ध
र्म और नीतिशास्त्र चाहे प्रेम की राह में लोभ - लालच की रंचमात्र भी जगह नहीं देखते हैं। मगर भाषाशास्त्र के चौड़े रास्ते पर जब शब्दों का सफर शुरू होता है तो प्रेम यानी अंग्रेजी के love और संस्कृत-हिन्दी के लोभ, लालच, लालसा और लोलुपता जैसे विपरीतार्थी लफ्ज हेल-मेल करते नजर आते है। भाषाविज्ञानियों के मुताबिक संस्कृत मूल के लुभ् में ही अंग्रेजी के लव के जन्म का आधार छुपा है। लुभ् यानी यानी रिझाना, बहलाना, आकृष्ट करना, ललचाना,लालायित होना आदि। जाहिर है कि प्रेम में ये तमाम क्रियाएं शामिल हैं। मगर साथ ही इससे बने लोभ शब्द में लोलुपता, लालसा, लालच, तृष्णा, इच्छा जैसे अर्थ नज़र आते है। लुब्ध, लुभना, लुभाना, लुभाया, लुभावना, लोभ, लोभी, लोभनीय, लोभित जैसे शब्द इसी लुभ् से बने हैं।
लुभ् का ही एक रूप नजर आता है इंडो-यूरोपीय शब्द लुभ् यानी leubh में जिसका मतलब भी ललचाना, रिझाना, चाहना था। प्राचीन जर्मन भाषा ने इससे जो शब्द बनाया वह था lieb. प्राचीन अंग्रेजी में इससे बना lufu. बाद में इसने luba का रूप ले लिया। लैटिन में भी यह libere बनकर विराजमान है। बाद में आधुनिक अंग्रेजी में इसने love के रूप में अपनी जगह बनाई और प्रेम, स्नेह लगाव और मैत्रीभाव जैसे व्यापक अर्थ ग्रहण किए। यही नहीं, अंग्रेजी में बिलीफ और बिलीव जैसे शब्द भी इसी लुभ् की देन हैं जिनका लगातार अर्थ विस्तार होता चला गया। जाहिर है भाषा विज्ञान के आईने में कबीर की संकरी सी प्रेमगली ऐसा हाईवे नजर आता है जो सीधा खाला के घर तक जाता है।
...जहां काम है, लोभ है,और मोह की मार । वहां भला कैसे रहेनिर्मल पावन प्यार ।।
इसी कड़ी में संस्कृत की एक अन्य धातु लल् भी है जिसमें अभिलाषी, इच्छुक, क्रीड़ा- विनोद का भाव आता है। जीभ लपलपाना भी इसमें ही शामिल है। लालायित शब्द इससे ही बना है जिसका मतलब होता है इच्छुक, उत्साहित आदि। हिन्दी का लार शब्द बना है संस्कृत के लाला से । प्यार और प्रेम की भावना का आर्द्रता से रिश्ता होता है। आकर्षण हो या अन्य खिंचाव , परिणति आर्द्रता ही है।
दुलार, दुलारना जैसे शब्द इसी कड़ी से बंधे हैं। दुलारा या दुलारी वही है जो स्नेहसिक्त है, जिसे प्यार किया गया है। पालन के साथ जो लालन शब्द जुड़ा है उसमें भी यही लाड़-प्यार का भाव है । जिसे प्यार किया जाता है वही है लाल । प्रिय, सुंदर, मनोहर , मधुर, आकर्षक, वैविध्यपूर्ण और क्रीड़ाप्रिय ही ललित है। देवी दुर्गा का भी एक नाम ललिता इन्ही भावों की वजह से है। लालित्य भी इससे ही बना है। आर्द्रता वाले भाव को और भी स्पष्ट करने वाला एक शब्द है लालस । यह बन है लस् धातु से जिसमें चमक , उद्दीपन, जगमग, शोभायित होना, किलोल आदि भाव शामिल हैं। हिन्दी का लालच इसी का रूप है। लालसा में एक किस्म की प्यास है। प्यास के साथ तरलता का रिश्ता है। लालसा के साथ इसीलिए तृप्त होने का संबंध है। गौर करें कि लोभी के चेहरे पर लालच की चमक होती है। लालच के मारे लार टपकने जैसा मुहावरा भी इन्ही भावों के अंतर्संबंध को स्पष्ट कर रहा है।