यह मानना मुश्किल है कि पढ़ा-लिखा नौकरीपेशा भारतीय बैबून का मतलब भी न जानता होगा!! भारतीयों के लिए नेटिव, कुली जैसे कई अपमानजनक नामकरण प्रचलित थे मगर ऐसी कोई मिसाल नही मिलती कि इन नामों को भारतीय समाज ने अपना लिया हो। बाबू का मूल अगर एक अफ्रीकी बंदर बैबून है और इसके जरिये अंग्रेजो का उद्देश्य भारतीयों को अपमानित करना था तो यह बात निश्चित उस दौर में भी छुपी नहीं रही होगी। तब एक ऐसा सम्बोधन जिसमें खुद के लिए परिहास, घ्रणा, उपेक्षा और अपमान ध्वनित होता था, भारतीय समाज ने क्योंकर अपना लिया? अगर हमारा आत्मगौरव इतना क्षीण था तो 1857 जैसी क्रांति क्योंकर संभव हुई जिसके मूल में भी अपमान का दंश ही था?
इसका मतलब वायु भी होता है। ध्यान दें, वायु में भी दिशाबोध कराने, राह दिखाने और ले जाने का गुण होता है। देवनागरी के प वर्णक्रम का अगला व्यंजन फ और फिर ब है। एक ही वर्णक्रम के व्यंजनों की ध्वनियों में अदला-बदली सभी भाषाओं में होती रही है। हिन्दी में पितृ से बने पिता, पालक। अंग्रेजी में फादर, पादरी। स्पेनिश-पुर्तगाली का पेड्रो और फारसी का पीर ऐसे ही शब्द हैं जो एक साथ प्रमुख, मुखिया, स्वामी, नरेश, गुरू, पालक और मार्गदर्शक की अर्थवत्ता रखते हैं और सभी का संबंध भारोपीय ध्वनि प या पा से है। अंग्रेजी के पोप और पापा शब्द भी इसी श्रंखला की मिसाले हैं और संस्कृत का परम व फारसी का पीर भी।
वप् और बाप का ध्वन्यार्थ समझना आसान है। खास बात यह कि वप् दो वर्णों व+प से मिलकर बना है । प वर्ण में निहित भाव ऊपर स्पष्ट है। व वर्ण में मुख्यतः वायु, हवा का अर्थ निहित है। इसके अलावा इसमें समाधान और सम्बोधन दोनों भाव भी शामिल हैं। पालनकर्ता या मुखिया अपने आश्रितों को सम्बोधन अर्थात मार्गदर्शन भी देता है और उनके लिए समाधान भी लाता है। वाशि आपटे के संस्कृत कोश के मुताबिक इससे बने वप्रः शब्द का अर्थ है खेत और दूसरा अर्थ है पिता। हिन्दी शब्दसागर के मुताबिक इसी मूल से बने वापक का मतलब होता है बीज बोने वाला। यहां भी प ध्वनि समाहित है। वप्ता का अर्थ है जन्मदाता। भूमि में बीज बोनेवाला कृषक होता है जो खेती का मालिक भी है और फ़सल का पिता भी।
जन्मदाता के तौर पर वप्र में बीज बोने वाले पात्र की व्यंजना बहुत महत्वपूर्ण है। वप्र, वापक या वप्ता का रूपांतर बाप हुआ। विभिन्न बोलियो में इसके बप्पा, बापू जैसे रूप प्रचलित हुए। हिन्दी में बाबुल जैसा प्यार शब्द इसी मूल की देन है जिसका मतलब पिता है। पितामह के लिए समाज ने इससे ही बब्बा या बाबा जैसे शब्द बनाए। अवधी में पिता को बप्पा कहने की परम्परा है। मराठी में बप्पा महामहिम भी हैं और भगवान भी। गणपति बप्पा मौर्या से यही जाहिर हो रहा है। मेवाड़ राजघराने के संस्थापक बप्पा रावल का नाम भी यही सब कह रहा है। महात्मा गांधी के साथ बापू शब्द का अर्थ उन्हें जननायक, राष्ट्रपिता और मार्गदर्शक के तौर पर ही स्थापित कर रहा है।
यह बाबू शब्द हिन्दी में बीती कई सदियों से प्रचलित है। जो लोग इसे अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के तहत पनपे ब्रिटिश राज के नौकरीपेशा भारतीयों से जोड़ते हैं वे यह भूल जाते हैं कि ब्रिटिश काल में इंडियन सिविल सर्विस की आजमाईश 1810 के आसपास शुरू हो गई थी। 1832 के करीब इसके लिए बाकायदा ब्रिटेन में परीक्षा होने लगी थी जिसमें भारतीयों का रास्ता भी खुला मगर पहला भारतीय आईसीएस होने का गौरव मिला सत्येन्द्र नाथ टैगोर को जो 1863 में चुने गए। सवाल उठता है कि क्या अंग्रेजी राज के भारतीय नौकरीपेशा लोगों के लिए बबून से बाबू शब्द कोलकाता के उन किरानियों के लिए प्रचलित हुआ जो मूलतः कंपनी राज के दौर में ही ब्रिटिश व्यापारियों और भारतीय एजेंटों का हिसाब-किताब देखने लगे थे? जाहिर है नहीं क्योंकि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है। उच्च पदस्थ अफ़सरों को बाबू कहने की शुरूआत तो उन्नीसवी सदी के पूर्वार्ध में ही हो गई थी मगर पहला आईसीएस उन्नीसवी सदी का अर्धशतक पूरा होने पर ही बन पाया।
जो भी हो, सचाई यह है कि बाबू का ईजाद अंग्रेजों ने नही किया था। इससे सदियों पहले संत कबीर (1440-1518) अपने काव्य में बाबू शब्द का प्रयोग कर चुके थे। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि बबून से बाबू की व्युत्पत्ति कुछ लोगों को सुहा रही है मगर खुद अंग्रेज विद्वानों ने भाषा-संस्कृति-समाज विषयक अपने भारतीय ज्ञान-कोशों में इस व्युत्पत्ति का उल्लेख तक नहीं किया है। ब्रिटिश काल की औपनिवेशिक शब्दावली के प्रसिद्ध कोश हॉब्सन-जॉब्सन में बैबून का उल्लेख है मगर उसका हिन्दी बाबू से गठजोड़ बैठाने का कोई प्रयास नहीं हुआ है। जबकि सम्माननीय शब्द के तौर पर वहां बाबू का उल्लेख भी हुआ है और उसे संस्कृत वप्र से उपजा शब्द ही बताया गया है। साथ ही यह भी स्पष्ट उल्लेख है कि बाबू का प्रयोग अंग्रेजी जाननेवाले लिपिक के लिए भी समाज में होता था जिसके पीछे गौरांग महाप्रभुओं की भाषा जानने के पराक्रम से उपजा महानता-बोध ही था। देखे क्या लिखते हैं वे-
स्पष्ट है कि अठारहवीं सदी के अंत और उन्नीसवी संदी के प्रारम्भ में जब बंगाली भद्रलोक में विभिन्न सुधारवादी आंदोलनों का प्रभाव पड़ा और लोगों ने अंग्रेजी शिक्षा और रहन-सहन अपनाना शुरू किया तो बाबू शब्द उनके लिए भी प्रयुक्त होने लगा। ठीक वैसे ही जैसे तब भी और आज भी हम ठसक और रुआब दिखानेवाले को लाटसाब कहने लगते हैं जो अंग्रेजी के लार्ड शब्द का देशज रूप है। इक्कीसवी सदी के पहल दशक में गुजर-बसर करते हुए आज भी हम अंग्रेजीदां लोगों को अक्लमंद समझ बैठते हैं तब 180 बरस पहले जो लोग अंग्रेजी पढ़-लिख गए थे, क्या उनकी मेहनत-लगन उन्हें सचमुच बेहतर जीवन की चाह रखनेवाले उनके समाज में बाबू साहेब का रुतबा दिलाने के लिए कम थी?
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18 कमेंट्स:
हमेशा की तरह ही आँखें खोलती हुई एक पोस्ट| यह जानकार आर्श्चय हुआ की कोई बाबू और बबून में सम्बन्ध जोड़ सकता है - तीतर के धड में बटेर की टांगें!
धन्यवाद!
आप ने बिलकुल सही लिखा है, बाबू शब्द पुराना और भारतीय है। हालांकि अब यह दफ्तरों के क्लर्कों के लिए टाइप्ड हो गया है। मैं अक्सर इसे खुसरो साहब की मुकरी में इस्तेमाल करता हूँ।
घोड़ा अड़ा क्यों? पान सड़ा क्यों? और बाबू बिगड़ा क्यों?
उत्तर-फेरा न था।
सहमत ,बाबू तो अपना चिर परिचित शब्द है -बच्चो को भी प्यार से कहें कहीं बाबू बुलाते हैं !
बैबून और बाबू का कोई अंतर्सबंध नहीं दिखता !
शानदार पोस्ट! और जैसा कहा स्मार्ट इंडियन ने - 'हमेशा की तरह ही आँखें खोलती हुई एक पोस्ट'
मेरे एक दोस्त की दो बरस की बिटिया दोस्त को आह्लाद से बाबू कहती है- क्या किसी औपनिवेशिक दबाव में? प वर्ग की सभी ध्वनियां आपसी क़रीबी रिश्तो को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त होती हैं.. पापा, बाबा, भाभी, बुआ, फूफा, भाई, बहन, बीबी, मियां, माँ, मामा आदि।
बबून न तो इंगलैण्ड में होता है और न भारतीय उपमहाद्वीप में; अफ़्रीका में पाया जाता है बबून! इंगलैण्ड का आदमी अफ़्रीकी आदमी को बबून कहे, समझ में आ सकता है लेकिन अंग्रेज़ आदमी, बंगाली आदमी को बबून से जोड़कर बाबू कहे.. ये कैसा बेहूदा तर्क है?
इस पूरी कल्पना में दो बातें निहित हैं; एक तो ये कि सारे अंग्रेज़ सारे भारतीयों से दिल से नफ़रत करते थे और उन्हे निरन्तर अपमानित करना चाहते थे? दूसरे ये कि भारतीय इतने ज़लील, इतने दलित, और इतने जड़बुद्धि थे कि लगातार होते अपमान के भाव को शब्दों से विलग करके देख ही नहीं पाते थे? अंगेज़ी लिखने-पढ़ने वाला बंगाली बाबू ऐसा मतिमूढ़ कि उस बाबू नाम के सम्बोधन को उपाधि की तरह नाम के आगे लगा के शान से घूमे और उसके पीछे के (प्रक्षिप्त) अपमान को समझ ही न सके?
भारतीय लोग मेधा-प्रवण ही नहीं, भावना-प्रवण भी होते हैं, बंगाली तो विशेषकर। इस तरह की काल्पनिक स्क्रिप्ट को मनमोहन देसाई जैसी मर्द जैसी ऊलजलूल और वाहियात फ़िल्म में ही स्थान मिल सकता है, या शायद वहां भी नहीं मिले क्योंकि उस कथानक में भी नायक इतना बेवक़ूफ़ नहीं होगा जो अपने अपमान को समझ ही न सके!
वडनेरकर जी कभी कभी कुछ मन का लिखा हुआ होता है जैसे रेत पर पसरी धूप के बीच कहीं एक शीतल जल का पात्र ... अभय जी लिख रहे हैं उसको भी पढ़ रहा हूँ और मेरे विचार से इस पोस्ट को समर्पित किया जाना ही एक विद्वान के प्रति दूसरे का सम्मान प्रदर्शन है . मैंने दूसरे के आगे विद्वान इस लिए नहीं लिखा है क्योंकि अभी आप कहेंगे मैं कोई विद्वान वगैरह नहीं हूँ. खैर पोस्ट बहुत उम्दा सदा की भांति ज्ञानवर्धक है. इस पोस्ट की वाह वाही करने का आशय ये नहीं है कि पूर्व की पोस्ट्स में कहीं कमी थी बल्कि उन पर कुछ ना लिख पाने को मेरा आलस्य समझा जाए.
काश आप ने 'लंठ' शब्द पर भी इतनी मेहनत कर ऐसी एक पोस्ट लिखी होती ! मुझे बाउ वाले पचड़े में नहीं पड़ना पड़ता।
चलिए जो हुआ सो हुआ अब तो निभाना ही है। आगे से खयाल रखें।
बाबू की ताकत का अंदाजा है मुझे लाखो को हजारो में करने का हुनर बाबू को ही आता है . आज के युग में किसी भी कार्यालय में बिन बाबू सब सून जैसी स्थति रहती है . आपबीती बता रहा हूँ एक सरकारी दस्तावेज़ चाहिए अफसर के चाहते हुए भी नहीं मिल रहा है क्योकि बाबू बिजी है और इस काम के बाबू को समय नहीं .
लाजवाब पोस्त आपकी पोस्ट पढते 2 आब आदत सी हो गयी है कि हर चीज़ और शब्द देख कर कई बार सोचने लगती हूँ कि इस शब्द की उत्पति कैसे हुई
शानदार सफर । आभार !
उम्दा और शोधपरक पोस्ट. बधाई. यह बिलकुल सत्य है कि -" बाबू शब्द की बबून से व्युत्पत्ति का कोई प्रमाण न होने के बावजूद इस शब्द की यही व्युत्पत्ति कई भारतीयों को सुहाती है।"
यह मैकाले की नीतियों का ही परिणाम है कि इन्हें अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान से ज्यादा अंग्रेजो के एजेंट के रूप में अपनी ही जड़ों पर प्रहार करना आधुनिकता का पर्याय प्रतीत होता है.
आपकी हर पोस्ट गागर में सागर के समान होती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
बाबू की अर्थसंगति और उसकी व्युत्पत्ति को सार्थक आयाम देती प्रविष्टि। आभार ।
बहुत दिलचस्प रहा यह सफ़र भी.
रामराम.
बढ़िया!
bahut jandar post .malwa me bhi bachhe ko babu khkar hi bulate hai .
abhar
एक सिरे से पढ़ गया. शायद भारी-भारी शब्द नहीं थे इसलिए. या फिर ज्यादा ही रोचक पोस्ट लगी. पिता के लिए बाबूजी/बाबू शब्द तो कई जगह प्रचलन में है ही.
अजित जी आपका ब्लॉग बहुत ज्ञानवर्धक एवं रोचक है. क्या कभी स्थान नामों के सफ़र की ओ़र आपका ध्यान गया है. यह भी बड़ा दिलचस्प होगा.
bahut hi badhiya lekh tha.mujhe babu aur baboon ke rishte k bare mein pata nahi tha
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