संबंधित पोस्ट-1.कुलीनों की गोष्ठी में ग्वाले. 2.गवेषणा के लिए गाय ज़रूरी है.3.गोस्वामी, गोसाँईं, गुसैयां
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बहुत शोधपरक, उपयोगी और महत्वपूर्ण जानकारियां। हिंदी में इतनी संलग्नता के साथ ऐसा परिश्रम करने वाले विरले ही होंगे।
'शब्दों का सफर' मुझे व्यक्तिगत रूप से हिन्दी का सबसे समृद्ध और श्रमसाध्य ब्लॉग लगता रहा है।
आप के समर्पण और लगन के लिए मेरे पास ढेर सारी प्रशंसा है और काफ़ी सारी ईर्ष्या भी।
सच कहूँ ,ब्लॉग-जगत का सूर और ससी ही है शब्दों का सफ़र . बधाई.... अंतर्मन से
लिखते रहें. यह मेरे इष्ट चिट्ठों मे से एक है क्योंकि आप काफी उपयोगी जानकारी दे रहे हैं.
थोड़े में कितना कुछ कह जाते हैं आप. आपके ब्लाँग का नियमित पारायण कर रहा हूं और शब्दों की दुनिया से नया राब्ता बन रहा है.
आपकी मेहनत कमाल की है। आपका ये ब्लॉग प्रकाशित होने वाली सामग्री से अटा पड़ा है - आप इसे छपाइये !
बेहतरीन उपलब्धि है आपका ब्लाग! मैं आपकी इस बात की तारीफ़ करता हूं और जबरदस्त जलन भी रखता हूं कि आप अपनी पोस्ट इतने अच्छे से मय समुचित फोटो ,कैसे लिख लेते हैं.
सोमाद्रि
इस सफर में आकर सब कुछ सरल और सहज लगने लगता है। बस, ऐसे ही बनाये रखिये. आपको शायद अंदाजा न हो कि आप कितने कितने साधुवाद के पात्र हैं.
शब्दों का सफर मेरी सर्वोच्च बुकमार्क पसंद है -मैं इसे नियमित पढ़ता हूँ और आनंद विभोर होता हूँ !आपकी ये पहल हिन्दी चिट्ठाजगत मे सदैव याद रखी जायेगी.
भाषिक विकास के साथ-साथ आप शब्दों के सामाजिक योगदान और समाज में उनके स्थान का वर्णन भी बडी सुन्दरता से कर रहे हैं।आपको पढना सुखद लगता है।
आपकी मेहनत को कैसे सराहूं। बस, लोगों के बीच आपके ब्लाग की चर्चा करता रहता हूं। आपका ढिंढोरची बन गया हूं। व्यक्तिगत रूप से तो मैं रोजाना ऋणी होता ही हूं.
आपकी पोस्ट पढ़ने में थोड़ा धैर्य दिखाना पड़ता है. पर पढ़ने पर जो ज्ञानवर्धन होताहै,वह बहुत आनन्ददायक होता है.
किसी हिन्दी चिट्ठे को मैं ब्लागजगत में अगर हमेशा जिन्दा देखना चाहूंगा, तो वो यही होगा-शब्दों का सफर.
निश्चित ही हिन्दी ब्लागिंग में आपका ब्लाग महत्वपूर्ण है. जहां भाषा विज्ञान पर मह्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध रह्ती है. 
good,innovative explanation of well known words look easy but it is an experts job.My heartly best wishes.
चयन करते हैं, जिनके अर्थ को लेकर लोकमानस में जिज्ञासा हो सकती हो। फिर वे उस शब्द की धातु, उस धातु के अर्थ और अर्थ की विविध भंगिमाओं तक पहुँचते हैं। फिर वे समानार्थी शब्दों की तलाश करते हुए विविध कोनों से उनका परीक्षण करते हैं. फिर उनकी तलाश शब्द के तद्भव रूपों तक पहुंचती है और उन तद्बवों की अर्थ-छायाओं में परिभ्रमण करती है। फिर अजित अपने भाषा-परिवार से बाहर निकलकर इतर भाषाओँ और भाषा-परिवारों में जा पहुँचते हैं। वहां उन देशों की सांस्कृतिक पृष्टभूमि में सम्बंधित शब्द का परीक्षणकर, पुनः समष्टिमूलक वैश्विक परिदृश्य का निर्माण कर देते हैं। यह सब रचनाकार की प्रतिभा और उसके अध्यवसाय के मणिकांचन योग से ही संभव हो सका है। व्युत्पत्तिविज्ञान की एक नयी और अनूठी समग्र शैली सामने आई है।
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
शब्दों के प्रति लापरवाही से भरे इस दौर में हर शब्द को अर्थविहीन बनाने का चलन आम हो गया है। इस्तेमाल किए जाने भर के लिए ही शब्दों का वाक्यों के बाच में आना जाना हो रहा है, खासकर पत्रारिता ने सरल शब्दों के चुनाव क क्रम में कई सारे शब्दों को हमेशा के लिए स्मृति से बाहर कर दिया। जो बोला जाता है वही तो लिखा जाएगा। तभी तो सर्वजन से संवाद होगा। लेकिन क्या जो बोला जा रहा है, वही अर्थसहित समझ लिया जा रहा है ? उर्दू का एक शब्द है खुलासा । इसका असली अर्थ और इस्तेमाल के संदर्भ की दूरी को कोई नहीं पाट सका। इसीलिए बीस साल से पत्रकारिता में लगा एक शख्स शब्दों का साथी बन गया है। वो शब्दों के साथ सफर पर निकला है। अजित वडनेरकर। ब्लॉग का पता है http://shabdavali.blogspot.com दो साल से चल रहे इस ब्लॉग पर जाते ही तमाम तरह के शब्द अपने पूरे खानदान और अड़ोसी-पड़ोसी के साथ मौजूद होते हैं। मसलन संस्कृत से आया ऊन अकेला नहीं है। वह ऊर्ण से तो बना है, लेकिन उसके खानदान में उरा (भेड़), उरन (भेड़) ऊर्णायु (भेड़), ऊर्णु (छिपाना)आदि भी हैं । इन तमाम शब्दों का अर्थ है ढांकना या छिपाना। एक भेड़ जिस तरह से अपने बालों से छिपी रहती है, उसी तरह अपने शरीर को छुपाना या ढांकना। और जिन बालों को आप दिन भर संवारते हैं वह तो संस्कृत-हिंदी का नहीं बल्कि हिब्रू से आया है। जिनके बाल नहीं होते, उन्हें समझना चाहिए कि बाल मेसोपोटामिया की सभ्यता के धूलकणों में लौट गया है। गंजे लोगों को गर्व करना चाहिए। इससे पहले कि आप इस जानकारी पर हैरान हों अजित वडनेरकर बताते हैं कि जिस नी धातु से नैन शब्द शब्द का उद्गम हुआ है, उसी से न्याय का भी हुआ है। संस्कृत में अरबी जबां और वहां से हिंदी-उर्दू में आए रकम शब्द का मतलब सिर्फ नगद नहीं बल्कि लोहा भी है। रुक्कम से बना रकम जसका मतलब होता है सोना या लोहा । कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी का नाम भी इस रुक्म से बना है जिससे आप रकम का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे तमाम शब्दों का यह संग्रहालय कमाल का लगता है। इस ब्लॉग के पाठकों की प्रतिक्रियाएं भी अजब -गजब हैं। रवि रतलामी लिखते हैं कि किसी हिंदी चिट्ठे को हमेशा के लिए जिंदा देखना चाहेंगे तो वह है शब्दों का सफर । अजित वडनेरकर अपने बारे में बताते हुए लिखते हैं कि शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर भाषा विज्ञानियों का नज़रिया अलग अलग होता है। मैं भाषाविज्ञानी नहीं हूं, लेकिन जज्बा उत्पति की तलाश में निकलें तो शब्दों का एक दिलचस्प सफर नजर आता है। अजित की विनम्रता जायज़ भी है और ज़रूरी भी है क्योंकि शब्दों को बटोरने का काम आप दंभ के साथ तो नहीं कर सकते। इसीलिए वे इनके साथ घूमते-फिरते हैं। घूमना-फिरना भी तो यही है कि जो आपका नहीं है, आप उसे देखने- जानने की कोशिश करते हैं। वरना कम लोगों को याद होगा कि मुहावरा अरबी शब्द हौर से आया है, जिसका अर्थ होता है परस्पर वार्तालाप, संवाद । शब्दों को लेकर जब बहस होती है तो यह ब्लॉग और दिलचस्प होने लगता है। दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के नोएडा का एक लोकप्रिय लैंडमार्क है- अट्टा बाजार। इसके बारे में एक ब्लॉगर साथी अजित वडनेरकर को बताता है कि इसका नाम अट्टापीर के कारण अट्टा बाजार है, लेकिन अजित बताते हैं कि अट्ट से ही बना अड्डा । अट्ट में ऊंचाई, जमना, अटना जैसे भाव हैं, लेकिन अट्टा का मतलब तो बाजार होता है। अट्टा बाजार । तो पहले से बाजार है उसके पीछे एक और बाजार । बाजार के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द हाट भी अट्टा से ही आया है। इसलिए हो सकता है कि अट्टापीर का नामकरण भी अट्ट या अड्डे से हुआ हो। बात कहां से कहा पहुंच जाती है। बल्कि शब्दों के पीछे-पीछे अजित पहुंचने लगते हैं। वो शब्दों को भारी-भरकम बताकर उन्हें ओबेसिटी के मरीज की तरह खारिज नहीं करते। उनका वज़न कम कर दिमाग में घुसने लायक बना देते हैं। हिंदी ब्लॉगिंग की विविधता से नेटयुग में कमाल की बौद्धिक संपदा बनती जा रही है। टीवी पत्रकारिता में इन दिनों अनुप्रास और युग्म शब्दों की भरमार है। जो सुनने में ठीक लगे और दिखने में आक्रामक। रही बात अर्थ की तो इस दौर में सभी अर्थ ही तो ढूंढ़ रहे हैं। इस पत्रकारिता का अर्थ क्या है? अजित ने अपनी गाड़ी सबसे पहले स्टार्ट कर दी और अर्थ ढूंढ़ने निकल पड़े हैं। --रवीशकुमार [लेखक का ब्लाग है http://naisadak.blogspot.com/ ]
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
18 कमेंट्स:
nice
१ अंग्रेजी का शब्द कानवाई ( भेड की तरह फौजी गाडिओं का एक साथ चलना) सब ने सुना है. इस पर एक लतीफा सुना दूँ चाहे सभी ने सुना हो. कशमीर की ओर रात को कानवाई जा रही थी एक के पीछे एक , फौजी आधे सोए हुए . आगे वाला एक गड्ढे में गिर गया तो बाकी भी उसके पीछे पीछे जा गिरे . सुबह हुई तो पता चला सारी कानवाई ध्वंसत हो चुकी थी.
CONVOY related to 'CONVEY' from
L. com- "together" + via "way, road."
.२ पंजाबी में भेड़ को भेड बोलते हैं और इसका पुलिंग भी है 'भेडू'.
अच्छी जानकारी। धन्यवाद।
लोकानुलोका गतिः ! हम भारतीय भेडें, 'रेड इंडियनों' के देश की अग्रणी भेड का अनुसरण करती हैं । पहनावे में, भाषा में, विचारों में और तो और संस्कृति में भी हम पश्चिमी भेड की शुक्रगुज़ार हैं ।
जलवायु चिंता पर निष्फल सी गोष्ठी करती वह भेड हमें डेनमार्किया आंखे तरेर कर लीक पर बने रहने का सलीका भी सिखाती रहती है । अपना रेडियोधर्मी कचरा बीच बीच में पीछे उलीचती भी रहती है । और हम झपट्टेबाज़ भेडें, अनुगृहीत हैं ।
गोठ अब पंचसितारा दर्ज़ा पा चुकी है । हमारा देश गोष्ठियों में बहुत माहिर है । आयोग और गोष्ठियों से अलंकृत हमारा देश ! कलुषिता को प्रदर्शित करने वाले श्वेत पत्र ! और सच का सामना करने में माहिर हमारा नेतृत्व ! रंग की छटा भी अदभुत !! काला धन , सफेद झूठ !
निस्सन्देह, हमारा रेवड सबसे विलक्षण है । ऐसे में गडरिये को जितना पुरस्कृत किया जाये, थोडा है ।
- RDS
भेडिया धसान में भेड क ही जिक्र होता है आज ही पता चला हम तो भेडियो से सम्वन्ध ही समझते थे
अयंत सन्तुलिओत और सारगर्भित शब्द चर्चा रही ये..
संभव हो तो शिष्टाचार और शिष्टमंडल सम्बन्धी व्याखान देने का कष्ट करें.
- सुलभ
और समृद्ध हुए.
गोठ से अच्छी याद दिलाई.
हमेशा की तरह रोचक और ज्ञानवर्धक पोस्ट..!
ajit abhiyya ..भेडचाल की तरह यदि शेर-चाल भी कोई श्हब्द है तो.."शब्दो ंका सफ़र" के लिए उपयुक्त है.....शानदार पोस्ट है...
सुंदर आलेख। बहुत चीजें स्पष्ट हो गईं। अभी तो कई समूहों को वो भैड़ नहीं मिल रही जिस के पीछे चला जा सके।
यह बहुत बढ़िया जानकारी रही!
अन्धानुकरण करने मं हम भारतीयों का कोई मुकाबला नही है।
आदरणीय अजित भाई,
शब्दों के इस सफ़र पर आना हर बार कुछ और समृद्ध कर जाता है. आपकी लगन अद्भुत और सामर्थ्य अपार है.
सलाम के साथ शिरीष
***
भेड़ चाल पर अच्छी जानकारी. धन्यवाद, अजित जी.
tsdaral@yahoo.com
वाह भेडचाल लगता है छोटा सा शब्द मगर इतना बदा इतिहास ? धन्यवाद बहुत अच्छा रहा ये सफर भी
'भेडिया धसान' शब्द-युग्म प्रयुक्त करने से मैं खुद को रोकता रहा। मुझे इसका भेडिया ये जुडना कभी समझ नहीं आया। आज आपने मेरी उलझन दूर कर दी।
मालवा में भी भेड को गाडर कहा जाता है। नर भेड के लिए भेडा आज तक नहीं सुना।
गुरु ग्रन्थ साहिब में कबीर ने देखो गाडर समेत कितने जानवरों के नाम गिनवाए:
जल महि मीन माइआ के बेधे
दीपक पतंग माइआ के छेदे
काम माइआ कुंचर कउ बिआपै
भुइअंगम भ्रिंग माइआ महि खापे
पंखी म्रिग माइआ महि राते
साकर माखी अधिक संतापे
तुरे उसट माइआ महि भेला
सिध चउरासीह माइआ महि खेला
माइआ ऐसी मोहनी भाई
जेते जीअ तेते डहकाई
सुआन सिआल माइआ महि राता
बंतर चीते अरु सिंघाता
मांजार गाडर अरु लूबरा
बिरख मूल माइआ महि परा
भाव सब जानवर माया के चक्कर में पड़े हैं
@बलजीत बासी
वाह वाह बलजीत भाई। तुसी दिल जीत लिया।
कुत्ता, हिरण, कीट-पतिंगा, मछली, भेड़, भ्रंग,पक्षी, मक्खी,सियार, शेर, बिल्ली, चीता ये सब मनुष्येतर प्राणी हैं।
इन सबका माया अर्थात स्वार्थ से सरोकार और प्रकारांतर से दुनिया ही माया-मोह के चक्कर में हैं, ऐसा संबंध प्रतीकात्मक ढंग से कबीर ही
समझा सकते थे।
आभार
@आरडी सक्सेना
रमेश भाई, आपको तो किसी अखबार का संपादक होना चाहिए था। एकदम संपादकीय टिप्पणी सरीखी प्रतिक्रिया मिली है आपकी, इस कौपीन-हे-गुनी मौसम में।
आभार। दिन भर व्यस्त रहा सो जवाब नहीं दे पाया।
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