यकिसी दूसरे की सम्पत्ति पर कब्ज़ा जमाने के अर्थ में फारसी का एक शब्द उर्दू हिन्दी में राजा-महाराजा-नवाबों के दौर से चला आ रहा है। अखबारों अदालत,पुलिस, प्रशासन और अखबारों की शब्दावली में अक्सर खुर्दबुर्द शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में होता है।
फारसी खुर्द के जन्म सूत्र संस्कृत धातु क्षुद् में छुपे है जिसका अर्थ पीसना, घिसना, रगड़ना होता है और ये तमाम क्रियाएं पदार्थ के सूक्ष्म रूप से जुड़ी हैं। क्षुद्र इसी धातु से बना है जिसका अर्थ तुच्छ, छोटा, सूक्ष्म , बारीक, महीन आदि। एक खास बात यह कि सूक्ष्म और छोटे का अर्थविस्तार होते हुए संस्कृत का क्षुद्र हिन्दी में नकारात्मक चरित्र के अर्थ में नीच, घटिया, कंजूस, खोटा या ओछा के रूप में भी इस्तेमाल होता है जबकि फ़ारसी खुर्द का जन्मसूत्र चाहे क्षुद्र से जुड़ा हो मगर इसमें महीन, सूक्ष्म या आकार और परिमाण मे कमी संबंधी भाव ही आते हैं। खुर्दबुर्द जैसा शब्द युग्म फारसी के दो शब्दों से मिलकर बना है खुर्द+बुर्द जिसका अर्थ है किसी सार्वजनिक, व्यक्तिगत, शासकीय सम्पत्ति में ग़बन करना, हेरफेर करना, जालसाज़ी से अपने नाम करा लेना। खुर्दबुर्द में नष्ट करना, बरबाद करने के भाव भी हैं। सम्पत्ति पर दूसरे का कब्जा होना किसी अन्य के लिए वैसे भी बरबादी ही है। यहां खुर्द का अर्थ तो स्पष्ट हो रहा है कि बेहद सूक्ष्मता से , बारीकी से , पैनेपन के साथ , चतुराई के साथ चालबाजी कर जाना (खुर्दबुर्द के अर्थ में)।
डॉ शैलेष ज़ैदी की चिट्ठी
शब्दों का यह सफ़र ऐतिहासिक भाषा-विज्ञान की दृष्टि से पर्याप्त महत्वपूर्ण है. मेरी एक पुस्तक 1976 में प्रकाशित हुई थी -"तुलसी काव्य की अरबी-फ़ारसी शब्दावली : एक सांस्कृतिक अध्ययन." मैं समझ सकता हूँ कि शब्दों के मूल तक पहुँचाना कितना कठिन होता है. खुरदरा या खुदरा के सम्बन्ध में आपका विवेचन देखा. खुर्द निश्चित रूप से इंडो ईरानी परिवार का शब्द है किंतु अपने मूल रूप में यह बाज़ार का शब्द नहीं है. बाज़ार तक इसकी पहुँच इसलिए हुई कि यह व्यापारी शब्दावली की अपेक्षाएं पूरी करता था. फ़ारसी में 'खुर्द' का अर्थ है छोटा, क्षुद्र,बारीक, कण इत्यादि. कहावत भी है -'सग बाश बिरादरि-खुर्द न बाश' अर्थात कुत्ता हो जाना अच्छा है छोटा भाई होने से. भोजन या किसी चीज़ को खाने के लिए भी 'खुर्द' शब्द का प्रयोग होता है. कारण यह है कि किसी भोज्य पदार्थ को छोटे-छोटे टुकडों में ही विभाजित करके खाया जाता है. मसल मशहूर है. 'हर रोज़ ईद नीस्त कि हलवा खुरद कसे अर्थात हर दिन ईद नहीं है कि हलवा खाने को मिले. खुर्दबीन शब्द किसी छोटी वस्तु के देखने के लिए प्रयोग में आता है और इस दृष्टि से यंत्र का नाम ही 'दूरबीन' या 'खुर्द-बीन' पड़ गया. खुर्दा-फरोश तो आपने स्पष्ट कर ही दिया है. ध्यान देने की बात है कि जहाँ खुर्दः-फरोश फुटकर माल बेचने वाले को कहते हैं वहीं खुर्दः-गीर छिद्रान्वेषी के लिए प्रयुक्त होता है. खुर्द-बुर्द शब्द अभी भी नष्ट और बरबाद करने के अर्थ में प्रयोग किया जाता है. यह बुर्द शब्द जो खुर्द के साथ जुडा हुआ है 'बुरादा' अर्थात लकडी, लोहे इत्यादि का बारीक सफूफ. वैसे खुर्द के साथ जुडा बुर्द शब्द 'रोटी-वोटी' की तरह भी हो सकता है. मूल रूप से बुर्द शब्द शतरंज की बाज़ी में आधी मात की स्थिति को कहते हैं जहाँ बादशाह अकेला पड़ जाता है. यह भी सम्भव है कि खुर्द-बुर्द में बुर्द शब्द इसी स्थिति को रेखांकित करने के लिए आया हो जिसकी वजह से खुर्द-बुर्द का अर्थ विनष्ट हुआ हो.

यह प्रतिक्रिया सफर की पिछली कड़ी खुदरा बेचो, खुदरा खरीदो.[क्षुद्र-1..]पर मिली । डा ज़ैदी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष और फैकल्टी ऑफ आर्ट्स के डीन रह चुके हैं और युग-विमर्श नाम का ब्लाग चलाते हैं।
बुर्द का जहां तक सवाल है कुछ लोग इसे खुर्द के साथ अनुकरणात्मक शब्द ( जैसे काम-वाम ) भी मानते हैं , मगर यह सही नहीं है। बुर्द शब्द की अपनी अलग अर्थवत्ता है। ध्वनिसाम्य, अनुकरण के आधार पर खुर्द से बुर्द के मेल ने इस नए शब्द में मुहावरे का असर पैदा किया। इसके जन्मसूत्र छुपे हैं इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की भर ( bher ) या संस्कृत की भृ धातु में जिसमें भार, बोझा, रखना , लाना, ले जाना आदि भाव छुपे हैं। इसी धातु से जन्मे फारसी बुर्द का अर्थ होता है कब्जा, अधिग्रहण या पुरस्कार, ले जाना, नष्ट करना आदि। खुर्दबुर्द में निहित अवैध कब्जा, ग़बन या नष्ट करने के अर्थ में बुर्द शब्द को समझना कठिन नहीं है जिसमें चतुराई, साजिश और बेईमानी की बू भी आ रही है।
खुर्द और बुर्द से दो अन्य शब्दों की रिश्तेदारी भी जुड़ती है। खराद शब्द यूं तो उर्दू फारसी का है मगर हिन्दी में भी चलता है। खुर्द के मूल स्रोत क्षुद् में निहित रगड़ने, पीसने, घिसने जैसे भाव खराद में एकदम साफ हो रहे हैं। लकड़ी के इमारती काम के दौरान उसे चिकना बनाने के लिए उसे रंदे से घिसा जाता है जिसे खरादना कहते हैं। इसी तरह बुरादा शब्द का चलन हिन्दी में खासतौर पर काष्ठचूर्ण अर्थात लकड़ी की छीलन के लिए प्रयोग होता है मगर इसमें हर तरह के पदार्थ यानी लकड़ी या धातु की छीलन, चूर्ण आदि शामिल है।
इन्हें भी ज़रूर देखें-
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परचून की पैदाइश से उपेन्द्रनाथ अश्क तक
- छुटकू की खुर्दबीन और खुदाई...[क्षुद्र-2]
- खुदरा बेचो, खुदरा खरीदो.[क्षुद्र-1..]
इस कड़ी से जुड़े कुछ अन्य शब्द सफ़र के अगले पड़ाव पर
बन्धु,तीन व्यक्ति आप का मोबाइल नम्बर पूँछ रहे थे।मैनें उन्हें आप का नम्बर तो नहीं दिया किन्तु आप के घर का पता अवश्य दे दिया है।वे आज रात्रि आप के घर अवश्य पहुँचेंगे।उनके नाम हैं सुख,शान्ति और समृद्धि।कृपया उनका स्वागत और सम्मान करें।मैने उनसे कह दिया है कि वे आप के घर में स्थायी रुप से रहें और आप उनकी यथेष्ट देखभाल करेंगे और वे भी आपके लिए सदैव उपलब्ध रहेंगे।प्रकाश पर्व दीपावली आपको यशस्वी और परिवार को प्रसन्न रखे।
ReplyDeleteबहुत खूब जानकारी रही. ज्ञानगंगा बहने दिजिये.
ReplyDeleteआभार.
narayan narayan
ReplyDeleteप्रिय अजित जी
ReplyDeleteआपको यह सूचना किसने दे दी कि मैं विश्वविद्यालय में रीडर के पद से सेवामुक्त हुआ. जो व्यक्ति सत्रह वर्षों तक प्रोफेसर रहा हो उसे रीडर लिखकर आप क्या संकेत करना चाहते हैं मैं नहीं समझ पाया. वैसे आप प्रवक्ता या अध्यापक भी लिख देते तो कोई अन्तर न पड़ता. मनुष्य अपने ज्ञान से पहचाना जाता है, पदों से नहीं.
स्नेह सहित
शैलेश ज़ैदी
बिलकुल सही विश्लेषण। मैं बुर्द का अर्थ नहीं पकड़ पा रहा था। बुरादे ने सब स्पष्ट कर दिया। दोनों का युग्म एक नया और वजनदार अर्थ दे रहा है। इस खुर्द-बुर्द का कोई समानार्थक भी नहीं है।
ReplyDelete@कात्याययन
ReplyDeleteदीपावली की मंगलकामनाएं सुंमंतजी...आपके भेजे तीनों सुनाम श्रीयुत मेरे पूर्व परिचित निकले। अब उनसे आग्रह किया है कि वे यहीं निवास करें।
@युग-विमर्श
क्षमा चाहूंगा डॉ ज़ैदी। पदनाम आपके ब्लाग पर जाकर क्रासचेक करना चाहिए था, जो नहीं कर पाया। भूल सुधार ली गई है। आपको जो कष्ट हुआ उसके लिए एक बार फिर क्षमा चाहूंगा।
अच्छा लगा इसे पढ़कर। डा.जैदी साहब की प्रतिक्रिया भी बहुत अच्छी लगी। डा.जैदी साहब आशा है आगे भी अपनी प्रतिक्रियाओं से हमारा ज्ञान-वर्धन करते रहेंगे।
ReplyDeleteशुक्रिया ज्ञानवर्धन के लिए!
ReplyDeleteशुभ दीपावली
नया साल और दीपावली मुबारक हो --
ReplyDeleteडा.जैदी साहब की ज्ञानवर्धक टीप्पणी से आपकी पोस्ट भी ज्यादा विस्तार से समझ पाये हैँ
इसी तरह ज्यादा शब्दोँ के बारे मेँ जान पायेँगेँ -
आप दोनोँ को शुभकामनाएँ ~~
- लावण्या
बहुत जानकारी पूर्ण आलेख. शुक्रिया आपको भी और डा.जैदी साहब की ज्ञानवर्धक टीप्पणी के लिए भी
ReplyDeleteAjit ji bahut khoob. aise hi gyan wardha karte rahiye. conclave me bhopal aana tha lekin do naye akhbaro ke khul jane se aa nahi saka.
ReplyDelete-manish gupta