Monday, September 21, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
12 कमेंट्स:
अदभुत आलेख ! यह भी दैनिक भाष्कर की कटिंग ही है न !
आभार ।
बढ़िया. कल ही पढ़ चुके हैं अखबार में.सब पढें.
ईश्वर और उस से संबंधित शब्दों की व्याख्या इस तरह एक स्थान पर उपलब्ध होना हिंदी जगत की उपलब्धि है। शब्दों का सफर कोटा भास्कर में तो पढ़ने को नहीं मिलता,क्यों?
बहुत सुन्दर और उपयोगी आलेख है.
आभार!
बहुपयोगी आलेख । आभार ।
हाँजी हम भी पढ चुके हैं बहुत सुन्दर शुभकामनायें
बहुत ही बढ़िया आलेख ..पढना सार्थक लगा.
बधाई..इस सुन्दर प्रस्तुती के लिए आभार !!
क्षमा चाहते हुए कहना चाहता हूँ , पहले पढने का अधिकार है हमारा न कि अखबार में छापा हुआ पढ़े .
उपयोगी लेख है।
नवरात्रों की शुभकामनाएँ!
ईद मुबारक!!
भाऊ, सूर्य, बिष्णु और 'ई' को समेटते एक वृहद आलेख दें न।
जय हो!
अरे वाह दादा ,बढ़िया आलेख,और शाश्वती ताई के बेटे का नाम ईशान हैं ,जिसका अर्थ अब मुझे समझ आया .बधाई
Post a Comment