दोनों के बारे में जाना ..
आभार ...!!
पनघट से बचपन में देखे पनघट के द्रश्य याद आ गए .
घाट पर अच्छी जानकारी. आभार.
अद्बुत। शब्दों का सफर चलता रहे।
बहुत ही अच्छा ।
ज्ञानवर्धक. आभार.
घट गया सो घट गया,
मिलने उसे पनघट गया,
कहना था जो सब रट गया,
देखा मुझे लपके जो वो,
गगरी बची, घूँगट गया.
''अय्यो'' जो कहके वो बढ़ा,
पीछे कदम दो हट गया,
इक ''शब्द '' में सब पट गया.
-मंसूर अली हाश्मी
http://aatm-manthan.com
आटा पीसने की चक्की को घट्टी भी कहा जाता है क्या इसका भी घाट से कोई सम्बन्ध है ?
हमारा भाषा ज्ञान कुछ और बढ़ा।
@gs
अनाज (आटा नहीं) पीसने की चक्की के लिए घट्टी भी इसी शब्द शृंखला से आ रहा है मगर यह दो शब्दों की संधि से बना है और इसलिए इसका भावार्थ भी सीधा सीधा घट से नहीं जुड़ता है। इसीलिए इस शब्द को इस कड़ी में शामिल नहीं किया। वैसे 2006 में दैनिक भास्कर में प्रकाशित एक आलेख में घट्टी पर बात हो चुकी है। अगली किसी कड़ी में जल्दी ही सफर में घट्टी की चर्चा।
अजित भाई,
एक ब्लॉगर घाट और खुलवा दीजिए जिससे ब्लॉगरों को घाट घाट का पानी पीने की सुविधा एक ही घाट पर मिल जाए...
जय हिंद...
इस कड़ी का सर्वश्रेष्ठ हिस्सा अंतिम पैरा में पनघट और मरघट की व्याख्या के रूप में सामने आया। बहुत शानदार बात कही। मरघट में भी मिलन तत्व निहित है....
अजित भाऊ ,
शब्दों के सफ़र के हमराह हम भी आपके साथ घाट घाट का पानी पी रहे हैं. और भले (शेक्सपीयर ) कह सकता हो ' नाम में क्या रखा है ,पर शब्दों में तो बहुत कुछ है .
शब्द गंगा की गंगोत्री में सतत डुबकी लगवाते रहने के लिए आपका सतत धन्यवाद.
पुनश्च: ' घटिया ' का भी किसी घाट का कुछ लेना देना है ?
खुशदीप भाई,
ब्लॉगर घाट तो कई खुले हुए हैं पर वहां फिसलन इतनी है कि हाथ पैर टूटने का डर है। किसी तरह सीढ़ियां उतर भी गए तो डूबने का खतरा है:)
शुक्रिया संजय भाई,
घट की महिमा न्यारी है। अगली कड़ी में भी घटचर्चा जारी रहेगी।
राज जी,
बहुत आभार। सांसारिक घाट जब पवित्र-पावन नहीं रहे तब वहां घटियापन तो उभरेगा ही। राजनीति के घाट से धर्मसंस्कृति के घाट पर घूम आइये, यही हाल है।
घट का क्रिया रूप भी है, घटना।
आज की पोस्ट में तो घाट-घाट का पानी पीकर तृप्त हो गये!
घट घट की जानकारी मिली..
Love to see greenish safar. Thirst of desert seems somehow quenched. Wishes !
दिनेशजी,
घट की अगली कड़ी में घटना समेत कुछ और रूपों की चर्चा है।
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