पिछली कड़ियों-पहले से फौलादी हैं हम…और जब आंख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है....से आगे
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बहुत शोधपरक, उपयोगी और महत्वपूर्ण जानकारियां। हिंदी में इतनी संलग्नता के साथ ऐसा परिश्रम करने वाले विरले ही होंगे।
'शब्दों का सफर' मुझे व्यक्तिगत रूप से हिन्दी का सबसे समृद्ध और श्रमसाध्य ब्लॉग लगता रहा है।
आप के समर्पण और लगन के लिए मेरे पास ढेर सारी प्रशंसा है और काफ़ी सारी ईर्ष्या भी।
सच कहूँ ,ब्लॉग-जगत का सूर और ससी ही है शब्दों का सफ़र . बधाई.... अंतर्मन से
लिखते रहें. यह मेरे इष्ट चिट्ठों मे से एक है क्योंकि आप काफी उपयोगी जानकारी दे रहे हैं.
थोड़े में कितना कुछ कह जाते हैं आप. आपके ब्लाँग का नियमित पारायण कर रहा हूं और शब्दों की दुनिया से नया राब्ता बन रहा है.
आपकी मेहनत कमाल की है। आपका ये ब्लॉग प्रकाशित होने वाली सामग्री से अटा पड़ा है - आप इसे छपाइये !
बेहतरीन उपलब्धि है आपका ब्लाग! मैं आपकी इस बात की तारीफ़ करता हूं और जबरदस्त जलन भी रखता हूं कि आप अपनी पोस्ट इतने अच्छे से मय समुचित फोटो ,कैसे लिख लेते हैं.
सोमाद्रि
इस सफर में आकर सब कुछ सरल और सहज लगने लगता है। बस, ऐसे ही बनाये रखिये. आपको शायद अंदाजा न हो कि आप कितने कितने साधुवाद के पात्र हैं.
शब्दों का सफर मेरी सर्वोच्च बुकमार्क पसंद है -मैं इसे नियमित पढ़ता हूँ और आनंद विभोर होता हूँ !आपकी ये पहल हिन्दी चिट्ठाजगत मे सदैव याद रखी जायेगी.
भाषिक विकास के साथ-साथ आप शब्दों के सामाजिक योगदान और समाज में उनके स्थान का वर्णन भी बडी सुन्दरता से कर रहे हैं।आपको पढना सुखद लगता है।
आपकी मेहनत को कैसे सराहूं। बस, लोगों के बीच आपके ब्लाग की चर्चा करता रहता हूं। आपका ढिंढोरची बन गया हूं। व्यक्तिगत रूप से तो मैं रोजाना ऋणी होता ही हूं.
आपकी पोस्ट पढ़ने में थोड़ा धैर्य दिखाना पड़ता है. पर पढ़ने पर जो ज्ञानवर्धन होताहै,वह बहुत आनन्ददायक होता है.
किसी हिन्दी चिट्ठे को मैं ब्लागजगत में अगर हमेशा जिन्दा देखना चाहूंगा, तो वो यही होगा-शब्दों का सफर.
निश्चित ही हिन्दी ब्लागिंग में आपका ब्लाग महत्वपूर्ण है. जहां भाषा विज्ञान पर मह्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध रह्ती है. 
good,innovative explanation of well known words look easy but it is an experts job.My heartly best wishes.
चयन करते हैं, जिनके अर्थ को लेकर लोकमानस में जिज्ञासा हो सकती हो। फिर वे उस शब्द की धातु, उस धातु के अर्थ और अर्थ की विविध भंगिमाओं तक पहुँचते हैं। फिर वे समानार्थी शब्दों की तलाश करते हुए विविध कोनों से उनका परीक्षण करते हैं. फिर उनकी तलाश शब्द के तद्भव रूपों तक पहुंचती है और उन तद्बवों की अर्थ-छायाओं में परिभ्रमण करती है। फिर अजित अपने भाषा-परिवार से बाहर निकलकर इतर भाषाओँ और भाषा-परिवारों में जा पहुँचते हैं। वहां उन देशों की सांस्कृतिक पृष्टभूमि में सम्बंधित शब्द का परीक्षणकर, पुनः समष्टिमूलक वैश्विक परिदृश्य का निर्माण कर देते हैं। यह सब रचनाकार की प्रतिभा और उसके अध्यवसाय के मणिकांचन योग से ही संभव हो सका है। व्युत्पत्तिविज्ञान की एक नयी और अनूठी समग्र शैली सामने आई है।
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
शब्दों के प्रति लापरवाही से भरे इस दौर में हर शब्द को अर्थविहीन बनाने का चलन आम हो गया है। इस्तेमाल किए जाने भर के लिए ही शब्दों का वाक्यों के बाच में आना जाना हो रहा है, खासकर पत्रारिता ने सरल शब्दों के चुनाव क क्रम में कई सारे शब्दों को हमेशा के लिए स्मृति से बाहर कर दिया। जो बोला जाता है वही तो लिखा जाएगा। तभी तो सर्वजन से संवाद होगा। लेकिन क्या जो बोला जा रहा है, वही अर्थसहित समझ लिया जा रहा है ? उर्दू का एक शब्द है खुलासा । इसका असली अर्थ और इस्तेमाल के संदर्भ की दूरी को कोई नहीं पाट सका। इसीलिए बीस साल से पत्रकारिता में लगा एक शख्स शब्दों का साथी बन गया है। वो शब्दों के साथ सफर पर निकला है। अजित वडनेरकर। ब्लॉग का पता है http://shabdavali.blogspot.com दो साल से चल रहे इस ब्लॉग पर जाते ही तमाम तरह के शब्द अपने पूरे खानदान और अड़ोसी-पड़ोसी के साथ मौजूद होते हैं। मसलन संस्कृत से आया ऊन अकेला नहीं है। वह ऊर्ण से तो बना है, लेकिन उसके खानदान में उरा (भेड़), उरन (भेड़) ऊर्णायु (भेड़), ऊर्णु (छिपाना)आदि भी हैं । इन तमाम शब्दों का अर्थ है ढांकना या छिपाना। एक भेड़ जिस तरह से अपने बालों से छिपी रहती है, उसी तरह अपने शरीर को छुपाना या ढांकना। और जिन बालों को आप दिन भर संवारते हैं वह तो संस्कृत-हिंदी का नहीं बल्कि हिब्रू से आया है। जिनके बाल नहीं होते, उन्हें समझना चाहिए कि बाल मेसोपोटामिया की सभ्यता के धूलकणों में लौट गया है। गंजे लोगों को गर्व करना चाहिए। इससे पहले कि आप इस जानकारी पर हैरान हों अजित वडनेरकर बताते हैं कि जिस नी धातु से नैन शब्द शब्द का उद्गम हुआ है, उसी से न्याय का भी हुआ है। संस्कृत में अरबी जबां और वहां से हिंदी-उर्दू में आए रकम शब्द का मतलब सिर्फ नगद नहीं बल्कि लोहा भी है। रुक्कम से बना रकम जसका मतलब होता है सोना या लोहा । कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी का नाम भी इस रुक्म से बना है जिससे आप रकम का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे तमाम शब्दों का यह संग्रहालय कमाल का लगता है। इस ब्लॉग के पाठकों की प्रतिक्रियाएं भी अजब -गजब हैं। रवि रतलामी लिखते हैं कि किसी हिंदी चिट्ठे को हमेशा के लिए जिंदा देखना चाहेंगे तो वह है शब्दों का सफर । अजित वडनेरकर अपने बारे में बताते हुए लिखते हैं कि शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर भाषा विज्ञानियों का नज़रिया अलग अलग होता है। मैं भाषाविज्ञानी नहीं हूं, लेकिन जज्बा उत्पति की तलाश में निकलें तो शब्दों का एक दिलचस्प सफर नजर आता है। अजित की विनम्रता जायज़ भी है और ज़रूरी भी है क्योंकि शब्दों को बटोरने का काम आप दंभ के साथ तो नहीं कर सकते। इसीलिए वे इनके साथ घूमते-फिरते हैं। घूमना-फिरना भी तो यही है कि जो आपका नहीं है, आप उसे देखने- जानने की कोशिश करते हैं। वरना कम लोगों को याद होगा कि मुहावरा अरबी शब्द हौर से आया है, जिसका अर्थ होता है परस्पर वार्तालाप, संवाद । शब्दों को लेकर जब बहस होती है तो यह ब्लॉग और दिलचस्प होने लगता है। दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के नोएडा का एक लोकप्रिय लैंडमार्क है- अट्टा बाजार। इसके बारे में एक ब्लॉगर साथी अजित वडनेरकर को बताता है कि इसका नाम अट्टापीर के कारण अट्टा बाजार है, लेकिन अजित बताते हैं कि अट्ट से ही बना अड्डा । अट्ट में ऊंचाई, जमना, अटना जैसे भाव हैं, लेकिन अट्टा का मतलब तो बाजार होता है। अट्टा बाजार । तो पहले से बाजार है उसके पीछे एक और बाजार । बाजार के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द हाट भी अट्टा से ही आया है। इसलिए हो सकता है कि अट्टापीर का नामकरण भी अट्ट या अड्डे से हुआ हो। बात कहां से कहा पहुंच जाती है। बल्कि शब्दों के पीछे-पीछे अजित पहुंचने लगते हैं। वो शब्दों को भारी-भरकम बताकर उन्हें ओबेसिटी के मरीज की तरह खारिज नहीं करते। उनका वज़न कम कर दिमाग में घुसने लायक बना देते हैं। हिंदी ब्लॉगिंग की विविधता से नेटयुग में कमाल की बौद्धिक संपदा बनती जा रही है। टीवी पत्रकारिता में इन दिनों अनुप्रास और युग्म शब्दों की भरमार है। जो सुनने में ठीक लगे और दिखने में आक्रामक। रही बात अर्थ की तो इस दौर में सभी अर्थ ही तो ढूंढ़ रहे हैं। इस पत्रकारिता का अर्थ क्या है? अजित ने अपनी गाड़ी सबसे पहले स्टार्ट कर दी और अर्थ ढूंढ़ने निकल पड़े हैं। --रवीशकुमार [लेखक का ब्लाग है http://naisadak.blogspot.com/ ]
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
16 कमेंट्स:
बिल्कुल सही कहा .... रक्त में जुड़ाव का भाव महत्वपूर्ण है। एकदम सटीक जानकारी वाली पोस्ट...
बहुत बढ़िया रहा आज का अंक. और हाँ, आपकी पुस्तक के लिए बधाई.
बेहद खूबसूरत प्रविष्टि । आभार ।
रक्तिका-बहुत उगा करती थीं हमारे घर के पास.
आनन्द आ गया इस अंक में. शानदार जानकारी.
बहुत बढ़िया विवेचना हुई है!
अगर 'लहू' ग़ालिब के शेर से शुरू किया था तो आतिश का क्या कसूर था कि 'खून' का आगाज़ उसके इस शेर से नहीं हुआ:
बहुत शोर सुना था पहिलु-ए-दिल में
चीर कर देखा तो कतरा-ए-खून निकला.
खैर बात यह है कि 'शोण' का मुझे कम से कम पंजाबी में कोई अवशेष भी नहीं मिला. लेकिन कहने से डरता हूँ कहीं आप खफा- खून न हो जाओ.वैसे 'वोहनिश' से खून का रिश्ता भी नहीं जुड़ता लगता. सोन नदी कि व्याख्या मैं ने गोल्ड वाले सोने से जुडी सुनी थी. नदीओं में पत्थर गीटे घिस घिस कर सोने जैसे चमकीले हो जाते हैं. कश्मीर का सोनमर्ग मैंने देखा है, उसके पहाड़ बिलकुल सोने की तरह पीले पीले चमकते हैं, पास में गलेशिअर से घिस घिस आते पत्थर भी चमकते हैं. शोण बिहार क़ी एक नदी का नाम भी है/था जिस का रंग लाल था. वैसे भरोसा आप पर ही है आप की तो खून पसीने की कमाई है.
रंज् ने तो चारों तरफ रंग लाये हुए हैं. पंजाबी में 'रती' का मतलब थोडा सा भी है( रती ठहर जा). फिर 'सग्गा-रत्ता' जैसा खूबसूरत शब्द है.
पंजाबी में रत्ता का मतलब लाल है. रत्ता सालू शादी में दुल्हन डालती है.
स्कीट 'लाख'(अंग्रेजी lac) का सबंध भी इस से जोड़ता है. संस्कृत लक्ष>लक्त्का>रक्ताक .
'रत्त' और 'खून' का एक साथ वर्णन गुरु नानक की मशहूर बाबर वाणी में आता है जिस में बाबर के भारत पर हमले ने भारतीय जनता पर कितने कहर ढाए, उसका मार्मिक चित्रण मिलता है:
खून के सोहिले गावीअहि नानक रतु का कुंगू पाइ वे लालो
बहुत सुगठित और महत्वपूर्ण आलेख है। बधाई!
लहू के रंग में मिश्रण बढ़ा सफेदी का,
हुआ जो हल्का तो दिखने लगा है भगवा सा,
रगों का रंग हरा सांप सा नज़र आये,
हमारी सोच को क्यों लग गया है लकवा सा.
-मंसूर अली हाशमी
http://mansooralihashmi.blogspot.com
@ बलजीत बासी
'आतिश' का शेर शायद कुछ इस तरह है:-
बहुत शौर सुनते थे पहलू में दिल का,
जो चीरा तो एक कतरा-ए-खूँ न निकला.
-मंसूर अली हाशमी
बहुत रोचक जानकारी दी आपने .
रक्तिका को राजस्थानी में चिरमी कहा जाता है. इससे गुड्डा गुड्डी की आँखे बनाई जाती थी .साथ ही यह बाजूबंद गोरबंद और चोटी के लच्छो में पिरोई जाती है.इसकी सुन्दरता के कारन राजस्थानी लोकगीतों में चिरमी लोकगीत बहुत मनचाहा है सबका.कही यह बाबोसा की लाडली बताई गई है कही इसे सहेली भी कहा गया है.गीत कुछ इस तरह है-------
चिरमी भोली म्हारी चिरमी
चिरमी रा डाळा च्यार
वारी जाऊ चिरमी रे
चिरमी बाबोसा री लाडली
आतो दोड़ी दौड़ी पीवर जाय
वारी जाऊ चिरमी रे
चढती ने दिखे मेड़तो
उतरती ने गढ़ अजमेर
वारी जाऊ चिरमी रे -------
लोक गीत देखिये -------
http://www.youtube.com/watch?v=WNYPTATZlpM
इस सुन्दर बीज की तासीर गरम है. गायों के बछड़ा जनने के बाद चिरमी पीस कर दी जाती है. कुम्भलगढ़ की पहाडियों में इसके झाड़ देखे जा सकते है.
@बलजीत भाई,
संस्कृत में स्वर्ण और शोण दोनो शब्दों का अर्थ लाल और पीला होता है। सोन नाम की कई कई नदियां भारत में हैं। मूलतः इनकी व्युत्पत्ति शोण, स्वर्ण, स्वर्णा से मानी जा सकती है। जल प्रवाह में पत्थरों का घिसकर चमकीला होने से नामकरण सोना नहीं होता है बल्कि नदी से बहकर आते रेतकणों में स्वर्णिम चमक से सोन, सोना या स्वर्णा नाम सार्थक होता है। पुराने ज़माने में नदियों की रेत से सोना निकालने की तकनीक लोगों को ज्ञात थी। हालांकि यह श्रमसाध्य और खर्चीली ज्यादा थी।
सोनमर्ग पर अलग से पोस्ट लिखी है, ज़रूर देखें। वह हरी-भरी वादी प्राकृतिक समृद्धि की वजह से सोनमर्ग है। सोना समृद्धि का भी प्रतीक है। पंजाबी की ही तरह हिन्दी में अल्पमात्रा, किंचित या ज़रा सा के अर्थ में रत्ती शब्द का प्रयोग होता है। रत्तीभर यानी ज़रा सा, थोड़ा सा आदि।
@किरण राजपुरोहित
आपने खूब याद दिलाया। राजस्थान में रहते हुए चिरमी शब्द सुन चुका हूं और लोक गीत भी सुने हैं। वैसे गुंजा शब्द को लेकर भी लोकगीत रचे जा चुके हैं। चिरमी शब्द चर्मरी से बना है। संस्कृत चर्मन् में त्वचा या खाल के अलावा रुधिर अथवा लाल रंग का भाव भी है। चर्मरी का अर्थ रंगीन या रक्तिका इस रूप में सार्थक है। कुछ शब्दकोशों में इसे चिरमिटी भी कहा गया है।
मंसूर अली जी, मैंने इस शेर के दो तीन और भी रूप सुने थे. बहुत शोर की जगह बादा शोर भी सुना. लेकिन आप की बात ठीक होगी, आप शायरी वाले हैं.
रत्ती रत्ती सच्ची आपने मेहनत की है । इतने सुरक्त आलेख के लिये धन्यवाद ।
अजित भाई आपकी मेहनत को सलाम ! आपको पढ़ते हुए सोच रहा था स्वजनता , शत्रुता, द्वेष , विच्छेद , अनुराग ,ऐय्याशी , परजीविता,कृपणता,धोखेबाजी, गुंडागर्दी , अपमान, क्रोध और क़त्ल ...क़त्ल... जिस्मो का ही नहीं ,अरमानों का भी , वगैरह वगैरह...कितने सारे रंग बिखेरता है खून ...यह केवल लालिमा कहां है !
आश्चर्य हो रहा है आपके ग्यान पर लाजवाब पोस्ट है धन्यवाद्
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