Wednesday, September 16, 2009

पैग़म्बर नहीं बन जाते यूं ही…

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खत्म के मायने बेहद दार्शनिक हैं जिसमें अंत की नहीं, अनंत की अर्थवत्ता है 
संबंधित कड़ी-मोहर की मुखमुद्रा
कि सी काम, उत्तरदायित्व या योजना की पूर्णाहुति को उपसंहार, समाप्ति, समापन या अंत कहा जाता है। इसे बोलचाल की भाषा में खत्म करना भी कहते हैं। खत्म शब्द का प्रयोग हिन्दी-उर्दू में कई स्तरों पर होता है जैसे काम का खत्म होना। मृत्यु के संदर्भ में भी खत्म होना शब्द का प्रयोग होता है क्योंकि यहां आयु की पूर्णाहुति का भाव है। हत्या या कत्ल के संदर्भ में भी खत्म या खात्मा का इस्तेमाल होता है। सर्वनाश, विनाश के संदर्भ में भी इसका प्रभावी प्रयोग होता है। खत्म के आज सभी अर्थ नकारात्मकता लिए हुए हैं जबकि इसमें पूर्णता, परम, चरम या सम्पन्न होना जैसे भाव निहित हैं।
त्म शब्द हिन्दी में खतम के रूप में भी इस्तेमाल होता है और यह गलत नहीं है। किसी समूचे मामले के पटाक्षेप के संदर्भ में किस्सा खतम जैसा मुहावरा भी प्रचलित है। खत्म मूलतः सेमिटिक भाषा परिवार का शब्द है और हिन्दी में बरास्ता फारसी-उर्दू इसका प्रवेश हुआ। खत्म कुरान की दार्शनिक शब्दावली का एक शब्द है और इसकी कई तरह से व्याख्या की जाती है। कुरान की एक उक्ति- ख़तामा अल नबीना से इस शब्द का रिश्ता जोड़ा जाता है। इसका मतलब होता है आखिरी पैग़म्बर। खत्म की मूल धातु है kh-t-m(ख़ा-ता-मीम) जिससे ख़तामा, ख़तम, खत्म आदि शब्द बने हैं। अरबी धातु ख़-त-म की अर्थवत्ता बेहद दार्शनिक है। इसमें जो भाव समाया है वह है-बस, अब और कुछ नहीं। कोई ऐसा तथ्य, कोई ऐसी बात, कोई एक विभूति, परम ज्ञान या सत्य जिसके आगे सब कुछ विराम है, शून्य है। यही है इस धातु का मूल भाव। मगर इसका मूल अर्थ मुद्रिका, सील अथवा मोहर के रूप में स्थिर हुआ और अब उपसंहार, अंत, पटाक्षेप आदि अर्थों में यह रूढ़ हो गया है।
रबी भाषा और कुरान के व्याख्याकार ख-त-म का रिश्ता पैगम्बर हज़रत मुहम्मद से जोड़ते हैं जिन्हें कुरान में khatama al-nabiyina यानी पैग़म्बरों मे आखिरी कहा गया है। भाव यही है कि तमाम पैग़म्बरों की सूची में मुहम्मद साहब का नाम दरअसल एक मुहर, मुद्रिका के तौर पर दर्ज़ है। सील, मोहर या मुद्रिका किसी भी मज़मून, वृत्तांत या नियम के अंत में लगाई जाती है जिसमें एक सार्वकालिक संकेत होता है। यह संकेत सार्वभौम आदेश भी हो सकता है और एक विराट सत्य भी। इस्लाम में मुहम्मद साहब को आखिरी पैग़म्बर कहा गया है। इसकी कई व्याख्याएं हो सकती हैं किन्तु विभिन्न देवी-देवताओं में आस्था रखनेवाले समूचे अरब जगत को

images n ... विभिन्न देवी देवताओं में आस्था रखनेवाले समूचे अरब जगत को एकेश्वरवाद की अनुभूति कराने के बाद संभवतः इस बात की ज़रूरत ही नहीं थी कि ईश्वर के अस्तित्व का बोध कराने वाले किसी अन्य दर्शन को सामने लाया जाए...

एकेश्वरवाद की अनुभूति कराने के बाद संभवतः इस बात की ज़रूरत ही नहीं थी कि ईश्वर के अस्तित्व का कोई और दर्शन सामने लाया जाए। ईश्वर एक है, यह सार्वजनीन सत्य है। अरब समाज में इसकी स्थापना सर्वप्रथम मुहम्मद साहब ने की सो उन्हें खतामा अल नबीना की उपाधि देना बहुत खूब बात है।
गौरतलब है कि प्राचीनकाल से ही सरकारी काग़ज़ या दस्तावेज तभी प्रभावी माना जाता रहा है जब तक उस पर शासन की मोहर या सील न लगी हो। तभी वह राजाज्ञा या राज्यादेश कहलाता है। ईसा से हजारों साल पहले से यह परम्परा एशिया से यूरोप तक कायम है। सिन्धुघाटी सभ्यता के उत्खनन स्थल से मिली बैल-जोड़ी वाली सील मशहूर है। स्पष्ट है कि खतामा या खत्म शब्द में समाप्ति का भाव उपसंहार के अर्थ में नहीं बल्कि किसी तथ्य की सार्वभौमिकता, अकाट्य़ता अथवा परम सत्य के रूप में आ रहा है। सील या मोहर लगाना उस सत्य की स्थापना करना है जिसके बाद किसी और तथ्य की आवश्यकता न रहे। सभी विवादों से परे जो सत्य है वही है खतामा यानी सील, ठप्पा। हमारी जिंदगी की किताब पर ईश्वर ने पहले ही अपनी मोहर लगा दी है। सबके पन्ने पर अलग-अलग जगह यह खतामा लगा है। खुदा की मोहर लगे इस जीवन में हम हर वक्त खुदाई कानूनों को तोड़ते रहते हैं, यह भूलते हुए कि हम उसकी संतान हैं!! जब आख़िरी सफ़े पर पहुंचते हैं तब देखते हैं कि हमें तो ईश्वर ने रचा था।  अफ़सोस, कि तब अपने सत्कर्मों से यह साबित करने का वक्त हमारे पास नहीं रहता कि हम खुदा के बंदे हैं। पैगम्बर यूं ही हर कोई नहीं बन जाता।
पिछली पोस्ट-शरद कोकास का पुनर्कायाप्रवेश के संदर्भ में शरद जी ने सभी ब्लागर बंधुओं को आभार भेजा है। वे लिखते हैं-...इस सफर के साक्षी और मुक्ति की बधाई देने वाले सभी मित्रों को धन्यवाद इस आशा के साथ कि हम सब इसी तरह मिलते रहें और ब्लॉगिंग से उपजे इन रिश्तों का सफर यूँ ही जारी रहे। -आप सब का शरद कोकास

अगले पंद्रह दिनों तक सफर अनियमित रहेगा। हम बेहद व्यस्त हैं। हालांकि पूरी पूरी कोशिश रहेगी कि इसमें बाधा न आए...

14 कमेंट्स:

हेमन्त कुमार said...

अपने को स्थापित करने से पूर्व अनेक मोड़ से गुजरना ही होता है । आभार ।

Himanshu Pandey said...

अदभुत है आज की प्रविष्टि । शब्द की व्युत्पत्ति से अधिक आपकी अभिव्यक्ति ने बाँधा । अंतिम अनुच्छेद का तो क्या कहिये !

खतम की अर्थवत्ता इतनी है किसे पता था ? कोटिशः आभार ।

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छी पोस्ट है...शरद जी के आभार प्रदर्शन से कम से कम मैंअभिभूत हूँ. :)

दिनेशराय द्विवेदी said...

खेल खत्म।
जगत को मिथ्या मानने वाले अद्वैतवादियों के लिए जगत का समस्त व्यवहार और जीवन खेल है और मृत्यु को कहते हैं -खेल खत्म।
एक और शब्द है जो वाणिज्यिक व्यवहार में बहुत आता है। खताना अर्थात निर्धारित स्थान पर दर्ज कर लेना। कोई भी संव्यवहार किसी पुर्जी पर दर्ज कर लिया जाता है और जब उस संव्यवहार को निर्धारित पुस्तक में दर्ज कर लिया जाता है तो उसे कहते हैं खताना। इस के बाद पुर्जी की भूमिका खत्म हो जाती है और उसे रद्दी की टोकरी के हवाले कर दिया जाता है। इसी से संबंधित शब्द है खाता, जिस में रोकड़ का लेन देन दर्ज किया जाता है। जब रोकड़ का लेन देन खाते में दर्ज किया जाता है तो उसे भी खताना कहते हैं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"खुदा की मोहर लगे इस जीवन में हम हर वक्त खुदाई कानूनों को तोड़ते रहते हैं, यह भूलते हुए कि हम खुदाई बंदे हैं।"

उपदेशात्मक इस पोस्ट को लगाने के लिए आभार!

Mansoor ali Hashmi said...

आज की पोस्ट बहुत पसंद आयी.
खातम अंगूठी को भी कहते है. सील नुमा अंगूठियाँ भी हुआ करती थी जो गहने के तौर पर इस्तेमाल होकर मोहर लगाने के काम भी आती थी. आपकी दी हुई एक तस्वीर शायद अंगूठी की ही है.
अरब लोग आम बोल चाल की भाषा में ''मख्तूम'' सगाई शुदा स्त्री को भी कहते है [अंगूठी पहनी हुई- एंगेज्ड ]

गिरीश पंकज said...

शब्दों का सफ़र देख रहा हूँ. हम सबका ज्ञान बढ़ रहा है, इतने मन से, परिश्रम से काम करने वाले लोग अब दुर्लभ है. आप के काम से मुझे प्रेरणा मिल रही है. ये साडी सामग्री बाद में पुस्तक के रूप में भी आ सकती है. बधाई .

रंजना said...

सही कहा,प्रयोग में तो ख़त्म को नकारात्मक अर्थ में ही प्रयोग होता है,सार्वभौमिकता के अर्थ में नहीं...

निकृष्ट कर्म में लिप्त किसी भी व्यक्ति को स्वयं मैं ही " ख़तम कहानी " कहा करती हूँ...

बहुत ही सुन्दर विवेचना की आपने अजीत भाई.एक नया दृष्टिकोण मिला ..आभार आपका.....

शोभना चौरे said...

ख़त्म शब्द कहने के साथ ही सब कुछ ख़त्म होने के अहसास को दूर करती आपकी यह ज्ञानवर्धक पोस्ट .
बहुत बहुत आभार

Rangnath Singh said...

bahut jaruri jaankari di aapne....bhasa aur dhramadhyan dono lihaj se....

काशिफ़ आरिफ़ said...

अजीत जी, बहुत अच्छा लेख...बिल्कुल सही कहा है आपने

आपने अपने लेख मे कुरान लिखा है जो सही शब्द नही है....

सही शब्द X कुरआन X है.. तो आपसे गुज़ारिश है की आगे से लिखते वक्त याद रखें....

प्रकाश पाखी said...

अजित साहब,
बहुत आभार और हार्दिक बधाई....आपके सफ़र की शुभकामनाए...वैसे मैं सफ़र पूराकर आया हूँ...तो आपकी पुरानी पोस्ट पढने का समय मिल जाएगा..
हमेशा की तरह बेहतरीन पोस्ट..

शरद कोकास said...

खतामा अल नबीना की अत्यंत विशद व्याख्या आपने प्रस्तुत की है इसे मज़हबी अर्थ में न भी देखे तो यह अत्यंत महत्वपूर्ण है । इसी सन्दर्भ मे कभी "आखिरत" को भी प्रस्तुत करें । और बाकी लेख बहुत बढ़िया है मुझे मेरा नाम ज़ोकर का राजू याद आ रहा है " तमाशा अभी खत्म नहीं हुआ है " लेकिन जबसे आपका पत्र मिला है " खेल खत्म की जगह " खीर खत्म" पर ध्यान जा रहा है ।

अविनाश वाचस्पति said...

जिसे खतम कह रहे हैं आप
वही तो शुरूआत है
इस सफर में आज 26 सितम्‍बर 2009
का जनसत्‍ता आपके साथ है
संपादकीय पेज पर समांतर स्‍तंभ में
किस्‍सा खतम शीर्षक है
मानते हैं हम इस पोस्‍ट में
जरूर एक खास बात है।
बधाई

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