Saturday, April 4, 2009

कांची से कंचे लड़ाना…

indian_girl_QN45_l ...कंचन के समृद्धि सूचक अर्थ को यौवन की चमक और  सुंदर काया के संदर्भ में देखें...

हि न्दी में शीशा, कांच, ग्लास, आरसी, आईना आदि शब्दों का प्रयोग होता है। अंग्रेजी के मिरर का इस्तेमाल होता है। सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाले शब्दों में हैं शीशा और कांच। मराठी में कांच के लिए आरसा शब्द ज्यादा प्रचलित है जो आरसी का ही परिवर्तित रूप है। ये तमाम शब्द भारोपीय भाषा परिवार से संबंधित हैं।
कांच शब्द का प्रयोग बतौर आईना भी होता है और बतौर दर्पण भी। कांच kanch बना है संस्कृत के कञ्च् से जिसका अर्थ चमक भी होता है और बंधन भी। ये दोनों भाव स्पष्ट होते हैं कञ्च् से बने कञ्चारः से जिसका अर्थ है सूर्य। सूर्य से अधिक दैदीप्यमान विश्व में अन्य कोई नहीं है। यह अपनी रश्मियों-किरणों का पाश निरंतर समूचे संसार पर फेंकता है और सृष्टि इसकी रश्मियों से बंधी रहती है। ध्यान दें, हिन्दी का रस्सी शब्द किरण के पर्यायवाची रश्मि का ही अपभ्रंश है। बांधने का भाव रस्सी में समाया है। चमक के अर्थ में ही संस्कृत में इसी कड़ी में बना कञ्चन (कंचन) शब्द जिसका मतलब था सोना, चांदी, चमकदार, मूल्यवान धातु, धन-दौलत, सम्पत्ति, धतूरा आदि। इसके अलावा पृथ्वी के गर्भ से निकलनेवाले सभी मूल्यवान, कांतिवान पदार्थ भी कंचन की श्रेणी में आते हैं जैसे स्फटिक। मनुष्य धन-दौलत अथवा चमक-दमक के बंधन में जीवनभर बंधा रहता है। कंचन kanchan से ही बना कांच। शक्ल निहारने के लिए जब विशिष्ट पत्थरों की खोज हुई जैसे स्फटिक, तो उसे भी कंचन कहा गया इस प्रकार आईने के लिए कांच शब्द का प्रचलन हुआ। गांवों-कस्बों में बच्चे कांच की रंगीन गोलियों से खेलते हैं जिन्हें देशी भाषा में अंटी या कंचा कहा जाता है। कंचा इसी मूल से आया शब्द है। इसमें कांच साफ झांक रहा है। इससे ही कंचे लड़ाना एक मुहावरा भी चल पड़ा जिसका अभिप्राय है उम्र बीतने के बावजूद बचपना कायम रहना। 
ग्रामीण महिलाएं, खासतौर पर राजस्थान और मालवा क्षेत्र में अंगिया अथवा ब्लाऊज की तर्ज पर महिलाएं एक खास वस्त्र पहनती हैं जिसे कांचली कहते हैं। हिन्दी में इसे कंचुकी भी कहा जाता है। यह बना है कञ्चुलिका से। इसमें बांधने का भाव ही प्रमुख है। संस्कृत की बंध् धातु से ही बना है बंधन। फारसी-उर्दू का बंद शब्द इसी बंध् से आया है। बंद करने में ढकने, आवृत्त करने, आवरण, कवर आदि अर्थ समाए हैं। कांचली भी यही काम कर रही है। शरीर के ऊपरी अंगों को ढकने का काम। यह वस्त्र पीछे की ओर से बंधा जाता है। यहां बंधनकारी भाव स्पष्ट हो रहा है। सांप या अजगर हर साल अपना शल्क छोड़ते हैं जिसे केंचुल कहते हैं। यह भी इसी कड़ी का हिस्सा है। सर्प की त्वचा बेहद सुंदर और चमकदार होती है। लगातार झाड़ियों से रगड़ खाते हुए यह पुरानी और क्षतिग्रस्त होकर अपनी चमक खोती रहती है। एक निश्चित अवधि में सर्प इस कञ्चुलिका से मुक्ति पा लेता है अर्थात केंचुल के बंधन से मुक्त हो जाता है, उसे त्याग देता है। इसके बाद ही सर्प की त्वचा फिर दमक उठती है।
…ऐसा शायद ही कोई होगा जिसने बचपन में कंचे न लड़ाए हों… 8a059b7f3b65d5a3d487b5fd04776b18
कंचनी, कांची, कंचनकाया और कंचनकामिनी जैसे शब्द भी हिन्दी में बोले-सुने जाते हैं और इन सभी का प्रयोग सुंदरी, रमणी, विलासिनी, कामिनी अथवा बणी-ठणी को भी कहते हैं। इन सभी शब्दों के मूल में कंचन के समृद्धि सूचक अर्थ को यौवन की चमक, सुंदर काया के संदर्भ में देखें। यूं भी देह की कांति, रूप की चमक की तुलना सोने से की जाती रही है।  नेपाली भाषा में रमणी को कांची ही कहा जाता है। कंचनी में भी इन्ही तमाम भावों के साथ वेश्या, नर्तकी, तवायफ, रखैल आदि जैसे अर्थ भी शामिल हैं जिनमें कहीं न कहीं कञ्च का बंधन वाला अर्थ भी प्रमुख है। बंधनवाले भाव को उद्घाटित करनवाला एक महत्वपूर्ण शब्द और इसी श्रंखला से जुड़ा है। चाभी के रूप में कुंजी शब्द भी हिन्दी में प्रचलित है। ये अलग बात है कि आम बोलचाल में चाभी के अर्थ में नहीं बल्कि विद्यार्थियों के लिए हल किए हुए प्रश्नों की पुस्तिका के लिए कुंजी शब्द ज्यादा इस्तेमाल होता है। कुंजी बना है संस्कृत के कुञ्चिका से। कुञ्च में निहित बांधने का भाव कुञ्चिका में बंधनमुक्ति की अर्थवत्ता पा जाता है। ताले में जो बंधनकारी भाव है, उस पर ध्यान दें। घर को बंद करने का काम दरवाजे के पल्ले करते हैं। पल्लों पर भी ताले का बंधन सुरक्षा को पुख्ता करता है। इस बंधन से मुक्ति दिला रही है कुंजी अर्थात चाभी या ताली।

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16 कमेंट्स:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

कल शीशे कल शीशे का मर्म बताया,
आज कांच को समझाया।
खोज अच्छी रही,
बधाई।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

कंचे का कंचन कह बुजुर्गो को समझा देते की कंचे खेलना बुरा नहीं लेकिन पहले पता नहीं था इसलिए बचपन मे छुप के कंचे खेलने पड़े . नेपाल मे तो लड़की को कांची ही कहते है एक मशहूर गाना है कांची रे कांची रे प्रीत मेरी साची

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप तो खुद शब्दों की कुंजी हैं।

विष्णु बैरागी said...

बिलकुल कंचन जैसी जगर-मगर करती पोस्‍ट।

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर! कंचे लड़ाना मतलब बचपना फ़ैलाना पहली बार समझ में आये!

Dr. Chandra Kumar Jain said...

बचपन की यादें ताज़ा करती
बहुत प्रौढ़ पोस्ट !.....आभार.
=======================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

ताऊ रामपुरिया said...

वाह जी ये तो आज मालूंम पडा.

रामराम.

naresh singh said...

बहुत अच्छी जानकारी दी है । आभार

mamta said...

दिनेश जी की बात को दोहराते है की आप शब्दों की कुंजी है ।

Gyan Dutt Pandey said...

कांचीपुरम में तो साड़ियां ही थीं, न कंचुकी न कंचे! :-)

sanjay vyas said...

आज कंचार के रूप में नया शब्द मिला.अजित जी क्या हमारी काशी भी कांच से जुड़ती है?

Alpana Verma said...

अद्भुत !कंचन समान!
बहुत अच्छा लगा यह लेख

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

मणि कांचन योग हो गया जी :)

सुरेश यादव said...

shabd gyan ka mahatwapurn karya

badhai

Rajat Narula said...

its simply superb.

shyam gupta said...

कंचनी में भी इन्ही तमाम भावों के साथ वेश्या, नर्तकी, तवायफ, रखैल आदि जैसे अर्थ भी शामिल हैं जिनमें कहीं न कहीं कञ्च का बंधन वाला ---ये सब कहां बंधकर रहती हैं, विरुद्ध भाव है

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