Monday, March 8, 2010

औरत लफ़्ज में क्या ख़राबी है?

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

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दु नियाभर female copyमें नारीवादी सोच के लोग औरत aurat शब्द को लेकर ख़फ़ा रहते हैं। उनकी निगाह में महिलाओं के लिए यह बेढंगा और बेइज्जती भरा लफ्ज़ है। आज भी हिन्दी भाषी क्षेत्र की कोई महिला खुद के लिए औरत  शब्द सुन कर कब तमक जाए, कहा नहीं जा सकता। यह भी धारणा है कि औरत सिर्फ शादीशुदा स्त्री को कहा जाता है या पुरुष से जिस्मानी संबंध बना चुकी महिला के लिए ही यह शब्द इस्तेमाल किया जाता है।  अलबत्ता यह सिर्फ सोच के स्तर पर है वर्ना यह शब्द भाषा और समाज से बहिष्कृत नहीं है और पढी-लिखी जमातों में इसका इस्तेमाल खूब होता है। औरत शब्द हिन्दी में बरास्ता फारसी, अरबी से आया। अरबी में इसका रूप है औराह। यह एक क्रिया है जिसका मतलब होता है शरीर के अंगों को ढकना, छुपाना। शरीर के गुप्तांग भी इसके दायरे में आते हैं। यह बना है अरबी धातु औराह या आईन-वाव-रा (ayn-waw-ra) से जिसका मतलब है कानापन या एक आंख से देखना। कुछ लोग इस धातु का अभिप्राय कमजोर, निर्बल, अधूरापन आदि से भी लगाते हैं। औरत शब्द में कुछ खराबी ढूंढना आज के दौर में ठीक नहीं है।  अगर ऐसा होता तो महिलाओं के लिए काम करनेवाले पाकिस्तान के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान का नाम औरत फाउंडेशन न होता। मद्दाह साहब के कोश में इसे अरबी मूल का मानते हुए इसके स्त्री, जोरू, जाया, भार्या, पत्नी, नारी, महिला जैसे अर्थ ही बताए गए हैं।
female_symbolस्लामी नज़रिये से औराह का मतलब सिर्फ सिर्फ स्त्री stree से नहीं है बल्कि इसमें पुरुष भी शामिल हैं। शरीर के गुप्त अंगों को छुपाने की क्रिया ही औराह awrah कहलाती है । अलबत्ता स्त्री और पुरुषों के लिए अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं। मसलन मर्द के लिए नाभि से घुटनों तक बदन को ढक कर रखना ज़रूरी है जबकि महिलाओं को चेहरे को छोड़ कर सिर से पैर तक शरीर को ढके रहना ज़रूरी है । इस्लामी व्यवस्थाओं में इस सिलसिले में हिजाब, निक़ाब और बुर्का जैसी womenविभिन्न व्यवस्थाएं दी हुई हैं। मगर औराह के मूल में शरीर को ढकने की ही बात है। स्त्रियों के लिए चूंकि अरबी समाज में सिर से पैर तक  (आपादमस्तक- नख से शिख तक, सरापा) जिस्म को ढकने की बात कही गई और यह सामाजिक रीति भी बन गई तथा औरत शब्द बना अर्थात जो सिर से पैर तक ढकी रहे। यही शब्द जब फारसी और उर्दू में आया तो सामान्य महिला के लिए प्रचलित हो गया क्योंकि भारत में औराह जैसी प्रथा तो नहीं थी अलबत्ता पर्दा प्रथा में इसका एक अलग रूप ज़रूर नज़र आता था।
female_symbolरत को खराब माननेवालों का एक तर्क यह भी है कि अरबी समाज में औरत शब्द की बजाय खानुम khanum, बेग़म begum, खानम, निसां या ज़न-ज़ना का इस्तेमाल ज्यादा होता है। गौरतलब है कि इनमें से अधिकांश शब्द अरबी मूल के नहीं है। बेगम शब्द का रिश्ते प्रभावशाली महिला या रसूखदार की स्त्री से जुड़ता है। संस्कृत की भज् धातु से बना है संस्कृत का भगः शब्द जिससे बना है ईश्वर, सबको सबका हिस्सा देने वाला, प्रकारांतर से सबका भाग्यविधाता आदि के अर्थों वाला शब्द भगवान। पुरानी फारसी, ईरानी और अवेस्ता में यह भग लफ्ज़ बग या बेग [BAG] के रूप में मौजूद है। अर्थ वही है-सर्वशक्तिमान। बग या बेग बाद में रसूखदार लोगों की उपाधि भी हो गई। इसी मूल से निकले बेगम शब्द की अर्थवत्ता में शालीन, समृद्ध, प्रभावशाली स्त्री की अर्थवत्ता समा गई। मध्यएशिया के शक्तिशाली कबीलों की जातीय पहचान यह बेग़ शब्द बना। इसका एक रूप उज़बेक में नज़र आता है। उज़बेकिस्तान इसी जाति की प्रधानता की वजह से एक देश का नाम है। यही लोग भारत में उज़बक कहलाए जिसमें गंवार या असभ्य का भाव है। कुछ विद्वान इस BAG में उद्यान के अर्थ वाला बाग़ भी देखते हैं जिसकी व्याख्या समृद्ध भूमि, ऐश्वर्य भूमि के रूप में है। बगीचा इसका ही रूप है। बगराम, बगदाद, बागेवान जैसे शहरों के नामों के पीछे यही अर्थ छुपा है।
female_symbolरबी-फारसी में महिला के लिए एक अन्य शब्द है  ज़न जिसकी रिश्तेदारी इंडो-ईरानी भाषा परिवार के जन शब्द से है जिसमें जन्म  देने का भाव है। ज़नानी या ज़नान जैसे रूप भी प्रचलित हैं। संस्कृत में उत्पन्न करने, उत्पादन करने के अर्थ में जन् धातु है। इससे बना है जनिः, जनिका, जनी जैसे शब्द जिनका मतलब होता है स्त्री, माता, पत्नी। जिससे हिन्दी-उर्दू के जन्म, जननि, जान, जन्तु जैसे अनेक शब्द बने हैं। भाषा विज्ञानियों ने ज़न, ज़नान, जननि जैसे शब्दों को प्रोटो इंडो-यूरोपीय मूल का माना है और एक धातु खोजी है- gwen जिसका मतलब है स्त्री, माता, पत्नी। अंग्रेजी का क्वीन, हिन्दी का रानी या राज्ञी जैसे शब्द भी इसी मूल से उपजे हैं। इसी तरह चीनी मंगोल भाषा के खान शब्द की आमद जब फारसी अरबी में हुई तो वहां भी प्रभावशाली लोगों को खान khan कहने की परिपाटी चल निकली। मंगोल दायरे से बाहर निकलने के बाद खाकान शब्द का स्त्रीवाची खातून बना जिसका अर्थ साम्राज्ञी था। बाद में फारसी में किसी भी सम्भ्रान्त स्त्री के लिए खातून, खानम या खानुम शब्द का प्रयोग होने लगा।
female_symbolफिर लौटते हैं औरत शब्द पर। नारीवादी सोच के लोगों की निगाह में यह शब्द खराब इसलिए है क्योंकि इसके मूल अर्थ में औरत को कमज़ोर, अपूर्ण मानने जैसी बातें भी निहित हैं। इस्लाम में स्त्री के शरीर को ढके रहने की बात के मूल में तत्कालीन परिस्थितियां थीं। औराह का एक अर्थ है समूचे BurqaSnapshotजिस्म को ढकना। इसमें यह व्यवस्था है कि स्त्री एक आंख से देख सकती है। इसका अर्थ एकाक्षी या कानेपन से जोड़ा जाता है, जो ठीक नहीं है। वैसे शब्दकोशों में औराह का अर्थ कानापन नहीं बल्कि इसके लिए औरा एक अलग शब्द है जिसमें एक आंख से देखने का भाव है। यूं भी यह तार्किक नहीं लगता कि किसी समाज में महिला के तमाम स्वभावगत पहलुओं पर पक्षपातपूर्ण ढंग से राय बनाने के बावजूद, पुरुष से कमतर आंकने के लिए उसे एक आंख का साबित करने जैसा कोई शब्द या टर्म विकसित की गई हो। इस्लामी संदर्भों में भी ऐसी व्याख्या नहीं मिलती।
female_symbolरत शब्द में कहीं भी ओछापन, सस्तापन या पुरुषवादी अहंकार वाली बात कम से कम उर्दू-हिन्दी की सरज़मीं इस हिन्दुस्तान में तो नज़र नहीं आती। यह शब्द भी उतनी ही मर्यादा अथवा शालीनता रखता है जितनी कि महिला या स्त्री शब्द में निहित है। स्त्री, महिला, नारी, औरत जैसे शब्दों में सिर्फ परिपक्वता, वयस्कता ही नज़र आती है। इससे पहले की अवस्था को लड़की, कन्या वगैरह कहा जा सकता है। विवाह या शारीरिक सम्पर्क के आधार पर स्त्री, नारी, औरत जैसे शब्दों के अर्थ नहीं निकाले जाने चाहिए। औरत शब्द का इस्तेमाल यह सोचकर नहीं किया जाता कि उसे मर्द की तुलना में कमतर साबित करना है।

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16 comments:

  1. बहुत सुंदर और सामयिक पोस्ट!औरत सम्माननीय शब्द ही है।

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  2. ये शब्दों का सफ़र नहीं, सागर है,,,रोज़ गोता लगाओ नए मोती हाथ लगते हैं...

    जय हिंद...

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  3. बेहतरीन पोस्ट और आनन्ददायी वो तस्वीर लेते तस्वीर..हा हा!

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  4. बहुत अच्छी जानकारी है तीन दिन से छुट्टी पर थी । पिछली पोस्ट्स पढूँगी खाली समय मे। धन्यवाद।

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  5. बेहतरीन आलेख... कुछ अन्य जानकारी भी बाहर आ गयी

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  6. यदि शब्द समूचे जिस्म को ढकने से ही बना है तो शब्द चाहे जमकर उपयोग किया जा रहा है किन्तु है तो आपत्तिपूर्ण ही! कमसे कम जैसे यह शब्द बना वह तो आपत्तिपूर्ण है ही। आपने शब्द का सार साथ लगी फोटो में दे दिया है। हर औरत कितनी स्पष्ट अलग व्यक्तित्व वाली दिख रही है। शब्द व शब्द रचयिता व फोटोग्राफर को नमन !
    घुघूती बासूती

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  7. सही समय पर सार्थक और सुन्दर विश्लेषण !
    बेहतरीन पोस्ट ! आभार ।

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  8. बिलकुल सही कहा।
    वैसे भी खराबी लफ्ज़ में नहीं सोच में होती है।

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  9. बिलकुल सही कहा।
    वैसे भी खराबी लफ्ज़ में नहीं सोच में होती है।

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  10. अजित भाई

    इस मामले में अपना हाथ थोडा तंग है :)

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  11. सशक्त अभिव्यक्ति!

    नारी-दिवस पर मातृ-शक्ति को नमन!

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  12. “औरत शब्द में कहीं भी ओछापन, सस्तापन या पुरुषवादी अहंकार वाली बात कम से कम उर्दू-हिन्दी की सरज़मीं इस हिन्दुस्तान में तो नज़र नहीं आती।”

    मुझे तो इस शब्द को लेकर कभी भी ऐसा सन्देह नहीं हुआ। अनेक विशिष्ट गुणों से युक्त मनुष्य योनि की आधी दुनिया के बारे में ऐसे खयाल भला किसने बना डाले।

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  13. औरत तो हमेशा मर्द के लिए रहश्यमय रही है. मुझे उसके इस भेद का नहीं पता था. आपने बहुत अच्छी जानकारी प्रदान करके इस राज को खोला, धन्यवाद.
    कोई भी शब्द अपने आप में तो कोई पक्षपात नहीं करता, यह तो मनुष्य का व्यवहार और शब्द वर्तनी ही है जो उस शब्द को विभिन धरातलों पर ले जाती है. शब्द के अलग अलग रजिस्टर बन जाते हैं. हम जानते ही हैं हमारी 'कन्या' और फारसी की 'कनीज' की अधोगति हो कर क्या बन गया है. इधर तो मुझे अंग्रेजी 'गरल'(girl) का भी यह हाल होता जा रहा लगता है. और फिर हमारी 'रंडी' का हाल देख लो. भगत कबीर जी कह गए हैं:

    सुंनति कीए तुरकु जे होइगा अउरत का किआ करीऐ
    अरध सरीरी नारि न छोडै ता ते हिंदू ही रहीऐ

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  14. सम्मान शब्दों की उत्पत्ति में नहीं, मन की भावनाओं में छिपा होता है । प्रचलन में आने के बाद शब्दों का अर्थ परिमार्जित होता जाता है ।

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  15. खराबी तो बस सोच में रहती है

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  16. इस्लामी नज़रिए से औरत शब्द को भारत में जस्टिफाई करने के अलावा कुछ नहीं पढ़ पाया में इस लेख में ।

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