
ब्रज का संस्कृत में रूप है व्रज जिसका जन्म हुआ है व्रज् धातु से। संस्कृत धातु व्रज् एक गतिवाचक शब्द है जिसके मायने हुए जाना , चलना , प्रगति करना , पधारना आदि भाव इसमें समाए हुए हैं। इससे ही बना है ब्रजः जिसका मतलब हुआ समुच्चय, समूह, रेवड या संग्रह आदि। मवेशियों की प्रवृत्ति कभी एक स्थान पर टिक कर बैठने की नहीं होती है। वे लगातार विचरण करते ही रहते हैं।
मथुरा के नज़दीक स्थित एक विशाल क्षेत्र को पौराणिक काल से ही ब्रज नाम इसीलिए मिला क्योंकि द्वापरयुग में यहां भगवान श्रीकृष्ण का वास था। रूढ़ अर्थों में इसकी व्याख्या करते हुए समझा जा सकता है कि ब्रज प्रदेश यानी जहां श्रीकृष्ण ने गौएं चराई। उनके गोपाल स्वरूप की सर्वव्यापकता ने ही इस क्षेत्र को ब्रजप्रदेश की ख्याति दिलाई।
व्रज् में निहित घूमने-फिरने का भाव इससे ही बने ब्रजः में आश्रय, समूह आदि से जुड़ जाता है। जाहिर है गौशाला , गोष्ठ, गोधन और ग्वालों के आश्रयस्थल के रूप में ब्रजः के अभिप्राय विकसित होते चले गए। व्रज् धातु के गतिवाचक भाव से ही जुड़ता है सन्यास अथवा वैराग्य। साधु सन्यासी भी कभी एक जगह टिक कर नहीं बैठते हैं । इसी वजह से उन्हें परिव्राजक कहा जाता है। इस शब्द में भी व्रज् में निहित भटकने,जाने,छोड़ने का भाव निहित है। जो सांसारिक वासनाओं को छोड़ निर्वासित हो चुका हो , वही हैपरिव्राजक। इसी लिए प्राचीन काल में सन्यास लेने को प्रव्रज्या लेना भी कहा जाता था। व्रज या ब्रज से बने लोकप्रिय हिन्दी शब्दों पर जरा गौर करें- ब्रजेश, ब्रजवासी, ब्रजधाम, ब्रजमंडल, ब्रजेन्द्र, बिरजू, बिरज ( बिरज में , होरी खेलत नंदलाल..)आदि।
आज की तरह ही प्राचीन काल में भी पशुगणना होती थी जिसे घोष-यात्रा अथवा व्रज-घोष कहा

स्थान के अर्थ में ब्रज के अंतर्गत पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यमुना और चंबल तटवर्ती क्षेत्र आता है। आज भी इस समूचे क्षेत्र को ब्रजप्रदेश बनाने की मांग बीच बीच में उठती रहती है।
आपकी चिट्ठियां-
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पर कई टिप्पणियां मिलीं जिनमें सर्वश्री दिनेशराय द्विवेदी, पंकज सुबीर , पल्लव बुधकर , नीलिमा सुखीजा अरोड़ा और संजीत त्रिपाठी , संजय , तरुण, संजय बैंगाणी, ममता , दीपक भारतदीप, माला तैलंग, संजीत त्रिपाठी और ज्ञानदत्त पाण्डेय जी शामिल हैं । आप सबका आभार ।
अजितजी,
ReplyDeleteअब मैं सिर्फ़ ब्रजवासी ही नहीं हूँ बल्कि ब्रज शब्द की उत्पत्ति के विषय में जानता हूँ । आपका बहुत धन्यवाद ।
अब तो ब्रज बिना कृष्ण के कुछ नहीं है।
ReplyDeleteगुरुवर इस नई जानकारी के लिए शुक्रिया, अब मैं शान से लोगों को ब्रज का अर्थ समझा सकता हूं
ReplyDeleteये तो मेरे लिये बिल्कुल ही नई जानकारी है मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकता था । कुछ विचित्र शब्दों की जानकारी भी दें कि ये कैसे उत्पन्न हूए
ReplyDeleteरोचक और ज्ञानवर्ध्दक
ReplyDeleteइस तरह की दुर्लभ जानकारी से तो हम धनी हुए जा रहें है,आपसे काफ़ी रोचक जानकारी हमें हमेशा मिलती रहती है, शुक्रिया
ReplyDeleteacchee jaankaree hai . padh kar maza aaya .sanyas se jo rishtedaree judee vah bhee dilchasp hai .
ReplyDeleteविस्तार से मिली जानकारी । हमेशा की तरह इस बार भी चित्र मनोहर हैं।
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