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Monday, March 2, 2009
चरैवेति-चरैवेति यानी सीखो सबक…
हिन्दी में सबक sabaq शब्द का खूब इस्तेमाल किया जाता है। अरबी से फारसी होते हुए हिन्दी में दाखिल हुए इस शब्द के मायने हैं सीख, नसीहत, शिक्षा, पाठ आदि। मगर अक्सर इसका प्रयोग मुहावरे के तौर पर इन्हीं अर्थो में न होकर प्रतिक्रिया स्वरूप होने वाले अनुभव के लिए होता है मसलन सबक सिखाना, सबक देना। यह ठीक उसी तरह है जैसे पाठ पढ़ाना। दोनों शब्द युग्मों से जो व्यंजनार्थ उभर रहा है वह क्रिया की प्रतिक्रिया स्वरूप हुए अनुभव का बोध कराता है न कि सचमुच पाठ्यक्रम के किसी अंश को सीखने का। हालांकि फारसी में भी सबक दादन यानी सबक देना का अर्थ पढ़ाना, व्याख्यान देना या सीख देना ही है। मगर उर्दू में आकर इसने मुहावरे वाला प्रभाव ग्रहण किया। फारसी में पाठ याद करने को सबक गिरिफ्तन कहते हैं।
सबक शब्द सेमेटिक भाषा परिवार का है और आरमेइक, हिब्रू और अरबी में अलग अलग रूपों में इस्तेमाल होता है। इसका धातु रूप है स-ब-क़ अर्थात s-b-q . सबक में गति, प्रगति, तरक्की आदि का भाव है। गौरतलब है कि काल यानी समय अपने आप में गति का पर्याय है। दार्शनिक अर्थों में चाहे समय को स्थिर साबित किया जा सकता है पर लौकिक अर्थो में तो समय गतिशील है। हर गुज़रता पल हमें अनुभवों से भर रहा है। हर अनुभव हमें ज्ञान प्रदान कर रहा है, हर लम्हा हमें कुछ सिखा रहा है। आज के प्रतिस्पर्धा के युग में हम अनुभवों की तेज रफ्तारी से गुज़र रहे हैं। तेज़ रफ्तारी के साथ सबसे आगे रहना सबक़त कहलाता है। आज से ढाई हजार साल पहले भी इसी ज्ञान की खातिर भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को यही सबक दिया था- चरत्थ भिक्खवे! चारिकम् बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय अर्थात हे भिक्षुओं, सबके सुख और हित के लिए चलते रहो….।
भाषाविज्ञानियों ने सबक का रिश्ता बाइबल के ओल्ड टेस्टामेंट से जोड़ा है जिसमें हिब्रू hebrew ज़बान में ईसा के मुंह से निकले अंतिम शब्द इस प्रकार हैं- “इलोई इलोई लामा शबख्तानी” अर्थात “हे प्रभु-हे प्रभु, तूने मुझे अकेला क्यों छोड़ दिया ?” आरमेइक में इसका रूप है “इलोही इलोही लामा सबक़तानी”। इस सबक़तानी को ही विद्वान सबक से जोड़ते हैं और इसका मूल मानते हैं। यहां अकेला छोड़ने से भाव है पीछे छोड़ना। गौर करें अरबी के सबक़त पर जिसमें सबको पीछे छोड़ देने की क्रिया सबक़त कहलाती है। आरमेइक सीरिया-इराक की प्राचीन-पारंपरिक ज़बान है जो अरबी के निकट है। आरमेइक में इसका रूप है सिबाक़ sibaq । जिसका मतलब है दौड़ना, भागना, खेलना, प्रतिस्पर्धा करना या दौड़ में आगे बढ़ जाना। बेहतर से बेहतर करना आदि। मगर इन अर्थों में वही भाव छुपा है जिसकी व्याख्या ऊपर की गई है।
सभी धर्मों में, संस्कृतियों में काल की गति को सर्वोपरि माना गया है मगर इसके साथ जीवन को, मनुष्यता को लगातार उच्चतम स्तर पर ले जाने की अपेक्षा भी कही गई है। उच्चता के स्तर पर मनुष्य लगातार अनुभवों से गुज़रते रहने पर ही पहुंचता है। चरैवेति-चरैवेति की सीख भी यही कह रही है कि निरंतर गतिमान रहो। ज्ञानमार्गी बनो। ज्ञान एक मार्ग है जिस पर निरंतर गतिमान रहना है। अनुभव के हर सोपान पर, हर अध्याय पर मनुष्य कुछ और शिक्षित होता है, गतिमान होता है, कुछ पाठ पढ़ता है। कुछ सबक लेता है। ज्ञान को पराकाष्ठा पर पहुंचाने के लिए प्रतिस्पर्धी होना ज़रूरी है। तभी शिक्षा के अलग अलग स्तर समझ में आएंगे। अपने मूल सेमेटिक रूप में सबक का यही अर्थ है। हिब्रू शबख्तानी या अरबी सबक़त का अर्थ हुआ आगे...और आगे...सबसे आगे... ईसा के अंतिम शब्दों का यही भाव था कि “प्रभु, मुझे पीछे छोड़ कर आप क्यो आगे निकल गए?”
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:59 AM
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18 कमेंट्स:
चरैवेति-चरैवेति का सूक्ष्म-सारगर्भित मंत्र तो आपका यह चिट्ठा निरंतर गुंजायमान कर रहा होता है इस चिट्ठाजगत में .
सच कह रहा हूं, यह अगर भाषा विज्ञानी का आधिकारिक आलेख होता तो भी इतना स्वीकार और इतनी ईमानदारी उसमें नहीं दिखती मुझे. और सबसे बड़ी बात इस आलेख का एकदम से सबके लिये समझने लायक होना- इसे महत्वपूर्ण बनाता है .
अन्यथा क्या शब्द की व्युत्पत्तियां मैने नहीं पढ़ीं और शब्दों की चर्चा भी, पर बाप रे बाप !
चलते रहेंगे आपके द्वारा बताये गए सबक सीखते रहेंगे .
सबक का सबक ले लिया, प्रभु.. :)
सबक़ लिया गुरु जी.
बहुत अच्छा विश्लेषण है। भौतिक परिवर्तन ही काल है, वही चेतना भी। सारे सबक उसी से सृजित होते हैं।
'सबक' और 'चरैवेति' का अन्तर्सम्बन्ध आज पहली बार ही ज्ञात हुआ।
बहुत लाजवाब जानकारी से भरपूर आलेख.
रामराम.
अच्छा सबक:)
हम भी इस सफर में
चलते रहे हैं...चलते रहेंगे.
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
चरैवेति-चरैवेति का सबक ही तो आप सिखाया करते हैं यहां अजित भाई. जारी रहे सफ़र! आमीन!!
ज्ञान बटोरे हुए है ये लेख तो
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
हमेशा की तरह ज्ञानवर्धक. चरैवेति चरैवेति ........
जीवन चलने का नाम
सही सबक है चरैवेति का ....
विनीत,
- लावण्या
इस पोस्ट के लिए शुक्रिया.
जिन्दगी में कई बार सबक दिया भी और लिया भी पर सबक कभी भी नहीं भाया, पर आपका सबक हमेशा याद रहेगा,
सचमुच बहता समय कुछ न कुछ व्यक्तित्व में जोड़ता ही जाता है....
सुन्दर सबक और सबक की सुन्दर विवेचना के लिए आभार.
अच्छा सा सबक दिया आप ने आज के पाठ मे!!
सस्नेह -- शास्त्री
ये ब्लॉग,जिसका नाम शब्दों का सफ़र है,इसे मैं एक अद्भुत ब्लॉग मानता हूँ.....मैंने इसे मेल से सबस्क्राईब किया हुआ है.....बेशक मैं इसपर आज तक कोई टिप्पणी नहीं दे पाया हूँ....उसका कारण महज इतना ही है कि शब्दों की खोज के पीछे उनके गहन अर्थ हैं.....उसे समझ पाना ही अत्यंत कठिन कार्य है....और अपनी मौलिकता के साथ तटस्थ रहते हुए उनका अर्थ पकड़ना और उनका मूल्याकन करना तो जैसे असंभव प्रायः......!! और इस नाते अपनी टिप्पणियों को मैं एकदम बौना समझता हूँ....सुन्दर....बहुत अच्छे....बहुत बढिया आदि भर कहना मेरी फितरत में नहीं है.....सच इस कार्य के आगे हमारा योगदान तो हिंदी जगत में बिलकुल बौना ही तो है.....इस ब्लॉग के मालिक को मेरा सैल्यूट.....इस रस का आस्वादन करते हुए मैं कभी नहीं अघाया......और ना ही कभी अघाऊंगा......भाईजी को बहुत....बहुत....बहुत आभार.....साधुवाद....प्रेम......और सलाम.......!!
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