प रिश्रम किए बिना मनुष्य रह नहीं सकता। हमारी तरक्क़ी की बुनियाद ही मेहनत पर टिकी है। मगर यह भी सच है कि इन्सान का मूल स्वभाव आलस्य ही है। आलसियों को कई तरह के नामों से नवाज़ा जाता है जैसे अजगर। अहदी भी आलसियों का ही नाम है। उत्तर भारत की ज्यादातर बोलियों में अहदी शब्द आलसी का पर्याय माना जाता है। राजस्थान में यह ऐदी सुनाई पड़ता है तो पूर्वी उत्तरप्रदेश में हैदी, ऐहदी। यूँ देखा जाए तो आलसी हर वर्ग, हर पेशे में मिल जाते हैं। आलस्य व्यक्ति से लेकर समूह तक की पहचान हो सकती है। आलस्य संक्रामक भी होता है। एक व्यक्ति अगर उबासी लेता है तो बाकी लोगों पर भी उसका असर तत्काल नज़र आता है। ताज्जुब की बात है किसी को आलसी इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह काम नहीं करता, मगर कोई पद ही आलसीपन का पर्याय बन जाए, यह विलक्षण बात है। समाज में उच्च दर्ज़े की समझी जाने वाली बातें वक्त के साथ इतनी बदल जाती हैं कि मूल शब्द अपनी अर्थवत्ता बदलने लगते हैं और या तो मूल भाव की अर्थोन्नति हो जाती है या अर्थावनति। अहदी के साथ यही हो रहा है। पाखण्ड, गुरु, चेला, उस्ताद जैसे शब्द इसी श्रेणी के हैं। पाखण्ड कभी सम्प्रदाय था, अब यह ढोंगी का पर्याय है। गुरु का प्रयोग अब धूर्त, चालाक के अर्थ में होता है। चेला शिष्य था, पर अब चापलूस है। उस्ताद की गति भी गुरु जैसी ही हुई। अहदी और ओहदा दोनों शब्दों का रिश्ता पद (पोस्ट) यानी अफ़सरी से है। अब वो अफ़सर ही क्या जो आलसी न हुआ। काम तो दस्तूरी लेकर होती है।
मुग़लों के ज़माने में अहदी एक प्रभावशाली दरबारी पद होता था और अहदियों की बड़ी अहमियत थी। सबसे पहले देखते हैं कि अहद आया कहाँ से। सेमिटिक भाषा परिवार की एक धातु है अह्द अर्थात अ-ह-द (ahd) जिसमें अनुबन्ध, क़रार, इक़रार, वादा जैसे भाव हैं। इससे बने अहद में भी ये भाव सुरक्षित रहे साथ ही वक्त, काल, शासनकाल जैसे भाव भी इसमें शामिल हुए। उर्दू फ़ारसी में अहदनामा एक पद है जिसका अर्थ भी वही है जो क़रारनामा / इक़रारनामा का होता है। क़रारनामा दरअसल एक सहमतिपत्र होता है जिसमें दो पक्ष या दो व्यक्ति किसी बिन्दु पर सहमति के हस्ताक्षर करते हैं। इसे हिन्दी में अनुबन्धपत्र कहते हैं। गौर करें कि अरबी शब्दों में फ़ारसी के प्रत्यय लग कर हज़ारों नए शब्द बनते रहे हैं जो उर्दू हिन्दी में भी सीधे सीधे चले आए हैं। अहद के साथ दार शब्द लगने से अहददार शब्द बनता है। मुस्लिम शासनकाल में अहददार दरअसल अनुबन्ध पर नियुक्त एक कारिन्दा होता था। कुछ कुछ उन कमीशन एजेंटों की तरह जिन्हें बैंकों द्वारा अपने कर्जों की वसूली के लिए नियुक्त किया जाता है। अहदी / अहद से मिलता-जुलता शब्द है ओहदा जिसका इस्तेमाल भी हिन्दी में होता है। ओहदा यानी पद, रुतबा, पोस्ट आदि। ओहदा भी हिन्दी में प्रयोग किया जाता है। फ़ारसी में इसका रूप ओहदे होता है। उच्च पद पर तैनात व्यक्ति को ओहदेदार कहते हैं। अरबी में इसका रूप उह्दा होता है। उह्दा शब्द का मूलार्थ भी वचन, वादा, अनुबन्ध या शपथ ही है। निश्चित ही उच्चपदासीन व्यक्ति का राज्य के साथ नैतिक अनुबन्ध होता है। वह कर्तव्यपालन की शपथ लेता है और आम लोगों के के प्रति वह वचनबद्ध होता है।
ये कारिन्दे कर्जदार से नियमित वसूली न हो पाने की स्थिति में डरा धमका कर या मार पीट कर वसूली का काम करते थे। अहद यानी क़रार और दार यानी जिससे किया गया हो, अर्थात अनुबन्धित व्यक्ति। इसे ही कमीशन एजेन्ट कहते हैं। अहददार को ही अहदी भी कहा जाता था। अहदियों को बड़े बड़े मालगुज़ारों, ज़मींदारों से भी करों की वसूली के लिए भेजा जाता था। आम तौर पर रसूखदार लोगों से वसूली मुश्किल होती थी, ऐसे में सरकार को अहदियों की विशेष सेवाएँ लेनी पड़ती थीं। हिन्दी शब्द सागर के मुताबिक- “ये लोग कभी कभी उन जमींदारों से मालगुजारी वसूल करने के लिए भी भेजे जाते थे, जो देने में आनाकानी करते थे। ये लोग अड़कर बैठ जाते थे और बिना लिए नहीं उठते थे।” मगर ये लोग साधारण मालगुज़ार न थे जो वेतनभोगी कर्मचारी था। ये विशेष रुतबे वाले लोग थे, अहददार थे, इसीलिए अहदी थे। शब्द सागर में दिए संदर्भ से ऐसा लगता है कि अहदियों की भूमिका सिर्फ़ वसूली कारिन्दे की थी। मगर ऐसा नहीं है। अहदियों के बारे में कई सन्दर्भ मिलते हैं जिनसे पता चलता है कि अहदी सीधे बादशाह के अधीन काम करने वाले खास अहलकार होते थे जिनका रुतबा फ़ौजी अफ़सर का भी होता था मगर फ़ौज के सामान्य पदानुक्रम में वे न होकर सीधे बादशाह के लिए काम करते थे। सामान्य गुप्तचरी से जुड़े लोग भी इनमें होते थे। मनसबदार, जागीरदार भी अहदी हो सकते थे। और तो और गुणी कलावन्तों का शुमार भी अहदियों में होता था।
जॉन प्लैट्स के कोश में स्वामीभक्त, सेवानिवृत्त अफ़सरों को भी अहदी का रुतबा मिलने की बात कही है। ये लोग कोई काम नहीं करते थे। घुड़सवार दस्ते के लोग भी अहदी कहलाते थे। मगर अक्सर उन्हें उच्च प्रशासनिक ज़िम्मेदारियाँ भी दी जाती थीं। घुड़सवार दस्ते का ज़्यादातर वक्त घोड़ों की देखरेख और खाली बैठने में ही जाता था। इसके अलावा इनका प्रमुख काम संदेश पहुँचाना था। शासन की ओर से इन्हें भारी तनखाहें दी जाती थीं। सवाल उठता है कि इतने महत्वपूर्ण रसूख वाले शब्द के साथ आलसी, कामचोर जैसी अर्थवत्ता क्यों जुड़ी? एक वजह तो यह हो सकती है कि वसूली कारिन्दा जैसी ज़िम्मेदारी के चलते ही अहदी शब्द के साथ आलसी, निकम्मा, कामचोर जैसी अर्थवत्ता जुड़ी हो। वसूली का काम साल में एक या दो बार होता था, ऐसे में बाकी समय ये कारिन्दे खाली होते थे और अपनी ख़ास आरामगाह, जिसे अहदीख़ान कहा जाता था, में पड़े रहते थे। कुछ शब्दकोशों में अहदी का अर्थ अफीमची, मदकची, भंगेड़ी, गंजेड़ी भी बताया गया है। मेरा विचार है कि अहदी पद के आलसी ओहदेदारों की कारगुज़ारियाँ देखने के बाद ही अहदी शब्द की अर्थवत्ता में यह परवर्ती विकास हुआ होगा।
अहदियों के बारे में यह स्पष्ट है कि इन्हें विशेष काम अंजाम देने के लिए ही राज्याश्रय मिलता था। ये विशिष्ट फ़ौजी काम भी हो सकते थे। कुछ लोगों को सिर्फ़ खास संदेश देने के लिए रखा जाता था। इन तमाम लोगों को जब तक फ़रमान नहीं मिलता था ये लोग या तो अहदीख़ाना जैसी एक आरामगाह में काम के इंतज़ार में वक़्त गुज़ारते थे। इस दौरान सरकारी तौर पर उनके ऐशोआराम का पूरा ख्याल रखा जाता था। कई अहदी ऐसे भी होते थे जो इस किस्म की आरामतलबी के आदी हो जाते थे और मौका आने पर अपना फ़र्ज़ पूरा करने में नाकाम साबित होते थे। इन हालात में आम लोगों में इन अहदियों के बारे में दिल्लगी होती थी। धीरे धीरे अहदी शब्द का रुतबा घटता गया। बाद में आलस्य के लिए अहदीपन जैसे क्रियाविशेषण भी बन गए। एनेमेरी शिमर और बर्जिन के वैग्मर ने द एम्पायर आफ द ग्रेट मुगल्स में में लिखा है कि अहदीपन उन अहदियों की वजह से प्रचलित हुआ जो आरामतलबी की वजह से अपने फ़र्ज़ को अंजाम देने में नाकामयाब होने लगे थे।
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
हमारे यहाँ अलहदी या अलिहदी कहा जाता है…साफ साफ कहें तो ये भारत के राष्ट्रपति या राज्यों के राज्यपाल जैसे होते थे…
ReplyDelete@चंदन कुमार मिश्र
ReplyDeleteभाई, राष्ट्रपति, राज्यपाल जैसा दर्जा नहीं होता था। कुछ अहदी मन्सबदार, ज़मींदार जैसी हैसियत में होते थे। राष्ट्रपति तो राष्ट्रप्रमुख ही हुआ न? इनके बारे में जो भी जानकारी है उसके मुताबिक अहदी सीधे शासक के अधीन विशिष्ट अधिकारी होते थे।
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteबढिया जानकारी ..
ReplyDelete'अह्द' करले, पालने की बात छोड़ ,
ReplyDeleteले 'उबासी' साथ् मे दूजे को जोड़,
काम करने को खडी है भीड़ याँ,
'एह्दी' है; बस मुफत ही की, तू तोड़ !
http://aatm-manthan.com
आपकी पोस्टें दोहरा सुख देती हैं। पहला - जानकारी बढती है। दूसरा - अपनी कुछ जानकारियों की पुष्टि हो जाती है।
ReplyDeleteप्रसंगवश उल्लेख है कि रहन-सहन के मामले में गन्दे, धिनौने आदमी को मालवी में 'एदी' कहते हैं।
काम न करने का अर्थ तो ओहदे में अनायास ही उतर आया है।
ReplyDelete@विष्णु बैरागी
ReplyDeleteमालवी का ऐदी भी दरअसल राजस्थानी ऐदी की तरह ही अहदी का रूपान्तर है, फ़र्क यही है कि मालवी ऐदी में अर्थविस्तार ज्यादा हो गया है। आलसी व्यक्ति नहाने-धोने से भी कतराता है। शारीरिक शुचिता का महत्व भी नहीं होता उसके लिए। स्पष्ट है कि आलसी निकम्मा व्यक्ति अन्त्ततः खुद को साफ़ सुथरा तक नहीं रख सकता। जाहिर है वह गंदा, घिनौना तो हो ही जाएगा।
समय के साथ साथ शब्दों के अर्थ बदल जाते है , कमाल है .
ReplyDeleteपञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
ReplyDelete***************************************************
"आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"
Dear Ajit ji,
ReplyDeleteThe write up on ahadi was very good. I did not know the meaning of Ahadi until I read this out
in mail box. Why not start some hindi slang and catch phrases which is very popular in North India?
I think it will be very enlightening...
Regards
आपके सफल ब्लॉग के लिए साधुवाद!
ReplyDeleteहिंदी भाषा-विद एवं साहित्य-साधकों का ब्लॉग में स्वागत है.....
कृपया अपनी राय दर्ज कीजिए.....
टिपण्णी/सदस्यता के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें....
http://pgnaman.blogspot.com
हरियाणवी बोली के साहित्य-साधक अपनी टिपण्णी/सदस्यता के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें....
http://haryanaaurharyanavi.blogspot.com