इ न दिनों शब्दों का सफ़र लगभग अनियमित है क्योंकि मैं सचमुच दूरियाँ नाप रहा हूँ। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के बीच। छह माह से यह क्रम जारी है। पहले सफ़र के पुस्तकाकार आने की तैयारी की व्यस्तता और अब दफ्तरी व्यवस्तता। छह साल के सतत सफ़र का प्रकाशित रूप सामने आया। किताब का विमोचन भोपाल में हुआ। सबने इसे सराहा। इस बीच पुस्तक के अगले खण्ड की पाण्डुलिपि के लिए राजकमल प्रकाशन का प्रतिष्ठित कृति सम्मान भी बीती अट्ठाईस फरवरी को मिला। कई साथियों को शिकायत थी कि इस आयोजन की विस्तार से ब्लॉगजगत में चर्चा नहीं हुई। अब इसके पीछे भी मेरी व्यस्तता ही वजह बनी। हालांकि कुछ अखबारों में इसके समाचार छपे। पुरस्कार के चयनकर्ताओं में ख्यात आलोचक नामवरसिंह, विश्वनाथ त्रिपाठी और प्रसिद्ध कोशकार अरविन्द कुमार थे। नामवरसिंह का वक्तव्य तो जानकी पुल ब्लॉग पर एक अलग संदर्भ में प्रकाशित हो चुका है। बाकी दोनों महानुभावों के वक्तव्य हमें कल ही प्राप्त हुए हैं जिन्हें सफ़र के साथियों से यहाँ साझा कर रहा हूँ। नुक्कड़ पर श्री अविनाश वाचस्पति ने समारोह की चित्रमय झाँकी पहले ही दिखा दी है। उससे भी पहले महाखबर के जरिए इस सम्मान पर ही प्रश्न भी खड़े हो चुके थे। यहाँ पेश हैं चंद और छवियाँ-
उपन्यास का आनंद है सफ़र में
मैं श्री अजित वडनेरकर की पुस्तक शब्दों का सफर हाथ में आते ही उसे रुचिपूर्वक पढ़ गया। पुस्तक यद्यपि भाषा शास्त्र से सम्बन्धित है लेकिन पढ़ने में उपन्यास का आनन्द देती है। कहते हैं कि सच्चा ज्ञान आनन्द के द्वारा प्राप्त होता है। इस पुस्तक के पाठक भी मनोरंजन और कथा रस के आस्वाद की प्रक्रिया से ज्ञान-लाभ करेंगे। ऐसी पठनीय पुस्तकें आए दिन पढ़ने को नहीं मिलती जिसमें इतने सहज और अनायास पाठकों को जानकारी काखजाना मिले और यह समझने का मौका मिले कि भाषा में देश जाति धर्म आदि का बन्धन नहीं रहता। और वे मुक्त भाव से परस्पर आदान-प्रदान करते हुए विकसित और समृद्ध होती हैं। हमारी भाषा हिन्दी भी इसी प्रक्रिया से फलती-फूलती हुई हमें प्राप्त हुई हैं। शब्दों का सफर निःसन्देह एक उल्लेखनीय प्रकाशित पुस्तक है जो पाठकों को पसन्द आएगी।
-विश्वनाथ त्रिपाठी
अपने से लगते हैं वडनेरकर
सब से पहले राजकमल पुरस्कार पाने पर भाई अजित वडनेरकर को बधाई। मैंने अजित को कभी देखा नहीं है, लेकिन वह बहुत जाने-पहचाने से, अपने से लगते हैं। कारण हिन्दी विमर्श पर उनका शब्दों कासफर मैं नियमित पढ़ता रहा हूं। उनकी हर मेल अपने कम्प्यूटर पर सेव कर के संजो कर रखता रहा हूं। नम्बर दो पर - राजकमल प्रकाशन के अशोकजी को बधाई कि उन्हें अजित की किताब छापने को मिली। साथ ही धन्यवाद भी कि उन्होंने यह किताब छापी। छापी में कोई अनोखपन नहीं है। अब तक जितना मैंने उन्हें जाना है। उनकी नज़र बढ़ी पारखी है। वह देखते ही ताड़ लेते हैं कि असली माल कहां है। उनके पास शब्दों कासफर कैसे पहुंची यह मैं तो नहीं जानता, लेकिन उसमें भरे असली माल को पहचानने में देर नहीं लगी।
प्रसंगवश एक और उदाहरण। 1990 के आसपास हंस पत्रिकामें शब्दों पर मेरी लेखमाला छप रही थी। एक सुबह एक अनजान नौजवान मेरे घर आ पहुंचा, मेरी आने वाली किताब को छापने काप्रस्ताव लिए। तब उसके पास लगभग कुछ नहीं था। बस भविष्य था। वह था। अशोक माहेश्वरी। मैंने उससे वादा किया कि पूरा होने पर मेरा कोश उसे मिलेगा। ऐसा नहीं हुआ इसके कारण विचित्र थे। यह सबूत है कि अशोक दूर तक देख पाते हैं।
कुछ ऐसा ही गुण अजित वडनेरकर में भी है। वह दूर तक देख पाते हैं। न केवल भविष्य में बल्कि भूत में भी। एक संस्कृति से दूसरी तक शब्दों का सफर में। पता नहीं कैसे वह इतनी गहराई से देख पाते हैं। फिर इस सफर काबयान हाल बेहद आसान भाषा में रोचक तरीके से, कमाल है। आप लोग कई जाने-माने विदेशी कोश देखिए। कई में शब्दों के बारे में अलग से बॉक्स बना होता है। अजित उन से आगे, बहुत आगे जाते हैं। व्युत्पति बताते हैं, कई देशों, समाजों में कोई शब्द कैसे पहुंचा, बदला, रंगा, संवरा सब दिखाते हैं। कुल तीन-चार हद से हद पांच-छह पैरों में। पाठक के ऊबने से पहले विदा हो जाते हैं। जाते-जाते शब्दों में पैठने की हमारी रुचि, हमारी तमन्ना जगा जाते हैं।
उन के शब्दों के सफर केतीन खण्ड तैयार हैं। ऐसा मुझे बताया गया है। पर मैं कल्पना कर सकता हूं की उनके पास अभी और तीस खण्डों का मसाला तैयार होने को होगा। मैं उन सब लोगों को, जिन्हें हिन्दी डूबती नज़र आती है और आप सबको आश्वस्त करना चाहता हूं, भरोसा दिलाना चाहता हूं कि मेरा दावा 125 प्रतिशत सही निकलेगा कि 2050 तक हिन्दी संसार कीसमृद्धतम भाषा में होगी। आंखें खोलकर देखिए, हिन्दी पढ़ने वाले बढ़ रहे हैं, हिन्दी वालों के पास पैसा बढ़ रहा है। हाल ही में मुझे पता चला कि अकेले एक प्रमुख हिन्दी दैनिक के पास देशभर में फैला पांच हजार कम्प्यूटर से जुड़ा पत्रकारों कामहाजाल है। आज कम से कम 50 हजार हिन्दी पत्रकार तो हैं ही, पांच लाख भी हो सकते हैं। और लेखक गांव-गांव में, अनजाने अनचीन्हे लोग हिन्दी लिखने में लगे हैं। अन्त में बस इतना ही... हिन्दी रुकेगी नहीं, बढ़ती रहेगी। अजित वडनेरकर और उन की यह किताब इस बात काएक और सबूत है। दूसरा सबूत है राजकमल कीयह पुरस्कार योजना। मुझे भरोसा है, और आप को भी यह भरोसा दिलाता हूं कि धीरे-धीरे अशोक माहेश्वरी इस पुरस्कार को हिन्दी कानहीं भारत का सबसे बड़ा अवॉर्ड बनाकर रहेंगे। हिन्दी के और भारत के बढ़ते रहने का यह दूसरा सबूत होगा।
-अरविन्द कुमार, 26 फरवरी, 2011
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शब्दों का सफ़र
ReplyDeleteके इस खूबसूरत सफल सफ़र के लिए
हार्दिक बधाई ... !
पढ़ना चाहूंगा !!
अजित भाई...इतने दिनों बाद आकर देखा कि शब्दों के सफ़र की खूबसूरती को चार चाँद लग गए...शब्दों के सफ़र का मुख्य पृष्ठ मन मोह गया...राजकमल प्रकाशन से सम्मानित हुए.. ढेरों बधाइयाँ और आगे के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ...जल्दी ही पुस्तक मँगवाने का उपाय सोचते हैं.
ReplyDeleteआपकी पुस्तक पढ़ नहीं पाया हूँ पर इच्छा बहुत है।
ReplyDeleteकाश हम भी पढ़ पाते आपकी पुस्तक.हार्दिक शुभकामनाये
ReplyDeleteतो आप ठिकाने पर पहुँच ही गए। हम तो आप के पहुँचने और समारोह की सचित्र रपट की प्रतीक्षा ही कर रहे थे। यहाँ अरविंद जी का व्याख्यान कुछ अतिरंजित प्रतीत हो सकता है। मुझे तो हिन्दी के भविष्य के बारे में सच ही लगता है।
ReplyDeleteमैं भी चाहता हूँ कि इस सफर के 30 से भी अधिक खंड प्रकाशित हों।
bahut bahut bdhaai
ReplyDeleteएक बार फिर से बधाई और शुभकामनाएं भी।
ReplyDeleteकबसे इन्तज़ार कर रही थी इस विवरण और तस्वीरों का. बहुत शानदार तस्वीरें हैं. मज़ा आ गया. पुस्तक तो खरीद ही लूंगी :)
ReplyDeleteबहुत बढि़या बड़े भाई ... अगर तस्वीरों के साथ कैप्शन दे दिए होते तो देखने का मजा दो गुना हो जाता। कई चेहरे तो नामचीन हैं पर कई अनजाने चेहरे भी दिख रहे हैं। बहरहाल पुन: बधाई और अगले संस्करण के लिए ढेरों शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteआनंदित हुए हम.. आखिर हम भी तो इस सफर के सहयात्री हैं :)
ReplyDeleteआप तो छा गये!
ReplyDeleteबधाई!
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ReplyDeleteकभी मौका मिला तो पुस्तक अवश्य पढेंगे !
ReplyDeleteसम्मान के लिए बहुत-बहुत बधाई !
वाकई आप तो छा गए .
ReplyDeleteपुस्तक तो पढनी ही है, देखते हैं यहाँ कब उपलब्ध होती है, दर-असल यह किताब महज पढने के लिए नहीं है, इसमें डूबने के लिए है.
फिर एक बार बधाई और शुभकामनाएं भाई साहब
एक बार पुनः बधाई !
ReplyDeleteअजित भाई,
ReplyDeleteआप वो दूरियां नाप रहे हैं जिनकी कोई भी चाहत कर सकता है पर मैं जानता हूं कितना समर्पण ,त्याग,प्रयास है इस प्रशंसा के पीछे/मैं आनंदित हूं आप के सम्मान से हमेशा की तरह /नए सम्मान,नए रंग,कुछ इस तरह कि सभी रह जाएँ दंग/
होली की हार्दिक शुभकामनायें ,बधाइयाँ ,स्नेह,
आपका ही ,
Dr.Bhoopendra Singh
T.R.S.College,REWA 486001
Madhya Pradesh INDIA
अजित जी, देर से ही सही इस सम्मान के लिये मेरी भी बधाई स्वीकार कीजिये! सादर
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई अजित जी. इस वक्त का तो कबसे इंतजार था, पुस्तक को मंगवाने का जरिया क्या है ? इसकी ५ कौपीँ तो मुझे ही चाहिए.
ReplyDeleteअजित जी,बेहद खूबसूरत
ReplyDeleteसच आपके शब्दों ने हमारे साथ एक ऐसे रिश्ता बना लिया है जो हर एक शब्द के साथ गहराता जा रहा है...
आप सफ़र में लगातार प्रगति की धूल से लोत-पोत आगे पड़ते जाएँ इस्न्ही सुभकामनाओं के साथ...
संजय सेन सागर