#शब्दकौतुक
जन गण मंगल की बात
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, जब हम राष्ट्र, जन और गण की बात करते हैं, तो याद रखना चाहिए कि संस्कृत-हिन्दी-फ़ारसी-अंग्रेज़ी के कई शब्द- जैसे जनतन्त्र, आज़ादी, जननी, जन्म, प्रजा, फ़र्जन्द या kin, kind, king, gene, genesis, gentle, और nation आदि एक ही भाषाई स्रोत से निकले हैं। ये सभी शब्द भारोपीय भाषा की जड़ों से उत्पन्न हुए हैं, जो संस्कृत, लैटिन, ग्रीक, फ़ारसी और भाषाओं की पूर्वज मानी जाती है। इस भाषाई सम्बन्धों के माध्यम से हम यह समझ सकते हैं कि मानव सभ्यता में "जन" और "गण" की अवधारणाएँ कितनी पुरानी और सार्वभौमिक हैं।कुटुम्ब से राष्ट्र तक
किन और किनशिप जैसे शब्द भी इसी कड़ी का हिस्सा हैं। "Kin" का अर्थ है स्वजन या परिवार। इसी तरह किनशिप का आशय हुआ रिश्तेदारी या नातेदारी। जो स्वजनों के बीच होती है। वे लोग जिनसे हमारा रक्त सम्बन्ध होता है। किंग, नैशन जैसे शब्द सत्ता और शासन की ओर संकेत करते हैं, लेकिन इनका मूल भी जन और जनता यानी भारोपीय मूल का जीन / gene है। जिसमें जन्म, आज़ादी, स्वतन्त्रता जैसे भाव छुपे हैं। इसी कड़ी में किंग भी है। राजा वही होता है जो अपने "गण" का प्रतिनिधि हो, और राष्ट्र वही होता है जो अपने "जन" की आकांक्षाओं का प्रतिबिंब हो। तो जनगण और जनतन्त्र में सत्ता का स्रोत जनता है, न कि कोई एक व्यक्ति या वर्ग।
समझ सकते हैं कि शुरुआती मानव समूह जो कौटुम्बिक धरातल पर था। जो रक्त सम्बन्धियों का ही संघ था। वे चलते फिरते राष्ट्र थे। बाद में वे स्थायी हुए और रिश्तेदारी-नातेदारी से उठकर उनके बीच जोड़ने वाला धागा भाषा, संस्कृति, क्षेत्र, नदी, पहाड़ और विशिष्ट सामाजिकता हुई। यही राष्ट्रीयता उनके बीच की नातेदारी थी। नैशन शब्द का रिश्ता भी जन से है। कैसे ? जन और नैशन का डीएनए
पुरानी लैटिन में नास्सी (gnasci) शब्द था जिसमें जन्म लेने का भाव था। यह उसी भारोपीय मूल gene से जुड़ा था जिसमें जन्म देने का भाव था। लैटिन का नेटिवस भी इसी शृङ्खला से निकला जिससे नेटिव शब्द बना जिसमें जन्म लेने, जन्मा होने, देशी, मूल निवासी आदि आशय हैं। इसका अगला विकास नैटियो है जिसमे जन्म, उत्पत्ति, जाति आदि है। इसी लिए लैटिन के नास्सी से निकले नैशन, नैशनल, नैशनलिज़्म आदि शब्दों में किसी जातीय संघ या समूह में पैदा होने का भाव प्रकट होता है। मूलतः नास्सी में जो gn है दरअसल यही वह गुणसूत्र हैं जो जन और नैशन में समान हैं। जाति शब्द इसी शृङ्खला का है किन्तु दुर्भाग्य से सदियों पहले भारतीय समाज में यह अपने लक्षणों से भटक गया। जन जन का गणित
संस्कृत में "जन" का अर्थ है उत्पन्न होना, और "गण" का अर्थ है समूह या समुदाय। जब हम "गणराज्य" कहते हैं, तो हम उस व्यवस्था की बात करते हैं जिसमें सत्ता का केंद्र जनसमूह होता है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, जहां अनेक भाषाएँ, धर्म, और संस्कृतियाँ सह-अस्तित्व में हैं, वहाँ "गण" की अवधारणा केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक भी है। गण का आशय एक से अधिक होना है। गिनती या गणना का आधार एक से अधिक इकाइयों का साथ साथ होना है। ऐसी अनेक इकाइयाँ मिल कर गण का निर्माण करती हैं। गणित कुल मिलाकर संख्याओं की क्रियाएँ ही तो हैं। आज़ादी और स्वतन्त्रता
इसी पड़ाव पर आज़ादी की बात कर लेते हैं। इसका अर्थ है स्वतन्त्र या बन्धनमुक्त। यह बना है पहलवी के आज़ात से। इसमें जो ज़ात है उस पर ग़ौर करें। यह वही है जो अजातशत्रु के जात में है। पहलवी का "ज़ात" और संस्कृत का "जात" भाषाई रूप से एक ही जड़ से निकले हैं, और दोनों में जन्म तथा स्वभाव का भाव निहित है। जन्म लेना दरअसल क्या है? जननी के गर्भ से बाहर आना और क्या ? गर्भनाल से बन्धे होने की विवशता से मुक्त होना। इस पृ्थ्वी पर खुली हवा में साँस लेने से पूर्व जन्मदात्री की कुक्षि में ही एक निश्चित अवधि तक ही जिसका ठिकाना होता है।
इस मायामय गेह से, जो कितनी ही सुरक्षित क्यों न रही हो, बाहर आना ही जीवमात्र की नियति है। और इससे बाहर आने के लिए वह छटपटाता भी है। तो कुल मिलाकर आज़ादी का मूल ज़ात है जिसमें जन्म लेने की बात है। जन्म लेने में कोख से मुक्ति की बात है। यही आज़ादी है। माँ के पेट से बाहर आने का वक्त भी वही तय करता है। आने वाले जीवन में भी अपनी आज़ादी को सुरक्षित रखने के लिए उसे निरन्तर सतर्क, सचेष्ट रहना होता है।जन्म लेना और उसे सार्थक करना
आज़ादी का महत्व जानने के लिए ख़ुद को किन्हीं नियमों, अनुशासनों के बन्धन में बान्धना भी आवश्यक होता है। स्वतन्त्रता के बिना सृजन सम्भव नहीं। "Gene" और "genesis" जैसे शब्द उत्पत्ति और विकास की ओर संकेत करते हैं। स्वतंत्रता केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, भाषाई और बौद्धिक विकास की भी प्रक्रिया है। भारत की स्वतंत्रता केवल ब्रिटिश शासन से मुक्ति नहीं थी, बल्कि यह अपनी सांस्कृतिक पहचान, भाषाओं, और विविधता को पुनः स्थापित करने का अवसर भी था। हम इस ओर कितना आगे बढ़े, यह जन और तन्त्र के तौर पर हम सबके और शासन के सामूहिक आकलन का विषय है। असम्पादित
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