हि न्दी की विकास यात्रा के दौरान सैकड़ों वर्षों में अरबी-फारसी के हजारों शब्द दाखिल होते रहे हैं जो अब बोलचाल की भाषा में इस कदर घुलमिल गए हैं कि उनके विदेशज होने का आभास भी नहीं होता। शहीद या शहादत भी ऐसे ही शब्द हैं। किसी पवित्र उद्धेश्य की खातिर संघर्ष करते हुए अपनी हस्ती मिटा देनेवाले व्यक्ति को शहीद कहा जाता है। पुराने दौर में धार्मिक मान्यताओं की खातिर दो फिरकों में अक्सर लड़ाइयां होती थीं। ऐसे अवसरों पर राज्यसत्ता भी धार्मिक मान्यता के लिए विरोधी शक्तियों के साथ संघर्ष करती थी और आम आदमी भी इस लड़ाई में हिस्सा लेता था। इस टकराव में जान निछावर करनेवालों को शहीद कहा जाता था। धर्म से हटकर राष्ट्रीयता अथवा मातृभूमि को शत्रुओं से बचाने की खातिर प्राणोत्सर्ग करनेवाले बहादुर योद्धा भी शहीद का दर्जा पाते रहे हैं। शहीद का शुमार भी अरबी के उन्हीं शब्दों में हैं जो इस्लामी दर्शन से उपजे हैं।
हिन्दी में आमतौर पर बलिदानी के अर्थ में शहीद शब्द का इस्तेमाल होता है और शहादत का अर्थ बलिदान होता है। हालांकि इन शब्दों के ये सीमित अर्थ हैं जबकि इनकी अर्थवत्ता व्यापक है। शहीद शब्द का रिश्ता अरबी की क्रिया शहादा से है जो मूल रूप से अरबी की धातु श-ह-द sh- h- d से बनी है। शहादा में देखने, चश्मदीद होने, गवाह होने अथवा साक्षी होने का भाव है। sh- h- d धातु में भी प्रमाण, सिद्ध, साक्ष्य, भरोसा, विश्वास, आस्था जैसे भाव हैं और शहादा में निहित अर्थ, इन्हीं भावों का सार हैं। गौर करें कि हिन्दी में चाहे शहादत का अर्थ बलिदान के अर्थ में सीमित हो गया हो मगर हिन्दुस्तानी में इसके वही मायने हैं जो मूल अरबी में हैं। एक सदी पहले तक फारसी राजकाज की भाषा थी और आज भी न्याय-प्रशासन की शब्दावलियों में अरबी-फारसी के अवशेष बड़ी तादाद में मौजूद हैं। इन शब्दों को अवशेष इसलिए कहना पड रहा है क्योंकि सौ बरस पहले भी इन शब्दों के मायने आम आदमी की समझ से दूर थे। इसलिए फारसी को पढ़ो लिखों या आलिमों की भाषा कहा जाता था। ठीक वैसे ही जैसे संस्कृत पंडितों की भाषा थी। कानूनी और अदालती भाषा में प्रयुक्त अरबी-फारसी के शब्द बोलचाल वाली हिन्दी में घुलेमिले अरबी फारसी के शब्दों से अलहदा हैं। बहरहाल,
... इस्लामी मान्यता के मुताबिक शहीद कभी मरता नहीं है इसलिए शहादा में जो साक्षी या गवाही का भाव है वही शहादत में भी है। देश, धर्म या विचार के लिए संघर्ष करनेवाला व्यक्ति अपने उद्धेश्य की सच्चाई का गवाह होता है। ...
शहादा से बने शहीद में भी बलिदानी का भाव नहीं है। दरअसल शहादा इस्लाम के पांच प्रमुख पायों में से एक पाया है। ये पांच स्तम्भ हैं 1) शहादा यानी आस्था, विश्वास या भरोसा। 2) सलात यानी दुआ, प्रार्थना, उपासना, पूजा आदि। 3) सौम यानी व्रत, उपवास रखना। 4) ज़कात यानी दान करना, भिक्षा देना, त्याग करना आदि और 5) हज अर्थात मक्का की तीर्थयात्रा करना। इस अर्थ में शहादा यानी ईश्वर में आस्था या भरोसा रखना इस्लाम के पांच आधारों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इस एकेश्वरवादी विचारधारा पर भरोसे की पहली शर्त इसमें निहित है। नमाज से पूर्व अजान की शुरुआती पंक्तियों से यह बात और भी साफ हो जाती है, देखें- अल्लाहु अकबर। अशहदू अन ला इलाहा इल्लल्लाह। अशहदू अन्ना मुहमदन रसूल्लुल्लाह। इसका अर्थ है- विश्वास करता हूं उस अल्लाह पर जिसके सिवाय और कोई परमशक्ति नहीं है और भरोसा करता हूं उस के नाम (मुहम्मद) पर जो अल्लाह का पैगम्बर है। यहां अशहदू शब्द का रिश्ता शहादा से ही है जिसमें भरोसा, विश्वास और साक्षी होने का भाव है।
अब बात करते हैं बलिदानी के रूप में शहीद की अर्थवत्ता पर। इस्लामी मान्यता के मुताबिक शहीद कभी मरता नहीं है इसलिए शहादा में जो साक्षी या गवाही का भाव है वही शहादत में भी है। देश, धर्म या विचार के लिए संघर्ष करनेवाला व्यक्ति अपने उद्धेश्य की सच्चाई का गवाह होता है। उसका संघर्ष इस बात का प्रमाण है कि सत्य के पक्ष मे, सत्य के प्रति उसकी आस्था और निष्ठा अडिग है। इस्लामी दर्शन के मुताबिक संघर्ष के दौरान अगर कोई व्यक्ति बलिदान देता है तब वह एक प्रतिमान स्थापित करता है। वह स्वयं एक मिसाल बनता है उस सत्य की जिसकी खातिर उसने जंग लड़ी। वह व्यक्ति अपने उद्धेश्य की शहादत यानी गवाही है। इसलिए ऐसा व्यक्ति शहीद यानी ईश्वर की गवाही या ईश्वर का साक्षी माना जाता है। उसे मृत नहीं बल्कि अमर समझा जाता है। बलिदानी भी अमर होता है पर शहीद शब्द की अर्थवत्ता ही गवाही, साक्ष्य, प्रमाण या मिसाल जैसे भावों से निर्मित है सो शहादत या शहीद में उक्त भाव हैं। इसी कड़ी का एक अन्य शब्द शाहिद है जिसका अर्थ भी गवाह, साक्षी, श्रेष्ठ, उत्तम होता है। शहीद से बने कई अन्य शब्द भी हिन्दी उर्दू में प्रचलित हैं जैसे शहादतनामा यानी प्रमाणपत्र, सनद या वह दस्तावेज जिसमें शहीद की विरुदावली हो। शहादतगाह उस स्थान को कहते हैं जहां कोई शहीद हुआ हो। शहीदेआजम यानी सबसे बड़ा बलिदानी। इस्लाम में हजरत इमाम हुसैन को यह उपाधि मिली हुई है। भारत में अमर क्रान्तिकारी भगतसिंह को आदर के साथ शहीदेआजम कहा जाता है।
इन्हें भी ज़रूर पढ़ें-नकल-नवीस के नैन-नक्श.माई नेमिज खान बहादुर पठान [1].बहादुर की जाति नहीं होती[माई नेमिज खान-2].औलाद बिन वालदैन इब्न वल्दीयत.इस्लाम को तकती दुनिया…रेगिस्तानी हुस्नो-जमाल
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आभार उम्दा जानकारीपूर्ण आलेख का.
ReplyDeleteबहुत उम्दा और जरूरी पोस्ट।
ReplyDeleteआज जान पाया क्यो ईद से पहले समय चांद की शहादत मांगी जाती है
ReplyDelete.कितने शब्दो के अर्थ के विपरीत हम उसे चलन मे ला रहे है .
अरे मेरा कमेन्ट गायब कहा हो गया
ReplyDeleteआ गया पहला वाला भी आ गया
ReplyDeleteहम इस बात की शहादत देना चाहते हैं कि शब्दों का सफ़र हमारे शब्दज्ञान को लगातार बढ़ाने वाला एक ऐसा मंच है जो हिन्दी चिठ्ठाजगत की ओर से हिन्दी प्रेमियों के लिए अनूठी सौगात है, हिन्दी शब्दों का शहादतनामा। आपको बारम्बार धन्यवाद।
ReplyDeleteसोचता हूं कि शहीद शब्द में ... समूह कल्याण का भाव , सार्थकता सह उद्देश्यपरकता आधारित मृत्यु तथा उसका न्याय-औचित्यीकरण और ...संभवतः मृतात्मा का महिमा मंडन सह यश की निरंतरता के भाव एक साथ समाहित हैं ! चूंकि यह समूह के पवित्र उद्देश्य के लिये प्राणोत्सर्ग है अतः समूह को इसका साक्षी ( शहादा ) होना है !
ReplyDeleteअजित भाई अगर मैं बांग्ला भाषी होता और तदनुसार शहादा का उच्चारण करता तो अनर्थ होने में कितना समय लगता :)
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी
ReplyDeleteहिंदी शब्दों का शहादतनामा ( बलिदान -आलेख ) ... या ... हिंदी शब्दों का शहादा नामा ( साक्षी - आलेख ) ? क्या पुनर्विचार की सम्भावना है ?
BAHUT BADHIYA.
ReplyDelete@ ali
ReplyDeleteत्रुटि संशोधन का धन्यवाद। मैने निम्न वाक्य का अन्तिम अंश नहीं देखा। खेद प्रकाश सहित...
“शहीद से बने कई अन्य शब्द भी हिन्दी उर्दू में प्रचलित हैं जैसे शहादतनामा यानी प्रमाणपत्र, सनद या वह दस्तावेज ,जिसमें शहीद की विरुदावली हो।”
पंजाबी में 'शाहदी' का मतलब गवाही है. शाहदी भरना= गवाही देना
ReplyDeleteमुहावरा: शहीद होना= गूढ़ी नींद सोना
@अली
ReplyDeleteहुजूर, बांग्लाभाषी के मुह से निकले शहादा की कल्पना भी शब्द विलास के दायरे में ही आता है। वाह...
अज भी चचा याद आए :-
ReplyDelete"अस्ले शहीद शाहिद-ओ-मशहूद एक है,
हैरत है फिर मुशाहिदा है किस हिसाब में!