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Thursday, December 31, 2009
मित्र-चर्चा के साथ नए साल का स्वागत
Wednesday, December 30, 2009
मगजपच्ची से भेजा-फ्राई तक
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Tuesday, December 29, 2009
कँवर साब का कुँआरापन
कम् धातु में निहित स्नेह और अनुराग जैसे भावों के बावजूद इन्सान अपनी ही संतान यानी कुमार/कुमारी में फर्क करने लगा |
संबंधित कड़ी-जवानी दीवानी से युवा-तुर्क तक
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Monday, December 28, 2009
कैंची, सीजर और क़ैसर
Saturday, December 26, 2009
चोरी और हमले के शुभ-मुहूर्त
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Friday, December 25, 2009
मामा शकुनी, सुगनचंद और शकुन्तला
क्रिसमस पर मंगलकामनाएं
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Thursday, December 24, 2009
लंगर में लंगूर की छलांग
…लंगर चाहे खुद हिलता-डुलता हो, पर जिससे वह बंधा रहता है, उसे ज़रूर स्थिरता प्रदान करता है…लंगर के दीगर मायने खूंटा, बिल्ला, चिह्न भी हैं…
... गुरु की ओर से प्रसाद के बतौर लंगर यानी सदाव्रत चलता है।...
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Wednesday, December 23, 2009
कसूर किसका, कसूरवार कौन? [आश्रय-26]
ताजा कड़ियां- सब ठाठ धरा रह जाएगा…[आश्रय-25] पिट्सबर्ग से रामू का पुरवा तक…[आश्रय-24] शहर का सपना और शहर में खेत रहना [आश्रय-23] क़स्बे का कसाई और क़स्साब [आश्रय-22] मोहल्ले में हल्ला [आश्रय-21] कारवां में वैन और सराय की तलाश[आश्रय-20] सराए-फ़ानी का मुकाम [आश्रय-19] जड़ता है मन्दिर में [आश्रय-18] मंडी, महिमामंडन और महामंडलेश्वर [आश्रय-17] गंज-नामा और गंजहे [आश्रय-16]
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Monday, December 21, 2009
लिफाफेबाजी और उधार की रिकवरी
लिफाफा से जुड़े कई मुहावरे प्रचलित हैं जैसे बंद लिफाफा। आमतौर पर गूढ़ और अबूझ व्यक्ति के लिए यह उपमा है… | ![]() |
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Saturday, December 19, 2009
भेड-चाल से भेड़िया-धसान तक
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Friday, December 18, 2009
जल्लाद, जल्दबाजी और जिल्दसाजी
गौर करें कि बांधने के लिए गठान लगाना जरूरी होता है। जलादा में निहित बंधन के भाव का थोड़ा विस्तार से देखना होगा। हिन्दी में शीघ्रता के लिए एक शब्द है जिसे जल्द या जल्दी कहते हैं। इससे जल्दबाजी जैसा शब्द भी बनता है जिसका मतलब है शीघ्रता करना। उतावले शख्स को जल्दबाज कहते हैं। यह इसी धातु निकला शब्द है। जल्द का मतलब होता है कसावट, दृढ़ता, ठोस, पुख्ता आदि।
ध्यान देने की बात है कि जल्दी यानी शीघ्रता में काल के विस्तार को कम करने का भाव है। अर्थात दो बिंदुओं के बीच का अंतर कम करना ताकि फासला कम हो। नजदीकी का ही दूसरा अर्थ घनिष्ठता, प्रगाढ़ता और प्रकारांतर से मजबूती है। हालांकि व्यावहारिक तौर पर देखें तो जल्दबाजी का काम पुख्ता नहीं होता। जाहिर है किसी जमाने में जल्द या जल्दी का अर्थ पुख्तगी और पक्केपन के साथ शीघ्र काम करना था। कालांतर में इसमें शीघ्रता का भाव प्रमुख हो गया।
बंधन होता ही इसलिए ताकि उससे मजबूती और पक्कापन आए। शरीर की खाल या त्वचा के लिए उर्दू, फारसी और अरबी में एक शब्द है जिल्द। हिन्दी में जिल्द का मतलब सिर्फ कवर या आवरण होता है। किताबों के आवरण या कवर को भी जिल्द कहते हैं। नई पुस्तकों को मजबूत और टिकाऊ बनाने के लिए उन पर जिल्द चढ़ाई जाती है। जिल्द चढ़ानेवाले को जिल्दसाज कहते हैं। अरबी में इसके शब्द भी है। पुस्तक की प्रतियों या कॉपियों को भी जिल्द कहा जाता है जैसे– किताब की चार जिल्दें आई थीं, सब बिक गईं।
उर्दू में त्वचा के लिए जिल्द शब्द का ही प्रयोग होता है। प्रकृत्ति ने शरीर के नाजुक अंगों का निर्माण करने के बाद उन पर अस्थि-मज्जा का पिंजर बनाया और फिर हर मौसम से उसे बचाने के लिए उसक पर जिल्द चढ़ाई। जाहिर है इस जिल्द की वजह से ही शरीर में कसावट आती है। ज़रा सी जिल्द फटी नहीं और सबसे पहले खून निकलता है। ज्यादा नुकसान होने पर पसलियां-अंतड़ियां तक बाहर आ जाती हैं। जाहिर है जिल्द यानी त्वचा एक बंधन है। दार्शनिक अर्थों में तो समूची काया को ही बंधन माना गया है, जिसमें आत्मा कैद रहती है।
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Thursday, December 17, 2009
शराबी की शामत, कबाबी की नहीं
टिक्का कबाब विशुद्ध भारतीय नाम है। टिकिया शब्द बना है संस्कृत शब्द वटिका के वर्णविपर्यय से जिसका अर्थ है गोल चपटी लिट्टी या लोई। इसका रूपांतर ही टिक्का के रूप में हुआ। समझदार गृहिणिया शाकाहारियों के लिए कटहल, सोयाबीन, जिमीकंद के कबाब बनाती हैं जो किसी मायने में असली कबाब से कमतर नहीं होते।
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