कि सी वृक्ष या शरीर के ऊपरी हिस्से के उस स्तर को परत कहते हैं जो सूखने के बाद अपने मूल आधार को छोड़ देता है। इसी परत को पपड़ी भी कहा जाता है। पपड़ी आमतौर पर किसी पदार्थ की अलग हो सकनेवाली ऊपरी परत के लिए प्रयुक्त शब्द है किन्तु सामान्य तौर पर कोई भी परत, पपड़ी हो सकती है। भूवैज्ञानिक नज़रिये से धरती के कई स्तर हैं। धरती के सबसे ऊपरी स्तर को भी पपड़ी कहा जाता है। पपड़ी से मिलता जुलता एक अन्य शब्द है पापड़। चटपटा-करारा मसालेदार पापड़ भूख बढ़ा देता है और हर भोजनथाल की शान है। पपड़ी पापड़ सरीखी भी होती है, मगर पापड़ पपड़ी नहीं है। अर्थात पापड़ किसी चीज़ की परत नहीं है। स्पष्ट है कि पपड़ी के रूपाकार और लक्षणों के आधार पर पपड़ीनुमा दिखनेवाले एक खाद्य पदार्थ को पापड़ कहा गया। चना, उड़द या मूँग की दाल के आटे से बनी लोई को बेलकर खास तरीके से बनाई अत्यंत पतली-महीन चपाती को पापड़ कहते हैं। पापड़ बनाने की प्रक्रिया बहुत बारीक, श्रमसाध्य और धैर्य की होती है इसीलिए हिन्दी को इसके जरिए पापड़ बेलना जैसा मुहावरा मिला जिसमें कठोर परिश्रम या कष्टसाध्य प्रयास का भाव है। किसी ने भारी मेहनत के बाद अगर कोई सफलता पाई है तो कहा जाता है कि इस काम के लिए उसे बहुत पापड़ बेलने पड़े हैं। पापड़ में हालाँकि मशक्कत बहुत है और यह देश का यह प्रमुख कुटीर उद्योग है।
पपड़ी और पापड़ शब्द का मूल एक ही है। संस्कृत के पर्पट, पर्पटक या पर्पटिका से पापड़ की व्युत्पत्ति मानी जाती है। हिन्दी समेत विभिन्न बोलियों में इसके मिलते-जुलते रूप मिलते हैं जैसे सिन्धी में यह पापड़ु है तो नेपाली में पापड़ो, गुजराती, हिन्दी, पंजाबी में यह पापड़ है। बंगाली में यह पापड़ी है। दक्षिण भारतीय भाषाओं में भी इससे मिलते जुलते नामों से इसे पहचाना जाता है। मलयालम में यह पापडम् pappadam है तो कन्नड़ में इसे हप्पाला happala है। तमिल में इसे अप्पलम और पप्पपतम् pappaṭam कहते हैं। तेलुगू में इसे अप्पादम कहते हैं। भारतीय भाषाओं में प्रचलित पापड़ के 19 तरह के नाम विकीपीडिया में दर्ज हैं। मराठी में छोटे पापड़ को पापड़ी कहा जाता है। पापड़ हमेशा मसालेदार तीता ही नहीं होता बल्कि मीठा भी होता है। महाराष्ट्र मे चावल या अनाज के आटे से एक विशेष चपाती बनाई जाती है जिसे पापड़ी कहते हैं। इसकी एक किस्म को गूळपापड़ी भी कहते हैं। पपड़ी की व्युत्पत्ति पर्पटिका से ज्यादा तार्किक है। रोटी की ऊपरी परत को मराठी में पापुद्रा कहते हैं जिसमें आवरण, कवच, रक्षापरत का भाव है। यह पापुद्रा भी पर्पट का विकास है कुछ इस तरह-पर्पटिका > पप्पड़िआ > पापुद्रा आदि। इसी तरह पर्पटक > पप्पटक > पप्पड़अ > पापड़ के क्रम में हिन्दी व्यंजनों की शब्दावली में एक नया शब्द जुड़ा।
पर्पटक के मूल में संस्कृत की पृ धातु है जिसमें रखना, आगे लाना, काम कराना, रक्षा करना, जीवित रखना, उन्नति करना, पूरा करना, उद्धार करना, निस्तार करना जैसे भाव हैं। ध्यान रहे देवनागरी के प वर्ण में ही रक्षा, बचाव जैसे भाव हैं। इसके साथ ऋ का मेल होने से बना पृ। याद रहे देवनागरी का ऋ अक्षर दरअसल संस्कृत भाषा का एक मूल शब्द भी है जिसका अर्थ है जाना, पाना। जाहिर है किसी मार्ग पर चलकर कुछ पाने का भाव इसमें समाहित है। इसी तरह र के मायने गति या वेग से चलना है जाहिर है मार्ग या राह का अर्थ भी इसमें छुपा है। ऋ की महिमा से कई इंडो यूरोपीय भाषाओं जैसे हिन्दी, उर्दू, फारसी अंग्रेजी, जर्मन वगैरह में दर्जनों ऐसे शब्दों का निर्माण हुआ जिन्हें बोलचाल की भाषा में रोजाना इस्तेमाल किया जाता है। ऋ में राह दिखाने, पथ प्रदर्शन का भाव भी है। इसी से बना है ऋत् जिसका अर्थ है घूमना। वृत्त, वृत्ताकार जैसे शब्द इसी मूल से बने हैं। संस्कृत की ऋत् धातु से भी इसकी रिश्तेदारी है जिससे ऋतु शब्द बना है। गोलाई और घूमने का रिश्ता ऋतु से स्पष्ट है क्योंकि सभी ऋतुएं बारह महिनों के अंतराल पर खुद को दोहराती हैं अर्थात उनका पथ वृत्ताकार होता है। दोहराने की यह क्रिया ही आवृत्ति है जिसका अर्थ मुड़ना, लौटना, पलटना, प्रत्यावर्तन, चक्करखाना आदि है। खास बात यह कि किसी चीज़ को सुरक्षित रखने के लिए उसके इर्दगिर्द जो सुरक्षा का घेरा बनाया जाता है उसे भी आवरण कहते हैं। आवरण बना है वृ धातु से जिसमें सुरक्षा का भाव ही है।
इसी तरह प में ऋ के मेल से पृ धातु बनी। इसमें प में निहित पालने पोसनेवाला अर्थ तो सुरक्षा से सबंद्ध है ही साथ ही इसके साथ ऋ में निहित चारों ओर से घिरे रहनेवाली सुरक्षा भाव भी पर्पट या पर्पटिका में जाहिर हो रहा है। पपड़ी मूलतः एक शल्क या छिलका ही होती है जिससे तने की या शरीर की सुरक्षा होती है। पपड़ी जैसा पदार्थ ही पापड़ है। मालवा, निमाड़, गुजरात और महाराष्ट्र में एक से डेढ़ फुट लम्बा, और कुछ कुछ गोलाई लिए हुए एक व्यंजन का नाम भी फाफड़ा है जो इसी पापड़ का रिश्तेदार होता है। मालवा में सेव-पपड़ी का भी खूब चलन है। हिन्दी शब्दसागर में पापड़ा या पापड़ी नाम के एक वृक्ष का भी उल्लेख है जो मध्यप्रदेश, बंगाल, मद्रास और पंजाब में होता है। इसकी पत्तियाँ खूब झड़ती है और इसकी खाल पीलापन लिए सफ़ेद होती है।
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अजित भाई,
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा व अच्छी तरह से शोधी गई जानकारी से पूर्ण है यह पापड़ कथा। कितनी - कितनी जानकारियाँ ले आते हैं आप ! नही तो रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाले
शब्दों की कथा जानने के लिए कितने - कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं अपन जैसे लोगों को।
जय हो!
* रोटी की ऊपरी परत को भोजपुरी में 'पपरा' कहते हैं।
पापड़ की जानकारी आपने बहुत अच्छे तरीके से दी है ...आपका आभार
ReplyDeleteपापड़ के उत्पत्ति के सफर में आनंद आ गया |
ReplyDeleteबधाई
आशा
पापड़ का सफर चटपटा रहा।
ReplyDeleteरोचक जानकारी...याद आ गया नानी ने कैसे हमें पापड़ बेलना सिखाया था..सच है कि खूब मेहनत का काम है.
ReplyDeleteआज आपने खूब पापड बेले ....और कोई काम नहीं है अजित भाई :-) ??
ReplyDeleteसादर शुभकामनायें !
बहुत ख़ूब अजितजी, आपके पापड़ के साथ थोड़ा अचार परोस रहा हूँ:-
ReplyDelete'लोई'* मिली है WikiLeaks से; और हम 'पापड़' बेल रहे है, [*dough]
हम सब है 'मौसेरे भाई' ; चूहा-बिल्ली खेल रहे है.
रंगों का मौसम है यारों; इक दूजे पे पेल रहे है,
'रानी' अब भी राज चलाती; राजाजी तो फ़ैल रहे है.
-mansoor ali hashmi
http://aatm-manthan.com
भाई हम तो पापड़ खाते ही नहीं . लेकिन जानकारी दिलचस्प रही .
ReplyDeleteमैं जब लिखता हूं तो कभी मैने शब्दो पर गौर नही किया और धाराप्रवाह लिखता चला जाता हूं पर आपकी लेखनी पढ़ने के बाद लगता है कि भाई जरा रुको देखो ये शब्द कहां से आया पर फ़िर वही कितना शोध कौन करता है धन्यवाद और आप एक बड़ा पावन कार्य कर रहे हैं आपके अगले लेखो की प्रतीक्षा रहेगी
ReplyDeleteपापड़ की कहानी बड़ी उम्दा है! पढ़ कर जानकारी भी मिली और लिखने की शैली का आनंद भी मिला! आभार!
ReplyDeleteपपड़ी और पापड़ तो सुना था लेकिन फाफड़ा पहली बार सुना.. अगर इसकी एक तस्वीर भी पोस्ट कर देते तो देख लेता ...
ReplyDeleteपापड की व्यत्पत्ती पर्पटिका से और उसके भाई बहनें पापडी फाफडा सभी तो परोस दिया आपने । मजेदार चटखारे दार सफर ।
ReplyDeleteहर वो भारतवासी जो भी भ्रष्टाचार से दुखी है, वो देश की आन-बान-शान के लिए समाजसेवी श्री अन्ना हजारे की मांग "जन लोकपाल बिल" का समर्थन करने हेतु 022-61550789 पर स्वंय भी मिस्ड कॉल करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे. यह श्री हजारे की लड़ाई नहीं है बल्कि हर उस नागरिक की लड़ाई है जिसने भारत माता की धरती पर जन्म लिया है.पत्रकार-रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"
ReplyDeleteगजब की जानकारी दी है आपने । बहुत आभार अजीत जी।
ReplyDeleteअजित जी
ReplyDeleteआपके काम की महत्ता से वाकिफ हूं बेशक कभी रूबरू बात नहीं हो पायी। शब्द यात्रा मेरा प्रिय विषय है और मेरी नौकरी का एक काम ये भी है कि बैंकिंग में आने वाले नये शब्दों के हिंदी पर्याय खोजें या बनायें। बहुत मुश्किल काम होता है ये क्योंकि किसी भी आम शब्द को बैंकिंग का चोला पहना कर आपने तो अपना उल्लू साध लिया, अब बेचारा हिंदी वाला उसे कौन सी लंगोटी पहनाये। अभी हमारे उपगवर्नर साहब ने एक नया जुमला दिया new broom syndrome इसे समझना ही मुश्किल। ये वह स्थिति है कि जब किसी बैंक का नया चेयरमैन आता है तो बैंक की बैलेंसशीट में रातों रात सुधार दिखायी देने लगता है। मानो उसने आते ही सब कुछ नयी झाडू़ से बुहार दिया हो। ऐसे हजारों शब्द रोजाना बैंकिंग में घुसे चले आ रहे हैं। हम जब बताते हैं कक्षा में तो संकट यही होता है कि ऐसे शब्दों को समझा तो दें लेकिन अर्थ कैसे दें।/ आप बड़ा काम कर रहे हैं। आपसे बात करनी है।नम्बर दीजिये
सूरज प्रकाश
सूरज प्रकाश
ReplyDeletemail@surajprakash.com