हम अक्सर खाना, भोजन, आहार आदि शब्दों का प्रयोग करते हैं उदरपूर्ति के संदर्भ में बोले जाते हैं। इनके अलावा मालवी, राजस्थानी बोलियों में जीमना शब्द भी खाने अथवा भोजन के अर्थ में इस्तेमाल होता है। जीमना शब्द बना है संस्कृत धातु जम् से जिसका मतलब होता है आहार। जम् से ही बना है जमनम् जिसमें भोजन, आहार आदि का ही भाव है। इसका एक रूप जेमनम् भी है। मराठी में इसका रूप हो जाता है जेवणं। हिन्दी में इसका क्रिया रूप बनता है जीमना और राजस्थानी में जीमणा। पूर्वी हिन्दी में इसे ज्योनार या जेवनार कहा जाता है। जीमण, ज्योनार शब्दों का लोकगीतों में बड़ा मधुर प्रयोग होता आया है। शादी में विवाह-भोज को ज्योनार कहा जाता है। यह एक रस्म है।
आम बोलचाल में किसी भी समय के भोजन को खाना khana कहा जाता है। यही नहीं, उदरपूर्ति की क्रिया ही खाना कहलाती है। यह शब्द बना है संस्कृत के खाद् से जिसमें शिकार करना, काटना, निगलना, खिलाना जैसे अर्थ शामिल हैं। खाद् से बना खाद्य शब्द जिसका अर्थ होता है भोज्य पदार्थ। खाद् से खादनम्, खादनः जैसे शब्द बने जो खादणअ > खाअण > खाना में रूपांतरित हो गए। खाना शब्द का मुहावरेदार प्रयोग खूब होता है जैसे खा जाना अर्थात हड़प जाना, खाना-पीना अर्थात सुखोपभोग में लीन रहना या काना-कमाना अर्थात गुज़र बसर करना। मगर आजकल खाना-कमाना और खाना-खिलाना अनैतिक कमाई के संदर्भ में खासतौर पर रिश्वतखोरी के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। गौरतलब है कि पेड़ पौधों को बढाने के लिए, भूमि के उपजाऊपन के लिए खाद्य रूप में जो पदार्थ भूमि में डाले जाते हैं उसके लिए बना खाद शब्द इसी मूल से उपजा है। जो खाने योग्य न हो उसे अखाद्य कहते हैं।
संस्कृत की हृ धातु में ग्रहण करना, लेना, प्राप्त करना, निकट लाना, पकड़ना, खिंचाव या आकर्षण जैसे भाव हैं। हृ में आ उपसर्ग लगने से बना है आहार aahar शब्द जिसे आमतौर पर भोजन के अर्थ में प्रयोग किया जाता है। आहार्य का मतलब है ग्रहण करने योग्य। बैंकिंग शब्दावली में विदड्रॉल शब्द के संदर्भ में आहरण शब्द का प्रयोग होता है जो इससे ही बना है। हृदय शब्द भी इसी मूल का है जिसमें आकर्षण, खिंचाव के भाव हैं। इसीलिए कहां जाता है कि मन लगाकर भोजन करना चाहिए।
खाना शब्द के बाद आहार के अर्थ में सर्वाधिक प्रयुक्त शब्द भोजन bhojan है जो भुज् धातु से बना है जिसका अर्थ होता है अंश, टुकड़ा, हिस्सा, खाना, निगलना, झुकाना, मोड़ना, काटना, अधिकार करना, आनंद लेना, मज़ा लेना आदि। गौर करें कि किसी भी भोज्य पदार्थ को ग्रहण करने से पहले उसके अंश किए जाते हैं। पकाने से पहले सब्जी काटी जाती है। मुंह में रखने से पहले उसके निवाले बनाए जाते हैं। खाद्य पदार्थ के अंश करने के लिए उसे मोड़ना-तोड़ना पड़ता है। मुंह में रखने के बाद दांतों से भोजन के और भी महीन अंश बनते हैं। भोजन को मुंह में रखने के लिए हाथ को कलाई के पास से मुड़ना पड़ता है। इसी लिए हाथ के लिए भुजा शब्द बना है। पेटू आदमी के लिए भोजन भट्ट शब्द इस्तेमाल किया जाता है। उदरपूर्ति सर्वाधिक महत्वपूर्ण है इसीलिए भूखे भजन न होई गोपाला, ले ल आपन कंठी माला जैसी उक्ति अक्सर दोहराई जाती है।
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20 कमेंट्स:
काने के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा.
पहले पेट पूजा, बाद में काम दूजा।
--हमारे लिए तो यही ब्रह्म वाक्य है. :)
अच्छी ज्ञानवर्धक पोस्ट. आभार.
.आहार ,भोजन के बारे मे जानकर तृप्त हो गए . जीमना ,ज्योनार आदि के बारे मे भी ज्ञान मिला
हमने तो अभी चाय भी नहीं पी और टिप्पणी कर दी .
पहले काम दूजा कर दिया ना :)
अजित दद्दा,
हमेशा की तरह जानकारी से भरा-मानसिक क्षुधा के शमन के हेतु उपयुक्त !!!
भाई इस पेट पूजा ने बडी मुश्किल खडी कर दी हैं. घरवाली जबरन डाईटिंग करवा रही है, बोलिये ये कोई अच्छी बात है सर्दी के मौसम में?:)
बहुत लाजवाब जानकारी.
रामराम.
ज्ञान-भोग से तृप्त हो गए
सुबह-सवेरे !...लगा की पूजा हो गई.
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
आज सुबह सुबह भोजन चर्चा हुई है। दिन अच्छा ही गुजरेगा।
भाऊ अगदी छान जेवण झाल ।गोड़ तर तुम्ही नेहमी बोलताच,माझ्या कड़ून तीळ-गुळ घ्या।
बहुत सही सर...पहले पेट पूजा ...
पहले भोग, फिर योग! रोचक जानकारी
---मेरे पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें । चाँद, बादल और शाम । तकनीक दृष्टा/Tech Prevue । आनंद बक्षी
भोजन-पंगत के उद्भट योद्धाओं यानि भोजन भट्टों का ज़िक्र ही कई जीवित किम्वदंतियों का स्मरण करा गया. उम्मीद है श्रंखला जारी रहेगी.
रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी ।
बहुत अच्छा ..... प्लेट के बहार खाने के बारे शायद कभी सोचा ही नही. आमतौर पर सभी खाना खाने और खाने के लिए कमाने के बारे मैं सोचते हैं....ये बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर की कुछ और भी सोचा जा सकता है जरूरी चीजों की बारे मैं ...
आज तो पूरी 'षटृरस दावत' हो गई अजित भाई।
अभी पहले पेट पूजा ही दिख रहा है. रोटी और मुंग बीन्स की तस्वीर और दिखा दी आपने. मैं चला भोजन करने. बाद में सोचा जायेगा भुज् धातु के बारे में :-)
बडनेरकर जी , तमारा गुन कसे गावाँ ?
पेलां हूँ सोचतो थो कि 'दीतवार' आखो मालवी आणे देहाती नाँव है 'रविवार' को | बी बी सी आला कैलाश बुधवार हमेसाँ ईके इतवार ई बोलता | कईं-कईं का श्रोता ने एतराज़ करयो कि भई या कईं बात ? आप 'रविवार' के उर्दू में 'इतवार' क्यों बोलो ? कैलाश बुधवार ने बड़ी मिठास में समझायो कि इतवार उर्दू नी है | बल्कि ऊ तो संस्कृत का आदित्य से बन्यो है - आदित्य -> आदित्यवार -> दीतवार -> इतवार | समझ में आयो कि मालवी को 'दीतवार' तो संस्कृत को ई है | आज तमारा लेख ने पाछी खुसी दी कि मालवी को 'जीमणो' संस्कृत की धातु 'जमणम' से चल के बन्यो | मैंने तो ठान ली कि जद भी मौको मिल्यो, ने न्योता छप्या, कि 'प्रीतिभोज' की एवज में 'ज्योनार' ई छपउवाँ |
मालवी की इज्ज़त बढाने वास्ते तमारो भोत भोत धन्यवाद !
- आर डी सक्सेना भोपाल
जीमना
जिसके लिए
जी मना ना करे
वही तो है जीमना।
भोजन
भोज न
नहीं
भो जन करें
भजन नहीं।
पेट पूजा
पहला, दूसरा, तीसरा
पूजा यही है
काम यही है
सब इसी के लिए
कार्यरत हैं।
सारे रास्ते पेट से होकर
यूं ही नहीं जाते हैं
पेट की पूजा तो
बेपेटे भी करने आते हैं।
वाह,बहुत ही बढिया पोस्ट है.दिल खुश हो गया.भोजन और भुज का सम्बन्ध मुझे नही पता था,बहुत रोचक था.ये सफर ज़ारी रहे.
बहुत ज्ञानयुक्त साइट
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