अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
दु नियाभर
में नारीवादी सोच के लोग औरत aurat शब्द को लेकर ख़फ़ा रहते हैं। उनकी निगाह में महिलाओं के लिए यह बेढंगा और बेइज्जती भरा लफ्ज़ है। आज भी हिन्दी भाषी क्षेत्र की कोई महिला खुद के लिए औरत शब्द सुन कर कब तमक जाए, कहा नहीं जा सकता। यह भी धारणा है कि औरत सिर्फ शादीशुदा स्त्री को कहा जाता है या पुरुष से जिस्मानी संबंध बना चुकी महिला के लिए ही यह शब्द इस्तेमाल किया जाता है। अलबत्ता यह सिर्फ सोच के स्तर पर है वर्ना यह शब्द भाषा और समाज से बहिष्कृत नहीं है और पढी-लिखी जमातों में इसका इस्तेमाल खूब होता है। औरत शब्द हिन्दी में बरास्ता फारसी, अरबी से आया। अरबी में इसका रूप है औराह। यह एक क्रिया है जिसका मतलब होता है शरीर के अंगों को ढकना, छुपाना। शरीर के गुप्तांग भी इसके दायरे में आते हैं। यह बना है अरबी धातु औराह या आईन-वाव-रा (ayn-waw-ra) से जिसका मतलब है कानापन या एक आंख से देखना। कुछ लोग इस धातु का अभिप्राय कमजोर, निर्बल, अधूरापन आदि से भी लगाते हैं। औरत शब्द में कुछ खराबी ढूंढना आज के दौर में ठीक नहीं है। अगर ऐसा होता तो महिलाओं के लिए काम करनेवाले पाकिस्तान के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान का नाम औरत फाउंडेशन न होता। मद्दाह साहब के कोश में इसे अरबी मूल का मानते हुए इसके स्त्री, जोरू, जाया, भार्या, पत्नी, नारी, महिला जैसे अर्थ ही बताए गए हैं।
संबंधित कड़ियां-1.मौसेरी बहनें हैं क्वीन, ज़नानी, महारानी 2.घर की रानी से नौकरानी तक…3.पुरुष की घबराहट का प्रतीक है महिला…4.क्या है माँ का ऐश्वर्य ?5.सकल जग माँ ही...6.अम्मा में समाई दुनिया...
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
बहुत सुंदर और सामयिक पोस्ट!औरत सम्माननीय शब्द ही है।
ReplyDeleteये शब्दों का सफ़र नहीं, सागर है,,,रोज़ गोता लगाओ नए मोती हाथ लगते हैं...
ReplyDeleteजय हिंद...
बेहतरीन पोस्ट और आनन्ददायी वो तस्वीर लेते तस्वीर..हा हा!
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी है तीन दिन से छुट्टी पर थी । पिछली पोस्ट्स पढूँगी खाली समय मे। धन्यवाद।
ReplyDeleteबेहतरीन आलेख... कुछ अन्य जानकारी भी बाहर आ गयी
ReplyDeleteयदि शब्द समूचे जिस्म को ढकने से ही बना है तो शब्द चाहे जमकर उपयोग किया जा रहा है किन्तु है तो आपत्तिपूर्ण ही! कमसे कम जैसे यह शब्द बना वह तो आपत्तिपूर्ण है ही। आपने शब्द का सार साथ लगी फोटो में दे दिया है। हर औरत कितनी स्पष्ट अलग व्यक्तित्व वाली दिख रही है। शब्द व शब्द रचयिता व फोटोग्राफर को नमन !
ReplyDeleteघुघूती बासूती
सही समय पर सार्थक और सुन्दर विश्लेषण !
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट ! आभार ।
बिलकुल सही कहा।
ReplyDeleteवैसे भी खराबी लफ्ज़ में नहीं सोच में होती है।
बिलकुल सही कहा।
ReplyDeleteवैसे भी खराबी लफ्ज़ में नहीं सोच में होती है।
अजित भाई
ReplyDeleteइस मामले में अपना हाथ थोडा तंग है :)
सशक्त अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteनारी-दिवस पर मातृ-शक्ति को नमन!
“औरत शब्द में कहीं भी ओछापन, सस्तापन या पुरुषवादी अहंकार वाली बात कम से कम उर्दू-हिन्दी की सरज़मीं इस हिन्दुस्तान में तो नज़र नहीं आती।”
ReplyDeleteमुझे तो इस शब्द को लेकर कभी भी ऐसा सन्देह नहीं हुआ। अनेक विशिष्ट गुणों से युक्त मनुष्य योनि की आधी दुनिया के बारे में ऐसे खयाल भला किसने बना डाले।
औरत तो हमेशा मर्द के लिए रहश्यमय रही है. मुझे उसके इस भेद का नहीं पता था. आपने बहुत अच्छी जानकारी प्रदान करके इस राज को खोला, धन्यवाद.
ReplyDeleteकोई भी शब्द अपने आप में तो कोई पक्षपात नहीं करता, यह तो मनुष्य का व्यवहार और शब्द वर्तनी ही है जो उस शब्द को विभिन धरातलों पर ले जाती है. शब्द के अलग अलग रजिस्टर बन जाते हैं. हम जानते ही हैं हमारी 'कन्या' और फारसी की 'कनीज' की अधोगति हो कर क्या बन गया है. इधर तो मुझे अंग्रेजी 'गरल'(girl) का भी यह हाल होता जा रहा लगता है. और फिर हमारी 'रंडी' का हाल देख लो. भगत कबीर जी कह गए हैं:
सुंनति कीए तुरकु जे होइगा अउरत का किआ करीऐ
अरध सरीरी नारि न छोडै ता ते हिंदू ही रहीऐ
सम्मान शब्दों की उत्पत्ति में नहीं, मन की भावनाओं में छिपा होता है । प्रचलन में आने के बाद शब्दों का अर्थ परिमार्जित होता जाता है ।
ReplyDeleteखराबी तो बस सोच में रहती है
ReplyDeleteइस्लामी नज़रिए से औरत शब्द को भारत में जस्टिफाई करने के अलावा कुछ नहीं पढ़ पाया में इस लेख में ।
ReplyDelete