
बेंच पर खड़े हो जाओ
एक और घटना केपी कॉलेज की जो, मुझे कभी नहीं भूलेगी। केपी कॉलेज के सबसे दबंग अध्यापकों में से थे- एम एम सरन। सरन साहब का आतंक ये था कि कॉलेज के बदमाश से बदमाश लड़के को भी वो गुस्से में जमकर डंडे से पीटते थे और लड़का सिर झुकाकर अपनी गलती मान लेता था। सरन सर हम लोगों की फिजिक्स पढ़ाते थे। फिजिक्स लेक्चर थिएयर (PLT) कॉलेज के पीछे के हिस्से में लग इमारत में था। एक क्लास में मैं बगल के लड़के से कुछ बात कर रहा था कि उनकी नजर मेरे ऊपर पड़ गई। गुस्से से लाल सरन सर ने मुझे बेंच पर खड़े होने को कहा। मैं चुपचाप सिर झुकाए खड़ा रहा लेकिन, बेंच पर नहीं चढ़ा। गुस्से में सरन सर ने पूछा- तुम्हारे पिताजी क्या करते हैं। मैंने जैसे ही कहा- मैंनेजर हैं। सरन सर ने और गुस्से में पलटकर कहा- तुम चपरासी भी नहीं बन पाओगे। डरने के बावजूद मैंने तुरंत कहा- सर, मैं चपरासी तो नहीं ही बनूंगा।
पिताजी का भरोसा
खैर, मैंने ये बात घर जाकर पिताजी को बताई तो, रात को आठ बजे बैंक के बाद यूनियनबाजी करके लौटे पिताजी तुरंत फिर से तैयार हो गए। यजदी मोटरसाइकिल निकाली और कहा चलो सरन के यहां। किसी तरह खोजकर हम लोग सरन सर के घर पहुंचे। पिताजी पहुंचते ही वहां फट पड़े। बोले- आप अध्यापक हैं गलती पर इसे मार सकते हैं-डांट सकते हैं लेकिन, ऐसे कैसे बोल सकते हैं कि तुम चपरासी भी नहीं बनोगे। पिताजी के आक्रमण के आगे सरन सर थोड़ा बैकफुट पर चले गए। अच्छी बात ये रही कि इंटरमीडिएट में फिजिक्स में मेरे 74/100 नंबर आए। मैंने सरन सर को मार्कशीट दिखाई और, सरन सर ने मेरी पीठ ठोंकी।
इंजीनियर बनाना चाहते थे पिताजी
पिताजी को मुझ पर पूरा भरोसा था लेकिन, उस समय मैं उनकी इच्छा पूरी नहीं कर सका। वैसे अब मुझे लगता है कि पिताजी शायद अब ज्यादा खुश होंगे। उत्तर प्रदेश के ज्यादातर पिताजी लोग अपने बच्चों को इंटर के बाद इंजीनियर-डॉक्टर और बीए के बाद पीसीएस-आईएएस बनाना चाहते थे। इंजीनियर बनाने की चाह लिए मेरे पिताजी ने भी मेरा दाखिला शहर की मशहूर कृष्णा कोचिंग में करा दिया। यहीं पर मुझे वो, मित्रमंडली मिली जो, अब तक मेरे साथ है। विश्वविद्यालय के ठीक सामने कृष्णा कोचिंग थी। इस वजह से विश्वविद्यालय के तब के महामंत्री से दुआ-सलाम होने लगा तो, हवापानी बन गई। जबकि, मेरा दाखिला सीएमपी डिग्री कॉलेज में बीएससी में हुआ था। खैर, मुझे न तो इंजीनियर बनना था और न मैं बना।
नेतागीरी थोड़ी थोड़ी
वैसे, अच्छा ये था कि अपनी सारी इच्छाओं के बावजूद पिताजी ने मुझे कभी कुछ करने से रोका नहीं। बल्कि, यूं कहें कि आज मैं जो कुछ भी हूं वो, पिताजी के मुझ पर और मेरे खुद पर भरोसे की ही वजह से है। बीएससी और इंजीनियरिंग की परीक्षाओं के ठीक पहले यजदी मोटरसाइकिल से मैंने एसएसपी ऑफिस के सामने के बिजली के खंभे को टेढ़ा करने की कोशिश की। खंभे का कुछ नहीं बिगड़ा मैं बिस्तर पर पहुंच गया। और, इस एक्सीडेंट के बाद मेरी मित्रमंडली मेरे और नजदीक आ गई। पूरे तीन महीने बिस्तर पर, उसके बाद हॉकी स्टिक के सहारे दो लोगों के बीच में बैठकर स्कूटर-मोटरसाइकिल से इलाहाबाद भ्रमण। इस तरह के भ्रमण ने थोड़ा नेता भी बना दिया था। [जारी]
पिछली कड़ी - बतंगड़ की बतकही
भ्रमणी नेता को प्रणाम.
ReplyDeleteअगर मेरी याददाश्त बहुत ज्यादा नहीं गड़बड़ाई है तो आपके कृष्णा कोचिंग के मालिक हमारे मित्र यादव जी थे क्या?? बस, बहुत दिन बाद कृष्णा कोचिंग का नाम देख यूं ही जिज्ञासावश पूछ लिया. बाकी तो अगली कड़ी का इन्तजार लगा ही है.
अजीत भाई का पुनः आभार.
जमाये रहिये। अच्छा लग रहा है पढ़ना/जानना।
ReplyDeleteबढ़िया जी बढ़िया..
ReplyDeleteवाह !...आज तो शैली का
ReplyDeleteआनंद कुछ अलहदा-सा है.
आख़िरी पैरा तो कई बार पढ़ गया.
अगर 'बतंगड़-बादशाह' की मानें तो
एक नया मुहावरा हिन्दी जगत को
मिल सकता है ...खंभा टेढ़ा करना !
अजित जी क्या ख्याल है आपका ?
=============================
बहरहाल हर्षवर्धन जी के
मँझे हुए अंदाज़ का
मज़ा खूब आ रहा है.
आभार
डा.चन्द्रकुमार जैन
क्या हिंदी का पत्रकार चपरासी नहीं है? नहीं, नहीं, मैं एक जेनुइन सवाल पूछ रहा हूं?
ReplyDeleteप्रवास से लौट कर छूटी कड़ियाँ भी पढ़ लीं। राजनीति की सैण्डविची बुनियाद !
ReplyDeleteहर्ष जी के बारे में जानकर लग रहा है जैसे उस क्षेत्र का पानी ही ऐसा है. हर विद्यार्थी के अन्दर एक नेता छिपा रहता है. वैसे कुछ सालों तक ही रहता है. अच्छा किया जो आपने सरन सर को वहीँ बता दिया कि आप चपरासी नहीं बनेंगे.....
ReplyDeleteआपके बारे में जानकर बहुत अच्छा लग रहा है.
भ्रमणात्मक विवरण जारी रहे.
ReplyDeleteहुम्म मजा आ रहा है पढने मे।
ReplyDeleteतो आप नेता भी। :)
एक घटना याद आ रही है... मुझे मेरे इतिहास के शिक्षक ने कहा था की तुम सब विषय में पास हो जाओगे लेकिन इतिहास में पास नही हो सकते, मैं भरी क्लास में कह दिया था, सब में फ़ेल हो जाऊंगा लेकिन इतिहास में नही होऊंगा... मैं सभी विषयों में पास भी हो गया लेकिन अब तब का वो कहना वो भी भरी क्लास में... थोड़ा अफ़सोस होता है....
ReplyDeleteअच्छा लग रहा है आपको पढ़ना...
उत्तर प्रदेश के ज्यादातर पिताजी लोग अपने बच्चों को इंटर के बाद इंजीनियर-डॉक्टर और बीए के बाद पीसीएस-आईएएस बनाना चाहते..... ये हाल है हिन्दी पट्टी के माता पिता का ... वैसे समय बदल रहा है...
-राजेश रोशन
bahut badhiyaa..agli kadi ka intzaar
ReplyDelete"उत्तर प्रदेश के ज्यादातर पिताजी लोग अपने बच्चों को इंटर के बाद इंजीनियर-डॉक्टर और बीए के बाद पीसीएस-आईएएस बनाना चाहते..... "
ReplyDeleteसच्चाई है !
वाह पिता जी मास्टर के घर पहुंच गये? बैक्फ़ुट पर तो जाएगा ही न…:) वैसे ऐसे ही एक टीचर के एक रिमार्क की वजह से हम आज प्रोफ़ेसर हैं। अब सोच रहे है कि काहे पूरा पूरा साल हम माथापच्ची करते हैं , एक दो ऐसी ही चुभती हुई बातें बोल दें, बस, बाकी तो छात्र खुद ही संभाल लेगा, क्या कहते हैं?
ReplyDeleteबढिया जी , उस खम्बे के बारे मे पता जरूर करना चाहिये थे जिसने इतना मजबूत खम्बा लगाया था :)
ReplyDeleteवैसे स्कूल मे हम भी फ़ेल होने वालो की लिस्ट मे डाले जाते रहे है अध्यापको के द्वारा , ये अलग बात है कि साल दर साल हम उन्हे आश्चर्य चकित करते रहे कि पास कैसे हुआ और इतने नंबर कैसे आये :०
स्कूल कोलिज से बुनियाद मिलती है हमारे पूरे आनेवाले दिनोँ को -
ReplyDeleteआपके इन दोनोँ की यादेँ पढकर अच्छा लगा -
दोस्तोँ का तोहफा भी वहीँ से साथ है
ये भी बढिया !
आप का और अजित भाई का आभार -जारी रखिये -
achcha laga aapka andaaze bayaan aur aapki daastan....jari rakhiye.
ReplyDeleteभाई वाह पढ़कर मजा आ गया ...मोटरसाइकिल उ.प में ढेरो नेता बनाती है....अब आपकी नेतागिरी के किस्से का इंतजार रहेगा..
ReplyDeleteपढ़ कर आनन्द आगया। आपके बारे में कुछ जानकारी भी मिली। आगली
ReplyDeleteपोस्ट का इंतज़ार है।
क्या बात है, शर्मीला सा इंसान और नेतागिरी, वाह वाह!
ReplyDeleteachcha laga padh ke
ReplyDelete