प्राचीनकाल में व्यापार व्यवसाय के लिए पण् शब्द का चलन था। पण् का मतलब था। लेन-देन, क्रय-विक्रय, मोल लेना, सौदा करना, आदि । शर्त लगाना जैसे भाव भी इसमें शामिल थे। इसी से बना एक अन्य शब्द पणः जिसका मतलब हुआ पांसों दांव लगाकर या शर्त लगाकर जुआ खेलना। चूंकि व्यापार व्यवसाय में शर्त, संविदा अथवा वादा बहुत आम बात है इसलिए इस शब्द में ये तमाम अर्थ भी शामिल हो गए। पण् से ही पणः नाम की एक मुद्रा भी चली जो अस्सी कौड़ियों के मूल्य का सिक्का था। इसी वजह से धनदौलत या संपत्ति के अर्थ में भी यह शब्द चल पड़ा। मकान, मंडी, दुकान या पेठ जैसे अर्थ भी इसमें शामिल हो गए। पण्य शब्द का एक अर्थ वस्तु, सौदा या शर्त के बदले दी जाने वाली वस्तु भी हुआ। इससे बना पण्य जिसका मतलब हुआ बिकाऊ या बेचने योग्य।
व्यापार व्यवसाय के स्थान के लिए इससे ही बना एक अन्य शब्द पण्यशाला अर्थात् जहां व्यापार किया जाए। जाहिर है यह स्थान दुकान का पर्याय ही हुआ। कालांतर में पण्यशाला बनी पण्यसार। इसका स्वामी कहलाया पण्यसारिन्। हिन्दी में इसका रूप बना पंसारी या पंसार। मूलतः चूंकि प्राचीनकाल से ही इन स्थानों पर , जड़ी-बूटियां आदिबेचे जाते रहे इसलिए पंसारी की दुकान को उस अर्थ में भी लिया जाता था जिस अर्थ में आज कैमिस्ट और ड्रगिस्ट को लिया जाता है।
पंसारी से ही बना पंसारहट्टा अर्थात् जहां ओषधियों मसालों का व्यापार होता है। गौरतलब है कि किसी जमाने में भारत के मुख्य कारोबार से संबंध रखने वाला यह शब्द पंसारी आज गली मुहल्ले के एक छोटे से दुकानदार या परचूनवाले से ज्यादा महत्व नहीं रखता है।
पनवेल - मुंबई के उपनगर पनवेल के पीछे भी यही पण्य छुपा है । पण्य अर्थात् बिक्री योग्य और वेल् का अर्थ हुआ किनारा यानी बेचने योग्य किनारा। जाहिर सी बात है यहां बंदरगाह से मतलब है । पश्चिमीतट के एक कस्बे का किनारा अगर व्यापार के काबिल है तो उसे पण्यवेला नाम दिया जा सकता है । यही घिसते घिसते अब पनवेल हो गया है।
9 कमेंट्स:
बहुत अच्छा. पण्य आज भी मौजूद है, विपणन के रूप में, कृषि सहकारी विपणन समिति टाइप बोर्ड दिख जाते हैं आज भी.
बिल्कुल सही अस्सी कौड़ी का एक पण:
बहुत रोचक जानकारी है इस पोस्ट में.
पणजी - गोआ का
और
पाणिनि
और
गुजराती शब्द
' पण '= but in Eng.
याद आ रहे हैं --
अच्छा और रोचक लेखन।
हम लोग भी टिप्पणी का पण करते हैं!
भईया शब्दों का येसा विकट पंसारी ना दिखा कभी। पणजी से गोवा तक, दिल्ली से भोपाल तक, जैसा शब्द स्टोर आप चला रे ले हो,वैसा पंसारी तो ना भूतो ना भविष्यती है।
अजित भाई कितनी विनय पत्रिका के बदले एक शब्दों का सफर मिलेगा।
वाकई दिलचस्प!!
बहुत ही रोचक जानकारी..बहुत ही बढ़िया लेखन की शक्ल में.
धन्यवाद सर.
गुप्तकाल में पण एक मुद्रा हुआ करती थी । बढिया जानकारी । पण से पण्यशाला पणसार से पंसारी और पण्य और पनवेल को तो कमाल का जोडा है ।
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