Tuesday, December 8, 2009

सब ठाठ धरा रह जाएगा…[आश्रय-25]

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अं ग्रेजों के आने से पहले हिन्दुस्तान में फारसी के ठाठ थे क्योंकि वह सरकारी कामकाज की भाषा थी। जिसने फारसी पढ़ना लिखना सीख लिया, उसके ठाठ हो जाते थे। बाद में यह रुतबा अंगरेजी को मिल गया। अंगरेजी पढ़े-लिखे लोग बाबूसाब कहलाने लगे। जाहिर है साहब लोगों के ही ठाठ होते हैं। सैकड़ों सालों में विभिन्न भाषाओं के शब्दों के हेल-मेल से हिन्दी का जो स्वरूप ठाठदार बन गया था, वह उर्दू के हिस्से चला गया। बाद में जाति-धर्म के झमेले में उर्दू ऐसी फंसी कि इसके ठाठ अतीत की कहानी बन गए। चंद नेताओं को यह लगता रहा कि आजादी के बाद हिन्दुस्तान में उनके ठाठ नहीं रह जाएंगे सो उन्होंने पाकिस्तान का राग अलापा और उसे पा लिया। उनके ठाठ  के चलते वहां लोकतंत्र कुपोषण का शिकार हो गया और उसकी ठठरी भर रह गई है। इधर अपने देश में भी हिन्दी का बचाखुचा ठाठ धरा का धरा रह गया क्योंकि भाषा के पंडित राजभाषा भवन में इसके शुद्धिकरण का जाप करने लगे। हिन्दीवालों के कभी ठाठ नहीं हुए। हिन्दी के बूते जीने की इच्छा रखनेवाला सामान्य आदमी आज भी ठाठ को तरसता है। हिन्दी के जरिये मुंबइया सिनेमा और मीडिया घराने ज़रूर ठाठ कर रहे हैं, पर राष्ट्रभाषा के ठाठ के लिए वे कुछ नहीं कर रहे हैं।
भाषायी ठाठ के बहाने हम ठाठ पर ही चर्चा करना चाहते हैं। यह हिन्दी-उर्दू का खूब प्रचलित और मुहावरेदार अर्थवत्ता वाला शब्द है। आज ठाठ का इस्तेमाल शान-शौकत, एश्वर्य, तड़क-भड़क, दिखावा, आडम्बरपूर्ण जीवन आदि अर्थो में किया जाता है। ठाठ के मूल में संस्कृत की स्थ् धातु है जिसमें खड़े रहना, स्थिर होना, किसी जगह पर उपस्थिति होना, डटे रहना, विद्यमान होना, किसी आधार पर टिकना आदि भाव हैं। यह भारोपीय भाषा की धातु है और इस परिवार की सर्वाधिक व्यापक अर्थवत्ता वाली धातुओं में इसका शुमार है जिससे निकले

…ठाठ का असली अर्थ है घास-फूस या बांस के जरिये बनाया गया कोई ढांचा जिसे सब तरफ से ढक कर कोई आश्रय या निर्माण खड़ा किया जाए। इस तरह बड़े मकान वाले के बड़े ठाठ हुए…dhancha shelteBambooHutthhat 

शब्द दुनियाभर की कई भाषाओ में हैं। भाषाविज्ञानियों ने स्थ् से मिलती जुलती स्त् (sta) की कल्पना की है । अंगरेजी के स्टे stay यानी स्थिर होना, टिकना, स्टैंड यानी खड़े होना, स्टूल यानी मूढ़ा अथवा स्टेट यानी राज्य जैसे अनेक शब्दों के मूल में यही धातु है। गौर करें राज्य के अर्थ में स्टेट शब्द पर । राज्य दरअसल स्थान ही होता है। संस्कृत की स्थ धातु से ही बना है स्थानम् शब्द जिसका मतलब है राज्य, प्रांत, क्षेत्र या जगह। स्थान इसका ही रूप है। अवेस्ता होते हुए फारसी में इसका रूप हुआ स्तान जिसका मतलब वही रहा। तुर्की में भी इस शब्द की आमद हुई। रूसी भाषा में स्तान का अर्थ कैम्प या शिविर होता है। क्षेत्रीय नामों के साथ प्रत्यय के रूप में स्तान जुड़ने से देशो के नाम बने जैसे पाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान आदि। आज हिन्दी में स्टेशन station के अर्थ में कोई शब्द नहीं मिलता है। देशी बोली का अड्डा शब्द विशेष अर्थों में प्रयुक्त होता है जैसे बस अड्डा। वैसे अड्डा समूहवाची शब्द है । संस्कृत में स्टेशन के लिए स्थानक शब्द है। महाराष्ट्र में स्टेशन के लिए कहीं कहीं स्थानक शब्द लिखा मिलता है, बाकी हिन्दी भाषियों के लिए यह लगभग अजनबी ही है। [स्थ धातु के अन्य शब्दों पर विस्तार से अगली किन्हीं कड़ियों में]
स्थ से ही बना है संस्कृत में स्थातृ शब्द जिसका अर्थ है ढांचा, आधार, थामनेवाला, स्थिरता देनेवाला। हिन्दी शब्दसागर में इसका अर्थ खड़ा होनेवाला बताया गया है। मोनियर विलियम्स के कोश में स्थातृ का मतलब है अगुआई करना, राह बताना, अधिकार, शक्ति आदि। इनका निहितार्थ समझें तो भाव थामने का ही उभर रहा है। स्थातृ से ही बना है ठठरी (ठाट्ठरी>ठठरी या ठटरी) जिसका अर्थ होता है कंकाल, ढांचा या पंजर। गौर करें कि मनुष्य का शरीर अस्थियों के ढांचे पर ही है। अस्थिपंजर के रूप में किसी भी जीव की देह को ठठरी कहा जाता है। ठठरी ही देह का आधार है। स्थातृ का देशज रूप ही ठाठ बना। ठाठ का असली अर्थ है घास-फूस या बांस के जरिये बनाया गया कोई ढांचा जिसे सब तरफ से ढक कर कोई आश्रय या निर्माण किया  जाए। स्पष्ट है कि निर्माण का यह स्वरूप आश्रय  का सबसे सस्ता और आधारभूत तरीका है जिसका इस्तेमाल अत्यंत प्राचीनकाल से होता आया है। हर युग में या तो गरीब की झोपड़ी घास-फूस और बांस बल्लियों से बनती रही या खानाबदोशों के डेरे इस ढंग से बनते रहे। जाहिर है, इसमें ऐश्वर्य या शानो-शौकत जैसी कोई बात नहीं थी। यहां घास फूस से बनाए गए फ्रेम या चौकोर पर्दे को टाटी, टट्टी या टट्टर शब्दों पर गौर करें। जान प्लैट्स टट्टी की व्युत्पत्ति तन्त्रकः से बताते हैं। मोनियर विलियम्स के संस्कृत- इंग्लिश और वाशि आप्टे के संस्कृत-हिन्दी कोश में तन्त्रकः का अर्थ कपड़ा या कोरा कपड़ा बताया गया है। संस्कृत में तन्त्र का अर्थ करघा या धागा होता है। तन्तु इससे ही बना है। तन्तु+अग्र से ताग्गअ>ताग्गा होते हुए तागा और धागा का विकास हुआ है। भाव यही है कि घास-फूस से बुनी हुई रचना टट्टी है। किन्तु यह तार्किक नहीं लगती। हिन्दी शब्दसागर में टट्टी का विकास भी स्थातृ से  हुआ ही बताया गया है।
श्रय की तात्कालिक व्यवस्था के संदर्भ में आवास के प्रारम्भिक ढांचे यानी ठाठ ने विकासक्रम में प्रतिष्ठा हासिल कर ली। घास-फूस और बांस से बने सामान्य आवासो से बड़ा आवास जब सामने आया तो जाहिर है वह बड़ा ठाठ कहलाया होगा। स्वाभाविक सी बात है, जिसके पास बड़ा आवास होगा उसे बड़े ठाठ वाला ही कहा जाएगा। ठाठ की महिमा मनुष्य के सुविधाजीवी होने से बढती गई। फिर तो एक दूसरे की देखा-देखी लोग अपना अपना ठाठ बदलते चले गए। इस तरह सबके निराले  ठाठ हुए। रहन-सहन के अंदाज से ही किसी के स्तर को जाना जा सकता है जिसमें आवास भी शामिल है। लोगों की पहचान झोपड़ी और हवेली से भी होती है। स्पष्ट है कि झोपड़ी वाले ठाठ ने हवेली वाले ठाठ का रूप ले लिया। इसीलिए अब चमक-दमक और तड़क-भड़क वाली जीवन शैली के लिए ठाठबाट जैसा शब्द इस्तेमाल होता है। ठाठ के साथ बाट यानी राह शब्द का अभिप्राय रीति या शैली से ही है। ठाठबाट से रहना यानी आभिजात्य जीवन शैली। बड़े तम्बू में सिनेमा दिखाए जाने की वजह से उमठवाड़ी बोली में टूरिंग टॉकीज को ठाठ्या टाकीज़ कहते है।
और अंत में नज़ीर अकबराबादी की इस पंक्ति से ठाठ का मार्मिक अर्थ प्रकट हो जाता है- सब ठाट पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बनजारा। गौर करें, बंजारों के डेरों पर। सूखी टहनियों से खड़े किए गए ढांचों पर चिथड़े-कपड़े टांग कर वे अपने अस्थायी आश्रय बनाते हैं। बंजारे किसी जगह ज्यादा दिन मुकाम नहीं करते। जब सामान बांध कर वे कूच करते हैं तब पीछे सिर्फ टहनियों के ढांचे भर रह जाते हैं। शरीर और आत्मा के संदर्भ में इसे देखें। आत्मा अनश्वर और गतिशील है। आयु पूरी होने पर आत्मा देह के बंधन से मुक्त हो जाती है और पीछे सिर्फ काया यानी ठाठ धरा रह जाता है।

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21 comments:

  1. शायद पगला ब्लॉग है ये जिसमें विश्लेषण सहित ज्ञान की बातें मिली ,हजारों ब्लॉग आज तक पढ़ लिए मैंने मगर इतनी संतुष्टि कभी नहीं मिली ,
    साधुवाद

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  2. Even if we dont have a word for railway station, we do have one for police station ie 'thana'which is more important!

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  3. @बलजीत बासी
    स्थ् धातु की वंश परम्परा लम्बी है बलजीतभाई। इससे जुड़े कई महत्वपूर्ण शब्दों का जिक्र अगली कड़ियों में आएगा। थाना भी स्टेशन है और स्थानक का देशज रूप ही है।
    आभार

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  4. @alka sarwat
    शब्दों के सफर में आने का शुक्रिया अलकाजी। बनी रहें सफर में....आभार

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  5. 1पंजाबी मैं स्थान का थां बन गया .
    २.ठठी गरीब जातिओं के बस्ती को कहते है
    ३. ठटी छोटा गाँव

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  6. "संस्कृत में स्टेशन के लिये स्थानक शब्द है। " उपयोगी रहा जानना ।
    बेहतरीन आलेख ।आभार ।

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  7. सारवान चर्चा।

    तंतुवाय की भी चर्चा कर देनी थी भाऊ। नज़ीर जी की पंक्तियों ने तो मुग्ध कर दिया। ठाठ और ठठरी की खूब कही।

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  8. बलजीत जी का जुड़ाव सफ़र में एक उपलब्धि है.स्थानाभाव के कारण जहां ज़िक्र भर हो पता है बलजीत जी की प्रतिक्रियाएं महत्वपूर्ण पाद-टिप्पणी की तरह आती हैं.पंजाब का एक रंग साथ जुड़ जाता है सफ़र के.

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  9. देवताओं के स्थान को थानक कहते हैं। उधर ट्ट्टी का अर्थ आड़ भी है जो बाद में शौचालय के लिए आम प्रयोग में लिया जाने लगा। हाँ हमारे यहाँ दुखी मुवक्किल को स्टे मिलते ही उस के ठाट हो जाते हैं।

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  10. अजीत जी हम तो "ठाठ" से अपने "स्थान" पर बैठ कर आपके इस आलेख का आनन्द लेते रहे. बहुत खूब सर. आपके साथ सफर का आनन्द ही कुछ ओर है. शुभकामनाये.

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  11. उत्तम चर्चा!

    मनुष्य तू न ठहर कभी चलो बनजारे की गठरी सा
    ठाटबाट से कैसा मोह जब शारीर है टट्टी ठठरी सा

    - सुलभ

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  12. नज़ीर साहेब के शब्द खींच लाए...
    इस बहाने अच्छी चर्चा से गुजरना हुआ...
    आभार...

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  13. चर्चा अच्छी चल रही है धन्यवाद्

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  14. अंग्रेजी शब्द स्टेशन के लिए हिंदी में स्थानक शब्द का उपयोग मुझे बड़ा अच्छा लगा....
    सदैव की भांति सुन्दर सारगर्भित शब्द विवेचना द्वारा ज्ञान वर्धन करने के लिए आभार...

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  15. स्थानक और स्नातक का क्या कोई सम्बन्ध है ?

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  16. नहीं धीरूभाई,
    स्नातक अलग धातुमूल से निकला है।
    स्नातक शब्द में शुद्धिकरण, दीक्षा का भाव प्रमुख है। इसीलिए उपाधि के संदर्भ में
    स्नातक शब्द बना। स्नान भी इसी मूल का है।
    इस पर जल्दी ही पोस्ट पढ़ेंगे।
    जैजै

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  17. सार्थक शब्दों के साथ अच्छी चर्चा, अभिनंदन।

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  18. मन में सन्तोष हो तो झोंपड़ी में भी ठाठ हैं।

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  19. @बलजीत बासी
    बहुत उपयोगी जानकारियां दी हैं बलजीत भाई आपने। झोपड़ी यानी ठाठ की छत्रछाया में अंततः समूचे गांव की अर्थवत्ता भी समा गई। क्षेत्रीय भाषाएं शब्दों और उनकी अर्थवत्ता की दृष्टि से जितनी समृद्ध होती हैं वैसी समृद्धि नागरी भाषाओं में नहीं होती।
    आभार

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