आज शब्दों का उत्स जानने का ज़रा भी नहीं था मन। भवानीभाई दो-तीन दिनों से याद आ रहे थे। शब्दों के जादूगर थे भवानीभाई। ये उपमा मेरी नहीं मेरे गुरू और हिन्दी के वरिष्ठ कवि प्रो़. प्रेमशंकर रघुवंशी की है। बहरहाल, मैं उन्हें हिन्दी का सबसे तरल,सरल और इसीलिए विरल कवि मानता हूं। ...जिस तरह हम बोलते हैं , उस तरह तू लिख कहने वाला कवि अन्य कवियों से कितना बड़ा है ये तुलना हम कर सकते हैं, राय बना सकते हैं, थोप सकते हैं मगर भवानीभाई ऐसी हिमाकतों पर क्या कहते हैं देखिये-
लोग सब अच्छे हैं
कवि सब अच्छे हैं
चीज़े सब अच्छी हैं
तुलनाएं मत करो
समझो अलग-अलग सबको
समझो अलग-अलग
देखो स्नेह से और सहानुभूति से
एक हैं सब और अच्छे
चीज़ों की तुलना का क्या अर्थ है।
सब चीजे़ अपने-अपने ढंग से
पूरी हैं और लोग
सब अधूरे है
कवि की अलग बात है
वह न चीजों में आता है
न लोगों में
ठीक-ठीक समाता है उस समय
जब वह लिखता होता है
जो संयोगों के अर्थों
और अभिप्रायों में पड़ा है
वह किससे छोटा है,
किससे बडा़ है
एक ठीक कवि की
किसी दूसरे ठीक कवि से
तुलना मत करो
पढ़कर उन्हें अपने को
अभी ख़ाली करो, अभी भरो !
-भवानी प्रसाद मिश्र
Wednesday, August 22, 2007
लोग सब अच्छे हैं...
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 4:42 AM
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5 कमेंट्स:
वाह भाई, क्या याद किया है.
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ
मैं तरह तरह के गीत बेचता हूँ
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ.......
यही तो मध्य प्रदेशियों की तारीफ. :)
नित्य गोपाल कटारे जी ने गीत बेचता हूँ को गाया भी बहुत सुन्दरता से है, सुनना हो तो बताईयेगा.
आभार इस प्रस्तुति का.
यह लिजिये लिंक और सुनिये और फिर हमारे प्रति मन ही मन आभार कह दिजियेगा :) :
http://www.youtube.com/watch?v=YlghDdP61EU
:)
बहुत अच्छा है। आप शब्दों के सफ़र में चलते-चलते इस तरह की पोस्टें भी लिखते रहें। आपको भी मजा आयेगा, हमें तो खैर आयेगा ही। :)
सारा दुख: तुलना में ही है.
हमारे प्रिय भवानी दादा की कविता प्रस्तुत करने का शुक्रिया ।
कभी मुमकिन हुआ तो हम भवानी दादा की आवाज़ सुनवायेंगे आपको
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