Saturday, September 26, 2009

मौसम आएंगे जाएंगे…

संबंधित पोस्ट-1.फ़सल के फ़ैसले का फ़ासला 2.ऋषि कहो, मुर्शिद कहो या कहो राशिद

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...ऋतुओं के हर रूप के लिए मौसम शब्द का प्रयोग होता है। मानसून अंग्रेजी का शब्द है जिसमें हिन्द महासागर में चलनेवाली व्यापारिक हवाओं का संकेत छिपा है।अरबी के मॉसिम शब्द से ऋतु का अभिप्राय व्यापारिक हवाओं के चक्र से ही था। यही मानसून का मूल भी है

मौ सम के लिए कोई आसान सा वैकल्पिक हिन्दी शब्द हमें तत्काल याद आता है? ज्यादातर लोग जवाब में ऋतु या रुत की ही बात करेंगे। मौसम शब्द हिन्दी में अरबी-फारसी के जरिये दाखिल हुआ है। संस्कृत मूल के ऋतु शब्द का यह एकदम सही अनुवाद है। ऋतुओं के हर रूप के लिए मौसम शब्द का प्रयोग होता है। सेमिटिक मूल के मौसम शब्द की छाप दुनिया भर की भाषाओं में पड़ी । हिन्दी में यह हाल है कि ऋतु शब्द का प्रयोग मौसम के साहित्यिक संदर्भों में ज्यादा होता है और बोलचाल में कम। इसकी बजाय ऋतु के देशज रूप रुत का प्रयोग अधिक होता है।
मौसम की कहानी बड़ी दिलचस्प है और ज्यादातर प्रवासी अरबी शब्दों की तरह इसका रिश्ता भी
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...मानसून का अर्थ बारिश का मौसम है जबकि मौसम का मतलब ऋतु है...
अरब के सौदागरों से जुड़ा है। मौसम शब्द में जहां सामान्य ऋतु या वेदर का बोध होता है वहीं इसी से जन्मे मानसून शब्द का अर्थ वर्षाकाल से है। मानसून अंग्रेजी का शब्द है जिसमें हिन्द महासागर में चलनेवाली व्यापारिक हवाओं का संकेत छिपा है। मानसूनी हवाएं जैसे शब्दों से यह स्पष्ट भी होता है। यूरोपीय व्यापारियों के आने से पहले से अरब सौदागरों की समूचे अरब सागर और हिन्द महासागरीय क्षेत्रों में धाक थी। वे न सिर्फ कारोबारी बुद्धि रखते थे बल्कि कुशल नाविक भी थे। प्राचीनकाल में समुद्री व्यापार पूरी तरह से हवाओं की गति पर निर्भर था। अरबों ने भारतीय उपमहाद्वीप में चलनेवाली हवाओं का बारीकी से अध्ययन किया था जिसके छह-छह महिनों के दो चक्र होते हैं। एक पश्चिम से पूर्व की और दूसरा पूर्व से पश्चिम की ओर। इन्ही हवाओं की गति से अरब सौदागरों का व्यापारिक साम्राज्य पूर्वी एशिया से खाड़ी तक चलता था। यहां से वे भारतीय माल को यूरोपीय देशों तक पहुंचाते थे।
हिन्दी में मानसून शब्द चाहे अंग्रेजी की देन हो मगर अंग्रेजी में यह पुर्तगाली भाषा से आया। ऐतिहासिक तथ्य है कि अंग्रेजों से भी पहले अरब सागर और हिन्द महासागर में पुर्तगाली और डच व्यापारियों ने कारोबार शुरू किया था। पंद्रहवीं सदी में उन्होंने पश्चिमी तटवर्ती अफ्रीका से चलकर दक्षिण अफ्रीका होते हुए भारत का रास्ता खोजा। पुर्तगालियों ने फिर खाड़ी (गल्फ) के इलाकों पर कब्जा करना शुरू कर दिया था। पुर्तगालियों के लिए बेहद ज़रूरी था कि ऐशियाई क्षेत्र के समूद्री व्यापार पर कब्जा करने के लिए वे अरबों से नौपरिवहन की बारीकियां सीखें। यहीं आकर वे अरबी के मॉसिम mawsim शब्द से परिचित हुए जिस पर अरबों की व्यापारिक समृद्धि निर्भर थी। पुर्तगाली में इसका रूप मोन्शाओ हुआ। डच ज़बान में यह हुआ monssoen । डचों के साथ मलेशिया में भी यह शब्द मिन्सिन बन कर पहुंचा। मॉसिम से बने मानसून शब्द के साथ सिर्फ वर्षाकाल का अर्थ जुड़ा रहा।

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अरबी के इस शब्द ने कई भाषाओं पर अपनी छाप छोड़ी है मसलन हिन्दी में मौसम, स्वीडिश में मौस्सोन, मलय में मुसिम, मिन्सिन, स्पेनिश में मोन्जोन, पुर्तगाली में मोनशाओ, इतालवी में मोनसोने आदि।
रबी के मॉसिम शब्द से ऋतु का अभिप्राय व्यापारिक हवाओं के चक्र से ही था। इसके अलावा इसमें पर्व, कृषिकाल के साथ वर्षाकाल का भाव भी शामिल था। मॉसिम शब्द बना है सेमिटिक शब्द वसामा wasama से जिसका अर्थ होता है प्रतीक, पहचान, ध्यान, निशान अथवा चिह्न आदि। ध्यान दें कि जहाजियों का सारा वक्त समंदर में मौसम को आंकने, भांपने, पहचानने में जाता है जिसका अनुमान उन्हें किन्हीं प्रतीकों और लक्षणों के जरिये होता है। समझा जा सकता है कि मौसम के साथ भविष्यवाणी शब्द का क्या महत्व है। इसी क़ड़ी का शब्द है वसूमा wasuma जिसमें खुशहाली, खूबसूरती जैसे भाव हैं। इन सभी शब्दों का मूल है प्राचीन सेमिटिक शब्दावली की धातु w-s-m जिसका मतलब होता है उचित, योग्य, सही समय आदि। कुल मिलाकर इन सभी शब्दों में शामिल भावों के मद्देनज़र अगर अरबी मॉसिम की विवेचना करे तो इसमें मनुष्य के लिए हर तरह से उचित और लाभप्रद वक्त का भाव है। दुनियाभर में वर्षाकाल अर्थात कृषिकाल ही सर्वोत्तम माना जाता है क्योंकि इसके बाद नई उपज घर आती है जिसकी खुशी में त्योहारों और पर्वों का जन्म हुआ। यह समय धर्मकर्म का भी था, जब आस्थावान लोग संतों की सोहबत में चौमासे का पड़ाव करते थे। वर्षाकाल के उपरांत तीर्थयात्राओं का क्रम शुरू होता था। उर्दू का वसीम शब्द भी इसी धातुमूल से उपजा है जिसका मतलब है अंकित, शोभित, सुंदर। जहाजियों के लिए इस शब्द के अपने मायने थे अर्थात वह समय जब वे हवाओं की लहरों पर सवार होकर आसानी से गंतव्य तक पहुंच सकें। जाहिर है हवाओं का यह क्रम साल में दो बार चलता है सो जहाजियों के लिए मॉसिम का अर्थ मानसून वाले वर्षाकाल से नहीं था बल्कि उन लक्षणों से था जिनसे अनुकूल हवाओं (मानसूनी हवाएं) की आमद की खबर मिलती थी। 
मौसम के अर्थ में अरबी का एक और शब्द है फ़स्ल जिसे हिन्दी में इस रूप में प्रयोग न कर उपज के अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है और इसकी वर्तनी भी बदल कर फसल हो जाती है। यह बना है सेमिटिक धातु फ-स-ल से। फस्ल का मूलार्थ है अंतर, दूरी या अंतराल। गौर करें ऋतुचक्र पर। एक मौसम के बाद दूसरा मौसम आता है। दो ऋतुओं के बीच स्पष्ट अंतराल होता है। एक के बाद एक बदलते वर्ष के काल खंडों को इसीलिए फस्ल कहा गया क्योंकि एक निश्चित अंतर उनमें है अर्थात काल, समय या वक्त का भाव भी फस्ल में है। इसी तरह धातु से बना शब्द है ऋतु। गौर करें कि देवनागरी के वर्ण में जाने, पाने, भ्रमण आदि का भाव है। ऋ से ही बना है ऋत् जिसके मायने हुए पावन pavan प्रथा या उचित प्रकार से। हिन्दी का रीति या रीत शब्द इससे ही निकला है। मौसम के प्रकारों को ऋतु कहा जाता है जो फारसी उर्दू में रुत हो जाता है। ऋतुएं कभी नहीं बदलती। एक निर्धारित पथ पर वे चलती हैं और निश्चित कालावधि में उनकी वापसी भी होती है। यही है मौसम जो आते हैं और जाते हैं।

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20 कमेंट्स:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"मौसम के लिए कोई आसान सा वैकल्पिक हिन्दी शब्द हमें तत्काल याद आता है? ज्यादातर लोग जवाब में ऋतु या रुत की ही बात करेंगे। मौसम शब्द हिन्दी में अरबी-फारसी के जरिये दाखिल हुआ है। संस्कृत मूल के ऋतु शब्द का यह एकदम सही अनुवाद है। ऋतुओं के हर रूप के लिए मौसम शब्द का प्रयोग होता है। सेमिटिक मूल के मौसम शब्द की छाप दुनिया भर की भाषाओं में पड़ी । हिन्दी में यह हाल है कि ऋतु शब्द का प्रयोग मौसम के साहित्यिक संदर्भों में ज्यादा होता है और बोलचाल में कम। इसकी बजाय ऋतु के देशज रूप रुत का प्रयोग अधिक होता है।"

"ऋतु" शब्द की सुन्दर विवेचना प्रस्तुत की है आपने।
बधाई!

दिनेशराय द्विवेदी said...

ऋतु का संबंध तो ऋत से होना चाहिए जिस का अर्थ स्थिर और निश्चित नियम, दैवीय/प्राकृतिक नियम है। मौसम भी प्राकृतिक नियम से आते हैं इस कारण से ऋतु कहाते हैं, नियम से जिस स्त्री को मासिक धर्म होता हो उसे ऋतुमती कहते हैं।
और मौसम और मानसून शब्द तो अब हिन्दी के ही हैं, आए भले ही कहीं से हों।

Himanshu Pandey said...

फस्ल का अर्थ मौसम होता है, अब समझा !

आलेख उत्तम है । आभार ।

Ashish Khandelwal said...

काफी ज्ञान बढ़ा आपके इस आलेख से.. किसी दिन फुरसत में इस ब्लॉग के सभी आलेख पढ़ने की इच्छा है..
हैपी ब्लॉगिंग

के सी said...

फ़स्ल-ए-गुल है, सजा है मयखाना...
आपका ये मयखाना हर मौसम में आबाद रहे !

Gyan Dutt Pandey said...

ऋत में तो दैवीय नियम का भाव है। पता नहीं पोर्चुगीज "मानसून" में वह डिविनिटी है या नहीं?

निर्मला कपिला said...

िस नयी जानकारी के लिये धन्यवाद्

Arvind Mishra said...

लगे हाथ रित को भी परिभाषित कर दिए होते !

अजित वडनेरकर said...

@दिनेशराय द्विवेदी/अरविंद मिश्र
सही कह रहे हैं। आलेख में हमने ऋत् का उल्लेख किया है। [ऋ से ही बना है ऋत् जिसके मायने हुए पावन pavan प्रथा या उचित प्रकार से।] चूंकि इस विषय पर अलग से एक पोस्ट लिखी जा चुकी है, सो यहां मौसम के संदर्भ में ऋतु का उल्लेख भर किया है।

अजित वडनेरकर said...

@हिमांशु
भाई, फ़स्ल पर अलग से एक पोस्ट लिखी है-फसल के फैसले का फासला। इसका लिंक सबसे ऊपर दिया है। विस्तार से जानने के लिए उसे ज़रूर पढें। शुक्रिया।

विधुल्लता said...

अजीत जी नमस्कार मौसम शब्द उच्चारण के साथ ही एक खूबसूरत भाव मन में आता है ....आपने अच्छी विवेचना की है आपकी द्रष्टि सम्पन्त्ता के कायल हें पोस्ट पर कमेंट्स नहीं कर पाती हूँ ,लेकिन पढ़ती जरूर हूँ एक जरूरी सबक की तरह विजय दशमी की शुभकामना

Naveen Tyagi said...

ajeet जी mousam aayenge jaayenge पर आपके lekhan को हम न भूल payenge.

kshama said...

इस रुत शब्द परसे ही तो 'रूशी' शब्द बना है...जिसने कुदरत के कानूनों को जाना समझा वह रूशी...एक शास्त्रग्य...कोई जोगी नहीं...बड़ा अच्छा लिखा है आपने..
एक और बात..
मै ' तुम्हें याद करते, करते..' इस गीत पे कमेन्ट करना चाह रही थी...नहीं कर पाई..आम्रपाली का एक और गीत," नील गगन की छाओं में.." येभी मेरा बेहद पसंद दीदा गीत है..इन गीतों को मई लगातार सुन सकती हूँ...क्या गज़ब ढाती हैं लताजी...'न भूतो न भविष्यती.."!

Arshia Ali said...

ये जानकारियों का मौसम किसे न पसंद आएगा?
दुर्गा पूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
( Treasurer-S. T. )

किरण राजपुरोहित नितिला said...

पोस्ट के साथ फोटो मन को ििभगोती है!!

Abhishek Ojha said...

'मौसम' के सफर के साथ चित्रों ने भी पोस्ट को खुबसूरत बनाया है. खासकर वो मेढक और चूहे वाली तस्वीर.

Ashok Kumar pandey said...

इस मौसम का क्या करें भाई…जो बदलता ही नहीं।

आप अद्भुत जानकारियां दे रहे हैं
इसे संकलित कर क्यूं न छपवा दीजिये
अपने जैसे पुराने कीडे अब भी कम्प्यूटर पर धीरज से पढ नहीं पाते।
हां एक पोस्ट हिंद स्वराज पर लगाई है अर्थात में…मौका लगे तो देखियेगा।
http://economyinmyview.blogspot.com/2009/09/blog-post_26.html

स्वाति said...

ye mausam to bahut suhana tha

Baljit Basi said...

चलती का नाम गाड़ी वाला मुहावरा शब्दों पर भी उतना ही लागू होता है जितना मनुष्य के व्यवहार पर. गलत या सही, जो शब्द चल पड़ा उसको दुनिया की कोई ताकत रोक नहीं सकती. दरअसल शब्दों की वर्तनी में गलत सही लेबल लगाना ही गलत है. फिर भी ऐसे शब्दों की व्युत्पति दिलचस्पी पैदा करती है और कई गलत फहमिओं को दूर कर सकती है.
अभी आप ने व्यापारिक हवाओं का उलेख किया है. पुरानी उर्दू आधारत पाठय-पुस्तकों में इनको 'तजारती हवाएं' कहा जाता था और यह पद अंग्रेजी ट्रेड विंडज(trade winds) का अनुवाद है. पढ़ाया जाता था कि यह हवाएं व्योपार को बढ़ावा देती थीं. तभी इनका नाम व्यापारिक हवाए पढ़ गया.
दरअसल इसकी व्युत्पति में व्यापार या कह लीजिये अंग्रेजी ट्रेड trade का कोई हाथ नहीं. यह पद डच शब्द ट्रेड trade से बना जिसका मतलब रास्ता, मार्ग आदि होता है. जब यह हवाएं चलती थीं तो जहाज को चलने के लिए सही और सुविधापूरन मार्ग मिल जाता था. स्पष्ट है कि ऐसा उपयोगी मार्ग आखिर में व्योपार को ही बढ़ावा देगा. लेकिन फिर भी पुराने मलाहों ने जब यह शब्द घढा तो इस में व्योपार का संकल्प नहीं था. ट्रेड विंड्स को खाली ट्रेडज trades भी बोला जाता था.पुर्तगाली मल्लाहों का एक मुहावरा भी ट्रेड(trade) के इस अर्थ को स्पश्ट करता है, "the wind blows trade," अर्थात हवा ठीक (रास्ते पर) चल रही है.

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