ज्यादा मेहनत के बाद थकान की स्थिति का बखान करते वक्त आमतौर पर पोर-पोर दुखने का मुहावरा सुनने को मिलता है। पोर-पोर का अर्थ होता है एक- एक जोड़ में दर्द होना। थोड़ा और विस्तार में जाएं तो कह सकते हैं कि पर्व की मस्ती में चूर होने और पर्वतारोहण की मेहनत के बाद स्वाभाविक है कि शरीर का पोर-पोर दुखे अर्थात पोर-पोर, पर्व और पर्वत तीनों शब्दों के बीच रिश्तेदारी है। मगर ये अनायास नहीं है बल्कि इसलिए है क्योकि इनका जन्म एक ही मूल से हुआ है और अर्थ लगभग समान है। संस्कृत की मूल धातु पर्व् से इनका निर्माण हुआ है जिसके मायने हैं गांठ , जोड़ या संधि। हिन्दी में पहाड़ के लिए पर्वत या देशी बोलियों में परबत शब्द आम है। इसका जन्म भी इसी प्रक्रिया के तहत हुई है। गौर करें कि जोड़ या गांठ जहां भी होती है वह स्थान कुछ उभरा हुआ, खुरदुरा या ऊबड़-खाबड़ होता है। इसी आधार पर पहाड़ी उभारों के लिए भी पर्व की कल्पना की गई और नया शब्द बना पर्वत। चूंकि पहाड़ों में सर्वोच्च हिमालय है इसलिए इसीसे उसके लिए वैकल्पिक शब्द बने पर्वतराज, पर्वतपति या पर्वतेश्वर। पुराणों में हिमालय की पुत्री के लिए पार्वती नाम इसी से बना। बाद में पहाड़ों से निकलने के कारण नदियों के अनेक नामों में एक नाम पार्वती भी जुड़ गया।
इसी तरह शरीर के संधि स्थल को भी पर्व कहते हैं जैसे घुटना , कहनी, कंधा आदि। इसीलिए लोकबोली में जोड़ के लिए पोर-पोर शब्द चल पड़ा। जोड़ या संधि के अर्थ में ही किसी पुस्तक या ग्रंथ के अध्याय को भी पर्व कहते हैं। गौर करें कि महाभारत में विभिन्न अध्यायों के नाम के साथ भी पर्व शब्द का प्रयोग हुआ है जैसे द्रोण पर्व, भीष्म पर्व।
पर्व का एक अन्य महत्वपूर्ण अर्थ है उत्सव, त्योहार या धार्मिक अवसर। इसका संबंध भी गांठ, जोड़ या संधि जैसे अर्थों से है। प्राचीनकाल में सभी प्रमुख धार्मिक तिथियां ग्रहों की स्थितियों के आधार पर तय की जाती थीं। जैसे सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण। पूर्णिमा अथवा अमावस्या की समाप्ति। ऐसे संधिकाल को ही पर्वसंधि कहा गया । इन तिथियों पर पुण्यकर्म अथवा मांगलिक कार्य तय किये जाते थे। बाद में ये अवसर पर्व यानी त्योहार के अर्थ में प्रचलित हो गए।
Sunday, August 19, 2007
पर्वत से पोर में समाया दर्द
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:46 AM
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6 कमेंट्स:
ज्ञान मानो पोर पोर में समा रहा हो शनैः शनैः. बहुत आभार.
बहुत अच्छा लगा आपका यह पोर-पोर ज्ञान! आभार!
बढ़िया है मित्र..
बिल्कुल, आप जारी रखें. पोर, पर्वत, पीड़ा - आप तो शब्द व्याख्या कर रहे हैं, मुझे दुष्यंत की पंक्तियां याद आ रही हैं - हो गयी है पीर पर्वत सी...
यह वर्ड-वैरीफिकेशन का झंझट हटा दें टिप्पणी में तो सहूलियत होगी.
आपके लेखन पर मुग्ध हूँ लेखिन मूर्ख मत मानिये गा।
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