Friday, March 27, 2009

द्रोण, दोना और डोंगी…[पोत-1]

मतौर पर पौराणिक ग्रंथों, ऐतिहासिक-पुरातात्विक स्मारकों से मिलनेवाले प्रमाणों और संकेतों को ही लोग अतीत की सभ्यता-संस्कृति को समझने का जरिया मानते हैं। मगर बीती डेढ़ सदी में दुनियाभर की प्राचीन सभ्यताओ-संस्कृतियों को समझने में भाषा विज्ञान का योगदान अभूतपूर्व रहा है। अतीत के साक्ष्य मिट जाते हैं मगर पुरा सभ्यता के पुख्ता प्रमाण विभिन्न लोकभाषाओं में हैं जिनके जरिये मिलते निष्कर्षों को नकारा नहीं जा सकता। भाषाओं के विकासक्रम पर अगर नज़र डालें तो यह तथ्य
   लकड़ी के शहतीरों को जोड़ कर नौका निर्माण की तकनीक मनुष्य ने बाद में सीखी, उससे पहले समूचे वृक्ष के खोखले तने का नाव के तौर पर उपयोग करना उसे सूझा। village s_Carving_a_Dugout_Canoe_Great_Falls_ MT182149Papyrus reed boat or "tankwa", Lake Tana, Ethiopia, Africa 250px-Dcp_5863 
भी पता चलता है कि विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में भी मनुष्य की चिंतन प्रणाली एक जैसी थी।
प्रारम्भिक मनुष्य ने स्थल मार्ग पर ही यात्राएं की। तटवर्ती क्षेत्रों के लोगों ने ही यात्रा के लिए जलमार्गों और जलपरिवहन की शुरूआत की। प्राचीनकाल में प्रायः सभी सभ्यताओं में मनुष्य ने पानी में सुरक्षित आवागमन के लिए वनस्पति का सहारा लिया। प्रारम्मिक तौर पर टहनियों, पत्तों को जोड़ कर अनघड़ से बेड़े बनाए गए। लकड़ी के शहतीरों को जोड़ कर नौका निर्माण की तकनीक मनुष्य ने बाद में सीखी, उससे पहले समूचे वृक्ष के खोखले तने का नाव के तौर पर उपयोग करना उसे सूझा। वृक्ष के खोखल का यह अनूठा प्रयोग किसी एक स्थान से पूरी दुनिया में प्रसारित नहीं हुआ होगा बल्कि यह तरकीब सहज बुद्धि से अलग अलग कालखंडों में विभिन्न मानव-समूहों को सूझी।
नाव के लिए प्रचलित अंग्रेजी, स्वाहिली, संस्कृत और हिन्दी में प्रचलित कुछ शब्दों पर गौर करने से यही बात सामने आती है। पानी पर तैरती छोटी सी नाव को डोंगी कहा जाता है। चाहे कश्मीर की झीलें हों, मैदानी नदियां हों या शांत समंदर, डोंगी शब्द हर भाषा में प्रचलित है और खूब बोला-समझा जाता है। भारतीय मूल अर्थात संस्कृत से निकला यह शब्द अफ्रीकी तट पर भी जाना जाता है तो ब्रिटेन समेत यूरोप की भाषाओं में भी डोंगी शब्द कुछ बदले हुए रूप में मौजूद है। संस्कृत में एक धातु है द्रु जिसकें वृक्ष का भाव है। इससे ही बना है द्रुमः शब्द जिसका अर्थ भी पेड़ ही होता है और द्रुम के रूप में यह परिनिष्ठित हिन्दी में भी प्रचलित है। द्रु शब्द से ही बना है संस्कृत का द्रोणः शब्द जिसका अर्थ होता है काठ का बना हुआ शंक्वाकार पात्र। हिन्दी का दोना-पत्तल वाला दोना इसी द्रोण से बना है। सामूहिक भोज में पत्तों से बने ऐसे ही द्रोण में दाल या तरीदार सब्जी परोसी जाती है।   
दिलचस्प बात यह कि मनुष्य जब चुल्लू भर-भर पानी पी कर थक गया तो उसने पत्ते के मोड़ कर द्रोण या दोना बनाने की तरकीब ईजाद की ताकि उसमें पानी भर सके। बाद में इस द्रोण को ही पानी पर तैरा दिया! तीर्थस्थलों पर पत्तों से बने ऐसे ही द्रोण पावन नदियों में श्रद्धास्वरूप तैरा कर शाम के समय दीपदान करने की परिपाटी रही है। माली समुदाय के लोग द्रोण बनाने का काम करते हैं। गोल आकार के दोनों के अलावा दीपदान वाले द्रोण की नौका जैसी आकृति पर ध्यान दें तो साफ होता है कि इसी आकार के चलते द्रोणिका से डोंगी शब्द बना है। संस्कृत और परिनिष्ठित हिन्दी में द्रोणिः या द्रोणि दो पहाड़ों के बीच की घाटी को कहते हैं। द्रोण या द्रोणिका पहाड़ी सरोवर के लिए भी प्रयुक्त होता है। द्रु से ही बना है दारुकः शब्द जो एक प्रसिद्ध पहाड़ी वृक्ष है जिसका नाम देवदारु है। द्रुः अर्थात वृक्ष के खोखल को जब मनुष्य ने पानी में बहते देखा तो उसने इसे भी द्रोणिः ही कहा जिसका अपभ्रंश रूप ही डोंगी है। बाद में विशाल मगर पोले तनों वाले वृक्षों को आग से जला कर खोखला किया जाने लगा और इस तरह बडे़ पैमाने पर डोंगियां बनाई जाने लगीं। यह क्रम तब तक जारी रहा जब तक मनुष्य ने रस्सी, कील और आरी जैसे उपकरण नहीं बना लिए। उसके बाद ही लकड़ी के तख्तों को काट कर, उन्हें जोड़ कर सुविधाजनक आकार में पोत बनने शुरू हुए। चौडें मुंह वाला डोंगा नामका एक बड़ा सा पात्र भी होता है जिसमें सालन रखा जाता है।
अंग्रेजी में इसका डिंघी dinghy रूप प्रचलित है जो संभवतः फ्रैंच भाषा से शामिल हुआ। मूलतः डोंगी का यह रूप स्वाहिली भाषा का है। अफ्रीका के पूर्वी तटवर्ती प्रदेशों में यह भाषा बोली जाती है जहां से प्राचीन भारतीयों के सदियों पुराने कारोबारी रिश्ते रहे हैं। अफ्रीकियों ने भारतीयों से नौपरिवहन की बारीकियां सीखी। डोंगी शब्द उन्होंने भारतीय नाविकों से ही सीखा। इनमें से कई क्षेत्र फ्रांस के उपनिवेश थे इस तरह डिंघी शब्द यूरोप भी पहुंचा।
लपोत के अर्थ में अंग्रेजी के शिप शब्द का निर्माण भी द्रु से बनी डोंगी जैसा रहा। भारोपीय भाषाओं में काटने, तोड़ने, विभक्त करने के लिए एक धातु है स्कै skei जिसका संस्कृत रूप है छिद् जिसमें भी काटना, विभक्त करना, टुकड़े करना जैसे भाव है। शिप ship का पुराना रूप था स्किप scip जो प्रोटो जर्मनिक के स्किपन से आया। जर्मन में इसका रूप है शिफ़ Schiff। मूल रूप से इस स्कै धातु में वृक्ष को खोखला करने या विभक्त करने का ही भाव है। मोटे वृक्षों को काट कर मनुष्य लंबाइ में उसे दो भागों में विभक्त करता था। इस तरह दोनो टुकड़ों को बीच से खोखला कर एक वृक्ष से दो नौकाओं का निर्माण हो जाता था। बाद में मस्तूल वाली नौकाओं के लिए शिप शब्द का प्रयोग होने लगा। मस्तूल वाले पोत की शान ही कुछ और थी। जहाजों के बेड़े में खास पोत पर ध्वज लगाया जाता था। उसे फ्लैगशिप कहते थे। आगे चलकर प्रमुख या खास के अर्थ में फ्लैगशिप मुहावरा चल पड़ा।

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11 कमेंट्स:

अविनाश वाचस्पति said...

http://www.sahityashilpi.com/2008/09/blog-post_25.html
शहतीर में है वही तीर
जो आप चलाते हैं वीर
शब्‍दों के, अर्थ के, भेद के
आपके तीरों से होता है
शहतीरों को फायदा
जब आप देते हैं जानकारी
इंटरनेट पर, ब्‍लॉग पर
नहीं लिखते कागज पर
तो बचता है शहतीर
तब ही आप हैं
सच्‍चे मायने में
शब्‍दों के वीर।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

भाई वडनेकर जी।
आप बधाई के पात्र हैं।
नव सम्वत्सर पर आपने भवसागर पार
करने के लिए एक डोंगी उपलब्ध कराई हैं।
जगत-नियन्ता सबकी नाव पार लगायें।
इसी आशा के साथ-आपको नववर्ष की बधायी प्रेषित करता हूँ।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

डोंगी तो हमने डाल ही दी है आपके शब्दों के समुन्दर मे , रोज़ सैर हो जाती है और दो चार शब्दों से मुलाक़ात

दिनेशराय द्विवेदी said...

डोंगी से यात्रा करना सुखद रहा। एक नया अनुभव भी। यहाँ शब्दों का विकास करते केवल मनुष्य दिखाई देता है, उस की जाति, धर्म, रंग, रूप दूर दूर तक दृष्टिगोचर नहीं होते।

Anonymous said...

interesting.....हमेशा की तरह

Dr. Chandra Kumar Jain said...

सफ़र के विशाल पोत पर
फ्लैगशिप के समान है यह पोस्ट.
प्रतिपदा पर इस यात्रा के सतत
प्रशस्त होने की शुभकामनाएँ
स्वीकार कीजिए अजित जी.
========================
आपका
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

विभिन्न देशों के भाषाओं और संस्कृतियों में मिलते जुलते शब्दों व तरीकों से यह तो प्रमाणित होता है कि पूर्व में वे इन सभ्यताओं के बीच आदान-प्रदान होता रहा है।
>"द्रुमः शब्द जिसका अर्थ भी पेड़ ही होता है ..." शायद अंग्रेज़ी का ड्रम भी इसी शब्द से बना हो जो लकडी के पीपों के लिए प्रयोग में लाया जाता रहा है।

mamta said...

कहने की जरुरत नही है की इस बार भी ज्ञान मे बढोतरी हुई ।

आलोक सिंह said...

आज पता चल गया ये दोना - पत्तल वाला दोना कहाँ से आया . एक बार गाँव में एक भोज में खाना खिला रहे थे , सब्जी ले के घूम रहे थे , तभी किसी ने कहा "भैया दोना ". हम सब्जी देने लगे, वो बोले ये नहीं" दोना नहीं मिला है" .

naresh singh said...

रोचक जानकारी लगी । हमेशा ही आपके द्वारा दी गयी जानकारी ज्ञान कि पर्त खोल देती है ।

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

बहुत ही जानकारीपूर्ण लेख है।

एक शब्द याद आया स्किपर, जो जहाज के कप्तान के लिए अंग्रेजी में प्रयुक्त होता है। आपका यह लेख पढ़कर लगता है, यह भी पुराने जर्मन के स्किप शब्द से ही बना होगा।

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