कि सी स्थान पर अव्यवस्था फैलने के सम्बन्ध में भगदड़ शब्द का भी प्रयोग होता है। भगदड़ (मचना) शब्द भाग + दौड़ से मिल कर बना है। यूँ देखा जाए तो भाग-दौड़ (करना) या दौड़-भाग (करना) हिन्दी का एक प्रचलित मुहावरा है जिसका मतलब होता है किसी खास मक़सद से की जाने वाली मेहनत, मशक्कत। ऐसा श्रम जो किसी काम को सम्पन्न करने के लिए बीते कुछ समय से जारी है। भाग-दौड़ सफल भी हो सकती है और निष्फल भी। मगर भाग-दौड़ में जहाँ भागना-दौड़ना क्रिया का भाव सक्रियता के अर्थ में है वहीं भगदड़ में अस्तव्यस्तता, अव्यवस्था, गड़बड़ी, तितर-बितर होने और खलबली जैसी स्थितियाँ नज़र आती हैं।
पूर्वी शैली की हिन्दी में भगदड़ का एक रूप भगदर भी होता है। भगदड़ का शाब्दिक अर्थ है कि किसी वजह से बहुत से लोगों का तितर-बितर होना, अलग अलग दिशाओं में भाग छूटना या दौड़ लगा देना। ऐसा एक समूह के बीच किसी अफ़वाह फैलने चलते हो सकता है या किसी आशंका के वशीभूत होकर। किसी धमाके की प्रारम्भिक प्रतिक्रिया भी भगदड़ हो सकती है। कुछ लोगों का मानना है कि भगदड़ के मूल में आशंका और भय का होना आवश्यक है। बात सही है। मगर अब किसी गड़बड़ी की वजह से भागने-दौड़ने की क्रिया के लिए ही भगदड़ शब्द का प्रयोग नहीं होता बल्कि अफ़रातफ़री जैसी स्थिति के लिए भी भगदड़ का इस्तेमाल होता है। रेलवे स्टेशन पर गाड़ी आने की सूचना से भी भगदड़ मच सकती है या सभा में जनप्रिय हस्ती के आने की खबर से भी भगदड़ मच सकती है।
दौड़ना हिन्दी की आम क्रिया है। संस्कृत के धोरण शब्द से इसका रिश्ता है। हिन्दी शब्दसागर में इसका धौरना रूप भी है। संस्कृत की धोर् धातु में तेज गति से चलने, भागने का भाव है। इसका एक अर्थ घोड़े की दुलकी चाल भी है और सरपट भागना भी। धौर् यानी लम्बे लम्बे डग भरते हुए आगे बढ़ना या तेज चाल से तेजी से निकल जाना। यही दौड़ना है। दौड़ना क्रिया से कई मुहावरेदार अभिव्यक्तियाँ निकलती हैं। दौड़ लगा देना यानी किसी काम या उद्धेश्य को पूरा करने के लिए भागना। दौड़ में शामिल होना यानी किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रयासरत कई लोगों में खुद का भी शामिल होना। दौड़ में शामिल होना का विलोम है दौड़ से बाहर होना अर्थात किसी स्पर्धा से निकल जाना। घोड़े दौड़ाना यानी किसी काम के लिए खूब सारे लोगों को लगा देना। दौड़ कर आना यानी किसी उद्धेश्य या लोभ से कुछ पाने की की प्रत्याशा में शीघ्रता से चले आना। सिर्फ़ पैर ही नहीं दौड़ते, दिल भी दौड़ता है, मन भी दौड़ता है और आँखें भी दौड़ती हैं। निगाह या नज़र का दौड़ना या दौड़ाना में बहुत तेज़ी से किसी स्थान, वस्तु या बात को समझ लेने का भाव है। दौड़-भाग या भाग-दौड़ की चर्चा ऊपर हो चुकी है। इसी क्रम में दौड़-धूप भी शामिल है। अनवरत मेहनत करने या श्रम करने के अर्थ में इसका प्रयोग होता है। आक्रमण, धावा या चढ़ाई के अर्थ में चढ़ दौड़ना का प्रयोग होता है। वैसे किसी पर हावी होने की कोशिश भी चढ़ दौड़ना ही है। अक्सर चढ़ाई से पहले भगदड़ मचाना भी एक रणनीति है।
भागना क्रिया के मूल में संस्कृत की भज् धातु है जिसका अर्थ है हिस्से करना, अंश करना, वितरित करना, बांटना, लाभ प्राप्ति, पूजा-आराधना आदि। भज् से ही बना है भक्त जिसका अर्थ भी बंटा हुआ है। भक्त वह है जो अपने ईश्वर से विभक्त है। ईश्वर से जुड़ कर तो वह ब्रह्मलीन हो जाता है। भज् के बाँटने, खण्ड खण्ड होने के भाव के साथ साथ मोनियर विलियम्स के कोश में भयभीत होकर जाने का भाव भी है। भाज् धातु में आश्रय खोजने, जाने और खोजने का भाव है। भगना, भागना क्रिया में तेजी से चलते हुए भूमि के अंश नापने की क्रिया भी सम्पन्न हो रही है।
भागना मूलतः दौड़ना का ही एक रूप है मगर इसका एक सूक्ष्म फर्क है पलायन का भाव। दौड़ना जैसी क्रिया में जहाँ निरपेक्ष तेज गति का भाव है वहीं भागना में आशंका, भय से त्राण पाने के लिए तेज गति से दूर हटने की उभरती है। भाग खड़ा होना जैसे मुहावरे में भय या आशंका ही प्रमुख है। हालाँकि पुलिस को देखते ही बदमाश भाग निकले में जहाँ पलायन का भाव है वहीं इसी स्थिति में अगर बदमाशों ने दौड़ लगा दी या पुलिस को दौड़ा लिया जैसा प्रयोग होता है तो इसमें बदमाशों के पलायन का भाव न होकर पुलिस से बचने की युक्ति का उनका सहज कर्म नज़र आता है। यहाँ दौड़ लगाना या दौड़ा लेना जैसे मुहावरे सामने आ रहे हैं। मार भगाना में पलायन का भाव न होकर शौर्य है क्योंकि इससे पूर्व मारने की क्रिया सम्पन्न हो रही है। सिर्फ भगाना भी पलायन या कायरतापूर्ण है। हाँ, दुश्मन से बचाने के लिए किसी को भगाना में चतुराई का भाव है। भागना के साथ पलायन किस क़दर जुड़ा है यह मेहनत से भागना, काम से भागना जैसे मुहावरों से स्पष्ट है।
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बढ़िया…भोजपुरी में अभी भी जिनपर हिन्दी का रंग कम चढ़ा है या नहीं चढ़ा है, धउर/ड़ दौड़ के लिए बोलते हैं…जिसमें धौरना का भाव दिखता है…
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteमंगलकामनाएँ!
यही भागदौड़ हमारी जीवन की भगदड़ बन गयी है।
ReplyDeleteशब्दों का सफ़र सार्थक जा रहा है .....
ReplyDeleteआभार!
वाह-वाह, इस सफर में क्या दौड़ लगायी है आपने !!
ReplyDeleteदौड़ पड़ना, दौड़ा लेना, अक्ल के घोड़े दौड़ाना, आदमी दौड़ाना का सूक्ष्म अर्थ भी बता दें।
आपसे निवेदन है कि हडकंप के बारे में भी कुछ प्रकाश डालें
ReplyDelete# 'सांढ़ो' के दौड़ने से यहाँ, 'भगदड़' मची हुई ,
ReplyDeleteकोई पलट गया है तो ठिठका कोई कही,
दंगे के वास्ते क्या फिज़ा साज़गार है !
'सट्टे' की बन्द दुकाने अचानक ही चल पडी.
# ताकतवरो की बस्ती में कमजोर लोगों की 'बहादुरी' का एक नमूना:-
बदमशो का तीन का 'टोला' और हम 'केवल' तेरह,
एसे हम 'भागे' कि बस कर दिया था उनको हैराँ !
[मूल रूप से गुजराती में यूं प्रचलित है:
"बदमशो नू त्रण नु टोलू अने अमो फक़त तेर, एह्वा भाग्या - एह्वा भाग्या कि लुच्चाओं जौताज [देख्ताज] रही गया" !
http://aatm-manthan.com
हर कोई दौडा-दौडा आएगा आपकी यह पोस्ट पढने के लिए।
ReplyDeleteआपके सफल ब्लॉग के लिए साधुवाद!
ReplyDeleteहिंदी भाषा-विद एवं साहित्य-साधकों का ब्लॉग में स्वागत है.....
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