बैठक , महफिल,मीटिंग,सम्मेलन आदि के अर्थ में हिन्दी में आमतौर पर बोला जाने वाला शब्द है गोष्ठी। आज की आपाधापी वाले दौर में जिसे देखिये मीटिंगों में व्यस्त है। हर बात के लिए गोष्ठी का आयोजन सामान्य बात है। गोष्ठियां बुलाना और उनमें जाना संभ्रान्त और कुलीन लोगों का शगल भी है। मगर किसी ज़माने में यह शब्द महज़ चरवाहों की बैठक के तौर पर जाना जाता था। गोष्ठी शब्द भारतीय समाज में गाय के महत्व को सिद्ध करनेवाला शब्द है। इससे पहले हम गोत्र शब्द की उत्पत्ति के संदर्भ में भी इसकी चर्चा कर चुके हैं।
प्राचीनकाल में देश की अर्थव्यवस्था कृषि और पशुपालन पर आधारित थी। घर-घर में मवेशी पाले जाते थे जिनमें गोवंश का स्थान सर्वोपरि था। गोष्ठी शब्द बना है गो+ष्ठः = गोष्ठ् अर्थात एकत्र होना, ढेर लगना वगैरह। जाहिर है गायों को जहां एकत्रित किया जाता था उसे ही गोष्ठ् कहते थे। इससे बने गोष्ठः या गोष्ठम् का मतलब हुआ गोशाला, गऊघर। गोवंश की अधिकता की वजह से पुराणों में तो समूचे ब्रजप्रदेश को ही गोष्ठम् कहा गया है । इसके अलावा गोष्ठम् का एक अर्थ ग्वालों के बैठने का स्थान भी है। जब गायों को गोष्ठम् में बांध दिया जाता था तो ग्वाले भी वहीं बैठकर कुछ देर सुस्ताते और चर्चा
करते थे। इसके लिए गोष्ठी शब्द चल पड़ा। ये दिलचस्प बात है कि सदियों पहले अनपढ़ ग्वालों की जिस बतरस-चर्चा के लिए गोष्ठी शब्द ने जन्म लिया कालांतर में उसी शब्द को विद्वानों की समूह-चर्चा के रूप में मान-सम्मान मिल गया। यूं आज हिन्दी में (मालवा, राजस्थान में ज्यादा) पिकनिक के अर्थ में गोठ शब्द प्रचलित है जो इसी मूल से उपजा है।
शास्त्रों में कहा गया है कि विद्या, शील, धन , आयु और बुद्धि में समान लोगों के बीच हो सकने वाले संवाद या चर्चा को ही गोष्ठी कहते हैं। आज गोष्ठी को सम्मेलन, सभा, संवाद, बातचीत, जन-समूदाय, समाज आदि व्यापक अर्थों में देखा जाता है। गुप्तकाल में राजकुलों में काव्यगोष्ठी, शास्त्रगोष्ठी, आख्यानगोष्ठी,चित्रगोष्ठी, वीणागोष्ठी, जल्पगोष्ठी और पदगोष्ठी जैसे विभिन्न सम्मेलनों का उल्लेख है।
Monday, August 20, 2007
कुलीनों की गोष्ठी में ग्वाले
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:20 AM
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10 कमेंट्स:
गो से असंख्य शब्द हैं जो हिंदी में अलग अलग संदर्भों में इस्तेमाल होते हैं जैसे गोशाला, गोबर, गोधन, गोचर, गोधूलि, गोरस आदि. क्या गो से ही बने शब्द गोप और गोपी या गोपिका का संबंध आगे चलकर गोपन, गोपनीय, गुप्त से हुआ...ज़रा विस्तार से प्रकाश डालें.
अच्छा लगा। गोष्टी मतलब ग्वालों के बैठने की जगह। इसीलिये गोष्ठियां अपने नाम को चरितार्थ करती हैं आजकल। कहीं कहीं तो तबेलों में बदल जाती हैं।
गोष्टी मतलब ग्वालों के बैठने की जगह। ..अजब बात है मगर बात तो सही है...जानकारी को आभार.
"मगर किसी ज़माने में यह शब्द महज़ चरवाहों की बैठक के तौर पर जाना जाता था।"
लगता है गोविन्द (कृष्ण) ने इस शब्द को गरिमा प्रदान की होगी! वही एक चरवाहा है जिसकी बराबरी सारे गोष्ठीबाज शायद जीवन भर में न कर पायें!
और word verification से मुक्ति दी - धन्यवाद!
सूरदास गाँव को घोष कहते हैं। कुछ इस पर भी कहें।
मेरा मेल का पता मेरे ब्लॉग में मेरे परिचय के नीचे ही छपा है-
abodham@gmail.com
अनामदास ने अन्य शब्दों की बात की है.. मैं अन्य अर्थों को याद कर रहा हूँ.. एक अर्थ इन्द्रिय भी बताया गया है.. जिससे गोप और गोपी का अध्यात्मिक पक्ष उधेड़ा जाता है.. फिर गोमांस भक्षण की व्याख्या करने में जिह्वा को गले में पलट कर रखने जो सहस्रार से रसस्राव होता है उसका संदर्भ दिया जाता है..इस बचाव में कि वेदों में जिस गोमांस भक्षण की बात है वह असल में यह है.. क्योंकि गो का एक अर्थ इन्दिय है.. इस पर भी कुछ प्रकाश डालें.
अनूपजी, समीरजी,बोधिभाई, अभयजी और अनामजी आपने पोस्ट पढी, आभारी हूं। आपके सुझाव मूल्यवान हैं और उन्हें सहेज लिया है। यथासंभव इन पर काम करने का प्रयास करूंगा। बोधिभाई, घोष पर तो जल्दी ही सामग्री दे रहा हूं, क्योकि यह मैं करने ही वाला हूं। अनामदसजी, गाय के महत्व को स्थापित करनेवाले शब्द कई हैं और उनपर मेरी नजर है। शुक्रिया एक बार फिर।
ज्ञानजी का नाम भूल गया था। कृपया बुरा मत मानिएगा पांडेजी।
अजित जी ,
आपका ब्लोग मुझे बहुत पसंद है.इस बार आपने गोष्ठी शब्द की बहुत तर्कसंगत व्याख्या की है.आपने बताया है कि राजस्थान, मालवा में पिकनिक के लिए गोठ शब्द का प्रयोग किया जाता है.तो मैं आपको बताना चाहूंगी कि झारखण्ड में अदिवासिओं की एक बोली है- सादरी, जिसमें बातचीत या गपशप को गोइठ कहा जाता है.
अजित जी ,
आपका ब्लोग मुझे बहुत पसंद है.इस बार आपने गोष्ठी शब्द की बहुत तर्कसंगत व्याख्या की है.आपने बताया है कि राजस्थान, मालवा में पिकनिक के लिए गोठ शब्द का प्रयोग किया जाता है.तो मैं आपको बताना चाहूंगी कि झारखण्ड में अदिवासिओं की एक बोली है- सादरी, जिसमें बातचीत या गपशप को गोइठ कहा जाता है.
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