प्र कृति में निहित उर्वरा शक्ति सिर्फ और सिर्फ स्त्री को प्राप्त हुई है। शक्ति के दो महत्वपूर्ण स्वरूप हैं संहार और सृजन। पुरुष चाहे बाहुबल को परमतत्व मानते हुए हजारों वर्षों से मिथ्यागर्व में लीन रहा हो मगर प्रकृति ने उसे परमशक्ति नही दी है। शक्ति के रूप में पुरुष भी स्त्री को ही पूजने को विवश है। वजह सिर्फ एक ही है कि शक्ति के दोनों रूपों को पुरुष नहीं साध सकता। शक्ति का प्रयोग पुरुष सिर्फ संहार या विनाश के लिए कर सकता है। संहार के साथ सृजन को को साधना शायद पुरुष के स्वभाव में नहीं है। इसी लिए स्त्री ही शक्तिवाहिनी बनी। यही वजह है कि निर्माण-सृजन-पालन से जुड़ी शब्दावली में स्त्रीवाची शब्द ज्यादा मिलेंगे। प्रकृति, पृथ्वी, धरणि, धारिणी, मां, अम्म, वसुधा, सृष्टि यहां तक कि स्वयं शक्ति शब्द की व्यंजना भी स्त्रीवाची ही है।
महिला के लिए उर्दू-हिन्दी में एक शब्द चलता है
ज़नाना zanana जिसका अर्थ होता है महिलाओं जैसा अर्थात स्त्रैण यहां आशय औरताना सिफ़त वाले मर्द से है। इसमें हिजड़ा भी शामिल है। इसका शुद्ध फारसी farssi रूप है जनानः। मगर हिन्दी में जनाना का प्रयोग महिलाओं का या महिलाओं संबंधी के अर्थ में भी होता है जैसे ज़नाना लिबास या लेडीज कूपे के लिए ज़नाना डिब्बा। इसका
ज़नानी रूप भी हिन्दी में प्रचलित है और महिला यात्री को
ज़नानी सवारी ही कहा जाता है। मूलतः यह फारसी का शब्द है और अवेस्ता के
जनिश से रूपांतरित हुआ है जिसका मतलब है पत्नी।
...संस्कृत में जहां जन धातु में निहित उत्पन्न करने, जन्म देने जैसे भाव उद्घाटित हुए वहीं पाश्चात्य भाषाओं में इससे सिर्फ स्त्री,पत्नी जैसे सीमित अर्थ प्रकट हुए...
अरबी-फारसी में इसका रूप है
ज़न जिसकी रिश्तेदारी इंडो-ईरानी भाषा परिवार के
जन शब्द से है जिसमें जन्म देने का भाव है। संस्कृत में उत्पन्न करने, उत्पादन करने के अर्थ में जन् धातु है। इससे बना है
जनिः, जनिका, जनी जैसे शब्द जिनका मतलब होता है स्त्री, माता, पत्नी। जिससे हिन्दी-उर्दू के
जन्म, जननि, जान, जन्तु जैसे अनेक शब्द बने हैं। भाषा विज्ञानियों ने ज़न, ज़नान, जननि जैसे शब्दों को प्रोटो इंडो-यूरोपीय मूल का माना है और एक धातु खोजी है- gwen जिसका मतलब है स्त्री, माता, पत्नी। इन तीनों शब्दों का व्यापक अर्थ उत्पन्न करने, प्रजनन करने के दैवी गुण से जुड़ा हुआ है। इस धातु से भारतीय, ईरानी समेत अनेक यूरोपीय भाषाओं में कई स्त्रीवाची शब्द बने हैं।
प्राचीन आर्यों के भाषा संस्कार में
ज्ञ जैसा व्यंजन आदिकाल से रहा है।
ज्ञ का तिलिस्म आर्य तो जानते थे मगर इस व्यंजन में छुपी
ज+ञ अथवा
ग+न+य जैसी ध्वनियां हजारों सालों से आर्यों के विभिन्न भाषा-भाषी समूहों को भी वैसे ही प्रभावित करती रही हैं जैसे आज भी करती हैं। हिन्दी भाषी
ज्ञ का उच्चारण
ग्य करते हैं तो गुजराती मराठी भाषी
ग्न्य या
द्न्य और आर्यसमाजी
ज्न। मूल रूप से प्रोटो इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की धातु gwen में कुछ
ज्ञ जैसी ही ध्वनियां रही होंगी इसी लिए इंडो-ईरानी भाषा परिवार में जहां इससे बने शब्दों में
ज-ज़ ध्वनियां प्रमुख रहीं वहीं यूरोपीय भाषाओं में
ग और इसकी निकटवर्ती ध्वनि
क प्रमुख हो गईं। अंग्रेजी के
क्वीन queen शब्द को देखिये जिसका मतलब होता है रानी, यह दरअसल गोथिक भाषा के
qino से निकला है जो प्रोटो जर्मनिक kwoeniz से बना है। प्रोटो इंडो-यूरोपीय gwen का ही परिवर्तित रूप है
kwoeniz. ग्रीक में इसका रूप है
गाइने gynē जिससे अंग्रेजी में
गाइनोकोलॉजी gynaecology (स्त्रीरोग संबंधी) जैसे शब्द बने हैं। गौर करें आर्यभाषियों के जो समूह पश्चिम की ओर गए, gwen धातु से बने स्त्रीवाची शब्दों ने वहां
क और
ग जैसी ध्वनियां ग्रहण की। इसी gwen का प्रसार जब पूर्व की ओर हुआ तो वहां
ज ध्वनियों वाले शब्दों का निर्माण हुआ जैसे
जन, ज़नान आदि। कुछ अपवाद भी हैं। कुर्दिश में इसका रूप
जिन है जबकि क्रोशिया में
ज़ेना। क्रोशिया
पुरुष चाहे शक्तिमान होने का अहंकार पाल ले मगर असली शक्ति तो प्रकृति ने नारी को ही दी है...
यूरोपीय देश है मगर इस्लाम का प्रभाव होने के चलते वहां जे़ना शब्द को फारसी अरबी प्रभाव माना जा सकता है।
गौर करें की संस्कृत शब्द राज्ञी से ही रानी बना है। यहां ज्ञ की ही महिमा रही और ज+ञ में से ज का लोप हो गया और ञ की अनुनासिकता शुद्ध न में तब्दील हो गई और इस तरह हुए रानी शब्द बना। इसी का पूर्व रूप था जनि जिससे जननि जैसा शब्द बना और स्त्री की प्रजनन, जन्मदात्री, तथा पोषण करने की शक्तियों का भाव सुरक्षित रहा जबकि रानी में शासन शक्ति का भाव उभरा। साफ है कि क्वीन और रानी मौसेरी बहनें हैं। अंग्रेजी का क्वीन मूल रूप से प्राचीनकाल में सामान्य स्त्री, मां या पत्नी के लिए प्रयोग होता रहा किन्तु बाद में महारानी अथवा राजा की संगिनी के अर्थ में यह शब्द रूढ़ हो गया। दिलचस्प यह कि भारत में जहां राज्ञी जैसे प्रभावी शब्द को अपनाने की चाह में जनसामान्य ने इसका रानी रूप अपना लिया जो एक सामान्य नाम की तरह प्रयोग होता है। जबकि ब्रिटेन में क्वीन एक ओहदा बना। इस शब्द की महिमा उत्तरोत्तर बढ़ती रही हालांकि यह शब्द सामान्य धरातल से उठा था। भारत में देवी को भी रानी या महारानी की उपमा दी जाती है जबकि पाश्चात्य संस्कृति में देवी के लिए क्वीन शब्द का प्रयोग विरल है।
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15 कमेंट्स:
आज का सफर तो एक दम खोजी है। आश्चर्यजनक लेकिन तर्कसंगत परिणामों के साथ।
पुरुष चाहे शक्तिमान होने का अहंकार पाल ले मगर असली शक्ति तो प्रकृति ने नारी को ही दी है... waah ji waah...meri kaller nahi hai nahi to khdi kr leti....!!
बहुत हो खोजी रही आज की रचना
शब्दों की तह में जाकर, ]
निष्कर्ष उजागर करते हो।
रोचकता के साथ रोज,
गागर में सागर भरते हो।।
पुरुष चाहे शक्तिमान होने का अहंकार पाल ले मगर असली शक्ति तो प्रकृति ने नारी को ही दी है...
सही...शाश्वत.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
ज्ञानवर्धक पोस्ट्।हमारी भी बधाई।
शानदार , दमदार, प्रस्तुति .
आज का सफर तो आश्चर्यजनक रूप से एक दम नई डगर पर लगा.
यह आश्चर्यजनक भले ही लगे लेकिन तर्कसंगत परिणामों इसके गवाह हैं.
"पुरुष चाहे बाहुबल को परमतत्व मानते हुए हजारों वर्षों से मिथ्यागर्व में लीन रहा हो मगर प्रकृति ने उसे परमशक्ति नही दी है। शक्ति के रूप में पुरुष भी स्त्री को ही पूजने को विवश है। वजह सिर्फ एक ही है कि शक्ति के दोनों रूपों को पुरुष नहीं साध सकता है। शक्ति का प्रयोग पुरुष सिर्फ संहार या विनाश के लिए कर सकता है। संहार के साथ सृजन को को साधना शायद पुरुष के स्वभाव में नहीं है।"
उपरोक्त सत्य स्वीकार करने से गुरेज नहीं.
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत ही खोज करने के बाद आपने ये लेख लिखा है . जानकारी की भरमार है .
संहार के साथ सृजन को साधना शायद पुरुष के स्वभाव में नहीं है, ये काम केवल एक जननी ही कर सकती है .
Ajit ji
Namaskar
bahut accha laga jankar. sachmuch sabhi bhashayen gahrai me aapas me halke fulke ya majbooti se judi hui hai.
kiran rajpurohit nitila
रोचक और ज्ञानवर्धक ।
ज़नाना मर्दानों मे से ही है तो महिलाओ को जनाना कहना तो बिलकुल अनुचित ही है
सत्य कहा....प्रकृति ने श्रृजन का सामर्थ्य केवल स्त्री को ही दिया है क्योंकि श्रृजन का धैर्य केवल उसीके पास है...
पुरुष को शरीर का बल और अत्री को मन का बल देकर प्रकृति ने दोनों को एक दुसरे का पूरक बना श्रृष्टि की व्यवस्था को सुव्यवस्थित किया है....
बहुत ही सुन्दर विवेचना....परन्तु यह महज शब्द विवेचना न रहा....इसने स्त्री स्वरुप की भी सुन्दर विवेचना प्रस्तुत की...
साधुवाद आपका,इस सुन्दर सार्थक आलेख हेतु.
१६ अपठित पोस्ट पड़े हैं आपके. अभी सरसरी निगाह से पढ़ा तो शून्य, द्विवेदीजी से मुलाकात और होली वाली पूरी ही पढ़ डाली. तीनों पोस्ट बहुत अच्छे लगे.
और जनाना के बारे में क्या कहें बचपन में एक सवाल दोस्त पूछा करते : क्या हो बताओ जनाना या जनानी? :-)
सचमुच में ज्ञानवर्ध्दक पोस्ट। आपके ब्लाग पर यह सम्पत्ति कभी भी उपलब्ध होने के भरोसे से बडी सहायता मिलती है। अन्यथा स्मरण शक्ति की परीक्षा ही हो जाती।
बहुत बड़िया
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