Friday, January 29, 2010

पहले से फौलादी हैं हम…

qutabminar09 पश्चिम मध्य एशिया में तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ईरान के पुरातत्व स्थलों पर मिले लोहे से बने उपकरणों के आधार पर पश्चिमी विशेषज्ञ भी मानते हैं कि फौलाद की खोज, जिसे विज्ञान की भाषा में क्रूसिबल स्टील के नाम से जाना जाता है, भारत में हुई थी।
ब्द बहुरूपिए होते हैं और एक भाषा से दूसरी भाषा में प्रवेश करते हुए कुछ ऐसी शक्ल अख्तियार करते हैं कि असली चेहरे की शिनाख्त मुश्किल हो जाती है। ऐसा ही एक शब्द है फौलाद। इस्पात के अर्थ में हिन्दी में फौलाद शब्द का सर्वाधिक इस्तेमाल होता है। इस शब्द में मुहावरे की अर्थवत्ता है। कठोर, अडिग, अटूट और पुख्ता के अर्थ में इसका प्रयोग होता है जैसे फौलादी जिस्म, फौलादी इरादे आदि। संस्कृत में फौलाद के लिए लौह शब्द का इस्तेमाल होता है जिससे हिन्दी में लोहा बना। फौलाद यानी परिशुद्ध लौह अयस्क, जिसे इस्पात या स्टील कहते हैं, जिससे मजबूत और टिकाऊ उपकरण बनते हैं। ह आश्चर्यजनक है कि इसी लोह् धातु से फौलाद के जन्मसूत्र जुड़े हुए हैं। फौलाद के रूप में जिस पदार्थ को हम जानते हैं उसे हिन्दुस्तान की देन माना जाता हैं। पश्चिम मध्य एशिया में तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ईरान के पुरातत्व स्थलों पर मिले लोहे से बने उपकरणों के आधार पर पश्चिमी विशेषज्ञ भी मानते हैं कि फौलाद का इस्तेमाल, जिसे विज्ञान की भाषा में क्रूसिबल स्टील के नाम से जाना जाता है, 2000 साल पहले से भारत में हो रहा था। औद्योगिक क्रांति का केंद्र चाहे यूरोप रहा हो,मगर सत्रहवीं सदी में भारतीय फौलाद के नमूने सिर्फ इस उद्धेश्य से ब्रिटेन ले जाए गए थे ताकि विशेषज्ञों की निगरानी में उसका अध्ययन कर, वहां बनने वाले फौलाद की गुणवत्ता को सुधारा जा सके। एशिया में पारम्परिक तरीकों से बननेवाले इस्पात को यूरोप में वुट्ज wootz के नाम से जाना जाता रहा। यह वुट्ज शब्द भी भारत की ही देन है और इसका मूल उक्कू ukko अथवा हुक्कू hookoo जैसे शब्दों को माना जाता है जो द्रविड़ भाषा परिवार के हैं और जिनमें परिष्कृत धातु का भाव है। प्राचीनकाल में दक्षिण भारत में बना हुआ इस्पात ही यूरोप जाता था।
फौलाद मूलतः इंडो-ईरानी परिवार का शब्द है और हिन्दी में इसकी आमद फारसी से हुई है। इस शब्द की व्याप्ति इंडो-ईरानी और इंडो-यूरोपीय परिवार की कई भाषाओं में है। तुर्की से लेकर रूसी भाषाओं में इसके विविध रूप नज़र आते हैं। सिर्फ फारसी में इसके एकाधिक रूप हैं जैसे पोलाद polad, पौलाद paulad, पुलाद pulad, फुलाद fulad और फौलाद faulad आदि। इसके अलावा रूसी में यह बुलात bulat है तो कुर्द भाषा में पिला, पुलाद और पौला है। मंगोल भाषाओं में इसके रूप बोलोत, बुलात, बुरियात हैं। आर्मीनियाई में इसके पोल्पात और फोल्पात रूप मिलते हैं। यूक्रेनी में यह firstheatबुलात है और चेचेन में इसका रूप बोलात है। तुर्की में इसका फुलाद और अरबी में फुलाध रूप मिलता है। फारसी का एक प्राचीन रूप है मनिशियाई पर्शियन, जिसका काल करीब तीसरी सदी से चौथी सदी ईस्वी के बीच माना जाता है, में भी इस शब्द की उपस्थिति (pwl’wd ) दर्ज  है। संभवतः यह संदर्भ अरबी से है। आज की फारसी में इसकी आमद बतौर पुलाद, पोलाद हुई। प्राचीन मध्यएशिया की सभ्यता में इस्पात तकनीक की शोधकर्ता और विशेषज्ञ डॉ एन्ने फ्यूरबाख ने मध्यएशिया के विभिन्न अन्वेषण स्थलों पर जाकर खोजकार्य किया और फौलाद के बारे में दिलचस्प जानकारियां जुटाई हैं। उनके मुताबिक फारसी के फौलाद का मूल रूप पुलाद है जिसका रिश्ता अवेस्ता से जुड़ता हैं। हालांकि यह अनिर्णित है कि पुलाद शब्द मूल रूप से संस्कृत से रूपांतरित है या अवेस्ता से मगर पुलाद/फौलाद की जड़ों में संस्कृत ही है।
फारसी, उर्दू, हिन्दी में प्रचलित फौलाद का पूर्व नाम पुलाद है। यह पु+लाध (pu-ladh )से मिलकर बना है। पु शब्द के फ़ू और फू fu /phu रूप भी हो सकते हैं। पु शब्द में लौह अयस्क के शुद्धिकरण, निष्कर्षण का भाव है। संस्कृत की पु धातु का अर्थ है किसी वस्तु को स्वच्छ करना, धोना, परिष्कार करना, पवित्र करना या शुद्ध करना (मोनियर विलियम्स)। पुलाद पद के दूसरे हिस्से लाद या ladh का रिश्ता लौह lauha से है। बजरिये अवेस्ता इसमें ध्वनि भी जुड़ गई। फारसी में का लोप हुआ और इस तरह पु+लाध का पुलाद रूप सामने आया और शुद्ध किए हुए लौह अयस्क के रूप में स्थिर हुआ। इस शब्द के विभिन्न रूप मध्यएशिया, मध्यपूर्व की भाषाओं में प्रचलित हैं। गौरतलब है कि संस्कृत के लोह् धातुमूल में  सोना, चांदी, ताम्बा समेत हर तरह की धातु का भाव है। वाशि आप्टे के कोश से पु धातु का स्वतंत्र रूप  से उल्लेख तो नहीं है पर इससे बने शब्दों का विश्लेषण करने से ज्ञात होता है कि पु धातु में मूलतः अग्नि में तपाकर परिशुद्ध करने का भाव है। पु धातु से बने पावकः का अर्थ संस्कृत में अग्नि होता है। पंचतत्वों के संदर्भ में क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा से यह स्पष्ट है। इसी धातु से बने पावन शब्द का अर्थ पवित्र, निर्मल, पापमुक्त, निर्दोष बनाना है। पावन का एक अन्य अर्थ अग्नि भी है। स्पष्ट है कि पुलाद का जन्म लोहे को शुद्ध करने  की क्रिया से ही हुआ है।
-जारी

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14 कमेंट्स:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

फौलाद की व्याख्या बढ़िया रही!

Khushdeep Sehgal said...

फौलाद की फौलादी व्याख्या...

जय हिंद...

स्वप्न मञ्जूषा said...

बहुत बढ़िया रहा सफ़र..फौलाद शब्द का..आभार..
एक छोटी सी टंकण में त्रुटि नज़र आई है...
क्षिति, जल, पावस, गगन, समीरा
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा
देख लीजियेगा....

Baljit Basi said...

इसमें कोई शक नहीं की मध्य युग तक भारत और चीन ने वज्ञान, गणित और उद्योग में बहुत तरक्की की थी,बल्कि दुनिया में सब से आगे थे.ये तो बाद में बात बिगड़ गई. अब
भी इन दोनों देशों की चढ़त हो रही है. इस विषय पर बहुत खोज होनी बाकी है. आप की कलम को बल मिले, आप भारत की प्रपतिओं को सहमने ला रहें हैं, ना जाने कहाँ कहाँ की खाक छानते हैं,कितने विषयों का ज्ञान रखते हैं.

Udan Tashtari said...

फोलादी पोस्ट!

उम्मतें said...

अजित भाई
यहां बस्तर में , इलेक्शन ड्यूटी के बाद , सकुशल घर वापसी , जश्न का कारण हुआ करती है ! देखिये ना , थककर चूर हूँ पर नेट पर हाजिर हूँ !
मैंने आपके आलेख पढ़ लिए हैं 'बोलके' मेरी उपस्थिति दर्ज कर लीजियेगा ! :) :) :)

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

एक परिस्कृत पोस्ट है. ऐसा मालूम पड़ता है बहुत तपाने और छानने के बाद लिखी है. बहुत धन्यवाद आपका

निर्मला कपिला said...

एक और अच्छी जानकारी धन्यवाद्

Mansoor ali Hashmi said...

फ़ोलाद थे हम भी कभी, प्रहलाद* भी हम ही हुए,
लोहे को बल* हमने दिया, प्रसाद* भी हम ही हुए,
गद्दार जब अपने बने, बर्बाद भी हम ही हुए,
'मनवा लिया लोहा'* तो फिर, उस्ताद* भी हम* ही हुए,

*प्रहलाद=अग्नि परीक्षा में पास
*बल=ताकत
*प्रसाद=भेंट चढ़ने की वस्तु/विनम्र
*'मनवा लिया लोहा'=बलजीत बासी जी से
*हम= अजित वडनेरकरजी

-मंसूर अली हाश्मी
http://mansooralihashmi.blogspot.com

किरण राजपुरोहित नितिला said...

namaskar !
loha bharat ki den hai ye jankar bahut accha laga.

समय चक्र said...

बहुत बढ़िया आलेख शब्दों के अर्थ सहित . आपका प्रयास सराहनीय है ....

kshama said...

हमेशाकी तरह ज्ञानवर्धक!

abcd said...

एक शानदार फोलादी पोस्ट

Himanshu Pandey said...

सदा की तरह ज्ञानवर्धक !
फौलाद इरादों से बढ़ता हुआ सफर ! आभार ।

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