Sunday, September 6, 2009

शतक पूरा....जारी है बकलमखुद

bouquet-whiteRF यह सफर जारी रहेगा। मुमकिन है आगे आपको चंद्रभूषण (पहलू), डॉ अरविंद मिश्र (क्वचिदन्यतोअपि), रंजना (संवेदना संसार), प्रमोदसिंह (अज़दक), अभय तिवारी (निर्मल आनंद), आलोक पुराणिक (अगड़म-बगड़म), समीर लाल (उड़नतश्तरी) के अलावा और कई खास-चर्चित-सक्रिय ब्लागरों की  अनकही पढ़ने को मिले।
र बकलमखुद के सफर की 100 कडियां पूरी हो गईं। सौ के शिखर पर विराजने का अवसर मिला दिनेशराय द्विवेदी को। इसका आग़ाज़ हुआ था अनिता कुमार के आत्मकथ्य से। ब्लागजगत की आभासी दुनिया के विशिष्ट लेखन में लगातार सक्रिय लोगों की अबतक अनकही आपबीती का आत्मीय लेखा-जोखा है बकलमखुद। शब्दों का सफर को 2 साल पूरे हो चुके हैं और इस अर्से में लगभग हर रोज यह अपडेट हुआ है। करीब 700 पोस्ट अब तक लिखी गई हैं जिनमें 100 पोस्ट का योगदान बकलमखुद के लेखकों का है। इस अवधि में करीब 8500 टिप्पणियां सफर को मिलीं जिनमें करीब 1500 टिप्पणियां बकलमखुद लिखनेवाले 15 उन साथी ब्लागरों के आत्मकथ्य पर आईं है जिन्होंने अपने व्यस्ततम वक्त में हमारे आग्रह पर शब्दों का सफर के जरिये समूचे ब्लागजगत के साथ अपनी वह अनकही साझा की जिसे अन्यथा वे कभी नहीं कहते।  सफर की पहली सालगिरह, दूसरी सालगिरह या सौवीं,  दो सौवीं प्रविष्टी जैसे अवसरों को लगातार हम भूलते रहे, पर बकलमखुद के शतक पर लिखने के लिए पहले से सोच रखा था। दिनेश जी जानते हैं।
रीब तीन साल पहले जब हमने हिन्दी ब्लागजगत में दिलचस्पी लेनी शुरू की थी। तब नारद के प्लेटफार्म से हम ब्लाग पढ़ा करते थे। All Photo seetटॉप 20 ब्लागों में तब अनूप शुक्ल, ज्ञानदत्त पांडेय, जीतेन्द्र चौधरी, प्रमोद सिंह, संजय बेंगाणी समेत, सागरचंद नाहर जी जैसे कई साथियों के ब्लाग थे। इनकी आपसी बतरस हम पढ़ते थे। फिर निर्मल आनंद वाले अभय तिवारी, अनिलसिंह, अविनाश, रवीश आदि  के ब्लाग भी सामने आए। हिन्दी ब्लागिंग का स्वरूप तब तक बनने लगा था। 3 जून 2007 को शब्दों का सफर शुरू हुआ। कई ब्लागरों से अंतर्संबंध स्थापित होने लगे। इसके बावजूद एक बात लगातार खटकती थी कि विविध विषयों पर लिखनेवाले ब्लागरों ने अपने बारे में बहुत कम लिखा था। उनके प्रोफाइल पेज पर चंद पंक्तियों में ही खुद का उल्लेख होता था। इस बीच शब्दों का सफर को हिन्दी ब्लागजगत का भरपूर प्रेम मिला। एक नए शब्द की व्युत्पत्ति के साथ शब्दों का सफर में रोज़ शामिल होना मेरी सनक है। मगर कुछ महिनों में ही आभास हुआ कि सफर के साथ जो हमसफर जुड़े हैं, वे कुछ एकरसता का शिकार हो रहे हैं। अनूप शुक्ल जी ने सुझाव दिया कि बीच बीच में हम कविता-उविता टाईप पोस्ट भी चढ़ाया करें। अरविंद मिश्र जी का सुझाव था कि क्यों न एक अलग ब्लाग शुरू करे ताकि उस पर कुछ और भी लिखा जाए। पर किन्हीं कारणों से हमारे लिए वह संभव नहीं था। पसंदीदा कवियों की रचनाओं को ब्लाग पर चढ़ाने से हम बचते रहे हैं। वजह सिर्फ यही कि वह सामग्री नेट पर किसी न किसी रूप में पहले से ही उपलब्ध है। मगर सातों दिन एकरसता वाली बात हमें गंभीर लग रही थी।
कलमखुद का विचार हमें तभी आया। हमने सबसे पहले अनिता जी को इसके लिए लिखा और वे न सिर्फ फौरन तैयार हो गईं बल्कि इस विचार को खूब पसंद भी किया। अगले दो नाम लावण्याजी और मीनाक्षीजी के थे। उन्हें भी हमने इस आयोजन का उद्देश्य जब बताया तो बाखुशी तुरंत उन्होंने अपनी अनकही हमें लिख भेजी। बकलमखुद के तीन सम्पूर्ण प्रारूप जब हमें मिल गए तब हमने इसकी शुरूआत अनिताजी के आत्मकथ्य से की। हमे और अनिता जी को यह उम्मीद नहीं थी कि इस पहल का ब्लागजगत में स्वागत होगा। लोगों ने इसे खूब पसंद किया। इसके बाद तो शब्दों की खोज के साथ ब्लागर साथियों के जीवन के अनजाने पहलुओं से परिचित होने का एक और सफर शब्दयात्रा के साथ ही चल पड़ा।
स सफर में अनिताजी ने हमें जो आलेख भेजा था उसका आकार देखकर हम शंकित थे कि पाठक इसे पूरा पढ़ पाएंगे या नहीं, इसलिए हमने उसे कडियों में छापा। बाद मे जो आत्मकथ्य आए वे इससे भी ज्यादा कड़ियों में बंटते चले गए। अभी तक का सबसे बड़ा विस्तार दिनेशराय द्विवेदी जी की अनकही का रहा है जो सतरह कड़ियों से भी आगे जा रहा है। अनिता जी को शिकायत है कि हम उनके लिखे से इतना क्यों डर रहे थे। अब वे इंचटेप लेकर बाकी साथियों का लिखा नाप रही हैं। हमें भरोसा है कि उनकी अनकही में और भी जो कुछ अनकहा रह गया है, उसे भी वे अपने बकलमखुद के दूसरे भाग के तौर पर ज़रूर लिखें। ब्लागजगत उसे भी पढ़ना चाहेगा। इस सिलसिले में देबाशीषजी और प्रत्यक्षाजी का उल्लेख करना चाहूंगा। देबाशीष चक्रवर्ती बाखुशी बकलमखुद लिखने को तत्पर थे। मगर जब लिखने बैठे तो असहज हो गए। तत्काल हमें अपनी मजबूरी बताई कि खुद पर लिखना बेहद कठिन है। किन्हीं कारणों से प्रत्यक्षा ने भी असमर्थता जताई।

आभार                            शब्दावली डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम के भीतर दरअसल दो ब्लाग चल रहे हैं। एक शब्दों का सफर, दूसरा बकलमखुद। हमें अरविंद मिश्र और  राजीव टंडन ने सुझाव दिया था कि बकलमखुद को अलग ब्लाग की शक्ल दी जानी चाहिए। अब ज्यादा तकनीकी समझ न होने और समयाभाव के कारण हम यह नहीं कर पा रहे हैं। वैसे इस विषय पर बकलमखुद के लेखकों का निर्णय माना जाएगा कि वे अपने आत्मकथ्य शब्दों का सफर (shabdavali.blogspot.com) के भीतर ही देखना चाहते हैं या उसे अलग ब्लाग की शक्ल में। मैं इसी रूप में चलने देना चाहता हूं।  यूं शब्दावली के नाम से एक अन्य ब्लाग हमने करीब तीन साल पहले वर्डप्रेस पर बनाया था। बीच में बकलमखुद की करीब साठ कड़ियां उस पर इम्पोर्ट भी कर दी थीं, पर उसमें कुछ तकनीकी खामियां रह गई थी। इसलिए उसे इंटरनेट पर प्रदर्शित नहीं किया है। बकलमखुद की सौ कडियां पूरी होने के मौके पर इसमें शिरकत करनवाले सभी पंद्रह साथियों का हम आभार व्यक्त करते है कि उन्होंने अपने जीवन के उन आयामों से हमे जुड़ने का मौका दिया जिन्हें अन्यथा हम नहीं जान पाते। उनके व्यक्तित्व विकास, जीवन संघर्ष और रचनाकार रूप को जानना और अंततः उससे प्रेरित होना ही हमारा मक़सद था। ...

प्रमोदसिंह ने तो अपना बकलमखुद चालाकी से विमल वर्मा से लिखवा लिया। अब हम चाहते हैं कि प्रमोदसिंह विमलभाई का बकलमखुद लिख कर हिसाब बराबर कर दें। कुछ और नाम भी हैं जो ऊहापोह में फंसे। पर उन्होने भी वादा किया है कि ज़रूर कुछ लिखेंगे। इनमें अनामदास और अभय तिवारी भी शामिल हैं।
कलम का कोई फारमेट तय नहीं है। आग्रह सिर्फ यही रहा कि अपनी निजता-गोपनीयता को उजागर न करते हुए सिर्फ उस किरदार के बारे में लिखा जाए जो आज ब्लागजगत में है। जिसे उसके लिखे को पढ़ने के बाद जानने की इच्छा जागती है। अनिताजी ने बेहद खिलंदड़े अंदाज़ में उप्र से मुंबई तक का अपना सफर और फिर इंटरनेट-आरकुट से अपने जुड़ाव के साथ ब्लागजगत में आमद का खाका खींचा। लावण्याजी ने बेहद संक्षेप में करीब आधी सदी पहले की मुंबई के जीवन और अपने पिता पं नरेन्द्र शर्मा के संस्कारी परिवेश में जिये क्षणों और अमेरिका में आप्रवासी के तौर पर चल रही वर्तमान जिंदगी को हमसे साझा किया। अफ़लातून जी की अनकही की हर कड़ी में बनारसी ठाठ का जोश रहा। उनके सुविस्तृत बहु भाषाभाषी प्रखर सामाजिक चेतना वाले कुटुम्ब के बारे में जानना प्रेरक था। विमल वर्मा,काकेश और हर्षवर्धन त्रिपाठी ने पूरे खुलूस से अपने छात्र जीवन के अनुभवों से लेकर विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में हिस्सेदारी की बातें अनूठी किस्सागोई के साथ बताईं। काकेश की चिरकुटई यादगार रही। शिवकुमार मिश्र की अनकही मेरे लिए अप्रत्याशित थी। यूं कहे कि बकलमखुद से पहले उनसे कभी संवाद का मौका नहीं आया था। कोलकाता के इस प्रतिभाशाली सफल चार्टर्ड एकाऊंटेंट के अपने ब्लाग पर व्यंग्य की धार ही मिलती है, उनके अपने अतीत की झलक शायद ही कहीं दिखती हो। बेहद दिलचस्प था उनका आत्मकथ्य।
मीनाक्षी जी की अनकही में दिल्ली से दुबई तक का सफर जाना। खासतौर पर विदेशी ज़मीन पर भारतीय के अनुभवो का बेहद बारीकी से ब्योरा उनके लिखे में है। बेजी ने अपने बचपन के खूबसूरत लम्हों को बेहद खूबसूरती से कविताई के अंदाज में सबसे साझा किया। नास्टैल्जिया और बचपन का रुमान उनके लेखन की खूबी रही। अरुणजी की अनकही से मैं बहुत प्रभावित हुआ। इस जीवट वाले उत्साही उद्यमी ने बेबाकी से अपने संघर्ष को बयां किया। प्रभाकर पाण्डेय का आत्मकथ्य उनकी सादादिली की मिसाल है। अभिषेक ओझा बकलमखुद परिवार के सबसे कम उम्र हिस्सेदार बने। इस नौजवान की जिंदगी के पच्चीस साल का ब्यौरा जानने के लिए मैं उतावला था। रंजना भाटिया जी से तो पूरा ब्लागजगत परिचित है। इस स्तम्भ के लिए रंजूजी ने बेहद आत्मीय संस्मरण लिखे। पल्लवी त्रिवेदी ने अपने संस्मरणों में बचपन के शरारती, गुदगुदानेवाले लम्हों में खूब रंग भरे। पुलिस सेवा में एक महिला के तौर पर अपने अनुभवों का सच्चा बयान उनकी अनकही में है। पंडित दिनेशराय द्विवेदी अपने बकलमखुद में एक नया फारमेट लेकर आए हैं। वे सरदार की भूमिका में हैं और तृतीय पुरुष में उनका बकलमखुद सतरह पड़ाव तय कर चुका है और जारी है। हमें खुशी है कि ब्लागरों का असली प्रोफाइल बकलमखुद पर बन रहा है। ये दस्तावेज हैं और इनका महत्व भविष्य में पहचाना जाएगा।
दुखद सिर्फ यही है कि किन्ही अनुभवो को चलते श्री अरुण अरोरा पंगेबाज ब्लागजगत से सिधार गए। उन्होने न सिर्फ अपना ब्लाग डिलीट कर दिया बल्कि बकलमखुद में उनके योगदान को भी डिलीट करने की इच्छा जताई है। हमने ऐसा करने से मना कर दिया है।

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38 कमेंट्स:

शरद कोकास said...

"यह दस्तावेज हैं और इनका महत्व भविष्य में पहचाना जायेगा ।" सबसे महत्वपूर्ण बात यही है अजित भाई । इस पूरे आयोजन की आपने बहुत सारगर्भित रपट प्रस्तुत की है । मेरा सुझाव है कि इस "बकलम खुद " को पुस्तकाकार में भी प्रकाशित किया जाये ताकि इतिहास को जानकर ब्लॉगिंग के भविष्य में आस्था रखने वाले नये लोग इस ओर आकृष्ट हों । नेट की यह दुनिया बिलकुल ही अलग दुनिया है एक स्क्रीन खुलता है और हम उस दुनिया से जुड़ जाते है स्क्रीन बन्द करते ही वापस अपनी दुनिया में लौट आते हैं । लेकिन चूंकि यह मनुष्यों से सम्बन्धित दुनिया है और मनुष्य होने के फलस्वरूप हमारी यह सहज स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि हम इससे इतर भी अन्य मनुष्यों से सम्बन्ध बनाना चाहते हैं शायद इसलिये मेरी बेटी कहती है कि अबकी बार भोपाल चलेंगे तो अजित अंकल के यहाँ जायेंगे या समीर लाल का फोन आता है तो मै उनसे कहता हूँ कि आप भारत आइये आपसे गले मिलने का मन हो रहा है , मै 14 अगस्त की रात 12 बजे दिनेश राय द्विवेदी जी को फोन करता हूँ और स्वतंत्रता दिवस की पहली बधाई उन्हे देता हूँ वे मेरे ब्लॉग पर शील की कविता पढ़कर अपने बचपन को याद करते है , पुणे से शमा जी का फोन आता है वे अपने दुख-सुख बाँटती है , पाबला जी तो पड़ोसी धर्म का निर्वाह करते ही हैं ,अशोक कुमार पाण्डेय और महफूज़ अली और नीरज बहुत से लोग जिनसे आत्मीय सम्बन्ध कहने को बहुत सी बाते है लेकिन यहाँ की सीमा है और मेरा सफर तो सिर्फ पाँच माह का है । लेकिन यह दीवानापन नही तो और क्या है जो सुबह 4 बजे तक जागकर लिख रहा हूँ और मित्रों से बात भी चल रही है यह सब आप लोगों ने कमाया है आप सभी इस के सुखद भविष्य के लिये चिंतित हैं । आप लोगों ने इस "बकलम खुद " द्वारा ब्लॉगिंग की विधा को एक नया आयाम दिया है आप सभी को धन्यवाद और शुभकामनायें ।इसकी निरंतरता बनी रहे यह मेरी और हम सबकी कामना है ।

azdak said...

बधाई, बधाई (और एक बार लिखें? ऑप्‍शनल है या कंपलसरी?).

वैसे, इंटर में जिस लड़की को दिल दे रहे थे लेकिन वह ले नहीं रही थी एक्‍ज़ाम में किसी और लड़के की मदद ले रही थी, या मंगनी के बखत लड़कीवालों ने दिखाया तो हमने भी देखा कि हमारे दायें पैर में सात उंगलियां हैं जैसे मार्मिक बयानों को लेकर ऐसी मार्मिक उमगाहटें? इस रिसेसन के बखत अच्‍छा है?

जहां तक विमललाल वाले बकलमखुद की बात है तो वह ज़माना हुआ हमने लिखकर विमल के यहां छोड़ रखा है, उनकी पत्‍नी हैं कि ये गलत लिखे और वो कम करके बता रहे हैं की कहानियां फैलाकर उसे छोड़ नहीं रही! अब यही सब दुख की बात है कि आपने बच्‍चा बड़ा कर लिया लेकिन दाम्‍पत्‍यवाले संसार के अंदरूनी बड़प्‍पन को अभी पहचान नहीं पाये हैं. मैं तो अभय से भी कब से कहता रहा हूं कि लाओ, तुम्‍हारा बकलम मैं ही कलम कर दूं, लेकिन अभय का मानना है, और जायज ही मानना है, कि मेरी भाषा में वह प्रांजलता नहीं जो विचारों की ऊंचाई बनाये रखेगी, तो एक तरीके से चिढ़कर मैंने हथियार डाल दिया है कि ठीक है फिर लिखवाओ भइया डाकदर नगेंदर और नलिन बिलोचन सर्मा से..

विमल को ज़रा हड़काइये, कि घर में बीवी की यह किस तरह की धौंस है कि हमने इतनी ऊंची चीज़ लिखकर दी हुई है, और जनाना है कि नीची बनाकर छोड़ नहीं रहीं?

एंड बधाई, अगेन.

हेमन्त कुमार said...

इससे ज्यादा धैर्य और सामंजस्य की बात और क्या हो सकती है । इतनी बड़ी टीम के लिए । आभार । स्वागत है अगली कड़ियों का ।

Udan Tashtari said...

क्या बात है..इसमें सैकड़ा...बधाई ले लिजिये!!

अजय कुमार झा said...

बहुत बहुत बधाई हो सर जी...कमाल का काम है ये...युगों तक सहेज़ कर रखा जाने वाला..जब बच्चों की बारी आये तो बताईयेगा...वैसे सूची में..राज भाटिया..बी ऐस पाब्ला, ताऊ जी..जैसे भी आ जायें ..तो सफ़र शायद और लंबा हो ...फ़िर से बधाई..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया।
शतक की बधाई स्वीकार करें।

काकेश said...

बधाईयाँ आपको इस शतकीय पारी के लिये। आप जल्दी ही हजारवीं पोस्ट की सूचना दें यही कामना है।

हमसे आपने बकलमखुद लिखवा दिया तो लगा अब तो इतिहास में नाम आ ही गया अब क्या लिखना..इतिहास पुरुष भी भला लिखा करते हैं :-)

खैर अभी बहुत से कारणों के कारण लिखा हुआ छूटा हुआ है लेकिन फिर से उसी चिरकुटई के साथ वापस आयेंगे यह तय है।

बाँकी सभी साथियों के बारे में पढ़कर अच्छा लगा। बहुत से महत्वपूर्ण नाम अभी छूटे हुए हैं उन्हें भी जल्दी धर-दबोचें।

Arvind Mishra said...

क्या खूब सिंहावलोकन !

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

बकलमखुद का सैकड़े के लिए बधाई और कई सैकडो का इंतज़ार . वकील सहाब का धारावाहिक तो रोमांच से भरपूर है

Unknown said...

बधाई !

उन्मुक्त said...

बकलमखुद, चिट्ठाकारों को जानने का यह अच्छा तरीका है।

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत बधाई जी - अभी तो बहुत धक्काड़ लोगों की कलम यहां दिखनी बाकी है!

अरूण अरोडा said...

बधाई हो जी ढेरो बधाईय़ा .
बडा कष्ट दायी होता है.दो साल के साथ साथ चले साथियो के मुहल्ले से विदा लेने का निर्णय . कैनवास पर अपने दिल की से उकेरी भावनाओ की लकीरो को इस तरह यू पल भर मे जलाकर राख कर देने के लिये वाकई मेरे जैसे भावुक व्यक्ती के लिये बहुत कठिन कार्य था. पर मैने किया . कई बार जिंदगी की स्लेट पर लिखी इबारतो को मिटा देना ही उचित होता है कटुता पालकर मेरे लिये जीना बहुत मुश्किल है. मै तुरंत फ़ुरंत लड लेना और फ़िर भूल कर मित्रता कर लेना ही जानता हू.लडता जरूर दिल से हू पर दिल मे नही रखता .लेकिन अगर कही कोई दंश मुझे लगातार महसूस होता रहे तो मै उस पन्ने को बंद कर अगले पन्ने पर फ़िर से नई इबारते लिखने मे लग जाता हू . यहॊ मेरा स्वभाव है.
"तू नही और सही ,और नही और सही , जहा मे सितारे और भी है
तेरा जहा ना सही सितारो के आगे जहा और भी है
आपने मुझे इस सोपान पर याद किया , मै आभारी हू. मेरी जीवनयात्रा मे शायद मील का एक और पत्थर इस माह आने वाले नवरात्रो मे लग जाये . जिसके लिये मै आप सब लोगो के स्नेह भरी दुआओ के साथ प्रयासरत हू. यह शायद भारत भर मे बिना किसी रसायनिक प्रदूषण के rohs weee गुणवत्ता मानको पर चलने वाला पहला संयत्र होगा . इसमे हम बायो डिग्रिसिबल एंव लेड फ़्री क्रोम फ़्री रसायनो का उपयोग कर पेंट करने वाले है. मेरी कई सालो की कोशिश जब मूर्त रूप ले रही होगी मै आपके यहा होने की प्रार्थना करता हू .

आपका स्नेहाकांक्षी
अरूण अरोडा

Beji said...

Ajitji,

facebook ke jariye aap itnaa toh jaante hi hain ki bharat waapasi ki
taiyaari hai....vyasth hun...par aapko badhaai dene se nahin chookna
chaati...

badhaai bhi aur shubhkaamna bhi...shesh phir.....16 sitambar ka ticket
hai....aage wahaan se....
vineet
Beji

Anita kumar said...

अजीत भाई सबसे पहले तो आप को इस प्रयोग की सफ़लता के लिए सैकड़ों बधाइयाँ। इंचटेप लेकर नापना भी हमारे खिलदड़े अंदाज में आप की सफ़लता को बधाई देने का अंदाज था, आप तो बुरा मान गये…।:)
इसमें तो कोई दो राय नहीं कि शब्दों का सफ़र बहुत रोचक होते हुए भी एकरसता का शिकार हो रहा था और बकलमखुद एक बहुत ही रोचक डाइवर्जन है। आप बकलमखुद का दूसरा खंड शुरु करेगें जानकर अच्छा लगा। सच है कि पहले खंड के पहले बकरे जब बने थे तो मन में एक खटका था कि क्या सच में लोग एक आम आदमी के बारे में जानना चाहेगें जिसके पास उपलब्धि के नाम पर बस एक ठीक ठाक जी हुई जिन्दगी के सिवा कुछ नहीं, क्या लोग सिर्फ़ इस लिए पढ़ना पसंद करेगें कि हम भी उसी जनूनी बिरादरी के है जिसके वो सदस्य हैं, कहीं इसे हमारा आत्मकेंद्रित होना तो न मान लिया जायेगा, आदि आदि अनेक सवाल मन में थे। आप के मन में भी शायद कई ऐसे ही सवाल रहे होगें इसी लिए आप ने हमसे कहा था कि पचास सालों को दो पोस्टों में निपटा दिया जाय्। लेकिन अब सौवीं पोस्ट इस बात का सबूत है कि वो सब शंकाएं निराधार थीं। इस प्रयोग की वजह से बहुत से ब्लोगर और एक दूसरे के करीब आये, ये इस प्रयोग की सबसे बड़ी उपलब्धि रही, और दस्तावेज तो तैयार हो ही गया आने वाले भविष्य के लिए।
हम चाहते हैं कि जहां इस प्रयोग की हजारवीं किश्त जल्द आप के ब्लोग पर दिखे , आप ऐसा ही कोई और प्रयोग भी शुरु करें, अब कुछ और हट के…॥
एक बार फ़िर ढेर सारी बधाई

Pramendra Pratap Singh said...

बकलमखुद को ज्‍यादा समय तो न दे सका, किन्‍तु जब भी आया चाव के साथ आपके लेखन और ब्‍लागरों को जानने का मौका मिला।

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

बकलमखुद ने काफ़ी चेहरो को और करीब से मिलवाया..रन्जना जी के बारे मे मैने यही से जाना और बस फ़ैन हो गया...

मै बकलमखुद को अलग करने वालो को समर्थन दूगा क्यूकि इसका टार्गेट ही अलग है और अलग आडियन्स भी... :)

वैसे मै कौन होता हू बोलने वाला, कही भी रहेगा.. हम तो पढ्ने आते रहेन्गे....

सागर नाहर said...

सबसे पहले तो बधाई स्वीकार करें।
आपने जब इस सम्बन्ध में मुझे मेल भेजी थी तब मेरी भी वही हालत थी जो देबाशीषजी की हुई, यानि कि अपने उपर खुद लिखना कोई आसान काम नहीं है, और फिर दूसरी बात यह कि जिन्दगी में आज तक ऐसा कुछ उल्लेखनीय किया ही नहीं कि जिसके बारे में लिख कर दूसरों को पढ़वाया जाये।

पारुल "पुखराज" said...

बधाई.. अजीत जी ..बकलमखुद पढना बहुत अच्छा लगता है

Abhishek Ojha said...

जारी रहे ! कई ब्लोगर तो अब परिवार का हिस्सा लगने लगे हैं. एक अलग ही दुनिया है... परियों की दुनिया की तरह.
और ये सैकडा एक-दुसरे को जानने का सबसे अच्छा तरीका साबित हुआ है.

दर्पण साह said...

haardik badhai,
shabdon ka silsila chalta rahe....

anvarat nirantar !!

वीनस केसरी said...

बहुत बहुत बधाई

पूरी पोस्ट बड़े मनोयोग से पढी और आपने जिस मनोयोग से लिखी है उसकी तारीफ करता हूँ

वीनस केसरी

अनूप शुक्ल said...

जब भी महफ़िल में नजारों की बात होती है,
आसमान में चांद-सितारों की बात होती है,
उस समय लब पर तुम्हारा ही नाम आता है,
जब भी गुलशन में बहारों की बात होती है।


आज सुबह जबसे शब्दों का सफ़र देखा तबसे यही शेर आ रहा था इसकी तारीफ़ में। संयोग से इस ब्लाग की पहली पोस्ट से मैं इससे पाठक की हैसियत से जुड़ा रहा। इसके आगे मेरे विचार आज की चिट्ठाचर्चा में देखे जायें।

कुश said...

हम तो पहले से ही इसके फैन रहे है.. बहुत ही जानदार कांसेप्ट है.. आप तो जी बधाइयो का पूरा टोकरा ही ले लीजिये..

अरुण जी के लिए दुआ है.. इन नवरात्रों में उनका प्रोजेक्ट सफल हो जाए..

अफ़लातून said...

बकलमखुद की बाबत अजित से काफ़ी तर्क - वितर्क भी किया था , आज यह बेहिचक कहना चाहूंगा कि उन सब ’संकोचों की विव्हलता खुद का अपमान थीं’ । हार्दिक शुभ कामना ।

निर्मला कपिला said...

ीतना ही कहूँगी कि अकलमखुद एक कालजया रचना होगी ब्लागजगत की हम धन्य है जो इस सफर के साक्षी बन गये हैं भगवान आपको लम्बी आयू दे और बलाग जगत का नाम अपके माध्यम् से इयिहास मे अपनीुपस्थिती दर्ज करवाता रहे शुभकामनायें

राजीव थेपरा said...

is shatak ke poora hone par pahli baar maine bakalamkhood kee poori post itmeenaan se padhi.....beshak shabdon ka safar main pajhle padhtaa rahaa hun.....khair ab lagtaa hai.....vaapas laut kar sab kuchh dekhnaa hi hogaaa....!!

अजित वडनेरकर said...

चौबीस घंटों से ब्रॉडबैंड पतली गली में समा गया था। पूरा संडे उसने वहीं मनाया और हम बकलमखुद की सौवीं कड़ी पर आई प्रतिक्रियाओं से वंचित रहे। आज ब्रॉडबैंड बरामद हुआ है....
आप सबका शुक्रिया....सफर के साथियों पर हमें नाज़ है। बकलमखुद के प्लेटफार्म को लेकर हमने सुझाव मांगा था, जिस पर अधिकांश ने कोई विचार नहीं रखा। जाहिर है, यह सवाल उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं है। अनूप जी ने कल चिट्ठाचर्चा में सफर की दिल खोलकर चर्चा की। उनका आभार। भाषा के मामले में कोई भी सौटंच खरा नहीं होता। वर्तनी की अशुद्धि प्रिंट तक में नज़र आती हैं, सो हमारा ब्लाग भी उससे नहीं बच सकता। अलबत्ता हम कई बार उसे अपडेट करते हैं, जैसे ही कोई गलती पकड़ में आती है। खुद के प्लेटफार्म पर प्रकाशित करने की सुविधा के चलते लापरवाही से पब्लिश कर देना सहज और सामान्य बात है।
बकलमखुद पर उनकी राय हमें मिल गई है कि जैसा चल रहा है, चलने दें।

एक बार फिर सबका धन्यवाद, आभार...

रंजू भाटिया said...

अजित जी आपने इस को शुरू कर के बहुत ही बढ़िया काम किया है ...इस में शामिल होना बहुत अच्छा लगा ..बहुत कुछ कहा गया और बहुत कुछ रह भी गया ..आपका बहुत बहुत शुक्रिया इस में शामिल करने का ..बहुत बेहतरीन तरीके से आपने इस कड़ी को प्रस्तुत किया ..शुभकामना और बधाई

Alpana Verma said...

Ajit ji,shubbhkamanyen aur bahut sari badhaayeeyan.

Meenu Khare said...

बधाई स्वीकारें.

Ashok Pande said...

बधाई अजित भाई!

मुनीश ( munish ) said...

प्रयोग बहुत होते हैं , सफल कम ही होते हैं और वो भी इस आभासी दुनिया में .......राम राम ! ये केवल आपका व्यक्तित्व है कि सभी से लिखवा रहा है वो भी लगातार ! मैं कोई झूठ बोल्याँ ? ओये मैं कोई कुफर तोल्याँ ?

लवली कुमारी said...

ब्लॉग के दो साल पुरे होने पर बहुत बधाई ....नेट से दूर थी अभी ही देख पाई हूँ ...मुझे गर्व है की हिंदी ब्लॉग जगत में शब्दों का सफ़र जैसा कोई ब्लॉग है.
आपकी मेहनत और प्रबंधन को मेरा प्रणाम.

दर्पण साह said...

Badhiya posts hoti hain aapke blog main...

padhta bahut baar hoon par comment shayad pehli baar de raha hoon...

...shatak ki badhai !!

PD said...

वो सब तो ठीक है, आपको बधाई भी दे ही देते हैं.. मगर मेरी बात आप भूलियेगा नहीं.. आपके बाकलखुद के बारे में.. :)

मीनाक्षी said...

शतक पर शत बार बधाई...बकलखुद से जुड़ना एकदम नया अनुभव था...अपने बारे में लिखना सबसे कठिन काम जिसे हम कुशलता से नहीं कर पाए....कामना करते हैं कि शब्दों का सफ़र यूँही चलता रहे और कई बकलमखुद पढ़ने को मिले...

VIMAL VERMA said...

अजित भाई, सबसे पहले बाकलमखुद के शतक पर आपको बधाई.... और इसके लिए उनको भी बधाई जिन्होंने अपनी कहानी कलमबंद की है, पर इसं सबके लिए आपका योगदान सराहानीय है, आपने मुझे भी बाकलमखुद का हिस्सा बनाया ये मेरे लिए बड़ी बात है,आपके आदेश पर मैंने ना जाने कैसे खुद को कलमबंद किया इसके लिए भी आपका आभार ........प्रमोद अपने अज़दकीय अंदाज़ में फुटानी मार रहे है उनसे और ऊपर जो भी आपने नाम दिए है उनके बारे में जानना दिलचस्प होगा ...बाकलमखुद और आपके लिए हमारी शुभकामनाएं .......

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