Sunday, April 26, 2009

मार्को पोलो का सफरनामा

logo इस बार पुस्तक चर्चा कर रहे हैं पंद्रह वर्षीय अबीर जो भोपाल के केन्द्रीय विद्यालय में 11वीं कक्षा के छात्र हैं। इतिहास, भूगोल में बहुत दिलचस्पी रखते हैं। मानचित्र-पर्यटन के शौकीन हैं। पिछले दिनों हमारे संग्रह से मार्को पोलो पुस्तक इन्होंने पढ़ी तो हमने भी समीक्षा मांग ली।
वे लोग दस दिन बिना खाना खाए घुड़सवारी करते रहते थे और अपनी शारीरिक शक्ति बनाये रखने की लिए घोड़े की कोई नस खोल कर खून की धार को अपने मुंह मे छोड़ देते। मंगोल सैनिकों की इसी शारीरिक शक्ति ने उन्हें संसार का सबसे बड़ा अर्धांश जीतने में सहायता दी। असली मंगोल लोग इसी तरह होते थे।
निरंतर सैन्य अभियानों में व्यस्त रहने वाले मंगोल सैनिकों की एक बानगी भर पेश करता है उपरोक्त वाक्य। वेनिस के इतिहास प्रसिद्ध यात्री ''मार्कोपोलो'' के यात्रा अनुभवों पर आधारित पुस्तक का ये अंश है और किताब बहुत रोचक है। ये पुस्तक 13वी सदी में मार्कोपोलो और उसके पिता की वेनिस से पीकींग तक की यात्रा का वर्णन करती है। मार्कोपोलो की पुस्तक का मूलपाठ मौले और पेलियट का अनुवाद है। इस पुस्तक के लेखक मॉरिस कॉलिस हैं और अनुवादक उदयकांत पाठक हैं। इसे सन्मार्ग प्रकाशन दिल्ली ने प्रकाशित किया है। इस पुस्तक में पोलो की चारित्रिक विशेषताओं को बताने के लिए यद्यपि काफी जानकारी नहीं है पर कम से कम उसकी बुद्धि की झलक तो मिल ही जाती है। वह अधिक पढ़ा लिखा नहीं था और उसकी पुस्तक की शैली में कुछ भी अनोखा या कलात्मक सा नहीं है मगर जो है, वह बांधे रखता है।
मार्कोपोलो की इस यात्रा का प्रारंभ 1271 में सत्रह वर्ष की उम्र में होता है। वेनिस से शुरू हुई उसकी यात्रा में वह कुस्तुन्तुनिया से वोल्गा तट, वहां से सीरिया, फारस, कराकोरम, कराकोरम से उत्तर की ओर बुखारा से होते हुए मध्य एशिया में स्टेपी के मैदानी से गुज़रकर पीकिंग पहुंचता है, जहां उसके पिता और चाचा कुबलाई खां के दरबार में अधिकारी हैं। इस पूरी यात्रा में साढ़े तीन वर्ष लग जाते हैं और इस अवधि में वह मंगोल भाषा सीख लेता है। पीकिंग में उसकी नियुक्ति मंगोल साम्राज्य की सिविल सेवा में हो जाती है। ऊपर की रूपरेखा में वर्णित सभी प्रदेश मंगोल साम्राज्य के अंतर्गत आते थे, जिसकी स्थापना 1206 में चंगेज खां ने मंगोल कबीलों की विकराल फौज की मदद से की थी। 1260 तक मंगोलों का उस समय ज्ञात विश्व के चार बटे पांच हिस्से पर अधिकार था, जिसकी सीमा चीन से लेकर जर्मनी तक और साइबेरिया से लेकर फारस तक थी। पोलो सिल्कमार्ग से होकर पीकिंग पहुंचता है और पंद्रह वर्ष तक वहां रहते हुए खाकान की निष्ठापूर्वक सेवा करता है और फिर यूरोप लौट जाता है।
न पंद्रह वर्षों में वह एक बड़ा अधिकारी बन जाता है। वह कुबलाई खां के प्रतिनिधि के रूप में श्रीलंका, फारस, भारत और दक्षिण पूर्वी एशिया के अन्य देशों की की यात्रा करता है और यहां रहने वाले लोगों का वर्णन करता है। वह अंडमान निकोबार के आदिवासियों के बारे में भी बताता है और  बर्मा के पैगोडा और श्रीलंका के बौद्ध मंदिरों की भी प्रशंसा करता है। 1295 में पोलो फिर वेनिस पहुंचता है और एक व्यापारिक
... बुखारा में पोलो परिवार...PolosInBukhara
युद्ध में जिनोआ(प्राचीन इटली का एक राज्य, कोलम्बस भी यहीं का निवासी था) द्वारा बंदी बना लिया जाता है, जहां क़ैद में रहते हुए उसकी मुलाकात रस्तिशेलो नाम के व्यक्ति से होती है जो उसके एशिया के अनुभवों को कलमबद्ध करता है। यह पुस्तक उस काल के यूरोपियनों के लिए समझ से बाहर की चीज़ थी और उन्होंने एशिया की ज़्यादातर बातों पर यकीन करना काफी मुश्किल पाया। पोलो के मरते समय उसके कुछ मित्रों ने उसे पुस्तक में संशोधन करने के लिए कहा, लेकिन पोलो ने इनकार करते हुए कहा कि उसने जो देखा उसका आधा भी नहीं लिखा। उसकी पुस्तक जनसाधारण द्वारा समझी नहीं गई थी और विद्वानों ने उसे पसंद नहीं किया क्योंकि वे उसे उस समय के ज्ञान से संबंधित करने में असफल रहे थे। पोलो जब मरा तब वह सत्तर वर्ष का था और काफी धनी हो चुका था।
इस पुस्तक के कुछ दिलचस्प अंश हम शब्दों के सफर में प्रकाशित कर चुके हैं। देखें-
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें

22 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर सूचनात्मक पुस्तक चर्चा के लिए अबीर बेटे को बधाई। अवकाश का सदुपयोग किया जा रहा है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

पुस्तक चर्चा अच्छी रही,
अबीर की रुचियाँ सही दिशा में बढ़ रही हैं।
बधाई।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

मार्को पोलो के जीवन चर्चा अबीर ने गागर मे सागर भर दिया . अबीर की समीक्षा को बधाई . पूत के पावँ पालने मे दिख रहे है . चलिए इनके कारण भूगोल के भी जानकार हो जायेंगे हम लोग

Sachi said...

कई बार मैं यह सोचता हूँ कि पिछले करीब ५०० वर्षों में हमारा खान पान कितना बदला है ! स्पेनी अपने साथ आलू टमाटर लाये, मार्को पोलो अपने साथ इटली में पास्ता चीन से लेकर आया, जहाँ से वह पूरे एउरोप में फ़ैल गया.

सुबह की कॉफी और कई लोगों के लिए बहुत ही ज़रूरी चीज़ तम्बाकू अब सारी दुनिया के लिए अपरिहार्य हो चुके हैं. वैलेंटाइन डे वाला चाकलेट मौलिक रूप से मेक्सिको का है.

कवाब, पूरी, परांठा, खीर को सारी दुनिया के लोग खाते और पसंद करते हैं.

के सी said...

अबीर बधाई हो, मैंने कक्षा दस में पढ़ते समय एक कविता पर अपने मन की बात सरिता नामक पत्रिका में लिखी थी जिसने पत्रों में स्थान पाया था जबकि आपने तो इस उम्र में पूरी पुस्तक समीक्षा लिख डाली, इस उम्र में पाठ्य पुस्तकों से पीछा छूट जाये यही कम बात है क्या ? आपकी इस रूचि का सम्मान करते हुए एक पंक्ति "भारतीय भाषाओँ में लेखन को व्यवसाय बनाकर जीविका चलाना बेहद दुष्कर है और यही आप अगर अंग्रेजी में करते हैं तो भले ही आसन ना हों नामुमकिन नहीं है" यह मेरा व्यक्तिगत विचार मात्र है, उज्ज्वल भविष्य की कामनाएं.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

सुन्दर चयन...सार्थक चर्चा...श्रेष्ठ समीक्षा.
==============================
अबीर, इतने धीर गंभीर हो कि सच कहूँ
कलमगोई की बड़ी सम्भावना का बीज
दिख रहा है मुझे तुममें !...
नाम और काम
दोनों सार्थक करो..यही मंगलाशा है.
==============================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

अनिल कान्त said...

अबीर आपने बहुत अच्छी समीक्षा की है ....आप यूँ ही आगे बढ़ते रहेंगे और कामयाबी छुएंगे इस कामना के साथ

मीनाक्षी said...

अबीर के पुस्तक प्रेम ने तो मन मोह लिया..समीक्षा भी खूब रही...अबीर बेटे को बहुत बहुत प्यार और आशीर्वाद...

Unknown said...

अबीर ने बहुत बढि़या समीक्षा लिखी है। उसे आशीर्वाद। अबीर तुम भी अब नियमित लिखना शुरु कर दो।
इसी ब्‍लॉग का उपयोग करो या फिर अपना नया चिठृठा बना लो।
चाहे जैसे लिखो पर लिखते रहो।

Abhishek Ojha said...

इस पुस्तक और अबीर दोनों से परिचय के लिए धन्यवाद. अबीर क्या विज्ञान के विद्यार्थी हैं? कैरियर या पढाई से जुडी किसी बात पर कुछ मदद की जरुरत हो तो हमें हुक्म किया जाना चाहिए. शायद हम किसी काम के निकल जाएँ.

Gyan Dutt Pandey said...

यह लड़का तो बहुत होनहार है। बहुत सुन्दर।

अजित वडनेरकर said...

अबीर के उत्साहवर्धन के लिए आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया...

विधुल्लता said...

अबीर को धन्यवाद ...बेहद रोचक पुस्तक की चर्चा हेतु

sanjay vyas said...

क्या बात है! इस यात्री के यात्रा वृत्तान्त की किताब से लगता है अबीर की ज्ञान और खोज में सहज रूचि है. अनेक शुभकामनाएं.looking forward for the next from u abeer.

Rajeev (राजीव) said...

क्या खूब समीक्षा करी है! चि. अबीर को इस समीक्षा पर हमारी बधाई अग्रेषित करें। हाँ, मानचित्र पर्यटन के तो हम भी शौकीन रहे हैं। अब तो इंटरनेट पर यह और भी ज्ञानवर्धक और रुचिकर हो गया है।

RDS said...

उत्तम समीक्षा वही जो मूल पुस्तक के प्रति गहन लालायित कर दे | और यहाँ अबीर अपने प्रयास में खरे उतरे हैं | समीक्षा को आद्योपांत पढा ; अब पुस्तक को भी उसकी समीक्षा की तरह ही आद्योपांत पढ़ने की लालसा बलवती हो गयी है |

फिर कुछ और जिज्ञासा जन्मे तो अबीर तो है ही |

- RDS

सागर नाहर said...

अगर लिखने का यह पहला ही प्रयास है तो यकीनन बहुत ही सुन्दर प्रयास है। अबीर आप पुरे अंकों से उत्तीर्ण हुए।
अजीतजी,
आपको भी बहुत बहुत बधाई।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अबीर बेटे को बधाई। Well done Son !! :)

Richa T Parashar said...

बहुत अच्छे अबीर... तुम अपनी छुट्टियों का बहुत अच्छा उपयोग कर रहे हो. Keep the good work going!!!

Arkjesh said...

बहुत बढ़िया लिखा है |

बोधिसत्व said...

सुंदर पुस्तक चर्चा के लिए अबीर बेटे को बधाई....आशीष...

Rajat Narula said...

बहुत उत्तम रचना है !

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