Thursday, September 3, 2009

अपाहिज कुर्सी, विकलांग व्यवस्था, निकम्मे नेता

 
disabilityरीर के किसी हिस्से या भाग के ठीक काम न करने अथवा उससे वंचित रहने वाले व्यक्ति को विकलांग, अपंग या अपाहिज कहा जाता है। ये बड़े आम शब्द हैं और हिन्दी में खूब इस्तेमाल होते है और इनके विकल्प के तौर पर अंग्रेजी या अन्य किसी भाषा का दूसरा कोई शब्द इनसे ज्यादा प्रचलन में नहीं है। बतौर मुहावरा अपाहिज या विकलांग जैसे शब्दों का प्रयोग परिस्थिति पर व्यंग्य करने में भी किया जाता है जैसे विकलांग व्यवस्था, अपाहिज कुर्सी वगैरह। आशय किसी प्रणाली के समुचित रूप से कार्य न करने से ही होता है।
पाहिज शब्द वास्तव में अपाहज है मगर इसकी वर्तनी का प्रचलित रूप अपाहिज है। शब्द की व्युत्पत्ति दिलचस्प है। यह दो शब्दों के मेल से बना है- पाद+हस्त। पाद शब्द का अर्थ है पैर और हस्त यानी हाथ। इस युग्म के साथ जब अ उपसर्ग लगाया जाता है तब बनता है अ+पाद+हस्त यानी जिसके हाथ और पैर न हों। अपाहज बनने का क्रम कुछ यूं रहा-अपादहस्त> अपादहत्थ> अपाअहत्थ> अपाअहज्ज> अपाहज> अपाहिज। अगर कोई व्यक्ति आलस्य या अकर्मण्यता का शिकार व्यक्ति इस तरह सब तरफ से बेपरवाह बिना किसी कामकाज के पलंग तोड़ता है मानों ईश्वर ने उसे हाथ-पैर नहीं दिये हैं। इसीलिए निकम्मे व्यक्ति को भी अपाहिज कहा जाता है। प्रसंगवश निकम्मा शब्द हिन्दी का बहुत ज्यादा इस्तेमाल होने वाले शब्दों में है। निकम्मा या कामचोर उसे कहा जाता है जो काम से जी चुराता है। यह बना है निः+कर्मकः से। संस्कृत के निः उपसर्ग में के बिना, रहित जैसे भाव हैं। निकर्मकः> निकम्मओ> निकम्मा-इस क्रम मे हिन्दी को यह शब्द मिला। कामचोर शब्द उर्दू या कहें कि हिन्दुस्तानी की देन है। disability_wheelchair हालांकि इस शब्द युग्म के दोनो ही पद संस्कृत मूल के हैं। 
पाहिज के लिए विकलांग और अपंग जैसे शब्द भी प्रचलित हैं। सबसे पहले विकलांग की बात। यह बना है विकल+अंग से। संस्कृत के विकल शब्द का मतलब होता है कमजोर, हतोत्साह, उदास, त्रस्त, शून्य अथवा मुरझाया हुआ। विकल शब्द बना है वि+कल से। कल् धातु का मूलार्थ गणना करना, आगे बढ़ना है। काल यानी वक्त भी इसी कल् से बना है। कल् शब्द का मतलब होता है पुर्जा, पेंच, मशीन, अंग, यंत्र आदि।  हिन्दी संस्कृत के वि उपसर्ग में रहित का भाव है। इस तरह विकल का अर्थ हुआ किसी पुर्जे या अंग का ठीक काम न करना यानी अधूरापन। विकल के साथ जब अंग की संधि होती है तो विकलांग शब्द बनता है जिसका अर्थ हुआ ऐसा व्यक्ति जिसकी इन्द्रियों में दोष है। अर्थात लूला या लंगड़ा व्यक्ति। हालांकि विकलांग को लूला या लंगड़ा तक सीमित करना ठीक नहीं है बल्कि इसमें मूक और बधिर भी शामिल होते हैं क्योंकि विकलांग में इन्द्रियबाधा का भाव है। इसी तरह अपंग शब्द अप्+अंग से बना है। संस्कृत के अप उपसर्ग में निषेध, विरोध, दोष आदि का भाव है। इस तरह अपंग का अर्थ हुआ दोषपूर्ण अंगोंवाला या अंगरहित व्यक्ति।
पाहिज के लिए बेहद असम्मानपूर्ण विशेषण है लूला-लंगड़ा। लूला उसे कहा जाता है जिसके हाथ या तो टूटे हुए हों या अंगदोष का शिकार हों। लंगड़ा उसे कहा जाता है जिसके पैर न हों। संस्कृत की लू धातु में काटने, कतरने, विभक्त होने या नष्ट होने का भाव है। हाथों से वंचित व्यक्ति के लिए लू धातु के संदर्भ में लूला शब्द का अभिप्राय स्पष्ट है। लंगड़ा शब्द बना है संस्कृत के लङ्गः से जिसका क्रम कुछ यूं रहा लङ्ग+र+कः> लंगड़अ> लंगड़ा। ढीले-ढाले और आलसी व्यक्तित्व को अक्सर लुंज-पुंज जैसे विशेषणों से भी नवाज़ा जाता है। यह लुंज-पुंज में क्षतिग्रस्त होने का भाव भी है। लुंज शब्द संभवतः लुञ्च से बना है जिसमें नोचना, छीलना, तोड़ना, काटना जैसे भाव हैं जबकि पुंज का मतलब समुच्चय, ढेर, संग्रह, दबाया हुआ, भींचा हुआ है। स्पष्ट है कि लुंज-पुंज में ढीला, निढाल, अपंग या विकलांग का भाव ही उभर रहा है।
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19 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

सफर पर हर बार कुछ न कुछ नयी जानकारी मिलती है। लेकिन इस ब्लाग पर सर्च की व्यवस्था होनी चाहिए जिस से पाठक ब्लाग पर मनचाहे शब्दों की पोस्ट तलाश सके।

Barthwal said...

अच्छी जानकारी/विशलेषण .. ... रही नेताओ कि बात वे तो हर लिहाज से अपाहिज /विकलांग.....

अजित वडनेरकर said...

@दिनेशराय द्विवेदी
शब्दों का सफर में खुद की तलाश के ठीक नीचे-तलाशें शब्द शीर्षक से सर्च गैजेट लगा हुआ है दिनेश भाई। अब तक जितने भी शब्दों के जन्मसूत्रों का उल्लेख सफर में हो चुका है उन्हें यहां खोजा जा सकता है। मेरा अनुमान है कि ऐसे शब्दों की संख्या तीन हजार से ज्यादा होगी। आपके मन में अगर वणिक शब्द आता है तो उसे लिख कर देखें। इसी तरह अगर कृषि शब्द आता है तो उसे भी खोज कर देखें।
सफर को उपयोगी बनाने के लिए अभी और भी बहुत कुछ किए जाने की ज़रूरत है। सुझावों का स्वागत है।

Udan Tashtari said...

लुंज पुंज तो बहुत से बोल गये समय समय पर..और हमें पता ही नहीं था. अब देखता हूँ उन्हें...आपने अच्छी जानकारी दे दी है.

Himanshu Pandey said...

अपाहिज की व्युत्पत्ति दिलचस्प है । हम तो विकल मन हुए जाते हैं इन प्रविष्टियों को पढ़ने के लिये । आभार ।

हेमन्त कुमार said...

बेहतरीन । सही है किसी अपाहिज को क्यों लूला लंगड़ा बोला जाय।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

शब्द जो हम ज्यादा प्रयोग करते hae जब उसकी व्युत्पत्ति का पता चलता है तो लगता है यह शब्द सही में इसी के लिए bna है बिना मतलब का शायद ही कोई शब्द होगा .

Sudhir (सुधीर) said...

हमारे दादाजी हमेशा निष्कर्मण्य कह कह कर डा़ंटते थे...आपके लेख ने उनकी सहज ही याद दिला दी

Unknown said...

वाह !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

शब्दों की पोल खोल रहे इस सफर से निश्चितरूप से ज्ञान में वृद्धि होती है।

निर्मला कपिला said...

हमेशा की तरह बहुत बडिया रहा ये सफर भी आभार्

रंजना said...

पता नहीं क्यों शब्द अपाहिज और निकम्मा,मुझे संस्कृत/हिंदी नहीं उर्दू के शब्द लगते थे...आज मेरी बहुत बड़ी भ्रान्ति दूर हुई...
अपादहस्त शब्द का प्रयोग तो बड़ा ही सुन्दर रहेगा वाक्य में...बड़ा ही अपीलिंग लगा यह...

बहुत बहुत रोचक लगा यह पूरा विवेचन...बहुत बहुत आभार आपका इस ज्ञानवर्धन के लिए...

Arshia Ali said...

समाज की विद्रूपताओं को बखूबी बयां किया है आपने।
( Treasurer-S. T. )

Gyan Dutt Pandey said...

विकलांगता के संदर्भ में शब्द अधिकतर उपेक्षा के क्यों हैं। इससे तो हमारी सभ्यता की क्रूरता बाहर झांकती है।

Mansoor ali Hashmi said...

अपाहिज भी बहुत लम्बा सफ़र तय करके आये है,
अतिथी,फिर भी क्या सौगा़त ये शब्दों की लाये है,
निकम्मे कामचोरों से ''अजित' हमको मिलाये है,
बधिर, से मूक से ''वाचा' के गुल भी तो खिलाये है.

आलोक सिंह said...

बहुत ज्ञानवर्धक जानकारी ,
धन्यवाद

hem pandey said...

यदि बच्चे स्कूल में 'अपाहज' लिख मारें तो मास्टरजी उनके कान उमेठ देंगे.

Abhishek Ojha said...

आज की क्लास थोडी आसान लगी. ये टिपण्णी करने का डब्बा कई जगहों पर सेक्युरिटी के चलते काम नहीं करता :(

RDS said...

आज के जितने भी शब्द इस आलेख मे समाहित हैं , दुर्भाग्य से सभी भारत की वर्तमान दशा का चित्रण करने में सटीक बैठते है । नेता निकम्मे ,व्यवस्था विकलांग और प्रजा अपाहिज़ !

हैरानी यह कि नेता जो निकम्मे कहे जाते है वही सबसे ज्यादा कमा रहे है; व्यवस्था जो विकलांग है वही हमे मुफीद है; और प्रजा जो अपाहिज समान है वही भागमभाग में लगी है , दौड रही है ।

कबीर की उलटबांसी का देश सदा से ही आत्म विभोर रहा है । मन मस्त हुआ फिर क्या बोले...

फिर भी, बहुत बहुत शुभकामनाएं !!!

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