हि न्दी में बस्ता एक ऐसा शब्द है जिसे हर बच्चा अपने भाषाज्ञान के शुरूआती दौर में ही सीख लेता है। बस्ता शब्द दरअसल फारसी का है मगर जन्मा संस्कृत शब्द बद्ध से है। बद्ध का अर्थ होता है बांधा हुआ, जकड़ा हुआ, दबाया हुआ या कस कर रोका हुआ। संस्कृत के इसी बद्ध ने प्राचीन ईरानी में बस्तः रूप ग्रहण किया। यही बस्तः फारसी और उर्दू में भी नज़र आता है जैसे दस्तबस्तः यानि विनम्रता के साथ हाथ बांधकर, जोड़कर स्वागत करना। इसे हिन्दी उर्दू में दस्त-बस्ता भी लिखा-बोला जाता है। करबद्ध यही है और एक मायने में नमस्कार भी क्योंकि करबद्ध में हाथ जोड़ने का भाव स्पष्ट है। नमस्कार में यूं तो झुक कर अभ्यर्थना की भावना निहित है पर प्रचलित अर्थ में करबद्ध मुद्रा ही नमस्कार के तौर पर जानी जाती है।
बहरहाल, संस्कृत का बद्ध अवेस्ता में
बस्तः हुआ जिसका मतलब हुआ जिसे
बांधकर, जमा कर, तह कर या गठरी बांधकर रखा गया हो। इसी से बना फारसी-उर्दू में बस्ता यानी स्कूल बैग या पोथी-पोटली। पुराने जमाने में विद्याध्ययन के लिए छात्रों को दूर दूर तक जाना पड़ता था और वे घर से कई तरह का सामान साथ ले जाया करते थे। तब सफर भी पैदल या घोड़ों पर ही तय किया जाता था जाहिर है सामान को सुरक्षित रखने के लिए उसे बेहद विश्वसनीय तरीके से बांधकर या जकड़ कर रखा जाता था। यह क्रिया पहले
बद्ध कहलाई फिर इससे
बस्तः शब्द बना और बाद में
बस्ता के रूप में स्कूलबैग के अर्थ में सिमट कर रह गया।
बांध कर रखने क्रिया के चलते ही इसे बिस्तर का रूप लेने में ज्यादा समय नहीं लगा। हिन्दी का आमफ़हम शब्द बिस्तर या बिस्तरा मूल रूप से फारसी शब्द है जिसका में मतलब शय्या या बिछौना ही होता है। किसी शब्द की अर्थवत्ता कितनी व्यापक है यह तब उजागर होता है जब उससे मुहावरे जन्म लेने लगें। बद्ध शब्द से जन्मे बस्ता और बिस्तर यहां कामयाब नज़र आते हैं क्योंकि इनकी मौजूदगी मुहावरों में भी नज़र आती है मसलन घर जाने की तैयारी अथवा काग़ज़ पत्र समेटने के अर्थ में बस्ता बांधना, बिस्तर लपेटना या बिस्तर बांधना खूब बोले जाते हैं। इन तमाम मुहावरों के मूल में किसी मुहीम की तैयारी या योजना के मुकम्मल होने का ही भाव है। बीमारी के सन्दर्भ में बिस्तर से लगना मुहावरा आम है।
बिस्तर के लिए ही हिन्दी का दूसरा आम शब्द है
बिछौना। यह शब्द बिस्तर की तुलना में ज्यादा अर्थवत्ता रखता हैं। बिस्तर में जहां गद्देदार व्यवस्था की बात निहित है वहीं बिछौना में बिस्तर से लेकर दरी तक सब आ जाते हैं। इसके विभिन्न रूप देखिये-
बिछायत यानी वह व्यवस्था जिस पर लेटा या बैठा जा सके इसके तहत बिस्तर, बिछौना से लेकर पलंग, चारपाई, जाजम, चांदनी सब आ जाता है। इसी तरह
बिछावना अर्थात जिसे बिछाया जाए यानी बिस्तर, दरी, कालीन, चादर, चटाई कुछ भी। शैलेंद्र के एक प्रसिद्ध गीत की पंक्ति है-
तेरा कोई साथ न दे तो तू खुद से प्रीत जोड़ ले/बिछौना धरती को कर ले, अरे, आकाश ओढ़ ले...किसी शायर की यह भावना भी क्या खूब है-
नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है, उसके आग़ोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं...बहरहाल, ये तमाम शब्द
बिछना/बिछाना क्रिया से बने हैं जिसके मूल में है संस्कृत धातु
स्तृ जिसमें फैलाने, बखेरने, ढापने, आच्छादित करने, छावन करने का भाव है।
स्तृ में
वि उपसर्ग लगने से बनते हैं
विस्तृत, विस्तार, विस्तारित जैसे शब्द जिसमें बिछौने में छुपे
…बिछौना धरती को कर ले अरे आकाश ओढ़ ले… ... नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है, उसके आग़ोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं......
बिस्तर के भाव साफ नुमांया हो रहे हैं। जिसे विस्तारित किया जाए, वही बिछौना-बिस्तर है। गौरतलब है कि
बिछौना या
बिस्तर को तह कर या घड़ी कर, या बांध कर रखने की परम्परा रही है। बंधी हुई चीज़ को फैलाना, खोलना, विस्तारित करने का भाव ही बिस्तर-बिछौने में समाया है। बिछना क्रिया का विस्तार देखिये-
विस्तरणीयं > विच्चरनीयं > बिछरनीय > बिछनी > बिछना।
बद्ध और बस्त से न सिर्फ हिन्दी में बल्कि उर्दू-फारसी में भी कई शब्द बनें हैं। पहले बात बस्तः या बस्त की। व्यवस्था, प्रबंध अथवा इंतेजामात के अर्थ में आमतौर पर बंदोबस्त शब्द का इस्तेमाल होता है। इसमें जो बस्त है वह बद्ध से ही आया है । मज़े की बात यह कि जो बंद है उसका मतलब भी बंधन या गांठ से ही है। दिलचस्प यह भी है कि फारसी में बंदोबस्त भी चलता है और बस्तोबंद भी, मगर हिन्दी में बंदोबस्त ही आम है। रिश्ता, तअल्लुक के अर्थ में भी बस्तगी शब्द बोला जाता है। बद्ध भी कई शब्दों में मौजूद है जैसे मजबूत पकड़ के लिए बद्धमूल शब्द जिसका मतलब हुआ जिसकी जड़ तक गहराई तक गई हो। दृष्टिबद्ध यानि टकटकी लगाए देखने वाला। करबद्ध यानी हाथ जोड़ना। हवाई चप्पलों का इस्तेमाल करने वाले जानते हैं कि अंगूठे की गिरफ्त में रहने वाली रबर की गांठ या ठीये को बद्दी कहते हैं। दरअसल शुद्धरूप में यह बद्धी है जिसका मतलब है बांधने की डोर या रस्सी अर्थात जिससे चप्पल के तले से पैर बंधे रहें।
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17 कमेंट्स:
आपसे बढिया आदमी कोई नहीं। आपकी इस पोस्ट ने जी प्रसन्न कर दिया यह बता कर कि मैं मेरी 'बध्द' और 'बस्ता' को लेकर जानकारियां पूरी तरह सही हैं।
आपने तो मार्निंग गुड कर दी।
बस्ता, बिस्तर और बिछौना, सबकी खोली पोल,
सुबह हो गयी कर लो भैया, अपना बिस्तर गोल,
बिस्तर से उठते ही बिस्तर,बिछोने की बात अच्छी लगी . बचपन मे बस्ता हर क्लास मे नया लेने की जिद करते थे लेकिन पुराने से काम चलाना पड़ता था .
कचहरी मे आज भी वकीलों के बिस्तर होते है और बस्ता भी
बिस्तर बिछाने को हिन्दी में शायद डासना भी कहते हैं .यह देखिये -
डासत ही यह रात गयी
तुलसी कबहूँ न नीद भर सोये !
अजित जी,
सफ़र ने ही शब्द संसार की
विभूति का परिचय देकर हमें
जिज्ञासा वृद्धि का उपहार दिया है,
पर उसे शांत करने का 'बंदोबस्त' भी
इस तरह कर दिया आपने कि बिस्तर पर जाएँ
ओ सफ़र सपनों में आता है...बिस्तर छोडें
तो यहाँ पहुँचकर स्वप्न सच में बदल जाता है !
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वाग्देवी सदैव आप पर प्रसन्न रहें, यही कामना है.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
आज यह भेद खुला है
कि बस्ताधारकों को
आती है नींद क्यों
अपार
इसी से हुआ है
बिस्तर का विस्तार।
बस्ते से ही जुड़े हुए हैं
बिस्तर के तार
बिस्तर वाले सपनों में
खुलते हैं रचनाओं के
विविध विषय प्रकार।
इससे नहीं कर सकेंगे
अजित जी भी इंकार
जब बिस्तर पर लेटे थे
तभी पाया था पोस्ट
यह लिखने का विचार।
बस्तः से ही तो बस्ती भी हुआ होगा?
स्कूल का सफ़र तो बस्ते के साथ शुरू हुआ मगर बस्ते के सफ़र की कहानी आज पता चली।जानकारी बढाने के लिये आभार्।
ज्ञान का ऐसा बंदोबस्त!! बहुत मस्त!!
बांधने बिछाने को न्यूनतम हो; सब जाये बांटने में - मानव का विस्तार तो उसी में है।
आपकी पोस्टें टेंजेंशियल सोचने का मसाला देती हैं।
दिनेशराय द्विवेदी
बसाहट के अर्थ में जो बस्ती है उसकी रिश्तेदारी वस् धातु से बने वासः से ही। इससे ही अनेक शब्द बने हैं जो आश्रय का भाव रखते हैं विस्तार से देखें लिबास,निवास और हमारा बजाज
अरविंद मिश्र
सही है अरविंदजी। अलबत्ता 'डासना' का अर्थ पूर्वी बोलियो में बिछौना है या नहीं,यह तय नहीं है मगर 'डासत' शब्द के पीछे यहां भाव शयन की व्यवस्था करते रहने से या "बिछाते-बिछाते" से ही है।
बहुत सही है जी.
रामराम.
छोटा करके देखिये, जीवन का विस्तार !
आंखों भर आकाश है, बाँहों भर संसार !!
- निदा फाज़ली
चैन की नींद से बड़ा सुख और क्या ? अभागा वह जो धन कमाए बिछौना सजाए पर सो न पाए ! बिस्तर अनेक; पर एक झपकी को तरसता बेचारा आदमी ! मेहनतकश के लिए पुआल पर स्वर्ग सी शैया ; अलाल को मलाल ही मलाल !!
सो, दिल में चैन हो तो बिस्तर की क्या बिसात !! बिछात हो न हो नींद खुद पलक पांवडे बिछाए तैयार !! मन से राग द्वेष और चाहना हटे तो निंदिया रानी से भेंट हो | बिस्तर की खूब कही !
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट । ज्ञान की पर्त खोलती है ।
अजित जी ,
मैंने थोडा पूंछ पछोर किया -दसना शब्द बिछौना बिछाने के लिए प्रयुक्त होता है -दसनी कथरी जैसा बिछौना है ! बिस्तर दसाई देने का मतलब है बिस्तर बिछा देना ! शुक्रिया !
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