घुमक्कड़ी का भ्रष्टाचार से भला कोई रिश्ता हो सकता है ? दूर की कौड़ी लाई जाए तो कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचारी व्यक्ति, पुलिस से बचने के लिए इधर-उधर मारा-मारा फिरता है [ये अलग बात है कि पुलिस खुद ही भ्रष्ट है और भ्रष्टाचारी को छुपने के तरीके बताती है]। चलिये, जानते हैं भ्रष्ट और भटकन की रिश्तेदारी ।
घूमने-फिरने से संबंधित शब्दावली में यूं तो सैलानीपन, सैरसपाटा, घुमक्कड़ी, यायावरी, पर्यटन, बंजारापन और तो और आवारगी जैसे शब्द खूब इस्तेमाल होते हैं। घूमने फिरने की शब्दावली का ही एक शब्द है भटकन या भटकना । घुमक्कड़ी या सैरसपाटा यूं तो सौद्धेश्य ही होता है और अंत में ज्ञानार्जन ही होता है। मगर निरुद्धेश्य सी घुमक्कड़ी भी कई बार होती है जिसे आवारगी भी कह सकते हैं। मगर भटकन का अर्थ इन तमाम व्याख्याओं से भी हटकर है। भटकन में व्यर्थ का घूमना-फिरना तो शामिल है मगर खास बात यह कि निरुद्धेश्य तो मनुश्य अपनी मर्जी से भी घूम सकता है मगर भटकने में सिर्फ उसका ही दोष नहीं होता।
भटकन शब्द का सही भाव है गुमराह होना, रास्ता भूल जाना। इसी तौर पर भटकों को रास्ता दिखाने वाला मुहावरा भी कहा जाता है। यानी भटका वही है जो रास्ता भूल चुका है। यह शब्द बना है संस्कृत के भ्रष्ट से। संस्कृत का यह शब्द बोलचाल की हिन्दी में रोज़ाना इस्तेमाल होने वाले सर्वाधिक शब्दों में एक है। भ्रष्ट शब्द बना है संस्कृत धातु भ्रंश से जिसका मतलब होता है गिरना, टपकना, विचलित होना आदि। इससे बने भ्रष्ट में भी इन तमाम अर्थों समेत गुमराह, विचलित , गिरा हुआ, दुश्चरित्र, पतित, बर्बाद जैसे अर्थ भी शामिल हो गए। कुल मिलाकर भ्रष्ट वह है जो अपने मार्ग, स्थान, पद, गरिमा व चरित्र के मद्देनज़र उचित व्यवहार न करे। जो अपने इन गुणों से वंचित हो जाए वहीं भ्रष्ट है। इसीलिए भटके हुए व्यक्ति को पथभ्रष्ट कहा जाता है। भ्रष्ट यानी बिगड़ा हुआ । भ्रष्टाचारी, भ्रष्टाचरण जैसे शब्द अखबारों में रोज़ पढ़ने को मिलते हैं। ये अलग बात है कि भटका हुआ व्यक्ति आज मासूम और वक्त का मारा माना जाता है मगर उसे भ्रष्ट तो कतई नहीं कहा जाता । यूं भी जानबूझकर कोई ग़लत रास्ते पर चलना नहीं चाहेगा, खासतौर पर भटकन के अर्थ में। मगर विडम्बना है कि भ्रष्ट या भ्रष्टाचार शब्द का अर्थ आज सभी जानते है मगर सामाजिक जीवन में हममें से ज्यादातर लोग भ्रष्ट हो चुके हैं, या होने को उतारू बैठे हैं। हाल ये हैं कि छात्र जीवन से तय कर लिया जाता हैं कि किस व्यवसाय में भ्रष्टाचार की गुंजाइश है, वहीं हाथ आज़माया जाए !
संस्कृत से पैदा हुई भाषाओं में एक भाषा अपभ्रंश भी कही जाती है। यूं अपभ्रंश का मतलब होता है पतित, गिरा हुआ, ऐसे शब्द जो व्याकरण की दृष्टि से सही न हों, भ्रष्ट भाषा या संस्कृत से भिन्न कोई भी भाषा। गौर करें कि जब संस्कृत को देवभाषा कहा जाता है तो हर भाषा अपभ्रंश ही हुई न ! इस तरह भ्रष्ट का अपभ्रंश रूप हुआ भट जिसमें कई तरह के प्रत्यय लगने से भटकना, भटकाना, भटका, भटकल, भटकैयां जैसे कई शब्द बन गए। साफ है कि जिसे अपने रास्ते से , उद्देश्य से विचलित कर दिया गया हो वहीं भटकैयां या भटकल है। ऐसा करना ही भटकाना है और यूं फिरते रहना ही भटकन है।
[इस पोस्ट का अधिक आनंद लेने के लिए किस्सा ए यायावरी की नौ कड़ियों को पढ़ना न भूलें। ]
Sunday, June 15, 2008
हम सब भ्रष्ट हैं !!!
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 1:32 AM
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10 कमेंट्स:
Nice blog. Thats all.
अजित जी हम तो अपने को मासूम भटके राही कहेंगे या अटके राही भी कह सकते हैं... अभी अभी पता चला है कि एक और हफ्ता हमे चारदीवारी के अंदर ही यायावरी करनी होगी ..
इस जमाने में भ्रष्ट कोई भटका, भटका नहीं कहता।
इस व्याख्या से एक आईना
रख दिया सामने आपने.
भटकन के बहाने राह सुझाती प्रस्तुति.
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आभार
डा.चंद्रकुमार जैन
काहे भैया, सण्डे के दिन हमें भ्रष्ट बना रहे हैं! :)
भ्रष्टता तो अब समझिये खून मे घुल चुकी है हाँ पर आपकी व्याख्या से तो ये दौड़ रही है....
bahut achchi post...bhrashtachaar kis had tak badh chuka hai ye to ham sabhi ko pata hi hai! haan...shabdavali ke baare mein jaankaari dene ka liye dhanyvaad.
बाबा रे ..कहाँ से कहाँ ले चली भाषा की भटकन !
अच्छा लगा ये भी ..
- लावण्या
भ्रष्ट तो अब सही राह चलने वाले हो गए हैं... भटकता कौन है :-)
एक बाद फिर लाजवाब पोस्ट !
मजेदार पोस्ट और बहुत कुछ समझाती हुई।
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