Friday, December 19, 2008

चमड़ी जाए, दमड़ी न जाए.[सिक्का-2]

...ग्रीस में चांदी का छोटा सिक्का द्ख्म भारत आकर दमड़ी भर का रह गया...
सा से करीब दो सदियों पहले तक भारत के उत्तर – पश्चिम में स्थित पंजाब, सिंध और अफगानिस्तान में यूनानियों ने राज किया । यूनानियों के आने से पहले तक भारत में सिक्कों की ढलाई की उन्नत तकनीक विकसित नहीं थी। इसीलए ज्यादातर राज्यों में धातु के टुकड़ों को ठोक पीट कर, उन पर राज्यमुद्रा अंकित कर सिक्कों की शक्ल दी जाती थी। संग्रहालयों में ऐसे अनगढ़ सिक्कों के साथ-साथ टकसाली ढलाई वाले सिक्के भी देखने को मिलते हैं। इन्ही में है द्रख्म नाम का एक सिक्का जो हिन्दी में दमड़ी के रूप में आज भी चल रहा है।

सिक्कों की ढलाई का चलन 200 से 175 ईसा पूर्व के बीच पश्चिमोत्तर भारत में यूनानियों ने ही शुरु किया जो करीब तीन सदी पहले से सिक्के ढालने की तकनीक जानते थे। यूनानियों का सिक्के ढालने की तकनीक सिखाई थी क्रोशस ने जो ईसा से 560 साल पहले लीडिया (आज का तुर्की) का शासक था और हिन्दुस्तान में कारूं (खजानेवाला) के नाम से उसे जाना जाता है जो मुहावरा बन चुका है। भारत में सबसे पहले जिस यूनानी सिक्के की ढलाई शुरु हुई उसका नाम था drachma या द्रख्म जो मूल रूप से ग्रीक भाषा का शब्द था। प्राचीन ग्रीस में द्रख्म एक भार मापने की इकाई थी। बाद में इसे सिक्के का रूप मिल गया। द्रख्म लैटिन में द्रग्म और फिर अंग्रेजी में ड्रम (dram) के रूप में यह चलता रहा मगर अंग्रेजी में यह फिर भार की इकाई बन गया जिसका माप करीब चार ग्राम होता है।

यूनानी प्रभाव का असर अरबी ज़बान पर भी पड़ा और द्रख्म ने यहां दिरहम का रूप ले लिया।

ग्रीक drachma या द्रख्म का जन्म हुआ प्राचीन ग्रीक के ड्रेकोन शब्द से जिसका अर्थ होता है पकड़ना, चंगुल में लेना, हस्तगत करना आदि। गौरतलब है कि अंग्रेजी का ड्रैगन शब्द भी इसी मूल का है जो एक विशाल सर्प है और दुनियाभर के पौराणिक आख्यानों में उसका उल्लेख है। संभवतः सर्प की जबर्दस्त पकड़ के चलते ही ड्रेगन नाम मिला हो। बहरहाल मुद्रा के रूप में ड्रेकोन से जन्मे द्रख्म का अर्थ एक ऐसे चांदी के सिक्के से था जिसे बेहद सुविधा के साथ हथेली में थामा जा सकता हो। ग्रीस में ईसा पूर्व दसवीं सदी से द्रख्म का इतिहास मिलता है।

मौर्य और गुप्तकाल में यह सिक्का संस्कृत में द्रम्मम् के रूप में प्रचलित रहा और बरसों बरस इसी रूप में टिका रहा अलबत्ता देशी बोलियों में (अपभ्रंशों में ) में इसका रूप दम्म हो गया। बाद के दौर में दम्म ने दाम का रूप ले लिया। यही नहीं दाम ने कुछ अर्थविस्तार करते हुए सिक्के की बजाय वस्तु के मूल्य के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली और अपनी मुद्रा वाली अर्थवत्ता दमड़ी को सौंप दी जो इसी मूल से निकला छोटी मुद्रा के अर्थ वाला शब्द था। कंजूस के चरित्र को समझानेवाली कहावत-चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए में यह आज भी जिंदा है। यूनानी प्रभाव का असर अरबी ज़बान पर भी पड़ा और द्रख्म ने यहां दिरहम का रूप ले लिया। दिरहम मुद्रा आज भी मोरक्को, यूएई, लीबिया और क़तर जैसे मुल्कों में प्रचलित है।

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16 comments:

  1. सिक्के (दमड़ी) इक्कठे करने का शोकिन हूँ.. पर पता नहीं था कि ये ग्रीस से आई है :)..

    शुक्रिया!!

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  2. बहुत उम्दा जानकारी. दिरहम का उदगम जानना बेहतरीन रहा. आभार.

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  3. वाह, वैसे ड्रम/दम्म को लेकर ड्रामा बहुत होता है दुनियां में। पता नहीं, नाटकीयता भी जुड़ी हो अर्थ से!

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  4. आपके ब्‍लाग पर आना, जैसे मिल जाता है जानकारी का खजाना

    महाशक्ति

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  5. हो सकता है दम शब्द भी इसी से निकला हो . दाम नहीं तो दम नहीं .

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  6. चलिए ब्लाग जगत में किसी ने तो दमड़ी की सुध ली। वैसे द्रम्म से डालर तक पहुँचना शेष है।

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  7. दमड़ी पर दमदार पोस्ट
    ==================
    दिल से शुक्रिया
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  8. लाजवाब जानकारी ! बल्कि कहुंगा कि जानकारी का खजाना !

    राम राम !

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  9. बहुत ही बढ़िया जानकारी

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  10. आपका यह लेख पहले भी पढ़ा था. संभवतः दैनिक भास्कर में.

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  11. @हेम पांडे
    आपको सही याद आ रहा है करीब चार साल पहले 30.01.05 के रविवारीय में यह छपा है। लेकिन ये अद्यतन है और मैने इसे लगभग पूरा बदला है जिससे इसका कलेवर भी दोगुना हो गया :)
    शुक्रिया...

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  12. दमडी की कहानी बढ़िया जानकारी

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  13. हम तो चमड़ी के डॉ है जी...पर आज रहस्य मालूम हुआ

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  14. रोचक और लाजवाब जानकारी ! हमेशा की तरह.
    शब्दों का यह सफर अद्भुत रोमांचक है.आभार.

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  15. इस गुदड़ी वाले यह पसंद आया.
    बहुत ही उम्दा जानकारी.

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  16. ये भी लाजवाब रहा सफर ड्रेकोन,sort of, & Draconian drachma या द्रख्म too ...

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