... सीट यानी बैठने के आसन से जुड़ी शब्दावली से ही जनतंत्र की प्रमुख संस्थाओं-व्यवस्थाओं का नामकरण हुआ है ...
... संसद के दो सदन हैं जिन्हें राज्यसभा और लोकसभा नाम मिले हैं ...
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
... सीट यानी बैठने के आसन से जुड़ी शब्दावली से ही जनतंत्र की प्रमुख संस्थाओं-व्यवस्थाओं का नामकरण हुआ है ...
... संसद के दो सदन हैं जिन्हें राज्यसभा और लोकसभा नाम मिले हैं ...
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
प्रस्तुतकर्ता
अजित वडनेरकर
पर
4:05 AM
लेबल:
government
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
16 कमेंट्स:
बडनेरकर जी
गहन समुद्रमंथन के लिए सदा की तरह पुनः साधुवाद |
यदि ग्रस धातु ग्राम की उत्पत्ति करती हुई संग्राम तक पहुँची तब तो संसद का वर्तमान स्वरुप ग्राम शब्द की भावना के ही अनुरूप प्रतीत होता है |परन्तु ग्रस / ग्रसित होने / सिर्फ विवादों के निपटान के लिए सम-ग्राम हो जाना; कुछ अटपटा सा लगा | कृपया इसका मर्म समझाइएगा |
मैंने अक्सर पुस्तकों में ग्राम समूहों के लिए जन-पद शब्द का प्रयोग पाया है जन-पद अभी भी राज्य की कार्यपालिका का एक अंग है | जन-पद और सम-ग्राम में क्या भेद रहा होगा, जानने की उत्सुकता है | समाधान आपके अतिरिक्त और कौन कर सकेगा |
धन्यवाद |
छोटी पंचायत से संसद तक का की शब्दों के सफर यात्रा ज्ञानवर्धक और सभासद से सभापति तक की पोल खोलने में सफल रही।
हमेशा की तरह बहुत बढिया जानकारी. रामराम.
बेहतर जानकारी मिली । आभार ।
बढ़िया व नयी जानकारियां!!
धन्यवाद!!
अक्सर इतनी जानकारी पाकर आपके ब्लॉग पर मेरी मुह पर ताला लग जाता है!!
ग्राम का अर्थ ठहराव भी होता है(संगीत में इसी अर्थ में अभी भी जीवित है)। सीट के लिए एक शब्द है ‘आसन्दी’और आसन तथा पीठ भी । एक अन्य शब्द है ‘परिषा’ अर्थात परिधि सीमा बद्धता के अर्थ में। सद का अर्थ सत्य भी होता है, संसद का अर्थ सम्यक सत्य का निर्धारण या निरूपण समवेत या साथ-साथ करनें का स्थान।
‘समर्धुकस्तु वरदो व्रातीनाः सड्घजीविनः।
सभ्याः सदस्याः पार्षद्याः सभास्ताराः सभासदः’॥
‘सामाजिकाः सभा संसत्समाजः परिषत्सदः।
पर्षत्समज्या गोष्ठयास्था आस्थानं समितिर्घटा’॥ अभिधानचिन्तामणि ३/१४४ -३/१४५
भारत राजनैतिक रूप से विश्व में अग्रणी रहा है। चक्रवर्ती सम्राटों से लेकर लिच्छवी आदि गणतन्त्रो की सुदीर्घ परंपरा थी। अतः तत्समबन्धी शब्दावलि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। वेद,रामयण,महाभारत,सूत्र ग्रन्थ तथा कौटिल्य का अर्थशास्त्र प्रचुर सामग्री उपलब्ध कराते हैं।
वाकई गहन मंथन और नयी जानकारियां .
" सामाजिकाः सभा संसत्समाजः परिषत्सदः। " यह भाव अब कहाँ ?
कात्यायन जी ने संसद की व्याख्या से आलेख में चार चाँद लगा दिए | उन्हें भी ज्ञानवर्धन में सहयोग हेतु धन्यवाद |
सभ्याः सदस्याः पार्षद्याः सभास्ताराः सभासदः’॥
‘सामाजिकाः सभा संसत्समाजः परिषत्सदः। "
" यह भाव अब कहाँ ?
कात्यायन जी ने संसद की व्याख्या से आलेख में चार चाँद लगा दिए | उन्हें भी ज्ञानवर्धन में सहयोग हेतु धन्यवाद |
सही समय पर सही पोस्ट... बढ़िया है...
:)
सौमित्र
निषाद और उपनिषद भी लपेट लेते.. ऐसे भी उत्तम है!
ग्राम से संसद तक की जानकारी वह भी सम्पूर्ण , धन्यवाद बहुत छोटा शब्द है आपकी मेहनत को सराहने के लिए
@सुमंत मिश्र
संसद के संदर्भ-सूत्र तक पहुंचाने का आभार कात्यायनजी। संसद की अर्थवत्ता में सत्य का समावेश स्पष्ट था, पर उसे समय और आकार की सीमाओं की वजह से शामिल नहीं किया। आपके अध्यययन का लाभ सफर को काफी आगे पहुंचा देता है।
साभार, अजित
संसद से होती हुयी पार्षद तक sundar khoj..............शुक्रिया
आज बहुत दिनों बाद ब्लाग जगत से रूबरू होने का अवसर मिला और आपके ज्ञानवर्धक इस आलेख ने बड़ा सुख दिया...
रोचक ज्ञानवर्धक आलेख हेतु आभार.
बहुत गंभीर, बेहद उम्दा और
विस्मयकारी जानकारी दी आपने.
सप्रयास समरसता में कर्कशता की
अपरिहार्य उपस्थिति की बात अगर
समझकर स्वीकार कर ली जाए तो
अनेक समस्याएँ सुलझ सकती हैं.
===========================
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
Post a Comment