क पड़े की विभिन्न किस्मों में एक है छींट। गांवों-देहातों में आज भी छींट का रंगबिरंगा कपड़ा ग्रामीण महिलाओं को खूब लुभाता है। राजस्थानी के एक प्रसिद्ध लोकगीत की शुरुआत ही छींट की महिमा से होती है- काळी छींट को घाघरो, निजारा मारे रे, ए ढोला ढोल मंजीरा बाजे रे...। आमतौर पर मशीन या हथकरघे पर बुने गए कपड़े का नामकरण उसमें इस्तेमाल धागे की किस्म, बुनावट, ताने-बाने का प्रकार या उसकी डिजाइन के आधार पर होता है। एक विशिष्ट कपड़े का नाम छींट प्रचलित होने के पीछे इनमें से कोई भी वजह नहीं है। हिन्दी में छींटा शब्द का अर्थ है पानी की बूंद या जलकण। आमतौर पर किसी तरल पदार्थ से छिटकी बूंदों को छींटा कहा जाता है। रंगीन बूंदों से ही छींट का रिश्ता है। इस शब्द की व्याप्ति अंग्रेजी भाषा तक हुई है। भारत में बने रंगीन कॉटन को अंग्रेजी में चिंट्ज Chintz कहा जाता है। इसी नाम से यह कपड़ा यूरोप में जाना जाता रहा है। इसके पीछे यह छींट नाम ही है। यह सबूत है इस तथ्य का बीते तीन हजार वर्षों से भारतीय सूती कपड़े की धूम दुनियाभर में रही है।
छींट बना है संस्कृत के क्षिप्त से। क्षिप्त > छित्त > छींट- यह क्रम रहा है इसके रूपांतर का। संस्कृत क्षिप्त शब्द बना है क्षिप् धातु से जिसमें फेंकने, दूर करने, तिरस्कृत करने, धकेलने का भाव है। क्षेपण, प्रक्षेपण जैसे शब्द भी शब्द इसी मूल से आ रहे हैं जिनमें क्षिप् का निहितार्थ स्पष्ट हो रहा है। अंतरिक्ष में उपग्रहों को भेजने की क्रिया के संदर्भ में प्रक्षेपण शब्द बहुत आम है। प्रक्षेपण दरअसल फेंकने या धकेलने की क्रिया ही है। क्षिप्त+कृ के मेल का अपभ्रंश हुआ छितक्क, छिटक्क जिसका अगला रूप हुआ हिन्दी का छिटकना जिसमें दूर जाने, हटने का भाव है। फैलने, फैलाने की अर्थवत्ता वाले छितरना, छितराना जैसे शब्द भी इसी मूल से बने हैं। हालांकि एटिमॉनलाइन के मुताबिक छींट शब्द संस्कृत के चित्र से आ रहा है, मगर यह सही नहीं लगता क्योंकि चित्र से चित्त, चीता, चिट्ठा जैसे रूप बन सकते हैं मगर च का छ में बदलाव विरल बात है। क्षिप्त से बने छींट में जलकण का भाव समाया हुआ है। पानी या किसी तरल में होने वाली हलचल से छिटकनेवाली बूंदों की ही छींट कहते हैं। पानी को उछालने से जो बूंदे इधर उधर छितरा जाती हैं वे छींटा कहलाती हैं।
छींटा डालना, छींटे पड़ना या छींटे उड़ाना जैसे वाक्यों से यह जाहिर है। हल्की बारिश में गिरने वाली बूंदों को भी छींटे पड़ना कहा जाता है।
पुराने ज़माने में सूती कपड़े पर अलग-अलग रंगों के छींटे डालकर उन्हें आकर्षक बनाया जाता था। इसे ही छींट का कपड़ा कहा जाता गया। बाद में इसमें पारम्परिक रूपाकार जैसे वनस्पति, पशु-पक्षी और बेल-बूटे भी शामिल हो गए किंतु मूल रूप से अभिप्राय ऐसे कपड़े से ही था जिस पर रंगों की छटा बिखरी हो अर्थात रंगीन बेल-बूटेदार कपड़ा। आमतौर पर छींट के कपड़े पर फल-पत्तियों के छोटे डिजाइन बनाए जाते हैं। महिलाओं में ऐसे छींटदार कपड़ों के वस्त्र काफी लोकप्रिय रहे हैं, खासतौर पर लोकसंस्कृति में। अब छींट की छपाई लकड़ी के छापों से की जाती है। खास बात यह कि विदेशों में छींट अब कपड़े का नहीं बल्कि प्रिंट का पर्याय बन गया है। जितनी तरह का आर्ट वर्क हो सकता है, वहां छींट नज़र आएगा। यही रुझान इधर भी है। फैब्रिक से पॉटरी तक और अब इसका विस्तार सेरेमिक टाइल्स यानी इंटिरियर डेकोरेशन में भी दिखता है।
किसी स्वच्छ सतह पर पड़े दाग को भी छींटा कहा जाता है। इसी अर्थ में व्यंग्योक्ति के एक प्रकार को छींटाकशी कहते हैं जिसका अर्थ है ताना मारना, आक्षेप लगाना, वक्रोक्ति कहना आदि। छींटाकशी भी हिन्दी और फारसी पदों के मेल से नया शब्दयुग्म बनाने की मिसाल है। छींटा हिन्दी शब्द है और इसके साथ फारसी का कशी प्रत्यय जोड़ने से बना छींटाकशी जिसमें मुहावरे की अर्थवत्ता समा गई। फारसी का कशी प्रत्यय कश से आ रहा है जिसका मतलब है खींचना, तानना, फेंकना आदि। यह इंडो-ईरानी मूल का शब्द है। संस्कृत के कर्षः से इसकी रिश्तेदारी है जिसका अर्थ भी खींचना, कुरेदना, धकेलना आदि है। कर्ष से बना कर्षण यानी खींचना। आकर्षण शब्द इसी से बना है। गौर करें किसी के प्रति खिंचाव या झुकाव ही आकर्षण है। फारसी का कशिश और आकर्षण एक ही मूल यानी कर्ष् से बने हैं। सिगरेट के कश में भी इसकी छाया देखी जा सकती है क्योंकि उसे भी खींचा ही जाता है।
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छींट का कपड़ा........ यादें ताज़ा हो गई उसी कपडे की हमारी शर्ट और बहिन के फ्राक . क्या दिन थे
ReplyDeleteछींट, प्रक्षेपण, छितराना और छींटाकशी
ReplyDeleteभाऊ की ये शब्द चर्चा सबके मन बसी।
ये बताइए 'छापा' और 'छींट' में क्या फर्क है?
गौर करें तो बारिश की छींटें तथा धूल भरे मैदान पर पानी के छींटे , बोध कराते हैं, किसी सर्फेस (सतह) पर पानी की बूंदों के 'प्रक्षेपण' का ! इस प्रक्रिया में 'रंग' नहीं हैं पर उद्देश्य 'सृजन' है ! यानि कि सतह से विलग धूल कणों को सतह ( के फलक ) से एकाकार करना ! यह अलग तरह का सौन्दर्य बोध है ,रंगहीन किन्तु स्वास्थ्यप्रद ! आशय यह कि छींटें केवल प्रक्षेपण ही नहीं बल्कि किसी कैनवास पर सकारात्मक सृजन भी है ! तो मेरे लिए छींट = प्रक्षेपण + कैनवास +सकारात्मक सृजन , हुआ !
ReplyDeleteपानी के साथ गोबर या रंग और सतह के साथ एकाधिक विकल्प कब जुड़े , ये तो पता नहीं पर मूल धारणा वही रही - सतह पर बूंदों का सृजनात्मक प्रक्षेपण !
थोडा सा और फिलोसोफिकल हुआ जाये तो पाइएगा कि सतह में इस प्रक्षेपण को आत्मसात ( सोखने /स्वीकार ) करने तथा उसे अभिव्यक्त (परावर्तित)करने का गुण द्वैध भी मौजूद है इसलिए 'कशी'का एक ही समय में खींचना और धकेलना समझ में आता है !
आपकी यह पोस्ट बेहद विचारोत्तेजक है ! आभार !
छींट तो ठीक है। इधर हाड़ौती जो राजस्थानी का ही एक रूप है में बहुत प्रचलित है।
ReplyDeleteपर एक शब्द औऱ है जो इधर प्रचलित है वह है 'छीट' या 'छीठ', जिस का अर्थ होता है कंजूस।
इधर गुड़ दो तरह का होता है। एक दानेदार जो थोड़ा दबाव देने पर ही बिखर जाता है। दूसरा जो बिखरने के बजाय चपटा हो जाएगा और आसानी से टुकडे नहीं होता उस में चिपचिपा पन होता है। एक टुक़ड़ा दूसरे से नहीं छूटता वैसे ही जैसे कंजूस से दमड़ी नहीं छूटती, उसे छीठा गुड़ बोलते हैं।
बेहतरीन आलेख । जानकारी भरी शब्द-चर्चा ।
ReplyDeleteवाह ,छींटा-छींट.
ReplyDeleteछींटाकशी भी एक हुनर बन गयी है आज,
ReplyDelete'बौछारे'* बढ़ गयी है;लहर बन गयी है आज,
'बासी'* भी लैस बैठे है तीर-ओ-कमान से,
मुश्किल ये कैसी ''लफ्जे सफ़र'' बन गयी है आज.
*रवि रतलामी और बलजीत बसीजी से मअजरत के साथ [उनके नाम भी वड्डे काम डे निकले]
शब्दों के सफ़र के छींटे राजस्थान में भी पड़े..वाह! आपका यह सफ़र ऐसे ही चलता रहे और आप नयी खोज में जुटे रहें, इसके लिए शुभकामनाएं...
ReplyDelete@अली
ReplyDeleteबहुत दार्शनिक और सूफ़ियाना अंदाज़ में आपने विवेचना प्रस्तुत की है। मज़ा आ गया। शब्द को इसीलिए ब्रह्म कहा जाता है क्योंकि उसकी अर्थवत्ता अनंत है।
आभार
@दिनेशराय द्विवेदी
ReplyDeleteदानेदार गुड़ की रिश्तेदारी तो छींट से हो सकती थी। चिपचिपे, चपटे, लसलसे पदार्थ का गुण ही छीठा शब्द में उजागर हो रहा है। मराठी में इसे चिक्कट या चिकट्ट कहते हैं। हिन्दी में इसे चीठा-चिपचिपा भी कहते हैं। छींट से इसका साम्य तो है पर रिश्ता नहीं बनता।
शब्द चर्चा के लिए आभार
@मन्सूर अली हाशमी
ReplyDeleteलाजवाब हैं आप। तीर-तरकश तो आप लिए बैठे हैं और निशाने पर है सारा जहां...
@ईशमधु तलवार
ReplyDeleteआपकी जै हो। सुरंगे राजस्थान का मुझ पर स्थायी असर है। यूं भी राजस्थानवासी होने के पहले से मैंने मालवा के उस हिस्से में दो दशक गुजारे हैं जहां की संस्कृति में राजस्थान की गंध बसी थी-टहल आने जितनी दूरी पर ही रहा राजस्थान मेरे लिए हमेशा। अब यह दूरी कुछ बढ़ गई है, मगर दिल में बसा है रंगीला राजस्थान...शब्दों का सफर में अक्सर राजस्थान का फेरा लगता है।
बहुत सुंदर जानकारी, भाई जब गांव मेरहते थे तब इसी छींट के घाघरे वगैरह बनते थे. पर अब तो शायद नाम ही रह गया है. बहुत बेहत्रीन जानकारी मिली.
ReplyDeleteरामराम.
बढिया लगा पढकर।
ReplyDeleteइस छींट का अब आधुनिकीकरण हो गया है।
ReplyDeleteछींट अब छींट नही प्रिण्ट कहलाने लगी है।
कभी हमारे चर्चा मंच पर भी आना जी!
पंजाबी में 'छींट' वाले कपड़े को 'छीट' बोला जाता है हालां कि पानी के छींट को 'छिट्टा' बोला जाता है.
ReplyDeleteइसके संस्कृत के चित्र से व्युत्पति की शुरूआत शायद हाब्सन-जा बसन ने की. बहुत सारे अंग्रेजी कोष जिन में रैंडम हॉउस की 2010 एडिशन, अमेरिकन हेरिटेज डिक्शनरी की २००९ एडिशन शामिल हैं, अभी तक ऐसा ही बता रहे हैं. लेकिन ओक्स्फोर्ड और वेबस्टर के नए एडिशन इसको अजित जी जैसे ही बता रहे हैं. वेबस्टर की तो पुरानी एडिशन में भी इसे चित्र से निकला बताया है. क्योंकि अंग्रजी में 'छ' के बजाये 'च' बोला जाता है इस लिए उनको चित्र से जोड़ना सही लगता होगा. पर हम भारतियों को इसके छींटे से रिश्ते की शक शायद कम ही है. अभी भी आप गाँव के किसी पुराने आदमी से पूछ लो, वह सीधा पानी के छीटे पर आयेगा.
अंग्रेजी का तो एक पुराना कोष अंग्रेजी शीट(sheet) की व्युत्पति भी chintz से निकली बता रहा है.पर अजित जी ने बड़े तर्क के साथ इसकी व्याख्या की.
अंग्रेजी ने इसको पहले chint से chints बनाया फिर chintz, लेकिन इसको एकवचन ही माना जाता है. इसका उचारण 'चींट' नहीं बल्कि 'चिन्ट्स' है और यहाँ 'च' को श्वास्त (aspirate) करके बोलने से इसकी ध्वनी थोड़ी हमारे 'छ' जैसी हो जाती है.
अंग्रेजी में chintz से chintzy विशेषन भी बन गया है जिसका मतलब भडकीला है, और आगे लाक्षणिक अर्थ कंजूस भी हो गया, यह अंग्रेजी शब्द चिंची chinchy के प्रभाव से हुआ.
कभी हम भी छींट का सूट बडे शौक से पहनते थे अब तो बाज़ार से ही गायब है। अच्छी लगी ये पोस्ट । अभी पिछली पोस्ट्स भी देखनी है आपकी कोई पोस्ट छोड दूँ तो लगता है कई शब्द सीखने से रह गये । मगर कई बार व्यस्तता के चलते रोज़ नहीं आ पाती मगर जब आती हूँ तो पिछली पोस्ट्स जरूर देख लेती हूँ।धन्यवाद
ReplyDeleteबेहतर...
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